पॉलिटिक्स
होली का रंग,टेसूओं के फूल संग….
बस्तर में फूलों के रंगों की होली का जश्न
पलाश के फूल के कई नाम हैं। इसे टेसू,ढाक,परसा,केशुक और केसू भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऋतुराज वसंत की सुंदरता पलाश के बिना पूरी नहीं होती है। पलाश के फूल को वसंत का श्रृंगार माना जाता है। बस्तर के जंगलों में पलाश की महक और खूबसूरती है तो यहां के आदिवासियों के जीवन को रंगों से सराबोर करने में भी इसका खास महत्व है। टेसू या पलाश में प्राकृतिक रूप से सिर्फ केसरिया रंग होता है। केसरिया त्याग, बलिदान,ज्ञान,शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। केसरिया रंग को आध्यात्म और ऊर्जा का प्रतीक भी माना जाता है। होली राग और द्वेष को भूलाकर सभी को जोड़ने का संदेश देती है। आदिवासियों के आचरण,व्यवहार और जीवन के संदेशों में असल केसरिया रंग दिखाई पड़ता है।
घने जंगलों के बीच गूंजती हुई मांदल की थाप और घुंघरुओं की झंकार.. । पर्वतों से टकराती हुई बांसुरी की मीठी आवाज और इस सबमें झूमते हुए मदमस्त आदिवासी। टेसू के फूलों से भरे हुए बस्तर के जंगलों में होली के त्योहार पर पारम्परिक जश्न के रंग कमाल के होते है। जनजातियों की परम्पराएं और देव पूजा की उनकी श्रध्दा में असीम आस्था होती है,वहीं ईश्वर की आराधना में डूबने का जनजातियों का अंदाज चमत्कृत कर देता है। कहते है भारत में हर 50 किलोमीटर में बोलियां और भाषाएं बदल जाती है,लोकाचार में होली को मनाने के तरीके भी कुछ ऐसे ही बदल जाते है। बस्तर की होली में प्रकृति के रंग है,ढोल ढमाके है,ढोलक की थाप पर आनंदित करने वाले नृत्य है और प्रकृति की पूजा और संरक्षण के बहुतेरे रंग भी है। बस्तर में घने जंगल में बसने वाली ज़िंदगी शिक्षा और विकास से भले ही कोसों दूर हो लेकिन उनका प्रकृति प्रेम लाजवाब है। दर्भा घाटी में रहने वाले बाशिंदों में होली का रंग भी चढ़ता है और यहां के आसमान से गुलाल भी उड़ता है। इन रंगों में टेसू की महक होती है और यहीं से खास बना देती है।
जगदलपुर से विशाखापत्तनम की और आगे बढ़ते है तो घने जंगलों के बीच दर्भा घाटी पड़ती है। नक्सली हमलों के लिए कुख्यात इस घाटी और इसके जंगलों में पलाश के फूल बहुतायत में पाए जाते है,जिसका नजारा बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ता है। दर्भा घाटी में नक्सलियों के छिपने और ठहरने ठिकाने मुख्यतः मारजूम, चिकपाल,गोगुण्डा,नहाड़ी,मलांगेर,हिड़मा,काकाड़ी,बेड़मा और उनसे लगने वाले घने जंगल,टेकरी और पहाड़ियां हैं। दरभा घाटी के नक्सलियों के ट्रेनिंग स्थलों में मुख्यतः मारजूम,गादम,आदवाल,पोरो हिड़मा गांवों की पहाड़ियाँ और घने जंगल हैं। इन जंगलों में नक्सली खौफ तो होता है लेकिन आदिवासी संस्कृति के गहरे और अनमोल रंग भी यहां दिखाई पड़ते है। वसंत के आगमन के साथ ही दर्भा के आसपास के गांवों में महिलाएं पलाश के फूलों से होली के लिए गुलाल तैयार करने मे जुट जाती हैं। ये मिलजुल कर कार्य करती है। ये महिलायें अपने गांवों में मुफ़्त में कलर बांटती है जिससे लोग केमिकल युक्त रंगों की होली से दूर रहे। वहीं यहां के बनाएं प्राकृतिक रंग राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भवन के साथ ही देश विदेश में भेजे और खरीदे जाते है।
कहते है टेसू के फूल में देवी-देवता वास करते हैं,यह दिखने में बेहद खूबसूरत होता है। अनगिनत लाभकारी गुणों से भरपूर यह लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। टेसू के फूल के फायदें सुश्रुत संहिता,चरक संहिता और अष्टांग हृदय जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित है। इसके पेड़ की छाल को उबालकर सेवन करने से पथरी और यकृत रोग दूर होते हैं। व्यवसाय उपयोगी पलाश के तने के रेशे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते से दोने व पत्तल बनाए जाते थे। पूर्व में ये लोगो की आजीविका के प्रमुख साधन रहे है।
इसके रंगों को तैयार करने के लिए पलाश के फूलों को सुखाकर पाउडर बनाया गया जिसके बाद इसमें मक्के का आटा मिलाकर चिकना किया गया। इन्हें रंगीन बनाने के लिए भी प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया गया है। जैसे लाल रंग के लिए लाल भाजी पीला रंग के लिए हल्दी और हरे रंग के लिए मेथी और हरे रंग की भाजियों का इस्तेमाल किया गया है। पलाश के फूलों से शरबत व होली का प्राकृतिक रंग भी बनाया जाता हैं। इतना ही नहीं इन फूलों के अर्क से औषधि भी तैयार की जाती है।
प्रकृति हमें खूब उपहार देती है,जिंदगी देती है और उसे सहेजने का तरीका भी सुझाती है। होली का त्यौहार हमारी सभ्यता की अनुपम विरासत है जो मानवीय प्रेम के निष्कपट भाव को प्रदर्शित करती है। युगों युगों से होली का पर्व भारत भूमि के करोड़ों लोगों को हर्षित करता रहा है लेकिन टेसू के फूलों के रंगों से सराबोर होली की पहचान भौतिकवादी दौड़ में मिट गई। शुक्र है हमारे देश की जनजातियां भारत की प्राकृतिक संरक्षण की महान परम्पराओं को जीवित रखे हुए है। इस होली प्रकृति के साथ रहने वाले आदिवासियों की खूबियों को आत्मसात कीजिए। होली के पर्व को रंग बिरंगा करने के लिए बस्तर के टेसू के फूलों के रंगों को आजमाइए,झूमते,नाचतें और फाग के गीत गा गा कर खूब खुशियां मनाइये।
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
(सुकमा ग्राउन्ड जीरों,किताब के लेखक)
बस्तर की होली
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