प्रजातंत्र
रोमन देवी जस्टीशिया,आंखों पर पट्टी बंधी न्याय की देवी के रूप में न्यायालयों में प्रतीक के तौर पर नजर आती है। उनके एक हाथ में तराजू और दूसरे में तलवार होती है। आंखों पर पट्टी न्याय की निष्पक्षता का प्रतीक है। तराजू न्याय के संतुलन का प्रतीक है। यदि दूसरे शब्दों में कहें तो निष्पक्षता और कानून के दायित्व वाला संतुलन का तराजू यह दर्शाता है कि अदालत में प्रस्तुत साक्ष्य को तौलना चाहिए। कानूनी मामले के प्रत्येक पक्ष को देखा जाना चाहिए और न्याय करते समय तुलना की जानी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने संतुलन के तराजू में इस्राइल के शीर्ष नेताओं और हमास के शीर्ष नेताओं को साथ रखने का साहस दिखाया तो पूरी दुनिया में हल्ला मच गया। दरअसल इस्राइल और हमास के बीच संघर्ष में मानवता के संकट को लेकर दुनिया विचलित है,वहीं अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने युद्द अपराधों के लिए हमास के नेता याह्या सिनवार,हमास की अल कासिम ब्रिगेड के नेता मोहम्मद दियाब इब्राहिम अल मसरी और हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनियेह के साथ साथ इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करने की बात कहीं है। आईसीसी के मुख्य अभियोजक क़रीम ख़ान ने इसराइल के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और हमास के तीन नेताओं पर जनसंहार के मामले में गंभीर आरोप लगाए है।
आईसीसी के अभियोजन पक्ष ने हमास पर युद्ध अपराध,मानवता के ख़िलाफ़ अपराध,मर्डर,रेप,बंधक बनाने जैसे आरोप लगाए गए हैं। वहीं नेतन्याहू और गैलेंट के खिलाफ युद्ध अपराध और मानवता के विरुद्ध अपराध,जिनमें विनाश,उत्पीड़न,युद्ध के तरीके के रूप में भुखमरी पैदा करना,मानवीय राहत आपूर्ति से इनकार करना और हमास को हराने के प्रयास में जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाना शामिल है। करीम रवांडा,लेबनान और सिएरा लियोन की आपराधिक अदालतों में भी काम कर चुके हैं। ये तीनों देश गृहयुद्द और हिंसा की चपेट में आ चूके है। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय हेग में स्थित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक न्यायाधिकरण है। इसकी स्थापना 2002 में की गई थी। युद्ध अपराध,मानवता के विरुद्ध अपराध,नरसंहार और आक्रामकता जैसे विषय इसके अधिकार क्षेत्र में है। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने इस्राइल और हमास पर जो आरोप लगाएं है उसकी पुष्टि इन घटनाओं से की जा सकती है।
सात अक्तूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर हमला किया था। इस हमले में 1200 लोग मारे गए थे और कई लोगों को बंधक बनाया गया था। हमास के लड़ाकों को कई महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए,उनकी निर्मम हत्याएं की और उनके शरीर को क्षतविक्षत कर दिया। कई लोगों की गर्दन और उनके अंग काटकर सड़क पर फेंक दिए गए और फिर आतंकी उनके साथ खेल रहे थे। कई लोगों ने लोगों की हत्या,बलात्कार और सिर काटे जाने की आवाजें और चीखें सुनीं। हमला करने वाले हमास के आतंकवादियों के विभिन्न समूहों की क्रूरता के तरीके अलग अलग थे। इस्राइल के पुलिस प्रमुख याकोव शबताई ने कहा की यह एक पूर्वनियोजित घटना थी। ऐसा माना जाता है की हमास ने इस्लामिक स्टेट समूह और बोस्निया से महिलाओं के शरीर को हथियार बनाने का तरीका सीखा। यह सब इतना भयावह था की कई लोग इस्राइल के मानसिक स्वास्थ्य अस्पतालों में भर्ती है,जो उस खौफ से अब भी नहीं उबर पाए है और पागल हो गए है। हमास जिन्हें बंधक बनाकर ले गया,वे या तो मारे गए है या अंधेरी सुरंगों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर दिए गए है।
हमास की इस निर्ममता का जवाब इस्राइल ने बेहद प्रतिशोधात्मक तरीके से दिया है। इसराइल की जवाबी कार्रवाई में अब तक ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में 35 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सात अक्तूबर को हमास हमले के बाद इस्राइल ने ग़ज़ा पट्टी की पूरी तरह से घेराबंदी का आदेश दिया। अर्थात समूची आबादी का बिजली,पानी और ईंधन बंद कर दिया गया। इसराइल फ़लस्तीनी क्षेत्रों पर लगातार हवाई और जमीनी हमलें कर रहा है। इसराइल फ़लस्तीनी घायलों को भी नहीं बख्श रहा है। ग़ज़ा में फ़लस्तीनी क़ैदियों को अस्पताल में बिस्तरों पर बेड़ियों से बांध कर रखा जाता है और उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। कभी कभी उनके सारे कपड़े उतार दिए जाते हैं। इसराइली सेना ने ग़ज़ा में पूर्वी रफ़ाह के अलग अलग इलाक़ों में हमलें कर लाखों लोगों को बेघरबार कर दिया है। इज़रायली हवाई हमलों और नाकाबंदी के कारण अधिकांश अस्पतालों ने काम करना बंद कर दिया है। बिजली और ईंधन की कमी के कारण लोग गंदा पानी पीने को मजबूर है। पानी की कमी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया। फ़लस्तीनी क्षेत्रों में अकाल जैसे हालात बन गए है। हमास को अपने अपराधों पर कोई अफसोस नहीं है और वह बंधकों को छोड़कर युद्द खत्म करने की कोशिशें भी नहीं कर रहा। वहीं इजरायल ने आईसीसी अभियोजक के इस दावे को जोरदार तरीके से खारिज कर दिया है कि गाजा में आईडीएफ का अभियान जानबूझकर फिलिस्तीनी नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से है।
युद्द अपराध और मानवाधिकार की समस्या को लेकर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की निष्पक्षता को नकारने से वैश्विक ताकतों ने भी परहेज नहीं किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस निर्णय को भयावह बताते हुए कहा की इजरायल और हमास के बीच कोई समानता नहीं है। चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री पेट्र फियाला ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार और आतंकवादी संगठन की झूठी तुलना को भयावह और पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया। इसके साथ दुनिया के कई देशों के शीर्ष नेताओं ने लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के साथ आतंकी संगठन हमास के नेताओं की तुलना को गैर जरूरी बताया। इसराइली राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग ने इसराइल को लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार और हमास को नृशंस आतंकवादी बताते हुए आईसीसी की तुलना को अपमानजनक कहा। वहीं हमास नेताओं ने करीम ख़ान की मांग के बारे में कहा कि वो कातिल और पीड़ित को एक बराबर रख रहे हैं।
दुनिया भर में युद्द और हिंसा के हालात है,ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने निर्णय को नजीर की तरह लिया जाना चाहिए था जिससे संयुक्त राष्ट्र में करोड़ों लोगों का विश्वास बढ़ सकता था। वहीं संकट यह है कि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के निर्णयों का पालन कैसे होगा। आईसीसी के समझौते पर जिन 124 देशों ने हस्ताक्षर किए थे उसमें इसराइल शामिल नहीं है,अर्थात वह आईसीसी का सदस्य नहीं है। फ़लस्तीन समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल है,ऐसे में आईसीसी के पास क़ानूनी अधिकार है कि वो कार्रवाई कर सके। अब सवाल यह है की अगर वारंट जारी किया जाता है तो फ़लस्तीनी प्रशासन को हमास के नेता याह्या सिनवार,हमास की अल कासिम ब्रिगेड के नेता मोहम्मद दियाब इब्राहिम अल मसरी और हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनियेह को गिरफ्तार करना होगा। फ़लस्तीन में कोई प्रशासन है ही नहीं और यह हमास के प्रभाव क्षेत्र में है। अत: यह नामुमकिन है कि हमास अपने प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लें। वहीं प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ अगर वारंट जारी किया जाता है तो आईसीसी के जिस समझौते पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किए हैं,उनको मौक़ा मिलने पर जिस व्यक्ति के ख़िलाफ़ वारंट जारी किया गया है,उसे हिरासत में लेना होगा। नेतन्याहू को दूसरा कोई देश गिरफ्तार कर ले,यह भी नामुमकिन है।
दुनिया ने संयुक्त राष्ट्र का निर्माण कर विश्व शांति और मानवता की रक्षा के लिए नियम तो खूब परिभाषित किए। लेकिन जब भी मौका पड़ा,महाशक्तियों ने अपने फायदें के लिए संयुक्त राष्ट्र का जरूरत अनुसार इस्तेमाल किया। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के गिरफ़्तारी वारंट को जायज़ ठहराते हुए करीम ख़ान ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और सशस्त्र संघर्ष से जुड़े क़ानूनों को सभी पक्षों को मानना होगा,फिर चाहे आप कोई भी हों। प्रख्यात कानूनविज्ञ हंस केल्सन ने कानून के शुद्ध सिद्धांत की परिकल्पना की थी। उनके अनुसार कानून का शुद्ध सिद्धांत कहता है कि कानून यह वर्णन करने का प्रयास नहीं करता कि क्या होना चाहिए,बल्कि यह उन नियमों को परिभाषित करता है जिनका व्यक्तियों को पालन करना होता है। करीम खान ने न्याय की उम्मीद तो जगाई है लेकिन इसकी जद में आने वाले इस्राइल और हमास न्यायालय के निर्णय का मखौल उड़ा रहे है वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय ने तो यह तक कह दिया है की यह संघर्ष ही आईसीसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का सदस्य न तो रूस है,न अमेरिका,न चीन और न ही इस्राइल। जाहिर है अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का गिरफ़्तारी वारंट ठीक उसी तरह मजाक बन जाएगा,जैसे पुतिन के खिलाफ जारी होने के बाद भी वे चीन के खास मेहमान बन कर आ गए थे।
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