राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
पेंशन-जिंदगी के साथ भी,जिंदगी के बाद भी
दुनिया में कामकाजी बुजुर्गों का ख्याल,भारत में युवा बेहाल
बुजुर्गों का दीर्घायु होना समाज पर बोझ है या फायदा,यह इस चुनौती के लिए निपटने की तैयारियों पर निर्भर करता है। 2019 में जापान में हुई जी-20 बैठक में बुढ़ापे को चर्चा की प्राथमिकता सूची में रखा गया था। बूढ़े लोगों के लिए जापान में जो सम्मान है वह समाज ही नहीं,सरकार की नीतियों में भी दिखता है। जापान की कम से कम 20 फ़ीसदी आबादी 70 साल से ऊपर की है। जापानी बहुत मेहनती माने जाते है और यह देश अपने बुजुर्गों को सेहतमंद रखने के लिए सरकारी सुविधाओं से लेकर निजी संस्थानों तक खूब ध्यान रखता है। पेंशन योजना का विचार जर्मनी से आया था और उसके बाद दुनियाभर की सरकारें यह दिखाने को बेताब हो गई कि वे अपने बुजुर्गों की देखभाल कैसे करते हैं। दुनिया के कई देशों ने गरीब बुजुर्गों की समस्या को सुलझाने की दिशा में काम शुरू किया। डेनमार्क में पेंशन की शुरुआत हुई ताकि युवा कर्मचारी अमेरिका न जाएं। न्यूज़ीलैंड में भी इसी मकसद से पेंशन लागू की गई। दरअसल कामकाजी लोग जब रिटायर्ड होते है तो उनके जीवन के नये चरण की शुरुआत होती है जो संभवतः वयस्क जीवन के बाद वाले हिस्से जितना ही लंबा हो सकता है। रिटायर्ड होने के बाद की यह जिंदगी,उम्र के दायरों से कहीं बाहर होती है जो अधिक व्यक्ति केंद्रित होती है,खुशहाली पर केंद्रित होती है और उनका सुख-सुविधाओं जोर होता है। बुजुर्गों को पेंशन और अन्य सुविधाएं देकर दुनिया के कई देश,अपने वरिष्ठ नागरिकों का देश के प्रति योगदान के लिए कृतज्ञता प्रकट करने के लिए करते है। यह सम्मान और लाभ भारत की शासकीय सेवा में जीवन खपाने वाले बुजुर्गो को तो मिल ही सकता है।
आर्थिक और सामाजिक असमानता से अभिशिप्त भारतीय समाज के करोड़ों लोगों के लिए सुखी और खुशहाल जीवन एक सुनहरा सपना होता है। निम्न और मध्यवर्गीय लोगों के पास जमीन और व्यवसाय की कोई संभावनाएं नहीं होती और न ही उनके पास जमा पूंजी होती है। लिहाजा वे अपनी संतान को पढ़ा लिखा सरकारी नौकरी दिलवाने चाहते है। बेहद कम कमाई वाले कई परिवार अपनी जमीन जायदाद को बेचकर घर के किसी एक सदस्य की सरकारी नौकरी को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजीवनी समझते है। खासकर वंचित समाज के लिए सरकारी नौकरी का अर्थ विषमताओं पर विजय हासिल करने जैसा होता है।
सरकारी नौकरियों से इस देश के कई गरीब परिवारों के जीवन बदलें है और वे अपनी भावी पीढ़ी के लिए भी आश्वस्त हुए है कि अब उन्हें ग़ुरबत के उस दौर में नहीं लौटना पड़ेगा जहां कड़ी मेहनत और शोषण से बेहाल रहना पड़ता था। भारतीय परिवेश में जमा पूंजी या संग्रहण को आवश्यक समझा जाता है और इसे मुश्किल समय में,बुढ़ापे के साथ परिवार के लिए अनिवार्य बताया गया है।
जाहिर है सरकारी नौकरी में पेंशन योजना,कार्मिक और परिवार के जीवन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सेवा से निवृत होने के बाद घर के राशन खरीदने,किराया चुकाने या कर्ज लौटाने को इससे ज़्यादा अहमियत पेंशन की होती है। पेंशन के बारे में कार्मिक का यह मानस होता है कि यह आय का एक स्थिर स्रोत प्रदान करते हैं जब किसी को सबसे अधिक आवश्यकता होती है। वे लंबी अवधि में आपकी आय का एक हिस्सा संचित करने में आपकी सहायता करते हैं,ताकि इस धन का सेवानिवृत्ति के बाद उपयोग किया जा सके।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को कई चुनौतियों से जूझना पड़ता है और वह अपनी समस्याओं के हल के लिए सुशासन स्थापित करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाता रहा है। सुशासन की आठ प्रमुख विशेषताओं में जवाबदेही,पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को शामिल किया गया है। कार्मिकों से यह अपेक्षा होती है कि वे जिम्मेदारी से काम करते हुए भ्रष्टाचार की संभावनाओं को उत्पन्न ही नहीं होने दे। वहीं राज्य का प्रमुख ध्येय है संवेदनशील,पारदर्शी एवं जवाबदेह शासन की स्थापना करना। इसे साकार करने में अधिकारियों और कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकारी सेवाओं से जुड़े कर्मचारी भविष्य के प्रति सुरक्षित महसूस करें तभी वे सेवाकाल में सुशासन के लिए अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। राज्य के विकास एवं आमजन को राहत देने के लिए सभी कार्मिक मानवीय दृष्टिकोण तथा कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें। यह कोई भी लोकतांत्रिक सरकार चाहती है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि सभी कार्मिकों के व्यापक सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा की जाएं।
उदारीकरण के बाद सामाजिक मूल्यों में भी परिवर्तन आया है,यहीं नहीं सरकारों ने भी आम जनता को बाज़ार के उतार चढ़ाव के हवाले कर दिया है। सरकारी सेवा को लेकर भारत का कार्मिक समाज दो भागों में बंट गया है। 2004 के पहले का एक समाज वह है जो पेंशन के फायदों से भावी भविष्य को लेकर आश्वस्त है। वहीं 2004 के बाद का एक वह समाज है जो नई पेंशन स्कीम को लेकर आशंकाओं से ग्रस्त है।
भारत में ओल्ड पेंशन स्कीम यानी पुरानी पेंशन योजना के तहत सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पेंशन दी जाती है जो सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 प्रतिशत होता है। यानी मूल वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता है। इतना ही नहीं, सेवानिवृत्त कर्मचारी को कार्यरत कर्मचारी की तरह लगातार महंगाई भत्ता में बढ़ोतरी की सुविधा भी मिलती है। इससे महंगाई बढ़ने के साथ-साथ पेंशन में भी बढ़ोतरी होती रहती है। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी थी। इसके बाद एक नई स्कीम लागू की। नई स्कीम के तहत पेंशन की रकम सरकार की ज़िम्मेदारी न होकर बाज़ार जोखिमों के अधीन है।
पुरानी पेंशन योजना से पूरे परिवार के हितों की गारंटी मिलती है जैसे पति की मृत्यु के बाद आजीवन उनकी विधवा को इसका लाभ मिलना तय है। पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती है,यह एक सुरक्षित पेंशन योजना है इसका भुगतान सरकार की ट्रेजरी के जरिए किया जाता है। रिटायरमेंट के बाद 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी मिलती है। पुरानी पेंशन योजना में सर्विस के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन का प्रावधान है। यहां तक की पेंशन को टैक्स की झंझट से भी मुक्त रखा गया है। इन प्रावधानों का असर निश्चित तौर पर सेवारत कर्मचारी के व्यवहार और जवाबदेही पर भी पड़ता है। वे निश्चिंतता के साथ लोककल्याण में भागीदार बनते है।
वहीं जिंदगी के साथ और जिंदगी के बाद सुरक्षा की गारंटी देने वाली पेंशन योजना की जगह जो नई पेंशन योजना लाई गई,वह पूर्णत: शेयर बाजार आधारित है। बाजार की चाल के आधार पर ही भुगतान होता है। बाजार से मिलने वाले रिटर्न पर कोई गारंटी नहीं होती है। इसका अर्थ बेहद स्पष्ट है कि जैसे बाज़ार जोखिमों के अधीन होता है,वैसे ही कार्मिक की पूरी जिंदगी की कमाई और जोखिम में डाल दिया गया है। यह योजना कितनी अस्थिरता को बढ़ावा देने वाली है इसका अंदाजा इसके नियमों को देखकर समझा जा सकता है। अब रिटायरमेंट के समय ग्रेच्युटी का अस्थाई प्रावधान है। कार्मिक के सेवाकाल में मृत्यु के बाद फैमिली पेंशन मिलती है,लेकिन योजना में जमा पैसे सरकार जब्त कर लेती है। यहीं नहीं अब कार्मिकों को बाज़ार पर निर्भर रहने के लिए मजबूर कर दिया गया है। जैसे अब रिटायरमेंट पर शेयर बाजार के आधार पर जो पैसा मिलेगा,उस पर टैक्स देना पड़ेगा। पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय पेंशन प्राप्ति के लिए जीपीएफ से कोई निवेश नहीं करना पड़ता है। लेकिन अब रिटायरमेंट पर पेंशन प्राप्ति के लिए एनपीएस फंड से 40 फीसदी पैसा इन्वेस्ट करना होता है। नई स्कीम में जमा पूंजी को लेकर इतनी आशंकाएं है कि अब यदि कार्मिक की तनख्वाह अस्सी हजार है तो उसे हर महीने पेंशन के नाम पर महज चार हजार रुपया प्राप्त होगा जो की 2004 के पहले की योजना अनुसार चालीस हजार होता है।
सुशासन एक समतामूलक समाज के निर्माण का आश्वासन देता है। लोगों के पास अपने जीवन स्तर में सुधार करने या उसे बनाए रखने का अवसर होना चाहिये। शासन में सत्यनिष्ठा का उद्देश्य,शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करना,लोक सेवा में ईमानदारी बनाए रखना,प्रक्रिया का अनुपालन सुनिश्चित करना,सरकारी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बनाए रखना,कदाचार,धोखाधड़ी एवं भ्रष्टाचार की संभावना से बचना है। इस समतामूलक समाज की स्थापना के सबसे बड़े पहरुओं अर्थात् सरकारी कार्मिकों की भविष्य की सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है। कार्मिकों की भविष्य की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बड़े जरिया भारत में पेंशन को माना जाता है। यदि वह अनिश्चित है तो समझिए सुशासन की संभावनाओं की बनाने वाले सबसे बड़े वर्ग की कार्यक्षमता प्रभावित होना तय है। यह स्थिति राज्य को लक्ष्य से दूर कर सकती है।
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