मध्यपूर्व में शक्ति संतुलन की होड़
article Uncategorized

 मध्यपूर्व में शक्ति संतुलन की होड़

जनसत्ता

शक्ति संतुलन,अंतराष्ट्रीय राजनीति में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता रहा है। इसमें यह प्राथमिकता से सुनिश्चित किया जाता है की कोई भी शक्ति इतनी प्रबल न हो जाएं की उससे दूसरों राष्ट्रों के हितों की रक्षा न की जा सके। चीन अफ़्रीका,मध्य-पूर्व,मध्य एशिया और यूरोप के सारे आर्थिक मार्गों को अपने नियंत्रण में करने की कोशिश कर रहा है। दुनिया के अन्य क्षेत्रों के साथ ही खासतौर पर मध्यपूर्व में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को नियंत्रित और संतुलित करने के लिए भारत,अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सऊदी अरब में मिले है। ये तीनों देश इजराइल के समर्थन से कनेक्टिविटी कॉरिडोर के निर्माण की वृहत योजना को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे है। जो भारत से अरब प्रायद्वीप में अरब की खाड़ी से गुज़रता हुआ इज़रायल,जॉर्डन तक और फिर वहां से यूरोपीय संघ तक विस्तृत होगा। कनेक्टिविटी कॉरिडोर का विचार अमेरिका,इजराइल,भारत और यूएई ने दो वर्ष पूर्व ही कर लिया गया था लेकिन हाल ही में चीन ने सऊदी अरब और ईरान के राजनयिक संबंध बहाल करवाने में जो सफलता अर्जित की है उससे अमेरिका,इजराइल और भारत जैसे देश चकित है और इसे वे बड़ी चुनौती के रूप में देख रहे है।

दरअसल चीन मध्यपूर्व में वन बेल्ट,वन परियोजना को सफल बनाने के लिए कृत संकल्पित है और उसने ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों को साथ मिलाकर,गृह युद्द से जूझते इस अशांत क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। चीन आर्थिक गलियारें के तहत कई देशों में करोड़ों डॉलर का निवेश करता रहा है। चीन और खाड़ी देशों के बीच मुक्त व्यापार को लेकर वार्ताएं करीब एक दशक से चल रही है। चीन इस इलाके में शांति स्थापित करके न केवल अपने व्यापरिक साम्राज्य को सफल बना सकता है बल्कि वह सामरिक बढ़त भी लेना चाहता है। वैश्विक स्तर पर इस सहयोग का व्यापार से ज्यादा कूटनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है।

मध्यपूर्व में महाशक्तियों के बहुत सारे सामरिक और आर्थिक हित मौजूद है। महाशक्तियों के हित और शक्ति संतुलन के बीच तेल संपदा का भी एक महत्वपूर्ण द्वंद है जो शह और मात के खेल को पश्चिम एशिया तक खींच लाता है। ये महाशक्तियां मध्यपूर्व की राजनीति,कूटनीति और आर्थिक नीति को रणनीतिक रूप से प्रभावित करने के लिए कूटनीतिक दांव पेंच आजमाती रही है। इसमें तेल की राजनीति के साथ शिया सुन्नी विवाद को हवा देकर,आपसी ज़ोर आजमाइश और प्रतिद्वंदिता को बढ़ावा दिया गया है। विश्व के सम्पूर्ण उपलब्ध तेल का लगभग छियासठ फीसदी ईरान की खाड़ी के आसपास के इलाकों जिसमें मुख्य रूप से कुवैत,ईरान और सऊदी अरब में पाया जाता है। सोवियत संघ और अमेरिका तो तेल के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन यदि यूरोप को इस इलाके से तेल प्राप्त होना बंद हो जाये तो उसके अधिकांश उद्योग धंधे बंद हो जाएंगे और इस प्रकार दुनिया के सबसे बड़े विकसित यूरोप महाद्वीप की औद्योगिक और सामरिक क्षमता बर्बाद हो जाएगी। यही कारण है कि पश्चिमी देश मध्य पूर्व पर अपना नियंत्रण बनाएं रखना चाहते है। अब चीन ने इस स्थिति को बदलने की ओर मजबूती से कदम बढ़ाएं है।

इन सबके बीच मध्यपूर्व में कड़े प्रतिद्वंदियों को जोड़ने की चीन की कोशिशें न तो अमेरिका के लिए व्यक्तिगत स्तर पर फायदेमंद है और न ही इजराइल की सुरक्षा के लिए। चीन भारत का परम्परागत प्रतिद्वंदी है और मध्यपूर्व में भारत के आर्थिक और सामरिक हित भी इससे प्रभावित हो सकते है। पश्चिम एशिया में लगभग आठ मिलियन भारतीय निवास करते हैं जिनमें से केवल संयुक्त अरब अमीरात में ही पच्चीस लाख भारतीय मौजूद हैं। वे भारत के सद्भावना दूत के रूप में अपनी उपस्थिति रखते हैं। भारत को इस भूभाग में अत्यंत सतर्कता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा,खाद्य सुरक्षा,श्रमिक,व्यापार,निवेश और समुद्री सुरक्षा जैसे भारत के कई मूलभूत हित इस क्षेत्र से हैं।

चीन और पाकिस्तान,ईरान और सऊदी अरब को साथ मिलाकर भारत की कूटनीतिक समस्याओं को बढ़ा सकते है। वहीं इजराइल के लिए परम्परागत शत्रु देशों का आपस में मिल जाना नई सामरिक चुनौती बन सकता है। यहीं नहीं मध्यपूर्व में अमेरिकी हित पूरा करने के लिए उसका सऊदी अरब और यूएई पर नियन्त्रण जरूरी है। ऐसे में आईटूयूटू समूह के भारत,अमेरिका,यूएई और इजराइल ने सामूहिक सुरक्षा की तर्ज पर चीन को नये आर्थिक गलियारें के निर्माण से चुनौती देने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। 2021 में पहली बार मिलने वाले भारत-इसराइल-यूएस-यूएई के इस समूह के बीच समुद्री सुरक्षा,बुनियादी ढांचे,डिज़िटल इन्फ़्रास्ट्रक्चर और परिवहन से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा हुई थी। उस समय इस बैठक का एक बड़ा मुद्दा इसराइल और यूएई के बीच संबंध सामान्य बनाना था। भारत में यूएई के राजदूत ने उस वक़्त इस नए गुट को पश्चिमी एशिया का क्वॉड बताया था। यह योजना मध्य-पूर्व और एशिया में आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के विस्तार पर केंद्रित है,जिसके अंतर्गत व्यापार,जलवायु परिवर्तन से मुकाबला,ऊर्जा सहयोग और अन्य महत्त्वपूर्ण साझा हितों पर समन्वय करना शामिल है। चार देशों का यह समूह आधारभूत संरचना,प्रौद्योगिकी और समुद्री सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में समर्थन और सहयोग को बढ़ावा देगा। इस गलियाये का निर्माण पूरा होने पर भारत के लिये कंटेनर परिवहन की लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी। यदि यह समूह और कार्ययोजना सफल होती है तो पश्चिम एशिया में भारत की भू-राजनीतिक उपस्थिति को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक स्तर पर भारत के रणनीतिक एवं आर्थिक महत्व को बढ़ावा मिलेगा। भारत और यूएई के बीच आर्थिक संबंध पहले से ही गहरे हैं। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। इंडिया-यूएई फ़ूड कॉरिडोर के लिए यूएई की कंपनियों ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। वर्तमान में यूएई खाद्य सुरक्षा को लेकर भारत के साथ मिलकर कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इसके साथ ही भारतीय इंजीनियरिंग और अन्य सेवाओं का फायदा मध्यपूर्व के कई देश उठा रहे है। .

यह भी दिलचस्प है कि इस परियोजना पर आगे बढने से भारत को दक्षिण एशिया समेत हिन्द महासागर में भी फायदा मिल सकता है। भारत की हिन्द महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है। हिन्द महासागर की सुरक्षा को लेकर भारत मुखर रहा है और उस पर चीन का प्रभाव उसे आशंकित भी करता रहा है। 2007 में स्थापित क्वाड का भारत अहम सदस्य है,भारत,जापान,संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का यह सामरिक समूह स्वतंत्र,खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि इन चार देशों के साझा उद्देश्य को लेकर चीन के साथ रूस इसकी आलोचना करता रहा है।

अमेरिका की नजर हिन्द प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक और आर्थिक महत्व पर भी है। इस क्षेत्र में चीन ने कई देशों को चुनौती देकर विवादों को बढ़ाया है। चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है। चीन ने दक्षिण एशिया के कई देशों में बन्दरगाहों का निर्माण भारत की सामरिक चुनौतियां को बढ़ा दिया है। दक्षिण चीन सागर का इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन,ताइवान,वियतनाम,मलेशिया,इंडोनेशिया,ब्रुनेई और फिलीपींस से घिरा हुआ है। यहां आसियान के कई देशों के साथ चीन विवाद चलता रहता है। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकामयाब रहे है। अब क्वाड के बाद आई2यू2 फोरम के साथ आने से चीन का मुकाबला करने में अन्य देशों का साथ मिलने की संभावनाएं बढ़ेगी। गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश नीति में एशिया प्रशांत क्षेत्र को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। चीन के उभार को रोकने के लिए कूटनीति और सामरिक रूप से अमेरिका एशिया के कई इलाकों में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। ओबामा काल में अमेरिका की एशिया केंद्रित नीति में जापान,दक्षिण कोरिया,थाईलैंड,फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से चीन को चुनौती देने की प्रारंभिक नीति पर काम किया गया था। ओबामा ने एशिया में अपने विश्वसनीय सहयोगी देशों के साथ ही उन देशों को जोड़ने की नीति पर भी काम किया जो चीन की विस्तारवादी नीति और अवैधानिक दावों से परेशान है। इन देशों में भारत समेत इंडोनेशिया, ताइवान,मलेशिया,म्यांमार,ताजीकिस्तान,किर्गिस्तान,कजाकिस्तान,लाओस और वियतनाम जैसे देश शामिल है। इनमें कुछ देश दक्षिण चीन सागर पर चीन के अवैध दावों को चुनौती देना चाहते है और कुछ देश चीन की भौगोलिक सीमाओं के विस्तार के लिए सैन्य दबाव और अतिक्रमण की घटनाओं से क्षुब्ध है। दक्षिणी चीन सागर,प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित समुदी मार्ग से व्यापार का बेहद महत्वपूर्ण इलाक़ा है। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर का ये हिस्सा,क़रीब पैतीस लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का बीस फ़ीसदी हिस्सा यहां से गुज़रता है। सात देशों से घिरे दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन और अन्य देशों के बीच गहरा तनाव रहा है और कई बार युद्द जैसी स्थितियां भी निर्मित हुई है।

एशिया में चीन जमीन और समुद्र में लगातार आक्रामक नीतियां अपनाएं हुए है। ओबामा के बाद बाइडेन प्रशासन भी सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देने की नीति पर काम करके अपने सहयोगियों को जोड़ रहा है। इसमें ऑस्ट्रेलिया,यूके और यूएस का समूह आकस तथा इंडो-पैसिफ़िक इकोनॉमिक फ़्रेमवर्क यानी आईपीईएफ़ शामिल है,इस समूह में भारत सहित 13 देश भागीदारी कर रहे हैं। जाहिर है जिस प्रकार अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए नाटो का विस्तार कर रूस के पड़ोसी देशों के साथ सुरक्षा संधि की थी,उसी तर्ज पर एशिया में चीन को घेरने की नीति अपनाई जा रही है। भारत,ऑस्ट्रेलिया,जापान और अमेरिका लगातार एशिया प्रशांत के समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहे है, वहीं भू राजनैतिक स्तर पर भी ऐसी ही कार्ययोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। मध्यपूर्व में भारत,अमेरिका,यूएई और इजराइल का सहयोग और समन्वय गेम चेंजर साबित हो सकता है। चीन की साम्राज्यवादी और आक्रामक आर्थिक नीतियों के कुचक्र से दुनिया को बचाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत गठजोड़ बनाएं जाने चाहिए,यह भारत और वैश्विक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।

#ब्रह्मदीप अलूने

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X