राष्ट्रीय सहारा
चीन के कर्ज से डूबे कई पिछड़े और विकासशील देशों में चीन का विरोध निरंतर बढ़ रहा है और भारत की इन इलाकों में मजबूती से चीन के आर्थिक और रणनीतिक हित प्रभावित होने से वह आशंकित है।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की समझ आवश्यक है। तकरीबन पांच दशक पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की बात कही थी। इसके बाद के वर्षों में दुनिया की राजनीति में अभूतपूर्व परिवर्तन आएं है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है की चीन की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में भारी वृद्धि हुई है। माओ की मृत्यु के बाद डेंग शाओपिंग के नेतृत्व में 1978 में चीनी सरकार द ग्रेट सर्कुलेशन नाम से एक नीति लेकर आई थी जिसमें अर्थव्यवस्था को निर्यात आधारित बनाने का लक्ष्य था।
डेंग शाओपिंग का मानना था कि चीन को पूरी तरह समाजवादी देश बनाने के लिए पहले उसकी अर्थव्यवस्था का मजबूत होना जरूरी है। इसकी शुरूआत तभी हो सकती है जब चीन की बंद आर्थिक व्यवस्था के दरवाजे पूरी दुनिया के लिए खोल दिए जाएं। चीन की यह नीति बहुत कारगर रही और वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में चीन का सामान लगभग हर देश में बेचा जाता है। इस निर्यात के कारण चीन के पास सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है,जिसने चीन के विकास में भी योगदान दिया है। विदेशी निवेश को अधिकतम करने के लिए उन्होंने आर्थिक नीतियां बनाईं जिससे निर्यात आय का मुख्य स्रोत बन गया। चीन आर्थिक ताकत के साथ रणनीतिक तौर पर भी मजबूत होना चाहता है और उसका प्रतिबिम्ब चीन की वन रोड वन बेल्ट परियोजना है।
वन बेल्ट,वन रोड परियोजना की शुरुआत चीन ने वर्ष 2013 में की थी। यह परियोजना चीन की विदेश नीति का एक हिस्सा है। इस परियोजना में एशिया, अफ्रीका और यूरोप के कई देश बड़े देश शामिल हैं। चीन की इस परियोजना का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया,मध्य एशिया, खाड़ी देश,अफ्रीका और यूरोप के देशों को सड़क और समुद्री रास्ते से जोड़ना है। चीन की यह योजना क़रीब दुनिया के 60 से अधिक देशों को सड़क, रेल और समुद्री रास्ते से जोड़ने का काम करेगी। चीन के मुताबिक़ उनकी इस परियोजना से दुनिया के अलग अलग देश एक दूसरे के नज़दीक आएंगे जिससे आर्थिक सहयोग के साथ आपसी संपर्क को भी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
दुनिया में चीन की बढती ताकत को जो देश चुनौती दे रहे है उसमें अमेरिका,जापान,ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ शामिल है। भारत इन देशों का अहम सहयोगी है। भारत चीन की वन बेल्ट,वन रोड का मुखर विरोध करता रहा है। शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता वर्तमान में भारत के पास है तथा वह एससीओ की बैठक में भी वन बेल्ट,वन रोड की आलोचना कर चूका है। शंघाई सहयोग संगठन चीन और उसके साझेदारों द्वारा बनाया गया एक रणनीतिक मंच है जिसे नैटो के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है।
चीन की नजर दुनिया के विकासशील देशों पर है जबकि भारत एक ऐसा विकासशील देश है जो आर्थिक और वैज्ञानिक प्रगति के सफल आदर्श मॉडल को सामने रखकर ग्लोबल साऊथ का नेतृत्व करने का मजबूत दावा कर रहा है। वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट को संबोधित करते हुए पीएम मोदी कह चुके है कि सभी विकासशील देशों को नई विश्व व्यवस्था बनाने के लिए एक दूसरे का समर्थन करना चाहिए। इससे हमारे नागरिकों का कल्याण सुनिश्चित होगा। चीन के कर्ज से डूबे कई पिछड़े और विकासशील देशों में चीन का विरोध निरंतर बढ़ रहा है और भारत की इन इलाकों में मजबूती से चीन के आर्थिक और रणनीतिक हित प्रभावित होने से वह आशंकित है।
भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी 20 का शानदार आयोजन दुनिया भर में चर्चा में रहा है। भारत की जी-20अध्यक्षता के दौरान व्यक्तिगत रूप से भागीदारी अब तक की सबसे बड़ी भागीदारी में से एक है। अब तक 110 से अधिक राष्ट्रीयताओं वाले साढ़े बारह हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने जी-20 से संबंधित बैठकों में भाग लिया है। यह भारत के अलग अलग क्षेत्रों में आयोजित की गई और इन आयोजनों के जरिए भारत ने लोकतंत्र,बहुलतावादी संस्कृति और विविधता को शानदार तरीके से प्रस्तुत किया है। जी-20 में दुनिया के कई महत्वपूर्ण देश हैं। जिसमें अमेरिका,चीन, भारत,अर्जेटीना,ऑस्ट्रेलिया,ब्राजील,कनाडा,चीन,फ्रांस,जर्मनी,इंडोनशिया,इटली, जापान, दक्षिण कोरिया,मेक्सिको,सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका,तुर्की,ब्रिटेन और यूरोपियन संघ शामिल है. इन सभी देशों के बीच दुनिया का 85 फीसदी कारोबार होता है। इन देशों के राजनयिकों और कारोबारियों के भारत आने से भारत की वैश्विक छवि में इजाफा ही होगा और इसका फायदा भारत की व्यापारिक गतिविधियों को मिलेगा।
जी 20 की प्राथमिकतायें समावेशी,न्यायसंगत और सतत् विकास,पर्यावरण के लिये जीवन शैली,महिला सशक्तीकरण,स्वास्थ्य,कृषि और शिक्षा से लेकर वाणिज्य तक के क्षेत्रों में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना एवं तकनीक-सक्षम विकास,संस्कृति और पर्यटन,जलवायु,वैश्विक खाद्य सुरक्षा,ऊर्जा सुरक्षा जैसे विषयों पर व्यापक सहमति बनाकर जनकल्याण की रही है और इसमें भारत के सामाजिक सरोकारों में अधिकांश विषय शामिल रहे है। वैश्विक स्तर पर इन विषयों पर सहमति बनने का फायदा समूची मानव जाति को मिल सकता है और इससे भारत की छवि न केवल मजबूत होगी बल्कि उसे इसका कूटनीतिक और आर्थिक फायदा भी मिल सकता है। चीन को यह स्थिति स्वीकार नहीं है इसलिए वह भारत में आयोजित इस सम्मेलन में कोई साझा समझौता होने देना ही नहीं चाहता।
भारत एक उभरती महाशक्ति है जो वैश्विक स्तर पर बेहद तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही है। ऐसे में भारत दुनिया के सामने विकासशील देशों के लिए नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का नेतृत्व करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण देश है। भारत समय-समय पर अलग-अलग वैश्विक मंचों से ग्लोबल साउथ के देशों के हक के लिए आवाज उठाता रहा है। वर्तमान समय पर दुनिया में बढ़ती असमानता के कारण नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है जिसमें भारत के योगदान को उसकी वर्तमान G20 की अध्यक्षता से साफ समझा जा सकता है। भारत की वर्तमान G20 अध्यक्षता में दुनिया के अल्प-विकसित और विकासशील देशों की आवाज को बेहद मजबूती से रखते हुए भारत ने ग्लोबल साउथ के विकास मुद्दों को अपनी अध्यक्षता के केंद्र में जगह दी है,जो भारत की विकासशील देशों के प्रति उसकी सजग जिम्मेदारी को दर्शाता है। नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था विकासशील देशों द्वारा आर्थिक उपनिवेशवाद और निर्भरता को एक नई परस्पर निर्भर अर्थव्यवस्था के माध्यम से समाप्त करने के प्रस्तावों का एक समूह है। जबकि चीन दुनिया भर के कई पिछड़े और गरीब देर्शों को कर्ज में उलझाकर उन्हें नव उपनिवेश बनाने की और अग्रसर है।
चीन अमेरिकन डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा युआन को मजबूत करना चाहता है और इसीलिए वह युआन कूटनीति को आगे बढ़ा रहा है।चीन,युआन को प्रोत्साहित करके वैश्विक वित्तीय गतिशीलता को नए सिरे से परिभाषित करने की सोच के साथ आगे बढ़ रहा है।
जाहिर है चीन का प्रयास यह है की वह ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे उन मंचों को मजबूत करें जिन पर चीन के हित हावी रहे है तथा वह अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों का संवर्धन भी करने में कामयाब होता रहे। जी 20 जैसे मंचों पर चीन के हितों को चुनौती मिलती रही है। भारत में आयोजित जी-20 के शिखर सम्मेलन में शामिल न होकर शी जिनपिंग ने अपना रुख साफ कर दिया है की उसे भारत का न तो ग्लोबल लीडर बनना स्वीकार है और न ही यूरोपीय संघ,अमेरिका और जापान जैसी शक्तियों की व्यापक स्वीकार्यता को वह तरजीह देता रहेगा।
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