बस्तर सबसे खतरनाक संसदीय क्षेत्र.. politics
article भारत मे आतंकवाद

बस्तर सबसे खतरनाक संसदीय क्षेत्र.. politics

देश का सबसे खतरनाक संसदीय क्षेत्र है रेड कॉरिडोर का केंद्र….बस्तर                               

 फरवरी से मई महीने के बीच नक्सलियों की ओर से टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन चलाया जाता है। इस कैंपेन के दौरान नक्सली एक्टिव हो जाते हैं और अपनी पूरी ताकत के साथ सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं। यह समय पतझड़ का होता है और ग्रामीण भी वर्षा का इंतजार करते है। जंगलों में दृश्यता बढ़ जाती है और नक्सलियों को ग्रामीणों का साथ मिल जाता है। इस बार लोकसभा चुनाव भी इसी दौरान होने जा रहे है। चुनाव और पतझड़ का मौसम,नक्सलियों के लिए यह समय खूनी हिंसा का होता है। 

घने जंगलों,पहाड़ों और नदियों से घिरे बस्तर में यह कहा जाता है की यहां जंगली जानवर जान बख्श देते है लेकिन नक्सली अपने दुश्मनों पर रहम नहीं  करते। नक्सलियों की रिक्रूटमेंट से लेकर नक्सली हमलों तक के लिए,रेड कॉरीडोर का केंद्र कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका नक्सलगढ़ के नाम से कुख्यात है।  पिछले दस सालों में तकरीबन ढाई सौ जवान नक्सलियों से लड़ते हुए बस्तर में शहीद हुए है। बस्तर डिवीजन घने जंगलों में लगभग 39 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है,इसमें से 20 हजार वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा का इलाका नक्सलियों के प्रभाव में है। यहां माओवादियों की पश्चिम बस्तर डिविजन कमेटी काम करती है। लोग इन्हीं को पहचानते है,उनके लिए यही नेता है और यही देवता है।  बैलाडीला से लेकर दंतेवाडा और सुकमा तक मलंगिर एरिया कमेटी  काम करती है। मलंगिर एरिया कमेटी का एरिया कमांडर सोमरू है तथा दर्भा डिविजन कमेटी का हेड देवा उर्फ़ साईंनाथ है।  इन नक्सलियों ने लोकसभा चुनावों को लेकर कई राजनीतिक  कार्यकर्ताओं को धमकी दी है कि वे चुनावों से दूर रहे या मरने को तैयार रहे।

बस्तर में गर्मी में नक्सली हमलों का रक्तरंजित इतिहास

साल                          स्थान                                    शहीद
6 अप्रैल 2010           ताड़मेटला,                       76 जवान शहीद
24 अप्रैल, 2017         बुरकापाल,                      25 जवान शहीद
21 मार्च, 2020           मिनपा,                       17 जवान शहीद
3 अप्रैल 2021              तर्रम ,                         22 जवान शहीद
26 अप्रैल 2023           अरनपुर,                       10 जवान शहीद

कहते है की इन्द्रावती नदी का पानी अक्सर लाल दिखाई देता है क्योंकि रेड कॉरिडोर में सबसे ज्यादा खून इसी नदी में बहता है। नक्सली हमलों के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर,दंतेवाडा और बीजापुर जिले में तकरीबन 233 किमी दंडकारण्य में  बहने वाली इंद्रावती नदी उड़ीसा राज्य  के कालाहांडी  जिले के अंतर्गत आने वाले धरमगढ़ तहसील के रामपुर थूयामूल के निकट डोंगरला पहाड़ी पर तकरीबन तीन हजार फीट की उंचाई से निकलती है। उड़ीसा से छत्तीसगढ़ राज्य में प्रवेश करती है तथा छत्तीसगढ़ राज्य के अंतिम पश्चिमी छोर से यह दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हुई छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र तेलंगाना राज्य की सीमा पर बीजापुर जिले के भद्रकाली नामक ग्राम के समीप गोदावरी नदी में मिलती है।

बस्तर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बीजापुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर हजार डेढ़ हजार आबादी वाला पीडिया  गांव है। जिस दिन यहां सरकारी चौपाल लग गई,समझों नक्सलवाद खत्म हो गया। बैलाडीला पहाड़ के पीछे  ऐसे कई गांव है जहां विकास पहुंचा ही नहीं है। देश में चुनाव सम्पन्न कराने के लिए सबसे कठिन और दुष्कर कार्य बस्तर में शांतिपूर्ण मतदान सम्पन्न कराना होता है।

 

दंतेवाडा के वरिष्ठ पत्रकार आज़ाद सक्सेना कहते है,बस्तर में संगीनों के साये में और बारूद के ढेर पर चुनाव होते है, यहां कभी भी कुछ भी हो  सकता है। यहां चुनाव कराना मुश्किल होता है,हो सकता है पोलिंग बूथ के  नीचे  ही बारूद भरी हो। यहां जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा देना सबसे बड़ी चुनौती है।

2019 के लोकसभा चुनावों में भी बस्तर को नक्सली हिंसा से जूझना पड़ा था। यहां  बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दंतेवाड़ा क्षेत्र के भाजपा के विधायक भीमा मंडावी की उनके वाहन चालक और तीन सुरक्षा कर्मियों समेत नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले के श्यामगिरी के पास कुआकुंडा में बारूदी सुरंग में विस्फोट कर हमले को अंजाम दिया  था। हमला इतना शक्तिशाली था की बुलेटप्रूफ गाड़ी के भी परखच्चे उड़ गए थे।  पांच साल पहले बस्तर में शांतिपूर्ण मतदान के लिए लगभग 80 हजार जवान चप्पे चप्पे पर तैनात किये गए थे लेकिन उत्तर पश्चिम में नारायणपुर जिले से,उत्तर में कोंडागांव जिले से,पूर्व में ओडिशा राज्य के नबरंगपुर और कोरापुट जिलों से तथा दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में दंतेवाड़ा और सुकमा से घिरे बस्तर की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में आम चुनाव करवाना किसी चुनौती से कम नहीं होता है।

यहां की कुल आबादी का लगभग 70 फीसदी भाग जनजातीय है। इस संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा क्षेत्र कोंटा,दन्तेवाड़ा,बीजापुर और नारायणपुर में सुबह सात बजे से दोपहर तीन बजे तक मतदान  होता है। जबकि विधानसभा क्षेत्र बस्तर,चित्रकोट,कोण्डागांव और जगदलपुर में सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक मतदान होगा। नक्सल हमलों के खतरों से बचने के लिए घने जंगलों से चुनावी पार्टियां जल्द और सुरक्षित मुख्यालय लौट सके,इसलिए दोपहर बाद जल्द मतदान करवाकर लौटने की व्यवस्थाएं की जाती है। 

बस्तर संसदीय क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्र

1.कोंडागांव
2.नारायणपुर
3.बस्तर
4.जगदलपुर
5.चित्रकोट
6.दंतेवाड़ा
7.बीजापुर
8.कोंटा

बस्तर लोकसभा सीट में पांच जिले शामिल हैं,कोंडागांव,नारायणपुर,बस्तर, दंतेवाड़ा,बीजापुर और सुकमा।

महिला मतदाता बाहुल्य संसदीय क्षेत्र

2019 में बस्तर लोकसभा क्षेत्र में कुल तेरह लाख बहत्तर हजार एक सौ सत्ताईस मतदाताओं में करीब सवा सात लाख महिला मतदाता थी। अर्थात् आदिवासी बाहुल्य और देश के कुछ चुनिंदा संसदीय क्षेत्रों में शुमार  एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से ज्यादा हैं।

 

संवेदनशील मतदान केन्द्रों की बहुतायत

2019 में बस्तर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आठ विधानसभा क्षेत्रों में कुल 1,879 मतदान केन्द्र स्थापित किए गए थे। इन मतदान केन्द्रों में से 741 मतदान केन्द्र अति नक्सल संवदेनशील मतदान केन्द्र के रूप में चिन्हित किया गया । इसके साथ ही 606 मतदान केन्द्र नक्सल संवेदनशील तथा 227 राजनैतिक संवदेनशील मतदान केन्द्र बनाएं गए  थे। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 289 मतदान केन्द्रों को अन्य स्थानों पर शिफ्ट किया गया ।

बैलाडीला लौह उत्पादन के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र के घाटी के पिछले इलाके विकास से बहुत दूर होकर घोर नक्सल क्षेत्र माने जाते है। बेलाडीला  की पहाड़ियों के तराई में बसे एक दर्जन गांव है जहां माओवाद से जिंदगी शुरू होती है,उन्हीं के नियमों और इशारों पर चलती है और उन्हीं के फैसलों पर ख़त्म होती है। अबूझमाड़ का रहस्यमय क्षेत्र नक्सलियों के लिए खास पनाहगाह बना हुआ है।  आजादी के आठ दशक होने को आयें है लेकिन अबूझमाड़ का राजस्व सर्वे भौगोलिक विषमता और नक्सली  प्रभाव के कारण हो ही नहीं सका है। इस क्षेत्र के प्रत्येक गांव तक पहुंचना आज भी संभव नहीं हो पाया हो पाया है। अरनपुर के  जंगलों में आईईडी के खतरें बरकरार होते है तो दंतेवाडा के लावा गांव और पुस्नार में पहुंचना मुश्किल है। अभी भी बस्तर के कई गांवों में आधार कार्ड और राशन कार्ड नहीं है,बिजली या स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं है,विकास और सरकारों की पहुंच भी नहीं है। बस यहां नक्सलियों की दुनिया है और इसमें सेंध लगाकर मतदान करवाना अब भी नामुमकिन बना हुआ है।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X