भारतीय लोकतंत्र से दुनिया को आशाएं
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 भारतीय लोकतंत्र से दुनिया को आशाएं

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

बदलते वैश्विक परिदृश्य में लोकतंत्र को बनाएं और बचाएं रखने को लेकर भारत से दुनिया को बहुत अपेक्षाएं है। रूस के पुतिन, चीन के जिनपिंग, ईरान के इब्राहिम रईसी, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग सहित दुनिया के कई देशों में शीर्ष राजनीतिक स्तर से सर्वसत्तावाद प्रभावी ढंग से स्थापित करने की कोशिशें बदस्तूर जारी है,इस प्रकार की शासन व्यवस्था में नीतियों,साधनों,कार्यों और दृष्टिकोण से प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बिल्कुल विपरीत व्यवहार और कार्य किए जाते है। इससे उनके पड़ोसी लोकतांत्रिक देश बूरी तरह से प्रभावित हो रहे है।

इस दौर में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को लगभग सभी देशों ने आशाओं और अपेक्षाओं की दृष्टि से देखा है। स्पष्ट है कि भारत की राजनीतिक दलों की नीतियों और देश के भीतर राजनीतिक विरोधाभासों पर  वैश्विक दृष्टि तो होती ही है। भारत की विविधता और विशालता दुनिया को चमत्कृत करती है तो यहां की सरकारों की नीति रीति पर भी सबकी निगाहें होती है। कांग्रेस ने भारत की सत्ता का लंबे समय तक संचालन किया है और इसके नेताओं को पूरी दुनिया में पहचाना भी जाता है। राहुल गांधी,उस परिवार से आते है जिसने देश को अनेक प्रधानमंत्री दिए है,अत: दुनिया के लिए राहुल गांधी की संसद से सदस्यता का चले जाना विस्मयकारी रहा है। 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था तो इसके तकरीबन 47 साल बाद सूरत की कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी करार दिया है। समय के इस अंतराल में दुनिया की राजनीति भी बदली है और भारत की राजनीति पर कांग्रेस का एकाधिकार खत्म हो गया है,दुनिया इसे भारत की राजनीति में गहरें बदलाव की तरह देख रही है। राहुल गांधी की संसद से अयोग्यता पर राजनीतिक घमासान मचा है तो दुनिया भी इससे अछूती नहीं है,कहीं यह खबर है, तो कहीं चिंता और कहीं पर इसे भारतीय लोकतंत्र के समक्ष उठ खड़े हुए संकट की तरह देखा जा रहा है।

यदि ब्रिटेन की बात की जाएँ तो  भारत के संविधान पर उसका गहरा प्रभाव है और भारत राष्ट्रमंडल का सदस्य भी है,जिसका ब्रिटेन नेतृत्व करता है। ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने इस समूचे घटनाक्रम को भारत के लोगों की प्रतिक्रियाओं से जोड़कर देखा है। वहीं सत्तारूढ़  पार्टी द्वारा राहुल गांधी पर ध्यान केंद्रित करने  की नीति पर आश्चर्य भी जताया है। ब्रिटेन के राजनीतिक और बौद्धिक हलकों में इससे कांग्रेस को फायदा मिलने की उम्मीद भी जताई है। ब्रिटेन में भारतीय समुदाय अच्छी खासी संख्या में बसता है,जहां यह माना जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के तहत् पूरे देश में पैदल चलने से  राहुल गांधी की छवि में विश्वसनीयता और वज़न आया है। ऐसे में सरकार के  सामने उन्हें रोकना  बड़ी चुनौती है।

 

अमेरिका के आर्थिक और सामरिक हित भारत से जुड़े है लेकिन इन सबके बीच दुनिया के इस सबसे शक्तिशाली देश से राहुल गांधी के निष्कासन को लेकर बेहद मिलीजुली प्रतिक्रिया आई है। दुनिया के ख्यातनाम अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने  इसे मोदी सरकार की सफलता मानते हुए यह आशंका जताई है कि मानहानि का ये मामला राहुल गांधी और कांग्रेस को सालों की क़ानूनी लड़ाई में फंसा सकता है। अख़बार के मुताबिक पीएम मोदी के संभावित प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए उनके सहयोगियों ने ये सबसे कड़ा कदम उठाया है और विरोध की आवाज़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है।  वहीं एक अन्य अमेरिकी अख़बार  वॉशिगटन पोस्ट ने राहुल गांधी को पीएम #का मुख्य प्रतिद्वंदी बताते हुए लिखा है कि यह विपक्षी नेता हाल के महीनों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर और मोदी सरकार पर भारत के लोकतंत्र की छवि बिगाड़ने का आरोप लगाकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करते रहे हैं।

अमेरिका के राजनीतिक हलकों में भी राहुल गांधी घटनाक्रम को लेकर चिंताएं जाहिर की गई है। भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद रो खन्ना  ने इस फैसले को गांधीवादी दर्शन और भारत के गहरे मूल्यों के साथ गहरा विश्वासघात करार दिया है। कांग्रेसनल कॉकस ऑन इंडिया एंड इंडियन-अमेरिकन्स के सह-अध्यक्ष खन्ना ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने को कहा है और पीएम मोदी से यह उम्मीद जताई है कि भारतीय लोकतंत्र की खातिर इस फैसले को उनके पास पलटने की शक्ति है। वहीं अमेरिकी सीनेटर क्रिस वैन होलेन ने भारत  को अपना मित्र बताते हुए इस मसले को चिंताजनक कहा है। अमेरिकी सीनेटर के भारत के लोकतंत्र के मूल्यों के गिरते स्तर पर ध्यान दिलाया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत पहले ही  180 देशों की सूची में  डेढ़ सौवें स्थान पर गिर गया है। यह गलत दिशा में एक और कदम है।

यूरोप के सबसे बड़े और विकसित देश फ़्रांस में लोकतांत्रिक संकट और विरोध प्रदर्शनों के बीच भारत के घटनाक्रम पर मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल ने  सूरत कोर्ट के फैसलें को याद करते हुए कहा है कि 1977 में कोर्ट के फ़ैसले में राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। हालांकि फ़्रांसिसी मीडिया में यह भी चर्चा है कि हाल के सालों में मोदी सरकार के आलोचक रहे विपक्षी नेताओं और संस्थाओं के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की गई है। राहुल गांधी समेत कुछ शीर्ष विपक्षी नेताओं पर चलने वाले मुकदमों की भी खास चर्चा फ़्रांस के अख़बारों ने की है।

खाड़ी देशों में भी भारत के राजनीतिक उठा पटक की चर्चा है। वहीं जर्मनी के विदेश मंत्रालय  की प्रतिक्रिया भी आश्चर्यजनक रूप से सामने आई है,जहां यह उम्मीद जताई गई है कि राहुल के खिलाफ की गई कोई भी कार्रवाई न्यायिक स्वतंत्रता के दायरे में और उनके मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखकर की गई होगी।

द्वितीय विश्व युद्द के बाद उभरे शीतयुद्ध  में लोकतंत्र और संपूर्ण सत्तावादी शासन पद्धति के बीच संघर्ष देखा गया,जिसमें साम्यवादी चुनौती को परास्त कर लोकतंत्र विजयी हुआ था। इससे आज़ादी और मानवाधिकार को मजबूती भी मिली। इसमें भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है।  दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र होने के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश भी है। महात्मा गांधी के मूल्यों और आदर्शों की चर्चा दुनिया भर में होती है और भारत के समाज को उसी दृष्टि से देखा जाता है। गृहयुद्द से जूझते दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र में लोगों का भरोसा बढाने के लिए भारत की चुनाव मशीनरी और अधिकारियों को आमंत्रित किया जाता है। जाहिर है भारत के लोकतंत्र की मजबूती स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ हो और दुनिया इस देश से सीखती रहे,यह अपेक्षा वैश्विक स्तर पर की जा रही है।

 

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