महात्मा गांधी ने सिखाया

महात्मा गांधी ने सिखाया

महात्मा गांधी ने सिखायाचार मण्डली में जो लोग मिले और जो वे काम कर रहे है उससे ही गांधी की बाकी आजादी मिल सकती है। गांधी के आदर्शों पर काम करने वाले इन लोगों के प्रति समाज में सम्मान को देखा और महसूस भी किया। इस दौर में राजनीतिक नेतृत्व तो होता है लेकिन लोगों की निगाहों में सम्मान और विश्वास देखा नहीं जाता। दरअसल बापू ने यही सिखाया की बिना राजनीतिक पद के भी जनप्रिय लोकनेता बना जा सकता है। लोक कल्याण के ईमानदार प्रयास तो कीजिए। फिर आपको चकाचौंध,धन,बाहुबल,धर्म,जाति या सम्प्रदाय की वैसाखी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

महात्मा गांधी ने सिखाया

भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर आबिदाबाद पंचायत के गांव चार मण्डली में गांधी के ग्राम स्वराज पर आधारित एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो मैं भी वहां पहुंच गया। गांव में एक स्थान पर बोर्ड लगा था ग्राम सेवा समिति चार मंडली। गेट को खोलकर अंदर घुसे तो चारो और खेत थे। कार को कीचड़ में ही पार्क करना पड़ा। पानी गिरने से मिट्टी बह रही थी। पास ही एक हॉल था जहां मैंने पत्नी और बच्चों के साथ प्रवेश किया। हॉल में दरी बिछी हुई थी और एक मात्र कुर्सी पर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई थी। कुर्ता पायजामा पहने एक शख्स सबसे परिचय कर रहे थे। जो सज्जन यह काम कर रहे थे वे राकेश कुमार पालीवाल थे,जो कमिश्नरी के बाद कुछ दिनों पहले ही रिटायर्ड हुए थे।

नीचे बैठे सामान्य लोगों का परिचय जाना तो चमत्कृत हुए बिना न रह सका। पद्मश्री बाबुलाल दहिया बैठे थे। उन्होंने धान की कई किस्मों को संभाल कर रखा है जो खत्म हो चुकी है। मध्यप्रदेश के सतना जिले के किसान बाबूलाल दाहिया उम्र करीब 75 साल है। बाबूलाल दाहिया डाक विभाग में पोस्ट मास्टर के पद से रिटायर हो चुके हैं,उनके पास करीब 8 एकड़ जमीन है,जिसमें वह जैविक खेती करते हैं। बाबूलाल दाहिया के पास लगभग दो सौ देसी धान की किस्म है। वह हर साल इन्हें अपने ही खेत में बुवाई करते हैं।दाहिया कहना है कि साल 1965 तक किसान देसी किस्मों से खेती करते थे। जब से हरित क्रांति आई है तब से किसान बाजार पर निर्भर हो गए हैं। इसके बाद धीरे-धीरे देसी बीज विलुप्त होने लगे,लेकिन अगर किसान को कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ना है,तो उन्हें देसी बीजों का चयन करें। देसी बीज में कम लागत लगती है,साथ ही इन्हें हर मौसम को सहन करने की क्षमता होती हैं।

 

कुर्ता पायजामा पहने एक युवती बैठी थी,पता चला की यही माया सुकर्मा है जो पैड वुमन के नाम से जानी जाती है। अमेरिकी से पीएच.डी. करके लौटी माया मूल रूप नरसिंहपुर के मेहरागांव की रहने वाली है और अब गांव की सरपंच है। माया पिछले 1 दशक से गृहनगर नरसिंहपुर में एक आत्मनिर्भर गांव पर काम कर रही हैं। उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई और गांवों के बारे में शिक्षा और जागरूकता के लिए स्वराज मुमकिन है नामक एक किताब लिखी। आदिवासी और ग्रामीण लड़कियों/महिलाओं के लिए नो टेंशन ब्रांड नाम से किफायती सैनिटरी नैपकिन तैयार की है। उन्होंने गांव में टेलीमेडिसिन प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर भी शुरू किया है जिससे ग्रामीण भारत के सुदूर गांव तक बेहतर डॉक्टर से उपचार और परामर्श मिल सके।

महात्मा गांधी ने सिखाया

एक और बुजूर्ग बैठे हुए थे करीब 93 साल के छत्तीसगढ़ के गांधी धर्मपाल सैनी जो विनोबा भावे से पांच रूपये लेकर 1976 में बस्तर आये थे और फिर यही के होकर रह गए। जब वे बस्तर आए तो देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी 15 से 20 किलोमीटर आसानी से पैदल चल लेते हैं। बच्चों की इस ऊर्जा को खेल और शिक्षा में लगाने की उन्होंने योजना बनाई। 1985 में पहली बार उनके आश्रम की छात्राओं को खेल प्रतियोगिता में उतारा। इसके बाद हजारों बच्चियों को उन्होंने खेल से जोड़ दिया। महिला शिक्षा में बेहतर योगदान के लिए 1992 में सैनी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। 2012 में द वीक मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द ईयर चुना था।

खेत पर मेड़,मेड़ पर पेड़ की योजना से सूखे बुदेलखंड को हरा कर कई गांवों की तकदीर बदलने वाले उमा शंकर पांडे भी बैठे हुए थे। उनका भारत की जल प्राचीन जल पद्धति से विकसित किया गया जखनी गांव पूरे भारत में चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में उमा शंकर पांडे की प्रशंसा करते हुए जल संरक्षण के लिए इस पद्धति पर काम करने की जरूरत बता चूके है। जखनी गाँव के किसानों नौजवानों द्वारा अपने श्रम से की गयी मेड़बन्दी के कारण गाँव का जलस्तर ऊपर आया। जल से गाँव में सिद्धि, प्रसिद्ध, समृद्धि आई। आज सम्पूर्ण भारत में पानी – किसानी के सामुदायिक प्रयास के लिए जखनी का मेड़बंदी मॉडल चर्चित है। जखनी के किसानों ने सरकार से किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं ली। मेड़बन्दी से उसर भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। जहाँ – जहाँ जल संकट है,उसका एकमात्र उपाय है वर्षा जल को अधिक से अधिक खेत में मेडबन्दी के माध्यम से रोकना चाहिए। इससे पानी रोकने के साथ जैविक खेती में बड़ी मदद मिल सकती है।

एक और बुजूर्ग डॉ.सुरेश गर्ग भी बैठे थे। मूल रूप से विदिशा के रहने वाले डॉ. साहब गांधी सुमिरन समिति के माध्यम से आदर्श गांव बसा रहे है। किसानों को जैविक खेती के तौर तरीके सिखाते है और नशा बंदी को लेकर अभियान चलाते है।

अब आपको राकेश कुमार पालीवाल के बारे में भी बताते है। वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी और मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के आयकर महानिदेशक रह चुके राकेश पालीवाल रिटायर्ड होने के बाद फ़िलहाल भोपाल में रहते है। वे 1997 में स्थापित योगदान संस्था से जुड़े हुए है। आज कल पालीवाल ग्राम सेवा समिति के साथ काम कर रहे है। 2015 से स्थापित यह संस्था नशा बंदी,जैविक खेती आदि के बारे में लोगों को समझाती है तथा किसानों को जैविक खेती से आय बढ़ाने का प्रशिक्षण भी देती है।

इन सभी गांधीवादियों के साथ पूरा दिन बिताया। आसपास के गांवों से कई सरपंच और युवा आएं। उन्होंने ग्राम स्वराज और जैविक खेती पर बात की। भोपाल से इतनी दूर यह कार्यक्रम आयोजित हुआ कि मीडिया की चकाचौंध से यह दूर था। सारे लोग मिले,खूब चर्चा हुई पर धर्म और राजनीति जैसे विषय गायब थे। यहां पर लोगों के बेहतर जीवन,जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण पर बात हुई।

बापू ने दक्षिण अफ्रीका में दो आश्रम स्थापित किए थे,डरबन के पास फीनिक्स आश्रम और जोहान्सबर्ग के पास टॉलस्टॉय आश्रम। इसी प्रकार भारत में भी उन्होने दो आश्रम स्थापित किए,अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम और वर्धा के पास सेवाग्राम आश्रम। यह आश्रम जाति संप्रदाय के भेदभाव से दूर आत्मनिर्भरता,स्वावलम्बन और स्वच्छता पर बात करते थे और व्यवहार और आचरण में भी इसी का पालन करते थे।

बापू ने जीवन भर आदर्श गांव,ग्राम स्वराज,अपृश्यता निवारण,पर्यावरण संरक्षण,स्वच्छता और नशा बंदी की बात की। उनके आंदोलनों का मुख्य विषय यही था। बापू की इन्हीं समाज कार्यो ने पूरे भारत को जोड़ दिया। बापू फिंरंगियों से मिली आज़ादी को आधी अधूरी बताया करते थे। वे कहते थे,यह सिर्फ राजनीतिक आज़ादी है,सामाजिक,आर्थिक और आध्यात्मिक आज़ादी के लिए अभी और काम करने की जरूरत है। जब तक यह नहीं मिलेगी,तब तक देश को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिल सकती।त्मा गांधी ने सिखायामहात्मा गांधी ने सिखायाहात्मा गांधी ने सिखाया

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