स्वतंत्र समय
बालू,पत्थर,कोयले का अवैध खनन,मछली का अवैध व्यापार,मानव तस्करी,नकली नोटों का कारोबार,नक्सलियों की आमद,आतंकियों का संरक्षण और घुसपैठियों के स्वर्ग के तौर पर पश्चिम बंगाल की पहचान को कोई नकार नहीं सकता। राजनीतिक दलों को पश्चिम बंगाल की यह पहचान बदलने के लिए पाला बदलने वाले अपराधिक किस्म के नेताओं से दूरी बनाने की जरूरत है।
पश्चिम बंगाल में जो भी दल राजनीतिक तौर पर मजबूती से उभरता है और सत्ता में आ जाता है,राजनीतिक रसूख वाले अपराधी उस दल की सदस्यता ले लेते है। बंगाल के एक सांसद ने स्वीकार किया है कि अपराधियों ने देखा की मकान तोड़ेंगे तो पुलिस पकड़ लेगी,हम बिजली का तार काटेंगे तो पुलिस पकड़ लेगी,तो नेता बन जाने से हम चोरी भी कर सकते हैं और पुलिस भी सलाम ठोकेगी। तो ऐसे में राजनीति कमाई का एक ज़रिया बन गई है।
साल्ट लेक सिटी का भारत में बड़ा नाम है। कोलकाता से लगा यह शहर चारों तरफ से झीलों से घिरा हुआ है जहां आप नाव की सवारी कर सकते हैं और हरियाली का आनंद ले सकते हैं। हजारों लोग इसे रोज देखने आते है। साल्ट लेक सिटी पश्चिम बंगाल के उत्तर 24परगना जिले का एक भाग है लेकिन इस जिले की पहचान साल्ट लेक सिटी तक ही सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित संदेशखाली उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट उपखंड में आता है। यह बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ इलाका है जहां महिलाओं पर अत्याचार और उनके उत्पीड़न की दिल दहला देने वाली कई घटनाएं सामने आ रही है। कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना ज़िले को पश्चिम बंगाल की राजनीति का केंद्र माना जाता है। राज्य में विधानसभा की 294 सीटें हैं और 23 ज़िलों में सबसे ज़्यादा सीटें उत्तर 24 परगना ज़िले में है जहाँ से 33 विधायक चुने जाते हैं। कहते है कि साम्यवादी सरकार ने साढ़े तीन दशक का कार्यकाल 24 परगना से ही संचालित किया था। बांग्लादेश से लगने वाला यह जिला अपराधियों की ऐसी शरणस्थली रहा है जहां अपराध को संरक्षण देने के लिए नेता बनना सबसे मुफीद माना जाता है।
भारत की आज़ादी के आंदोलन में बंगाल का गहरा प्रभाव और योगदान था तो देश के विभाजन के रास्ते भी बंगाल से ही खुले थे जब यहां 1946 के प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए आरक्षित 119 सीटों में से 113 सीटें जीत ली थी। यहीं कारण रहा है जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे का प्रभाव भी बंगाल में ही सबसे ज्यादा रहा। आजादी से ठीक एक बरस पहले 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में हुए दंगों ने बंगाल की जमीन को लाल कर दिया था। इन दंगों की शुरुआत पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले से हुई थी और 72 घंटों तक चले इन दंगों में छह हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 20 हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए।
राजनीतिक हिंसा का यह दौर आज़ादी के बाद भी बदस्तूर जारी है। बंगाल में जिस ही पार्टी को सत्ता मिली उसने राजनीतिक दबाव और हिंसा के जरिए कानून व्यवस्था को गुलाम बना लिया। यहां राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास है,जो कई दशकों से चला आ रहा है और जिस ने राज्य की राजनीति पर जटिल और गहरा प्रभाव डाला है। भारत की आज़ादी के बाद से इस राज्य में अलग अलग राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारें बनाई हैं,जिसमें कांग्रेस दो दशकों से भी ज़्यादा समय तक सत्ता में रही है। इसके बाद सत्तर के दशक में वोटरों को आतंकित कर अपने पाले में करने और सीपीएम की पकड़ मजबूत करने के लिए बंगाल में हिंसा का नया दौर शुरू हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी का लगभग साढ़े तीन दशकों तक शासन रहा और मौजूदा दौर में तृणुमूल कांग्रेस सत्ता पर काबिज़ है। यहां जो भी राजनीतिक दल सत्ता में मजबूत होते है,राजनेता उस और रुख कर लेते है। इसलिए अपराध पर कभी अंकुश हो नहीं पाता तथा राजनीतिक संरक्षण के चलते राजनीतिक हिंसा कभी नहीं थमती है।
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