चीन की सैन्य रणनीति में मालदीव
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चीन की सैन्य रणनीति में मालदीव

जनसत्ता

    हाल ही में चीन और मालदीव के बीच एक रक्षा समझौता हुआ है जिसके अनुसार चीन मालदीव को सैन्य सहायता देने के साथ मालदीव की सेना को भी प्रशिक्षण देगा। अभी तक मालदीव की सुरक्षा और सैन्य प्रशिक्षण जैसे कार्यों में भारत की भागीदारी होती थी। मालदीव एक छोटा सा देश है लेकिन हिन्द महासागर के बहुत बड़े क्षेत्रों में उसके द्वीप फैले हुए है। भौगोलिक रूप से मालदीव की स्थिति भारत के लिए और वैश्विक व्यापार के लिए बेहद अहम है। मालदीव उत्तरी हिंद महासागर में दक्षिण एशिया के तट पर स्थित हैं। द्वीपसमूह का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा तक फैला हुआ है,जो इसे पूर्वी,उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध का हिस्सा बनाता है। ये हिंद महासागर के उस अहम हिस्से में है,जहां से वैश्विक शिंपिंग लाइनें गुज़रती हैं। शी जिनपिंग के आर्थिक,विदेश और सुरक्षा नीति के लक्ष्य कहीं अधिक महत्वाकांक्षी और विस्तृत है तथा उनके खास लक्ष्यों में चीन को समुद्री महान शक्ति बनाना शामिल है। 2012 में उन्होंने अपने इस लक्ष्य का सार्वजनिक रूप से इजहार किया भी था। अर्थव्यवस्था की स्थिरता के साथ निर्विवाद सैन्य शक्ति बनने के लिए समुद्र में मजबूत होना निर्णायक माना जाता है। चीन इस रणनीति पर आगे बढ़ रहा है और वह भारत के दक्षिण किनारे माने जाने वाले मालदीव तक पहुंच गया है।

समुद्र में आवागमन के प्रमुख मार्ग को एसएलओसी कहा जाता है। संचार के ये समुद्री रास्तें वैश्विक अर्थव्यवस्था के परिचालन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माने जाते है। भारत एक प्रायद्वीपीय देश है जो पश्चिम में अरब सागर,दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। भारत का विशाल प्रायद्वीप और इसके चारों ओर फैली हुई द्वीपीय श्रृंखला की सामरिक अवस्थिति के कारण ये क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अधिकांश हिस्सा समुद्री मार्ग से संचालित होता है। मालदीव के आसपास के एसएलओसी का वैश्विक समुद्री व्यापार के लिए व्यापक रणनीतिक महत्व है,भारत का लगभग  पचास  फीसदी विदेशी व्यापार और  अस्सी फीसदी ऊर्जा आयात इसी एसएलओसी के माध्यम से होता है। इससे साफ हो जाता है की मालदीव भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण देश है।

हिन्द महासागर में किसी भी देश की तटीय सीमा भारत जैसी नहीं है। हिन्द महासागर पश्चिम में यूरोपीय और पूर्वी एशियाई देशों को मिलाता है और भारत को केन्द्रीय स्थिति में लाता है। हिन्द महासागर के तटों से चीन बहुत दूर है और चीन को हमेशा यह डर बना रहता है कि भारत के सहयोग से अमेरिका हिन्द महासागर से उसकी आपूर्ति लाइन को काटकर उसे कभी भी अलग थलग कर देगा। मध्य पूर्व से चीन तक संचार की समुद्री लाइनें अपनी अधिकांश यात्रा के लिए भारतीय तट के पास से गुजरती हैं। चीन मालदीव के जरिए अपनी सुरक्षा और आर्थिक चिंताओं को खत्म करना चाहता है। वह मालदीव से बहुआयामी सम्बन्धों को बढ़ाने में कामयाब भी हो गया है,दोनों देशों में बढ़ता इस सहयोग से भारत के लिए कई क्षेत्रों में समस्या बढ़ सकती है।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने समुद्री शक्ति बनने की दिशा में अभूतपूर्व कदम उठाएं है और अपनी नौसेना को ओर अधिक आधुनिक और सक्षम बल में बदल दिया है। यह माना जाता है कि चीन की नौसेना चीन के निकट समुद्री क्षेत्र में एक दुर्जेय सैन्य बल है और यह पश्चिमी प्रशांत,हिंद महासागर और यूरोप के आसपास के व्यापक जलक्षेत्रों में बढ़ी संख्या में अभियान चला रही है। इसके साथ ही सहायता कूटनीति के नाम पर भारत से लगे देशों में चीनी नियंत्रित बंदरगाहों एवं सैन्य सुविधाओं के विकास से भारत के रणनीतिक हितों व क्षेत्रीय सुरक्षा को लगातार चोट पहुंच रही है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख भागीदार है। श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट,बांग्लादेश का  चिटगांव पोर्ट,म्यांमार की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों को चीनी कब्ज़े से भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई है। चीन ने इन बंदरगाहों को इस प्रकार से विकसित किया है कि वह यहां पर अपनी सैन्य महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए गश्ती जहाज या फ्रिगेट जैसे छोटे नौसैनिक जहाज भी रख सकें।

जियांग यांग होंग चीन का एक खोजी जहाज़ है,हिंद महासागर के विभिन्न क्षेत्रों में शोध अभियान के नाम पर घूमने वाले इस जहाज़ को मालदीव के बंदरगाह पर रुकने की मालदीव सरकार की इजाजत से भारत के रक्षा अनुसन्धान केन्द्रों के टोह लेने की आशंका बढ़ गई है। चीनी जहाज क्षेत्रीय सेनाओं को बेहतर ढंग से समझने,हिंद महासागर और उसके आसपास के भौगोलिक क्षेत्र पर डेटा इकट्ठा करने के लिए कुछ और विशिष्ट खुफिया,निगरानी और टोही मिशन भी चला सकते हैं। संभावित युद्धकालीन परिदृश्य की तैयारी में समुद्र के नीचे की विशेषताओं का मानचित्रण विशेष रूप से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ़ चाईना के लिए फायदेमंद होगा। इन खोजी जहाजों पर लगे शक्तिशाली कैमरे और उपकरण हजारों किलोमीटर तक नजर रख सकते है और महत्वपूर्ण सामरिक केन्द्रों की  गतिविधियों का पता लगाने में भी यह सक्षम है।

मालदीव चीन के लिए समुद्र में एक रणनीतिक केंद्र भी बन सकता है। मालदीव चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। 2021 में चीन ने एक नई समुद्री सड़क रेल लिंक शुरू की थी जो चेंगदू शहर को म्यांमार के यांगून से जोड़ती है,यह पश्चिमी चीन को हिंद महासागर से जोड़ने वाला ट्रेड कॉरिडोर है। यह मार्ग सिंगापुर,म्यांमार और चीन की लॉजिस्टिक लाइनों को जोड़ता है तथा वर्तमान में हिंद महासागर को दक्षिण पश्चिम चीन से जोड़ने वाला सबसे सुविधाजनक भूमि और समुद्री चैनल है। आर्थिक भागीदारी के साथ ही चीन यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि चीनी फर्मों द्वारा संचालित टर्मिनलों और वाणिज्यिक क्षेत्रों वाले रणनीतिक रूप से स्थित विदेशी बंदरगाहों का उपयोग  उसकी सेना द्वारा किया जा सके। इस तरह  की रणनीति के आधार पर चीन ने हिंद महासागर में स्थित कई देशों में आपूर्ति,रसद और खुफिया केंद्रों का एक व्यापक नेटवर्क बनाने की क्षमता  हासिल कर ली है।

अरब सागर  में ग्वादर बन्दरगाह स्थित है,इस बंदरगाह का प्रबंधन एक चीनी सरकारी कंपनी द्वारा किया जाता है। यह बंदरगाह फारस की खाड़ी से आने जाने वाले महत्वपूर्ण शिपिंग मार्गों के करीब स्थित है। श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह एशियाई और यूरोपीय अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्गों स्वेज नहर और मलक्का जलडमरूमध्य के करीब है। यह बंदरगाह चीनी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी सीएमपोर्ट के कब्जें में है। ग्वादर महत्त्वपूर्ण फारस की खाड़ी को,ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ने वाले होर्मुज़ जलडमरूमध्य से सिर्फ चार सौ किमी दूर है। इस मार्ग से चीन अपना अधिकांश तेल का आयात करता है।  मलक्का जलडमरूमध्य मध्य पूर्व और पूर्वी एशिया के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग है,जो एशिया,मध्य पूर्व और यूरोप के बीच परिवहन के समय और लागत को कम करने में मदद करता है। इसकी रणनीतिक स्थिति इसे हाइड्रोकार्बन,कंटेनर और थोक कार्गो शिपमेंट के लिए एक महत्वपूर्ण जलमार्ग बनाती है। अधिकांश एशियाई देशों की तरह,चीन भी हाइड्रोकार्बन आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। पेट्रोलियम और एलएनजी निर्यात का  सत्तर फीसदी से अधिक मालक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से भेजा जाता है,जो इसे चीन की ऊर्जा सुरक्षा नीति के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मार्ग बनाता है। 

मलक्का जलडमरूमध्य पर चीनी निर्भरता बनी हुई है और इस समुद्री मार्ग को लेकर चीन संशय में रहा है,क्योंकि अमेरिकी  नौ सेना इंडो पैसिफिक और मध्य पूर्व में बहुत मजबूत है तथा यहीं एकमात्र बल है जो एसएलओसी की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम है। इसका प्रभाव अफ़्रीका के तट से लेकर पूर्वी एशिया तक फैला हुआ है। हिंद महासागर में सबसे महत्वपूर्ण परिवहन मार्गों के केंद्र में भारत है और चीन को लगता है कि ताइवान या भारत से युद्द होने की स्थिति में अमेरिका सबसे पहले चीन की इस आपूर्ति लाईन को काटकर उसकी आर्थिक कमर तोड़ सकता है।

अब चीन अपनी आर्थिक और सामरिक चुनौतियों से निपटने के लिए मालदीव की ओर देख रहा है। मालदीव का माले बंदरगाह ,ग्वादर और हंबनटोटा के बीच चीन के लिए एक लिंक नौसैनिक अड्डे  की जरूरत को पूरा कर सकता है। मालदीव पर राजनीतिक और रणनीतिक बढ़त बनाकर चीन ने हिन्द महासागर में अपनी स्थिति बेहद मजबूत कर ली है।  इससे भारत पर चीन का सामरिक दबाव बना रहेगा। बहरहाल मालदीव के द्वीपों पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी की किसी भी तैनाती से भारत के पश्चिमी और दक्षिणी तटों की सुरक्षा पर संकट गहरा सकता है। 

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