जब बापू ने कहा,जैसा राम नचाता है,वैसा नाचता हूं…!
article गांधी है तो भारत है

जब बापू ने कहा,जैसा राम नचाता है,वैसा नाचता हूं…!

             जब बापू ने कहा,जैसा राम नचाता है,वैसा नाचता हूं…!

 

बापू को गांव की संस्कृति से बहुत प्यार था,इसीलिए वे सेवाग्राम में आकर रहने लगे। उन्होंने शहर वासियों को गांव में आकर रहने और वहां का जीवन अपनाने की सलाह दी। एक बार शहर के लोगों का एक समूह बापू से मिलने सेवाग्राम आया और उन्होंने शांति का मार्ग बापू से पूछा। बापू ने कहा कि आप सब राम मय हो जाओ,शांति पाने का सबसे अच्छा मार्ग यही है। उन्होंने उन सभी लोगों को राम नाम जपने की सलाह देते हुए कहा की मैं आपको एक ऐसा नाम दे रहा हूं,जिसकी पूजा इस देश की जनता न जाने कितनी पीढ़ियों से करती आ रही है। एक ऐसा नाम जो हमारे पशुओं,पक्षियों,वृक्षों और पाषाणों तक के लिए हजारों वर्षों से परिचित रहा है। राम का नाम आपको इतनी मधुरता और भक्ति के साथ लेना सीखना चाहिए कि उसे सुनने के लिए पक्षी अपना कलरव बंद कर दे,उस नाम के दिव्य संगीत पर मुग्ध होकर वृक्ष भी अपने पर्ण आपकी और झुका दे। बापू कहते थे की राम नाम का मेरा स्मरण चौबीस घंटे चलता है। मेरा संकल्प यही है कि जैसी सांस,वैसे ही राम का स्मरण चलता रहे।

नित्य होने वाली प्रार्थना सभा में बापू राम के चरित्र की अक्सर बात कहते थे। एक बार वे बोले,यदि बुरे विचार आपकों परेशान करते हो,या वासना और लोभ आपको त्रस्त करते  है तो इससे छुटकारा पाने के लिए राम नाम से बड़ा कोई मंत्र नहीं। मान लीजिये आपको आसान और बेईमानी से सम्पत्ति अर्जित करने की लालसा हो रही है और आपका राम नाम में विश्वास है तो आप अपने मन से कहेंगे कि मैं अपनी पत्नी और बच्चों के लिए धन संग्रह क्यों करूं। राम नाम के निरंतर जाप से आपका मोह और आसक्ति मिट जाएगी और आपको इस बात का सजग बोध होगा कि धन संग्रह की लालसा में पड़कर कितना मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे थे।

महात्मा गांधी कहते थे कि जो राममय होना चाहे,उसके लिए किसी विशेष समय की जरूरत नहीं है। खेती करते,खेलते,कूदते,घूमते,नहाते या अन्य कोई भी काम करते राम का नाम लेना सबका कर्तव्य है और यह ईश्वर प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग है। दरअसल बापू के लिए राम  का  चरित्र आदर्श जीवन  का आधार था और वे प्रत्येक व्यक्ति को राममय होने की सलाह देते थे। बापू कहते थे कि मुझे बचपन से रामनाम सिखाया गया और उसका सहारा मुझे बराबर मिलता रहा है। वे राम के जीवन अनुभवों की अवलेहना को इतिहास की अवहेलना करना जैसा बताते हुए नसीहत देते है राम नाम के जप का संबंध हृदय से है। जहां वाणी और मन में एकता नहीं,वहां वाणी केवल मिथ्या चीज़ है,दंभ  है,शब्दजाल है। ऐसे जप से चाहे संसार धोखा खा जाये,पर वह अन्तर्यामी राम कहीं धोखा सकता है क्या।

रामनाम जरूरी है,आत्मशुद्धि के लिए,हमारे प्रयत्न को सहारा देने के लिए  और ईश्वर से सीधा मार्गदर्शन पाने के लिए।  बापू कहते थे की रामनाम कभी भी परिश्रम का स्थान नहीं ले सकता। वह तो परिश्रम को अधिक बलयुक्त बनाने और उसे उचित मार्ग पर ले जाने के लिए है।

बापू अपनी बुद्धि,बल और आत्मविश्वास का आधार राम में विश्वास को को बताते थे। उन्होंने कहा,मुझमे जो बल है,वह राम का है मेरा अपना कुछ नहीं है। मुझे राम नाम का सहारा है,इसलिए मुझे कोई शारीरिक रोग नहीं है। चारो तरफ दावानल धधकता रहता है,फिर भी मैं अपने काम में तन्मयता से जुटा रह पाता हूं। यह राम जी का ही प्रताप है। यदि ऐसा न होता तो कब का टूट गया होता,इसलिए पुकार पुकार कर कहता हूं कि जैसा राम नचाता है,वैसा नाचता हूं… ।

#ब्रह्मदीप अलूने

(गांधी है तो भारत है,किताब के लेखक)

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