नवभारत टाइम्स
यह दुनिया को चमत्कृत करने और गहरे बदलाव लाने वाली घटना थी जब 2017 में विश्व आर्थिक मंच पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पूंजीवाद और व्यापार की जरूरतों पर बल दिया था। इस दौरान उन्होंने दावा किया था की आर्थिक वैश्वीकरण ने वैश्विक विकास को गति दी है और वस्तुओं और पूंजी की आवाजाही,विज्ञान,प्रौद्योगिकी और सभ्यता में प्रगति और लोगों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाया है। दरअसल पूंजीवादी फायदों की मदहोशी में शी जिनपिंग वैश्विक मंच से अपने देश के निर्माता माओ के उस विचार को ख़ारिज कर रहे थे जिसमें कई दशकों पहले उन्होंने कहा था की चेतना भौतिक तत्वों से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
मार्क्स का मानना था कि पूंजीवाद,लाभ और निजी स्वामित्व पर जोर देने के साथ, सामाजिक असमानता में परिवर्तित हो गया। इस प्रकार, साम्यवाद का लक्ष्य एक वर्गहीन समाज को बढ़ावा देना था जिसमें हर कोई श्रम का फल साझा करता था और समुदाय सभी संपत्ति और धन को नियंत्रित करता था। आज चीन दुनिया को सबसे ज्यादा पूंजी निर्यात कर रहा है, विकासशील और पिछड़े देशों के करोड़ों लोगों को आर्थिक बाहुबली बनाने के सपने दिखा रहा है। जबकि उसकी रोड़ एंड बेल्ट परियोजना के कुचक्र में फंसकर श्रीलंका के कई लोग भूखे मार गए है,वहीं पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मूल निवासियों ने अपने संसाधनों को बचाने के लिए हथियार उठा लिए है।
यह भी दिलचस्प है की पूंजीवादी की सुरक्षा के लिए स्थानीय सरकारें अपने नागरिकों को कुचल सकती है,मार सकती है या उन्हें जेल में डाल सकती है। वे पूंजीवादियों के संरक्षण को सबसे ज्यादा महत्व देती है और यह सिलसिला पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। साम्यवाद और समाजवाद जैसी विचारधारों से बहुत आगे पूंजीवाद निकल चूका है,पूंजीवाद को संरक्षण के लिए शी जिनपिंग स्वयं पर भी दांव लगाने से गुरेज नहीं करते। सेमीकंडक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर सॉफ्टवेयर उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला की वैश्विक आपूर्तिकर्ता कम्पनी ब्रॉडकॉम के सीईओ हॉक टैन ने सैन फ्रांसिस्को में चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ डिनर में शामिल होने के लिए 40 हजार डॉलर का भुगतान किया। इतनी बड़ी कीमत टैन ने सिर्फ इसलिए चुकाई थी कि चीन 69 अरब डॉलर के सौदे को मंजूरी दे दे।
सैन फ्रांसिस्को में हुए डिनर के तुरंत बाद चीन ने ब्रॉडकॉम के अधिग्रहण को मंजूरी भी दे दी। रूस के अधिनायकवादी पुतिन की नीतियां अमेरिका की प्रतिद्वंदिता के चलते चीन,उत्तर कोरिया और ईरान का समर्थन करती हुई दिखाई दे रही है। पुतिन ने अपने देश में लोकतंत्र को कुचल दिया है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या करवा दी गई है।
मानवाधिकारों के संरक्षक के रूप में अमेरिका का प्रचार प्रसार किसी से कम नहीं है। वियतनाम युद्द में मरने वाले अमेरिकी सैनिकों में अधिकांश अश्वेत थे,मतलब अमेरिका ने अपने ही देश के अश्वेतों को वियतनाम की कठिन युद्द परिस्थितियों में धकेल दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन मानवाधिकार की रक्षा के नाम पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से नाराजगी का इजहार करता रहे और फिर एक दिन स्वयं क्राउन प्रिंस को मनाने पहुंच गए।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बीते नवम्बर में एशिया पैसिफ़िक इकोनॉमिक कोऑपरेशन सम्मेलन के दौरान दोनों राष्ट्रप्रमुखों की मुलाकात हुई और इसके बाद बाइडेन ने जिनपिंग को तानाशाह भी कहा। लेकिन इसका असर दोनों देशों के व्यापारिक हितों पर पड़ता हुआ नहीं दिखाई देता है। बीते कुछ सालों से अमेरिका और चीन के कूटनीतिक रिश्तों में आया तनाव अपने चरम पर है,लेकिन इस बीच बीते साल दोनों मुल्कों के बीच व्यापार भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। 2022 में अमेरिका और चीन के बीच क़रीब 690 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है। अमेरिकी खरीदार चीन में बने खिलौने और मोबाइल फ़ोन काफ़ी बड़ी संख्या में ख़रीद रहे हैं,इसी दौरान चीन को होने वाला अमेरिका का निर्यात डेढ़ सौ अरब डॉलर के आंकड़े से भी आगे निकल गया है।
ईरान में महिलाओं को मारा जा रहा है,उत्तर कोरिया में अधिनायकवादी घुटन से आम लोग मर रहे है। चमचमाता कतर मध्यस्थता का नया खिलाड़ी बनकर अमेरिका,रूस से लेकर इजराइल तक की वाह वाही लूट रहा है। लेकिन किसी देश की यह हिम्मत नहीं की वह कतर से यह पूछे की 2022 में फीफा विश्व कप की तैयारियों से जुड़े तीस हजार प्रवासी मजदूरों के साथ निर्मम बर्ताव क्यों किया गया। 2016 में मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने क़तर पर मज़दूरों से जबरदस्ती काम कराने का आरोप लगाया था। आरोपों में कहा गया था कि बहुत से मज़दूरों को ख़राब तरीक़े से रखा जाता है,उनके घर रहने लायक नहीं होते हैं,उनसे भारी भरकम रिक्रूटमेंट फीस ली गई थी और मज़दूरी को रोक दिया गया था तथा पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए गए थे। भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश और श्रीलंका के करीब साढ़े छह हजार प्रवासी कामगार वर्ल्ड कप इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की तैयारियों के दौरान मारे गए,लेकिन इस पर कोई वैश्विक जांच आज तक नहीं हुई।
इन सबके बीच अमेरिका में दस फीसदी से अधिक आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है,चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश को गरीबी मुक्त घोषित कर दिया जबकि चीन में अब भी बहुत से लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन जीने को मजबूर है, चीन इस बात को दुनिया के सामने जाहिर नहीं होने देना चाहता,क्योंकि इससे उसकी आर्थिक महाशक्ति बनने को दावे को चोट पहुंचेगी। ब्रिटेन में करीब पंद्रह मिलियन लोग
गरीबी में जी रहे है।
पिछले साल ह्यूमन राइट्स काउंसिल सेशन में भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड का रिव्यू किया गया था तथा कई देशों ने भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड को बेहतर करने को लेकर सुझाव दिए थे। जिसमें भारत सरकार से धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और मानवाधिकार संगठनों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के ख़िलाफ़ भेदभाव पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जबकि हकीकत यह है की चीन में धार्मिक स्वतंत्रता खत्म कर दी गई है,अमेरिकी में अश्वेतों पर गंभीर अपराध और भेदभाव रोज होते है। ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को दोयम दर्जे का नागरिक बताकर ख़ारिज कर दिया गया है। तुर्की में धार्मिक भेदभाव सरकार की नीति बन गया है। बहरहाल विकसित देशों में गरीबी कभी सामने नहीं आती,चीन में छुपा ली जाती है,लोकतंत्र खत्म हो रहे है,सर्व सत्ता वादी और अधिनायकवादी ताकतें मजबूत हो रही है. इन सबके बीच पूंजीवाद की चकाचौंध में मानवाधिकार कहीं नजर नहीं आते और वे निरंतर धुंधले पड़ते जा रहे है।
#ब्रह्मदीप अलूने
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