पॉलिटिक्स
बापू को दक्षिण अफ्रीका में ईसाई बनाने की खूब कोशिशें की गई,उन्हें ईसाई धर्म से सम्बन्धित किताबें पढने को भी वहां बहुत दी गई,लेकिन बापू का मन प्रिटोरिया में जिस किताब को पढ़ने में खूब लगा,वह थी,मैक्समूलर की किताब,हिंदुस्तान हमें क्या सिखाता है। मैक्समूलर लिखते है,अगर मुझे पूरे विश्व में किसी ऐसे देश का पता लगाना हो जो प्रकृति द्वारा प्रदान की जा सकने वाली सारी संपत्ति,शक्ति और सुंदरता से भरपूर है,कुछ हिस्सों में तो यह धरती पर स्वर्ग है,तो मुझे भारत की ओर इशारा करना चाहिए। यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव मस्तिष्क ने अपने कुछ बेहतरीन उपहारों को सबसे अधिक विकसित किया है,जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से विचार किया है और उनमें से कुछ के समाधान ढूंढे हैं तो मुझे भारत की ओर इशारा करना चाहिए।
बापू में अपनी मिट्टी के गौरव को लेकर उच्चता का भाव था जो वे प्रदर्शित करने से परहेज भी नहीं करते थे। दरअसल बापू के मन में भारतीय संस्कृति इतनी रची बसी हुई थी की वे उसमें ही जीवन के हल खोजना चाहते थे। उनके मन में धर्म को लेकर अन्तर्द्वन्द जब भी उत्पन्न होता था,वे उसका समाधान हिन्दू धर्म में ही ढूंढने की कोशिश करते थे। बापू अपनी आत्मकथा,सत्य के प्रयोग में लिखते है,छह या सात साल से लेकर सोलह साल की उम्र तक मैंने पढाई की,पर स्कूल में कहीं भी धर्म की शिक्षा न मिली। यों कह सकते है की शिक्षकों से जो आसानी से मिल सकता था,वह न मिला। फिर भी वातावरण से कुछ न कुछ तो मिलता ही रहा,यहां धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात आत्मज्ञान और आत्मबोध। मैं वैष्णव संप्रदाय में जन्मा था इसलिए हवेली में जाने का बार बार प्रसंग आता था। पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न न हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा न लगा। हवेली में चलने वाली अनीति की बातें सुनकर मन उसके प्रति उदासीन हो गया,वहां से मुझे कुछ न मिला।
बापू की राम में गहरी आस्था थी और उन्होंने इसे स्वीकार भी किया। हालांकि बापू की आस्था कभी कभी अन्धविश्वास को लांघते हुए संकीर्णता के करीब भी पहुंच गई। बापू अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में लिखते है,मेरा रामायण के परायण में गहरा विश्वास रहा। मैं पोरबन्दर के राम जी के मन्दिर में रोज रात को रामायण सुनने जाता था। सुनाने वाले पंडित बिलेश्वर महाराज थे। वे रामचन्द्र के परम भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता था की उन्हें कोढ़ की बीमारी हुई थी,तो इसका इलाज करने के बदले उन्होंने बिलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल पत्र कोढ़ पर बांधे और केवल राम नाम का जप शुरू किया तो अंत में उनका कोढ़ जड़मूल से नष्ट हो गया। आज भी मै तुलसीदास की रामायण को भक्तिमार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूँ। बापू ने उपवास को वैष्णव धर्म की मान्यताओं से जोड़ा था,वे श्रावण मास के व्रत भी रखते थे। उन्होंने यह प्रयोग दक्षिण अफ्रीका के टॉलस्टॉय आश्रम में भी किया।
बापू लंदन में रहकर भी गीता को ज्यादा पढ़ते थे। गांधी दुनिया भर में इसका संदेश देते हुए कहते थे,गीता का अध्ययन इतिहास की पुस्तक के रूप में नहीं बल्कि प्रतीक के रूप में किया जाना चाहिए। गीता में शरीर का जिक्र एक रूप के तौर पर किया गया है,जो मनुष्य शरीर के युद्द क्षेत्र की व्याख्या करता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाएं तो जिन जिन नामों का जिक्र हुआ वह व्यक्तियों के नाम नहीं है,बल्कि उन गुणों के नाम है,जिसे वे प्रतिबिम्बित करते है। उस ग्रन्थ में मनुष्य शरीर के संघर्षों का वर्णन है। जो परस्पर विरोधी नैतिक प्रवृतियों के बीच है,जिसकी कल्पना एक विशिष्ट आकृति के रूप में की गई है। हिन्दू धर्म के प्रति असीम आस्था रखने वाले महात्मा को कभी अन्य धर्मो का विरोधी क्यों नहीं माना गया,यह जानना भी बेहद आवश्यक है। बापू न केवल एक धर्म की संकीर्ण छवि से दूर रहे बल्कि उन्होंने इस पर सार्वजनिक रूप से विजय भी पाई। यहीं कारण है कि बापू सर्व धर्म की वैश्विक पहचान बन गए।
गांधी ने कई बार कहा कि वे सनातनी हिंदू हैं लेकिन हिंदू होने की जो कसौटी उन्होंने बनाई थी,वह भारत की विविधता को साथ लेकर चलते हुए दिखाई पड़ती है। उन्होंने वेदों का यह कहकर समर्थन किया की,वेदों के अपने अध्ययन के आधार पर मैं मानता नहीं हूं कि उनमें जाति-प्रथा का समर्थन किया गया है लेकिन यदि कोई मुझे यह दिखला दे कि जाति-प्रथा को वेदों का समर्थन है तो मैं उन वेदों को मानने से इंकार करता हूं। यह भी दिलचस्प है कि बापू के प्रार्थना के दौरान जो व्याख्यान दिए जाते थे उसमें गीता के अलावा भी विविध विषयों पर बात करते थे। उन्होंने इन व्याख्यानों में जिन महान व्यक्तित्वों पर बात की उनमें बुद्द,इसा मसीह,पैगम्बर मोहम्मद,टालस्टॉय,बंगाली संत चैतन्य,गुजराती कवि नरसिंह मेहता और एना किंग्स फोर्ड का जिक्र होता था।
हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम के बीच जिन्ना ने कई बार गांधी की परीक्षा ली। जिन्ना ने कहा की मैं जिस तरह मुसलमानों का प्रतिनिधि हूँ,इसी प्रकार आप हिन्दुओं का प्रतिनिधि होकर मुझसे बात करें। बापू ने साफ कहा की वे भारत के प्रतिनिधि हो सकते है,जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल है। जिन्ना आजीवन मुसलमानों के प्रतिनिधि बने रहे,लिहाजा उनका धर्म पर आधारित पाकिस्तान बना,जो विरोधाभासों के बीच फंसकर नाकाम हो रहा है। वहीं बापू की धर्म को लेकर बेहद स्पष्ट सोच थी।
बापू का कहना था कि,देश सबके कल्याण,स्वास्थ्य,विदेशी सम्बन्ध,मुद्रा आदि सब कुछ देखेगा लेकिन मेरे और आपके धर्म को नहीं देखेगा। यह हरेक का व्यक्तिगत सरोकार है,यदि समुदाय का एक ही धर्म हो तो भी मैं राष्ट्र धर्म में विश्वास नहीं करता। बापू की स्वयं के धर्म में गहरी आस्था तो पर उन्होंने अन्य धर्मों के प्रति सम्मान का समान भाव रखा। यह भी दिलचस्प है कि दुनिया में जहां भी राज्य,धर्म को देखता है,वहां अस्थिरता बढने की आशंका बनी रहती है,वहीं जो राज्य,धर्म को व्यक्तिगत जीवन से जोड़ देता है,वे राज्य प्रगतिशीलता के ऊंचे पैमानों को छूने की ओर अग्रसर नजर आते है। बापू अतीत से निकलकर वर्तमान और भविष्य की बेहतर दृष्टि दिखाते है इसीलिए अक्सर वे जरूरी बन जाते है।
गांधी है तो भारत है
बापू संकीर्ण हिन्दू तो नहीं थे…!
- by brahmadeep alune
- October 1, 2023
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