कांता बहन त्यागी
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कांता बहन त्यागी

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महिला दिवस

कांता बहन त्यागी ,जिन्होंने सब कुछ त्याग करके हजारों आदिवासियों का जीवन रोशन किया

यह आदिवासियों की सेवा और उनके प्रति समर्पण का ही जूनून था की दिल्ली के पास रहने वाली एक 25 साल की नवयुवती घोर आदिवासी इलाकों में आती है,आश्रम स्थापित करती है और शिक्षा की अलख जगाकर हजारों परिवारों का जीवन  खुशियों से भर देती है। जानिए गाँधीवादी कांता बहन त्यागी के पाँच दशकों के संघर्ष और उनकी जीवटता को।

आय, खाद्य, आहार विविधता, पोषण और साक्षरता को आजीविका परिणामों के संकेतक के रूप में इस्तेमाल  किया जाएं तो पता चलता है कि आदिवासी समुदाय इनमें से कई विकास संकेतकों में पिछड़ा हुआ है। महात्मा गांधी ग्रामीण भारत को ही असल भारत मानते थे और ग्रामीण इलाकों के विकास में ही सशक्त और समर्थ भारत देखते थे। आजादी के बाद गाँधीवादियों ने देश के उन इलाकों की और रुख किया,जहां पिछड़ापन,गरीबी और निरक्षरता से उबारने की गंभीर चुनौती थी। देश को आजादी मिलने के समय दिल्ली के समीप हापुड़ जिले की रहने वाली कांता बहन त्यागी की उम्र महज चौबीस पच्चीस साल थी। उन्होंने दिल्ली से कहीं दूर मध्यप्रदेश के पश्चिमी निमाड के आदिवासी इलाकों की और रुख किया तथा घने वनों के बीच स्थित निवाली में कस्तूरबा आश्रम स्थापित किया।  एक नवयुवती का खादी की साड़ी पहनकर घने जंगलों में जाना और आदिवासी समाज के बीच शिक्षा का महत्व समझाना किसी चुनौती से कम नहीं था। कांता बहन ने अपने कार्यों से भोले भाले आदिवासी समाज के दिलों में कुछ ऐसी छाप छोड़ी की लोग अपनी बेटियों को शिक्षा ग्रहण करने कांता दीदी के आश्रम भेजने लगे और यहीं से इस इलाके के लोगों का जीवन संवरने लगा।

मानव सभ्यता के विकास में शिक्षक की भूमिका किसी भी काल में सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है।  भावी पीढ़ी को मार्ग दिखलाने  की शिक्षक की जिम्मेदारी उसे श्रेष्ठ बनाती है और यही सम्मान उसका सबसे बड़ा सुख है। कहा जाता है की एक अच्छा शिक्षक उम्मीद जगा सकता है,कल्पनाओं को प्रज्ज्वलित कर सकता है और सीखने के प्रति प्रेम उत्पन्न कर सकता है। चीन में एक कहावत है जो लोग साल का सोचते हैं, वह अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं, वो फलों के वृक्ष बोते हैं, लेकिन जो पीढ़ियों का सोचते हैं वो इंसान बोते हैं। मतलब उसको शिक्षित करना, संस्‍कारित करना तथा उसके जीवन को तैयार करना। कांता बहन ने चार बालिकाओं के साथ निवाली मे आश्रम की शुरुआत की थी। अब उस आश्रम में हजारों लड़कियां पढ़ती है और अपने स्वयं और परिवार के जीवन को गढ़ती है। 23 मई 2005 को कांता दीदी का स्वर्गवास हो गया,अब कांता दीदी  शरीर से हमारे बीच भले ही नहीं हो ,लेकिन उनका लगाया नन्हा पौधा अब वट वृक्ष बन चूका है और इसकी छाया में पल्लवित होने वाली हजारों लड़कियां शिक्षित होकर देश की सेवा कर रही है।

 

कांता दीदी की  कर्मस्थली

बड़वानी जिले में स्थित कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम निवाली शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम निवाली, कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की एक शाखा है। ट्रस्ट की 500 से अधिक केन्द्रों वाली 22 शाखाएँ पूरे भारत में फैली हुई हैं। कुछ केंद्र सुदूर, लगभग दुर्गम क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। ये सभी केंद्र अत्यधिक सामाजिक,आर्थिक और बौद्धिक मूल्य के रहे हैं।

कस्तूरबा ट्रस्ट की महिला कार्यकर्ता शक्ति का स्रोत हैं और हिंसा के दौरान और भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में लोगों की सहायता करती हैं। कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट ग्रामीण भारत में महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए समर्पित एक संगठन है। इसकी स्थापना 1945 में महात्मा गांधी ने अपनी दिवंगत पत्नी कस्तूरबा गांधी को समर्पित करते हुए की थी । इसका मुख्यालय कस्तूरबाग्राम, इंदौर , मध्य प्रदेश में है । इसकी 22 राज्यों में शाखाएँ हैं और यह स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार पर केंद्रित है।

कांता दीदी को कई पुरुस्कार मिलें…

मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा 17 मार्च 1987 को सम्मानित।
-मप्र शासन द्वारा 1986-87 में इंदिरा गांधी राज्य स्तरीय पुरस्कार।
-मप्र शासन द्वारा 27 मार्च 1997 को बिरसा मुंडा पुरस्कार।
-मप्र शासन द्वारा 1996-97 में इंदिरा गांधी राज्य स्तरीय पुरस्कार।
-भारत सरकार द्वारा 1997-98 के लिए पद्मश्री से सम्मानित।
जन परिषद भोपाल द्वारा प्रदेशश्री से अलंकृत।
-ओजस्वनी शिखर सेवा सम्मान।
-8 जनवरी 2002 को दीपालीबेन मेहता अवार्ड मुंबई।
-7 जनवरी 2003 को जानकीदेवी बजाज पुरस्कार मुंबई।

 

  • कांता दीदी,एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था थी। उनका पूरा जीवन स्नेह, सादगी और समर्पण से भरा हुआ था। आत्मनिर्भरता और स्वावलंबी होना उन्होंने ही सिखाया।  हमारा  विद्यालय बहुत मितव्ययिता से चलता है ,छात्राएं अपने कार्य स्वयं करती है। बागवानी से ज्यादातर आवश्यक सब्जियां अपने परिश्रम से निकालती है। सभी मिलकर सहयोग करते है और शिक्षा  और स्वास्थ्य की दिशा में हमारी यात्रा अनवरत जारी है।  कस्तूरबा वनवासी कल्याण आश्रम का उद्देश्य आदिवासी समाज की सेवा और समर्पण रहा है, कई दशकों से यह सफ़र जारी है।
  • सुश्री पुष्पा सिन्हा,निदेशक, कस्तूरबा वनवासी कल्याण आश्रम निवाली

 

 

 

 

कांता बहन त्यागी के सहयोगी राजा शर्मा कहते है….

आदिवासी समाज की कई चुनौतियां होती है,गरीबी और शोषण,आर्थिक और तकनीकी पिछड़ापन,सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ,गैर-आदिवासी आबादी के साथ घुलने-मिलने की समस्याएँ,आदिवासियों में अशिक्षा उनके विकास में एक बड़ी बाधा है,उचित चिकित्सा और स्वच्छता सुविधाओं की कमी और गरीबी के कारण आदिवासियों में स्वास्थ्य और पोषण की समस्या बहुत आम है तथा आय के पर्याप्त स्रोत न होने के कारण ऋणग्रस्तता। कांता बहन त्यागी ने इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर  जन जागरूकता अभियान चलाएं। वे जीवन भर मध्य प्रदेश की आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर ग्रामीण महिलाओं पर केंद्रित सेवाओं में संलग्न रही। आदिवासी महिलाओं को रोजगार मिले तथा वे आत्मनर्भर बने इसलिए आश्रम में सिलाई और बुनाई स्कूल, मसाला और पापड़ निर्माण इकाई का संचालन किया। कांता बहन ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए आदिवासी महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य केंद्र भी बनवाएं। निमाड के आदिवासियों के लिए कांता बहन बेहद सम्मानित और सेवभावी नाम है।

 

 

 

  • पश्चिम निमाड में बेहद पिछड़े इलाके सेंधवा तहसील के कोट किराडी गांव के एक किसान और गरीब परिवार में जन्म लेकर जो मैंने जीवन में सफलता अर्जित की उसमें कांता दीदी के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता। 1980 के दशक में पहली कक्षा में निवाली के आश्रम से जीवन की शुरुआत हुई। प्रार्थना से लेकर अनुशासन और पढ़ाई,सब कुछ दीदी के समक्ष सीखा। 12 वीं तक की पढ़ाई पूर्ण करना किसी सपने जैसे था। उसके बाद 2002 में राज्य सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर डीएसपी बनना और फिर 2006 में डिप्टी कलेक्टर में चयन के पीछे कांता दीदी के कड़ी मेहनत के सूत्र ही रहे। वे आदिवासी समाज के लिए समर्पित और उनके  जीवन में रोशनी लाने वाली शख्सियत के तौर पर सदा याद की जाएगी।

कल्पना आनंद,अपर कलेक्टर,नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण,इंदौर

 

 अगर पूज्य कांता दीदी ने आश्रम नहीं खोला होता तो हम आदिवासी बालिकाएं नहीं पढ़ पाती, दीदी के कारण ही में साइंस विषय पढ़ पाई हूं। क्योंकि मैं साइंस पढ़ना चाहती थी। दीदी ने खेल परिसर भी खुलवाया, जिसमें मेरा चयन हुआ था और मैं राज्य स्तर तक खेल कर दीदी और निवाली आश्रम का नाम गौरांवित किया था। निवाली आश्रम में साइंस लेने वाली में पहली लड़की थी, निवाली में साइंस विषय नहीं होने से मुझे बाहर गांव जाना पड़ रहा था। लेकिन पूज्य दीदी ने हमारे लिए निवाली में ही साइंस विषय भी खुलवाया, जिससे हमें बाहर जाना नहीं पड़ा। मैंने निवाली आश्रम में ही कक्षा 1ली से 11वीं तक पढ़ाई की है। यहां रहकर हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। दीदी ने हमें अच्छे संस्कार दिए दीदी हमेशा कहती थी, हमेशा सत्य बोलना चाहिए और बेसहारा लोगों की सहायता करनी चाहिए। ऐसी प्रेरणा हमें दीदी ने दी है।

 श्रीमती शर्मिला वर्मा

 प्रधान अध्यापिका

सी. एम. राइस विद्यालय सेंधवा 

जिला:- बड़वानी मध्यप्रदेश 98260 45146

हमारी पूज्य स्व.पद्मश्री कांता त्यागी दीदी ने हम जैसी सुदूर जंगलों में बसी आदिवासी बालिकाओं को आज शिक्षा के माध्यम से उच्च पदों तक पहुंचा है। उसके सार्थक प्रयास के लिए हम जीवन भर आश्रम की सेवा करने पर भी इस ऋण को नहीं चुका पाएंगे। *

सीता कन्नौजे*

मुख्य न्यायाधीश (बड़वानी)

  • परम पूज्य दिव्य आत्मा स्वर्गीय कांता दीदी  जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन नमन नमन नमन। 
  • कस्तूरबा कन्या वनवासी आश्रम निवाली स्थल  हमारे लिए पावन पवित्र तीर्थ स्थल से कमतर नहीं है दीदी जी की तपोभूमि आश्रम में सन 1984 में पहली कक्षा में प्रवेश लिया सन 1995 तक 12वीं कर जब छोड़ना पड़ा तब वह रुदाली आज भी याद है हमें आज भी आश्रम कम,  बेटियों का मायका अधिक लगता है दीदी जी का अनुशासन बहुत अनूठा था 500 बच्चों में उनका हमें नाम पुकार कर बुलाना एक गर्व की बात थी । दीदी जी द्वारा जो कन्या आश्रम की नींव रखी अपने आप में अद्भुत अद्वितीय है स्वर्गीय दीदी जी ने जो इतिहास रचा है। इस क्षेत्र की बेटियां मिलकर भी नहीं कर सकती है, दीदी जी का कार्य अनुपम, अमर रहेगा। कोटि कोटि कोटि नमन
  •      डॉ  सेवंती डावर आर्य

  • सहायक प्राध्यापक

  • शासकीय कन्या महाविद्यालय खरगोन

 

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