राष्ट्रीय सहारा
चुनाव प्रशासन के लिए नैतिक मानक होना चाहिए,इसे लेकर दुनिया के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में संस्थाएं काम करती है। कुछ देशों में यह कार्य भारत की तरह संविधानिक संस्था देखती है तो यूके जैसे पुराने और उदार लोकतंत्र,राजनीतिक दलों से यह अपेक्षा करते है कि समावेशी विचारधारा पर किसी प्रकार का मतभेद न हो। यह विश्वास किया जाता है कि चुनाव प्रबन्धन एक विस्तृत प्रक्रिया है जिसमें नीतिगत मामलों को लेकर आदर्श आचार संहिता को अति महत्वपूर्ण माना जाता है। चुनाव प्रशासन राजनीतिक दलों की सीमाएं निर्धारित करता है और नियमों को द्वारा ऐसे अवांछित वक्तव्यों और राजनीतिक कृत्यों को बाधित करता है जो विविधता और राष्ट्र की अखंडता के लिए नुकसानदायक हो। हालांकि यह भी देखा जा रहा है कि कई लोकतांत्रिक देशों में मूल्यपरक सिद्दांत पीछे छूट रहे है,प्रशासन के कामकाजी संविधानिक मुद्दों के प्रति राजनीतिक दलों की नकारात्मक बढ़ी है। कई देशों में संविधानिक नियमों को दरकिनार करने की राजनीतिक कोशिशों के बाद भी चुनाव प्रशासन निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया के पालन के लिए कृत संकल्पित दिखाई पड़ता है और इससे मतदाताओं का विश्वास बढ़ता है।
यदि विचारधारा की बात की जाएं तो वामपंथ और दक्षिणपंथी पार्टियां अधिकांश देशों में प्रभावशील है। इन पार्टियों के उद्देश्य और चुनावी मुद्दें मध्यमवर्गीय पार्टियों के मुकाबलें आचार संहिता की चुनौतियों को बढ़ाते रहे है। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टेंट्स नामक संस्था आचार संहिता को लेकर नियमों के पालन पर नजर रखती है। यहां राजनीतिक दलों के नेता यह शपथ लेते है की वे मतदाताओं से ऐसी कोई अपील नहीं करेंगे जो नस्लवाद, लिंगवाद,धार्मिक असहिष्णुता या किसी भी प्रकार के गैरकानूनी भेदभाव पर आधारित हो। शपथ में एक जीवंत लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्धता तथा सभी कानूनों का पालन करने वाले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना शामिल है। एएपीसी की व्यावसायिक आचार संहिता अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था में अखंडता और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए अभियान और व्यावसायिक प्रथाओं के लिए मानक निर्धारित करती है। सभी एएपीसी सदस्यों को सालाना आचार संहिता पर हस्ताक्षर करना और इसके द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार रहना और काम करना आवश्यक है। एएपीसी अपनी संहिता के पालन को गंभीरता से लेती है। अमेरिका की अदालत इसे लेकर बेहद सख्त है लेकिन वैचारिक स्वतंत्रता का प्रभुत्व राजनीतिक नेताओं के लिए ढाल का काम करता है। मसलन ट्रंप अमेरिका की जोड़ने वाली विचारधारा पर चोट करते हुए परम्परावादी समाज में अपनी मजबूत पैठ बनाने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने भाषणों में द्वेषपूर्ण भाषा का इस्तेमाल किया जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई। अमेरिकी अदालतों में कई गंभीर मुकदमों का सामना कर रहे ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे है,यह अविश्वसनीय लेकिन इस महान लोकतंत्र की नई हकीकत है।
यूनाइटेड किंगडम को संसदों की जननी कहा जाता है और इसका प्रभाव दुनियाभर के लोकतांत्रिक संविधानिक नियमों पर दिखाई पड़ता है। यूके में राजनीतिक दलों के अपने अपने नियम है और उनमें आंतरिक स्तर पर यह विशेष ध्यान रखा जाता है की आदर्श संहिता का पालन हर हाल में होना चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल जाति या धर्म के आधार पर मतदाताओं से वोट नहीं मांग सकता है। उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है तथा ज़रूरी होने पर आपराधिक मुक़दमा भी दर्ज कराया जा सकता है। आचार संहिता के उल्लंघन में जेल जाने तक के प्रावधान भी हैं। चुनाव आयोग रिटर्निंग अधिकारियों और चुनावी पंजीकरण अधिकारियों के लिए मानक निर्धारित करता है और उनके लिए दिशानिर्देश जारी करता। ब्रिटिश समाज के कुछ तबकों में बढ़ते कट्टरपंथ का प्रभाव यहां की राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है जिससे पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव पर संकट गहराने लगा है। ब्रिटेन के कुछ राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए नए नए राजनीतिक हथकंडे अपना रहे है जिससे विभिन्न देशों से आकर वहां रहने वाले लोगों में हिंसा की घटनाएं बढ़ी है। ये दल खालिस्तान जैसे मुद्दों को हवा देकर आचार संहिता की मूल भावना से खिलवाड़ करने लगे है। इस साल मार्च में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इसे स्वीकार करते हुए एक भाषण में कहा की ब्रिटेन के लोकतंत्र को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने देश में बढ़ती कट्टरपंथी ताकतों और चरमपंथ पर चिंता भी जताई। यह भी दिलचस्प है की चुनावी आचार संहिता के पालन न करने के आरोप स्वयं ऋषि सुनक पर भी लगे है। ऋषि सुनक ने एक चाइल्डकैअर कंपनी में अपनी पत्नी की हिस्सेदारी की ठीक से घोषणा नहीं की थी जिसे नई सरकार की नीति से लाभ होने वाला था।
अफ्रीका का मजबूत लोकतंत्र दक्षिण अफ्रीका में चुनाव आयोग आचार संहिता को लेकर दृढ रहा है। यह संहिता चुनाव लड़ने के लिए आवेदन जमा करने वाले किसी भी पार्टी,उम्मीदवार और पार्टी प्रतिनिधि पर बाध्यकारी है। कनाडा में चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और गैर पक्षपातपूर्ण एजेंसी है जो सीधे संसद को रिपोर्ट करती है। चुनाव आयोग को संघीय आम चुनाव,उप-चुनाव या जनमत संग्रह आयोजित करने,कनाडा चुनाव अधिनियम के राजनीतिक वित्तपोषण प्रावधानों को प्रशासित करने और चुनावी कानून के अनुपालन की निगरानी करने का अधिकार है। ब्रिटेन से मिलती जुलती व्यवस्थाओं के बीच इस देश में आचार संहिता को कुछ धार्मिक दबाव समूहों से कड़ी चुनौती मिल रही है। यूरोप में लोकतंत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता को सर्वोपरी दिखाया जाता है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस एक संस्था है जो यूरोपियन देशों में पारदर्शी और निष्पक्ष प्रचार के आदर्श आचार संहिता को बनाएं रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यह संस्था यह भी सुनिश्चित करती है की राजनीतिक दल चुनावों में अखंडता,पारदर्शिता,गोपनीयता,सुरक्षा,निष्पक्षता और समान अवसर जैसे प्रमुख मूल्यों को बनाए रखने के लिए ईमानदार रहे। सत्ताईस संप्रभु देशों से बने यूरोपीय संघ की अनूठी विशेषता यह है कि इसके सभी सदस्य राज्य संप्रभु और स्वतंत्र राज्य बने हुए हैं लेकिन इसके बाद भी इन देशों में यह एकरूपता पाई जाती है की साझा हितों के लिए ये सदस्य राज्य अपनी कुछ निर्णय लेने की शक्तियाँ अपने द्वारा बनाए गए साझा संस्थानों को सौंपते हैं,ताकि सामान्य हित के विशिष्ट मामलों पर निर्णय यूरोपीय संघ के स्तर पर लोकतांत्रिक तरीके से पूर्ण किए जा सकें।
यूरोपीय यूनियन की नियमावली बिल्कुल विवादरहित है,ऐसा भी नहीं है। यूरोपीय देशों में नीदरलैंड के साथ समस्या सामने आई है। फेसबुक, गूगल,स्नैपचैट और टिकटॉक सहित राजनीतिक दल और इंटरनेट प्लेटफॉर्म आचार संहिता में डच संसदीय चुनावों के लिए स्वैच्छिक नियमों पर सहमत हैं,जो यूरोपीय संघ में अपनी तरह का पहला है। क्योंकि यूरोप के कई देश डिजिटल क्षेत्र में चुनाव पारदर्शिता और दुष्प्रचार के मुद्दों से जूझ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन,बढ़ती महंगाई,प्रवासन,आतंकवाद और बेरोजगारी को लेकर कई बार यूरोपीय संघ के नेता एक दूसरे की आलोचना करने से भी नहीं चूकते। फिनलैंड,फ़्रांस,जर्मनी,ग्रीस,आयरलैंड,इटली,लातविया,लिथुआनिया,लक्जमबर्ग,माल्टा,पुर्तगाल,स्लोवाकिया,स्लोवेनिया एवं स्पेन जैसे इसके सदस्य देशों की घरेलू राजनीति अलग अलग है,भौगोलिक चुनौतियां भी अलग अलग है,लेकिन इसके बाद भी इनके साझा हित राजनीति में एकरूपता लाने में सफल रहे है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस एक अंतरसरकारी संगठन है जिसे दुनिया भर में लोकतंत्र का समर्थन करने और उसे आगे बढ़ाने का अधिकार है। अंतर्राष्ट्रीय आईडीईए लोकतंत्र पर सार्वजनिक बहस में योगदान देता है और चुनावी प्रक्रियाओं पर ध्यान देने के साथ लोकतंत्र का निर्माण,उन्नति और सुरक्षा करने वाली प्रक्रिया,सुधार,संस्थानों और नेताओं को मजबूत करने में सहायता करता है। यह अंतरसरकारी संगठन यूरोप के देशों में संविधान निर्माण प्रक्रियाओं,राजनीतिक भागीदारी,प्रतिनिधित्व और सतत विकास की योजनाओं पर नजर रखता है।
अमेरिका,ब्रिटेन,कनाडा और यूरोपीय संघ के देशों में चुनाव आदर्श आचार संहिता का पालन सुनिश्चित तो किया जाता है,लेकिन इन देशों में अभिव्यक्ति की आज़ादी को सर्वोपरी माना जाता है जो क़ानून के सामने कवच का काम करती है। इन देशों में कई राजनीतिक दल और नेता अब सत्ता प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय मूल्यों से समझौता करने लगे है,यह लोकतन्त्र के कमजोर होने के संकेत है। विविधता के बीच लिंग और धार्मिक संघर्ष को रोकने में विफल होते यूरोपीय देश,भारत के चुनाव आयोग से आम चुनावों में पारदर्शी प्रक्रिया को लागू करने के तौर तरीके सीख सकते है।
![](https://brahmadeepalune.com/wp-content/uploads/2024/04/e-2.jpg)
Leave feedback about this