पश्चिम से सजग रहने की जरूरत
Uncategorized

पश्चिम से सजग रहने की जरूरत

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

नईदिल्ली में आयोजित जी-20 के शिखर सम्मेलन की सफलता से अभिभूत भारत  की ग्लोबल साऊथ के नेतृत्व की स्वभाविक दावेदारी को पश्चिमी देश इतनी जल्दी आंख दिखाने लगेंगे,कूटनीतिक हलकों में शायद  ही किसी ने इस बारे में सोचा होगा। दरअसल उत्तरी अमेरिका के मजबूत देश कनाडा ने एक चरमपंथी की हत्या में भारत की संलिप्तता बताकर दुनियाभर में जो बावेला मचाया है,उससे एक बार फिर यह साफ हो गया है कि दक्षिण और उत्तर के बीच अविश्वास की गहरी खाई है और उसे पाटना किसी पिछड़े या विकासशील देश के लिए आसान नहीं है।

इन सबमें अमेरिका की कूटनीति भी बेहद दिलचस्प है जो कनाडा के साथ खड़ा नजर आ रहा है और भारत को सहयोग की नसीहत भी दे रहा है।  इस समूचे घटनाक्रम में एक बार फिर भारत की कूटनीति के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पश्चिमी देशों पर रणनीतिक रूप से भरोसा किया जा सकता है और उनसे सामरिक रिश्तें क्या दीर्घकालीन हो सकते है। करीब दो दशक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने एशिया प्रशांत  की नयी रणनीति में भारत को केंद्र में बताया था।  इस दौरान भारत से अमेरिका के मजबूत कूटनीतिक और सामरिक रिश्तें भी बने,इसमें से क्वाड भी एक है।  चीन से मुकाबला करने के लिए हिन्द महासागर में भारत को किसी सामरिक गठबंधन की तलाश भी थी। भारत इसका भाग तो बना लेकिन उसके सबसे बड़े सामरिक साझेदार रूस को यह रास नहीं आया।

2007 में स्थापित क्वाड भारत, जापान,संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का समूह है जो स्वतंत्र,खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने की बात कहते रहे है। हालांकि इन चार देशों के साझा उद्देश्य को लेकर चीन के साथ रूस इसकी आलोचना करता रहा है। अमेरिका की नजर हिन्द प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक और आर्थिक महत्व पर भी है। इस क्षेत्र में चीन ने कई देशों को चुनौती देकर विवादों को बढ़ाया है। चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है। चीन पाकिस्तान की बढ़ती साझेदारी ने भी समस्याओं को बढ़ाया है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख भागीदार है। श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट,बांग्लादेश का चिटगाँव पोर्ट,म्यांमार की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों को चीनी कब्ज़े से भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई है। दक्षिण चीन सागर का इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन,ताइवान,वियतनाम,मलेशिया,इंडोनेशिया,ब्रुनेई और फिलीपींस से घिरा हुआ है। यहाँ आसियान के कई  देशों के साथ चीन विवाद चलता रहता है। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकामयाब रहे थे। अब क्वाड के बाद कई देश खुलकर चीन का विरोध करने लगे है और यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए सकारात्मक सन्देश है।

वहीं रूस का सहयोग भारत की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है।  भारत अपनी कुल रक्षा ज़रूरतों का 70 फ़ीसदी हथियार रूस से आयात करता है,दुनिया के किसी भी दूसरे देश के साथ भारत का इतने विशाल स्तर पर सामरिक सहयोग नहीं है। 1974 में भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण हो या युद्धपोत पनडुब्बी,आधुनिकतम टैंक,मिसाइल तकनीकी,स्पेस तकनीकी या पंचवर्षीय योजनाएं रुस ने एक अच्छे मित्र की तरह सदैव भारत के पक्ष में आवाज बुलन्द की है। सीमा पर चीन की आक्रामता को देखते हुए भारत को न केवल रूस की ज़रूरत है बल्कि अमेरिका और यूरोप की भी ज़रूरत है। सीमा पर चीनी आक्रामकता को लेकर अमेरिका भारत के समर्थन में बोलता रहा है। चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत ने अमेरिका और अन्य देशों के साथ समुद्री सहयोग के जरिये क्वाड का हिस्सा बनकर बड़ा दांव खेला है। दूसरी तरफ़ यूरोप और अमेरिका भी भारत के अहम साझेदार हैं। भारत-चीन सीमा पर निगरानी रखने में भारतीय सेना को अमेरिकी एयरक्राफ़्ट से मदद मिलती है। सैनिकों के लिए विंटर क्लोथिंग भारत अमेरिका और यूरोप से ख़रीदता है। ऐसे में भारत न तो रूस को छोड़ सकता है और न ही पश्चिम को।

शक्ति संतुलन की व्यवस्था अस्थाई और अस्थिर होती है,वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन को शांति और स्थिरता बनाये रखने का एक साधन माना जाता है। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है वैदेशिक नीति में आवश्यकता के अनुसार बदलाव करना और उसकी गतिशीलता को बनाये रखना। भारत की हिन्द महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है। हिन्द महासागर की सुरक्षा को लेकर भारत मुखर रहा है और उस पर चीन का प्रभाव उसे आशंकित भी करता रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का यथार्थवादी सिद्धांत यह कहता है कि किसी सम्प्रभु राष्ट्र के लिए शक्ति,शक्ति संतुलन,राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी संकल्पनाएं महत्वपूर्ण है और राष्ट्र की सुरक्षा उसका स्वयं का दायित्व है। कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां कई दशकों से बदस्तूर जारी है। उत्तरी अमेरिकी देश कनाडा पृथकतावादी सिख होमलैंड खालिस्तान के समर्थकों के लिए महफूज ठिकाना रहा है। इस समय कनाडा में लिबरल पार्टी की सत्ता है और उसकी खालिस्तानियों से सत्ता की साझेदारी भारत की परेशानियां बढ़ा रही है। कनाडा में सिखों के हथियारबंद गिरोह की शुरुआत 1981 में हुई थी। कनाडा के सिख खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटर नेशनल  को 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 कनिष्क में विस्फोट सहित भारत में हुए कुछ  बड़े आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। कनिष्क विमान हमलें में 329 लोग मारे गये थे। इसके बाद इस संगठन ने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या समेत कई राजनेताओं और निर्दोष लोगों को निशाना बनाया है। इसके समर्थक उत्तरी अमेरिका,यूरोप,दक्षिण एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक फैले है।
भारत की कनाडा को लेकर चिंताओं को यूरोप और अमेरिका जिस प्रकार दरकिनार कर रहे है उससे यह साफ हो जाता है कि इन देशों को भारत की सुरक्षा चिंताओं की ज्यादा परवाह नहीं है। वहीं हिन्द प्रशांत  क्षेत्र में यूरोप और अमेरिका के गहरे सामरिक और आर्थिक हित है। इस क्षेत्र में भारत की उपयोगिता के कारण वे भारत से सहयोग बढ़ा रहे है।  कनाडा को लेकर जिस प्रकार अमेरिकी रुख सामने आया है उससे भारत की कूटनीति को लेकर कई अहम सवाल सामने आ रहे है। भारत को अब यह अवश्य तय करना होगा की उसकी सामरिक जरूरतों  के लिए रूस की उपयोगिता ज्यादा बेहतर है जो कई दशकों से बदस्तूर जारी है।  या भारत को अमेरिका और यूरोप पर भरोसा करते रहने होगा जिनसे रिश्तों की विश्वसनीयता का संकट बना रहता है। जाहिर है कनाडा के बाद अमेरिका और यूरोप  के रुख का असर क्वाड पर भी पड़ेगा ही। अंततः पश्चिमी देशों का भारत को लेकर कूटनीतिक दोहरापन क्वाड जैसे संगठन में भारत की भागीदारी  की उपयोगिता को आशंकित तो कर ही रहा है।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X