गांधी मरते क्यों नहीं है…!
गांधी है तो भारत है

गांधी मरते क्यों नहीं है…!

   सुबह सवेरे                    

यह गांधी का अंतिम आमरण अनशन था। जो 13 जनवरी 1948 को प्रारम्भ हुआ था।  हमेशा की तरह उनका शरीर इस बार भूख और प्यास का संकट झेलने को तैयार नहीं था। इस कारण महज 48 घंटे में ही उनके शरीर ने जवाब दे दिया। गांधी जी के मूत्र में एसीटोन और एसेटिक अम्ल के अंश पाए गये। मूत्र में उच्च एसीटोन का स्तर मधुमेह का संकेत देता है,जिससे कोमा या मृत्यु भी हो सकती है। उनके शरीर में कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन,विटामिन,खनिज और जल  जैसे पोषक तत्व खत्म हो रहे थे जिनकी आवश्यकता शरीर को सबसे ज्यादा होती है। विटामिन प्रतिरक्षा प्रणाली,रक्त के थक्के जमने और शरीर में ऊर्जा के निरंतर उत्पादन के लिए आवश्यक हैं,खनिज हड्डियों के स्वास्थ्य,विकास,तरल पदार्थों को संतुलित करने और कई अन्य प्रक्रियाओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कठिन आमरण अनशन के कई दौर हो चूके थे और ऐसे में बापू के गुर्गे भी ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे थे। दरअसल वे  बहुत कमजोर पड़ चूके थे।  गांधी को जब यह बताया गया की यह आमरण अनशन उनकी जान ले सकता है,तो गांधी बोले,मेरे मूत्र में एसीटोन है,इसका अर्थ है की राम में मेरी आस्था में कुछ कमी है। 

इस पर उनकी सहयोगी सुशीला बहन ने तर्क दिया,राम से इसका कोई मतलब नहीं है। फिर उन्होंने बताया की वैज्ञानिक ढंग से मूत्र में एसीटोन होने का मतलब क्या है। इस पर बापू बोले,क्या तुम्हारा विज्ञान सब कुछ जानता है। क्या तुम गीता में भगवान कृष्ण के यह शब्द भूल गई की मेरे अस्तित्व के बहुत ही सूक्ष्म अंश में यह सारी सृष्टि समायी हुई है। बापू की हालत गिरती ही जा रही थी। लेकिन बड़ी सुबह बापू पांव घसीटते हुए पूजा के कमरें में चले गए और पालती मारकर बैठ गए। यह बापू की शक्ति थी,जो आत्म शक्ति से निकलकर उनके असीम सामर्थ्य को बार बार सामने लाती थी। 

यह ईसाई ब्रिटिश साम्राज्य का ऐसा दौर था,जिसके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था,पर इस विजेता राष्ट्र की मान्यताओं से बिना विचलित हुए बापू चुनौती दे रहे थे। उन्हें न तो 10 डाउनिंग स्ट्रीट को लेकर कोई उत्साह था और न ही वे दिल्ली की और देख रहे थे। आज़ाद देश के भाग्योदय के बीच आने वाले साम्प्रदायिक दंगों की आग को बुझाने के लिए उन्होंने बंगाल की खाड़ी के ऊपर गंगा के मुहाने पर बसे एक गांव श्रीरामपुर में डेरा डाल रखा था। भीषण गर्मी से निपटने के लिए यह  बूढ़ा आदमी गीली मिटटी की थैली को बार बार अपने गंजे सिर पर घुमाता रहता। ब्रिटिश साम्राज्य को लगता था की यह आदमी मरता क्यों नहीं है,आखिर इसने ही उस कथित महान साम्राज्य की नींव हिला दी थी।   ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल तो बापू की मौत का इंतजार करते करते स्वयं ही बीमार पड़ गए थे। उन्हें बापू का उपवास नाटक नजर आता था। वे कहते थे की गांधी झूठ बोलकर कड़े उपवास का नाटक करता है और इस तरह ब्रिटिश सरकार को ब्लेकमेल करता है। पर बापू की आत्म शक्ति के सामने उनकी एक न चली। बापू की धडकन,रुकने के करीब आकर फिर तेजी से  चल पड़ती जैसे उन्हें कभी कुछ हुआ ही नहीं हो। पांच फुट के गांधी ने उन ब्रिटिश हथियारों को बेकार साबित कर दिया था जिससे ब्रिटेन ने दुनिया जीती थी। ब्रिटिश सैनिक मशीनगनों के साथ जब गांधी के सामने आते थे तो गांधी हजारों लोगों की भीड़ के साथ बेखौफ अहिंसक विरोध करते थे। बापू के नैतिक बल से अंग्रेज इतने चमत्कृत हुए की अनेक अधिकारियों ने भारत के आज़ादी के आंदोलन का समर्थन करना शुरू कर दिया। 

बंगाल भीषण साम्प्रदायिक दंगों की आग में जल रहा था और बापू जब वहां पहुंचे तो हिंदू और मुसलमानों की समान घृणा के वे शिकार हुए। लोग कहने लगे की गांधी मरता क्यों नहीं है। कोलकाता के मुस्लिम बाहुल्य इलाके की टूटी फूटी हैदरी मंजिल में उन पर भीड़ ने हमला बोल दिया। पत्थरों की बौछार हुई।   कोलकाता से करीब ढाई से किलोमीटर दूर नौआखली था,जहां 1947 में भीषण दंगे हुए थे और हिन्दुओं का बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ था। इस इलाके की भौगोलिक और प्राकृतिक जटिलताएं लोगों को भागने का अवसर भी नहीं देती थी। नोआखाली का इलाका जिसमें श्रीरामपुर गांव भी शामिल था,भारत के सबसे दुर्गम इलाकों में शामिल था। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा में,जहां हमेशा पानी भरा रहता था,यह छोटे मोटे द्वीपों का एक ग्रामीण क्षेत्र था। इसका कुल विस्तार मुश्किल से 40 वर्गमील था और इसमें 25 लाख लोगों की घनी आबादी रहती थी,जिसमें 20 फीसदी हिंदू और 80 फीसदी मुसलमान थे। यहां के बाशिंदे जल धाराओं में इस प्रकार बंटे हुए थे की एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए छोटी छोटी नावों का उपयोग किया जाता था। जिस प्रकार कोलकाता में हिन्दुओं ने गांधी से घृणा करते हुए कहा था की,गांधी मरता क्यों नहीं है,उसी प्रकार नोआखाली के मुसलमानों ने भी यहीं कहा। वे गांधी के गुजरने के रास्तों पर मैला फेंक देते,बापू यदि दरवाजे  की कुण्डी खड़खड़ायें तो लोग दरवाजा खोलकर बापू को बुरी बुरी गलियां देते और दरवाजा बंद कर देते। तमाम संकटों के बीच भी चार महीनों तक गांधी जी नोआखाली के गांवों का दौरा दिया। जेबी कृपलानी,सुचेता कृपलानी,डॉक्टर राममनोहर लोहिया और सरोजनी नायडू ने भी उनके साथ रहकर हिंसा प्रभावित गांवों में शांति बहाली की कोशिश की। 

बापू बार बार कहते थे कि भारत का विभाजन करने के पीछे मेरे शरीर के टुकड़े करने होंगे। श्रीरामपुर से करीब साढ़े आठ हजार किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका के डरबन के पास फिनिक्स आश्रम में शांति थी लेकिन इसके प्रभाव से गोरी सरकार डरी हुई थी। 1913 में,महात्मा गांधी ने पास कानूनों,विवाह पंजीकरण अधिनियम,तीन पाउंड कर और भारतीयों के आंदोलन पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रसिद्ध वोल्क्रस्ट सत्याग्रह शुरू किया। इस विरोध में महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई और कस्तूरबा गांधी सहित अन्य लोगों को जेल भेज दिया गया। स्वयं महात्मा गांधी को भी सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। आख़िरकार,जनरल स्मट्स ने हार मान ली और 1914 में भारतीय राहत अधिनियम पारित किया जिसने भेदभावपूर्ण कानूनों को ख़त्म कर दिया। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के करीब तीन दशक बीत चूके थे। उनके भारत लौटने से दक्षिण अफ्रीका की गोरों की सरकार ने राहत की  सांस ली थी। लेकिन गांधी के आंदोलन अब भी वहां बदस्तूर जारी थे जो भारतीयों और कालों के अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। दक्षिण अफ्रीका की सरकार परेशान थी की आखिर गांधी मरा क्यों नहीं। नेल्सन मंडेला,नामक एक युवा काले लोगों का प्रतिनिधित्व करने लगा था। 1944 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आन्दोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की।  नेल्सन मंडेला बहुत हद तक  महात्मा गांधी  की तरह अहिंसक मार्ग के समर्थक थे। उन्होंने गांधी को प्रेरणा स्रोत माना था और उनसे  अहिंसा  का पाठ सीखा था।   गोरों की सरकार अंतत:इस गांधीवादी से हार गई और 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद का विरोध करने वाले नेल्सन मंडेला देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए।

भारत विभाजन के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान पाकर सुकून महसूस किया लेकिन यह थोड़े ही समय का था।   खान अब्दुल गफ्फार खान जिन्हें सीमांत गांधी भी कहा जाता है,वे बाद के कई वर्षों तक पाकिस्तान में रहकर भी पाकिस्तान के अस्तित्व को चुनौती देते रहे।   मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में गांधीजी के उपदेशों को अपनाया और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन किया। उन्होंने सिविल राइट्स मूवमेंट के माध्यम से काले नीग्रो के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और सफलता पाई। उन्होंने अमेरिका में जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई और नीग्रो नागरिकों के लिए बराबरी की मांग की। लूथर किंग को अद्वितीय और अहिंसात्मक आंदोलन के लिए ब्लैक गांधी कहा जाता है।

सीरिया,फिलीस्तीन,म्यांमार,श्रीलंका,इराक,फ़्रांस से लेकर लैटिन अमेरिका,अफ्रीका और एशिया तक गांधी ही गांधी नजर आते है। दुनिया में कहीं भी मानवाधिकारों,समानता,स्वतन्त्रता और सामाजिक न्याय की मांग होती है तो लोगों के हाथों में स्वभाविक रूप से गांधी के बड़े बड़े पोस्टर नजर आते है। इसका सन्देश अहिंसक तो होता है लेकिन गांधी के प्रभावों से सभी सर्व सत्तावादी सरकारें डरती है और वे यह जवाब खोजने की तमाम कोशिशें करने लगती है की गांधी को कैसे  मारा जाएं। यह बात और है कि गांधी मरते ही नहीं है।

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