पश्चिम में दंड नहीं पुनर्वास पर बल
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पश्चिम में दंड नहीं पुनर्वास पर बल

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप 

दंड के औचित्य और उद्देश्य को पश्चिम और शेष दुनिया में गहरा वैचारिक और वैधानिक अंतर है। आमतौर पर यह देखा गया है कि विकासशील और पिछड़े देशों में न्याय की अवधारणा और नीतियां प्रतिशोध पर आधारित कड़ी होती है और इसे लोकप्रिय भी माना जाता है। प्रतिशोधात्मक न्याय आपराधिक न्याय की एक प्रणाली है जो पुनर्वास के बजाय अपराधियों की सजा पर आधारित है। यह सज़ा का एक सिद्धांत है कि जब कोई अपराधी कानून तोड़ता है तो न्याय के लिए आवश्यक है कि उसे बदले में कष्ट सहना पड़े। इसमें यह भी आवश्यक है कि अपराध की प्रतिक्रिया किये गये अपराध के समानुपाती होनी चाहिए। लेकिन यूरोप और अमेरिका में ऐसा नहीं है।

विकसित देशों में अपराधी को पुनर्वास के जरिए सुधारने की कोशिश की जाती है। इस दौरान शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक का खूब ध्यान रखा जाता है। इन देशों में जेलों को पुनर्वास केंद्र के रूप स्थापित किया जाता है और इसके बेहतर परिणाम भी सामने आते है।   यह भी दिलचस्प है कि विकसित देशों में कानून के पालन का प्रशिक्षण घर और स्कूल से दिया जाता है,यहीं कारण है की कम उम्र से ही बच्चें जो नागरिक भी होते है,वे कानून के पालन के प्रति गंभीर और जवाबदेह होते है। कम जनसंख्या और शिक्षा की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होने से कानून का पालन भी आचरण और व्यवहार में आ जाता है,अत: अपराध को नियंत्रित या खत्म करने में कानूनी एजेंसियां आसानी से सफल हो जाती है।

दंड के प्रति पश्चिम के नजरिए यहां के न्यायालीन  निर्णयों में प्रतिबिंबित भी होता है। बच्चों,किशोर और युवाओं के प्रति न्यायालय उदारता से भरे फैसले करते है जो अपराधी को बेहतर भविष्य बनाने का एक अवसर देने के समान होता है। स्कॉटलैंड में  एक वैज्ञानिक शोध को आधार बनाकर यह दिशा निर्देश लागू किए गए की मानव मस्तिष्क 20 वर्ष की उम्र तक भी पूर्ण परिपक्वता तक नहीं पहुंचते हैं। अत: युवा लोगों में निर्णय लेने और प्रतिकूल परिस्थितियों में उचित प्रतिक्रिया देने की क्षमता का अभाव हो सकता है। वे दूसरों पर अपने व्यवहार के प्रभाव की सराहना नहीं कर सकते हैं और उनके अविवेकी ढंग से कार्य करने की अधिक संभावना होती है। इन दिशा निर्देशों का असर न्यायालय पर भी देखने को मिलता है। दरअसल 2020 मे नए साल का जश्न मनाते 15 वर्षीय स्टीवन की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। इस घटना के आरोपी 22 वर्षीय ब्रायन बुकानन ने स्वीकार किया कि  उसकी लापरवाही से गाड़ी चला चलाने के कारण यह दुर्घटना हुई। लापरवाही से वाहन चलाने और तेज गति से वाहन चलाने के बावजूद,बुकानन को तीन सौ घंटे का अवैतनिक कार्य,तीन वर्ष तक वाहन चलाने पर प्रतिबंध तथा छह महीने तक टैग पहनने का आदेश दिया गया। स्कॉटलैंड में अपराधियों का पुनर्वास और उन्हें सुधार करने का अवसर  के तौर पर इस फैसले को देखा गया। एक राष्ट्र के रूप में स्कॉटलैंड ने मानव मस्तिष्क के विकास के पीछे के विज्ञान को स्वीकार कर लिया है। इसमें यह बात स्वीकार की गई है कि कानून के साथ टकराव में पड़ने वाले अधिकांश लोग ऐसा जीवन की परिस्थितियों के परिणामस्वरूप करते हैं,न कि इसलिए कि वे बुरे लोग हैं। स्कॉटलैंड में 25 वर्ष से कम आयु वालों के लिए नए दण्ड संबंधी दिशानिर्देश लागू करते हुए  यह तर्क दिया गया कि प्रस्तावित परिवर्तन पुनः अपराध करने की प्रवृत्ति को कम करने में सहायक होंगे।

विकासशील और पिछड़े देशों में यह बात पर शायद ही कभी विचार किया जाता हो की उनकी आपराधिक न्याय प्रणाली में आने वाले बहुत से लोग स्वयं बचपन में उपेक्षा या दुर्व्यवहार के शिकार रहे हैं। अपराध करने वाले अनेक युवाओं में सामान्यतः पाए जाने वाले कारकों, जैसे कि बचपन में हुई चोटें पर शायद ही कभी  विचार किया जाता हो। लेकिन पश्चिमी देशों में अदालत के सामने यह तथ्य भी रखे जाते है और उनके सामने सारे विकल्प खुले होते है।

हिट एण्ड रन को लेकर अमेरिका के अलग अलग राज्यों के नियमों में भिन्नता है। हालांकि यह यह अवश्य देखा जाता है की दुर्घटना होने के बाद ड्रायव्हर का व्यवहार किस प्रकार का होता है। मसलन यदि आप किसी दुर्घटना स्थल से तब भागते हैं जब केवल संपत्ति की क्षति हुई हो तब तो सजा का कम प्रावधान होता है लेकिन किसी को चोट लगने के कारण यदि उसकी मृत्यु हो जाएं तो जिन संभावित  सजा का सामना करना पड़ सकता है। उसमें कैद,जुर्माना,ड्राइवर का लाइसेंस निलंबित करने और ड्राइवर के लाइसेंस पर नकारात्मक अंक शामिल है।  यदि कानून प्रवर्तन आपको एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचानता है जो दुर्घटनास्थल से भाग गया था,तो अभियोजक संभवतः आपराधिक आरोप लगाएंगे और यदि आप दोषी पाए जाते हैं तो आपको इन या अन्य दंडों का सामना करना पड़ सकता है।
ब्रिटेन में यदि आप गति सीमा से 45 फीसदी अधिक की गति पर पकड़े जाते हैं तो मामला मजिस्ट्रेट अदालत में ले जाया जाएगा,जहां आपको भारी जुर्माना या वाहन चलाने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है। यदि आप किसी घातक दुर्घटना में शामिल हैं और दुर्घटना के लिए क्षणिक एकाग्रता की कमी को जिम्मेदार पाया जाता है तो आप पर लापरवाही से वाहन चलाकर मृत्यु का कारण बनने का मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप वाहन चलाने पर प्रतिबंध, असीमित जुर्माना या पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है। यूरोप में दुर्घटनाओं को रोकने के लिए नियमों के संचालन को लेकर पुलिस बेहद सख्त होती है। यहां मिनी बसों सहित सभी वाहनों में सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य है,कारों और ट्रकों में बच्चों के लिए उपयुक्त बाल सुरक्षा उपकरण होने चाहिए तथा वाहन चलाते समय बिना हैंड्स फ्री सेट के मोबाइल फोन का उपयोग करना वर्जित है।  इसके साथ ही पुलिस की जांच में रक्त में अल्कोहल का स्तर,सड़कों और वाहनों के लिए गति सीमा तथा कारों और साइकिल चालकों के लिए आवश्यक सुरक्षा उपकरण को देखना शामिल है।  यूरोप के अधिकांश देशों में ड्राइविंग की कानूनी उम्र 18 वर्ष है। फ्रांस में शिक्षार्थी लाइसेंस 15 वर्ष की आयु से दे दिया जाता है लेकिन यहां पर गाड़ी चलाते समय ड्रायव्हर का होना आवश्यक  है।  फ्रांस में 18 वर्ष की आयु में पूर्ण ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाता है और इसके पहले के तीन साल सीखने के लिए मिलते हैं।
पश्चिमी देशों में गंभीर गलतियों और अपराधों के बाद भी अपरिपक्व उम्र वालों को लेकर न्यायालीन निर्णयों में उदारता देखी गई है।  ऑस्ट्रिया मे कोई भी व्यक्ति जो अपराध करने के समय 14 वर्ष से कम आयु का हो तो उसे सज़ा नहीं दी जा सकती। क्रोएशिया में 14 वर्ष से कम आयु में किए गए अपराध के लिए किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और उस आयु से कम आयु के व्यक्ति से संबंधित किसी भी मामले को सामाजिक कल्याण केंद्र द्वारा निपटाया जाना चाहिए। डेनमार्क में 15 वर्ष से कम आयु में किए गए किसी भी कृत्य के लिए किसी को भी आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। फिनलैंड में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी अपराध के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर लागू किए जा सकने वाले उपाय बाल कल्याण अधिनियम में निहित हैं। न्यायालयों के पास 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध की सज़ा माफ करने का अधिकार है जहाँ यह कार्य कानून के निषेधों और आदेशों के प्रति उसकी लापरवाही के बजाय उसकी नासमझी या अविवेक का परिणाम माना जाता है। आइसलैंड में किसी भी व्यक्ति को 15 वर्ष से कम आयु में किए गए अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।

दंड को लेकर उदारता का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है की इन देशों में अल्पव्यस्क खूब अपराध कर सकते है। बल्कि यूरोप और अमेरिका में नियमों की जानकारियां बच्चों को दिए जाने और नागरिकों द्वारा उन नियमों के पालन को लेकर प्रशासन हमेशा सजग और सतर्क रहता है। पुलिस पारदर्शिता से नजर रखते हुए जुर्माने  लगाती है जिससे नियमों का संचालन सुनिश्चित हो जाता है।

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