पॉलिटिक्स
इजराइल को न तो पश्चिम पर भरोसा है,न अमेरिका पर और न ही अरबों पर। दरअसल यहूदियों को खत्म करने की कोशिशों में सब शामिल रहे है। यहीं कारण है कि यहूदी अपना रास्ता खुद चुनते है फिर चाहे उन्हें इसकी कोई भी कीमत अदा करना पड़े, लेकिन वे अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाते है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास को खत्म करने और सभी बंधकों को वापस लाने की कसम खाई है।
यहूदियों से घृणा कर उन्हें दुनिया में सबसे निकृष्टतम बताने वाले हिटलर ने एक बार कहा था कि भयंकर विपदाओं में से गुजरने के बाद भी यहूदी ज्यों के त्यों जीवित है। इसका मुख्य कारण है उनमे जीने की प्रबल इच्छा तथा लक्ष्य प्राप्त करने की चेष्टा। हर साल 27 जनवरी को होलोकॉस्ट मेमोरियल डे के तौर पर मनाया जाता है। यहूदी नरसंहार, जिसे दुनियाभर में होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपी यहूदियों का नाज़ी जर्मनी द्वारा किया गया एक जाति-संहार था। नाज़ी जर्मनी और इसके सहयोगियों ने तक़रीबन साठ लाख यहूदियों की सुनियोजित तरीक़े से हत्या कर दी। असहनीय कष्टों से जूझते यहूदियों ने अरबों के बीच अपना अस्तित्व बनाएं रखने की चुनौती को स्वीकार किया। वे आठ दशकों से मजबूत दुश्मनों से लड़ रहे है। हालांकि अपने उद्देश्य को लेकर यहूदी इतने स्पष्ट है कि बंधकों को लेकर किसी भी आतंकी संगठन से वे मोल भाव नहीं करते। इतिहास गवाह है की इस कारण इस्राइल के कई नागरिकों को नृशंस तरीके से मार दिया गया लेकिन इस्राइल की सरकार ने कभी समझौता नहीं किया।
बीते साल सात अक्तूबर को हमास ने इस्राइल पर हमला किया था। इस हमले में 1200 लोग मारे गए थे। हमास के लड़ाके तब 252 लोगों को बंधक बनाकर ग़ज़ा लेकर गए थे। इजराइल का कहना है कि गाजा में अभी भी लगभग 100 बंधक हैं और कुछ मारे जा चूके है। इस्राइल की सेना गजा में घुसकर हमास के आतंकियों को मार रही है तथा साथ ही बंधकों के शव भी ढूंढ रही है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास को खत्म करने और सभी बंधकों को वापस लाने की कसम खाई है। नेतन्याहू ने कहा कि देश का यह कर्तव्य है कि वह अपहृत लोगों,मारे गए लोगों और जीवित लोगों को वापस लौटाने के लिए हरसंभव प्रयास करें। तमाम वैश्विक दबावों को दरकिनार कर नेतन्याहू हमास को खत्म करने को प्रतिबद्द नजर आते है। इज़रायल के सैनिक दक्षिण में राफ़ा,मध्य गाजा और उत्तर में जबालिया में हमास के खिलाफ युद्द लड़ रहे है।
पूर्वी भूमध्य सागर के आख़िरी छोर पर स्थित इस्राइल उत्तर में लेबनान,उत्तर-पूर्व में सीरिया,पूर्व में जॉर्डन और पश्चिम में मिस्र से घिरा है। अपनी सामरिक ताकत के कारण इस्राइल के सामने दुश्मन देश नतमस्तक रहे है। देश की आन-बान-शान के लिए मर मिटने का जज्बा भी इजराइलियों में कमाल का है। जून 1967 में जब जार्डन,सीरिया और इराक सहित आधा दर्जन मुस्लिम देशों ने एक साथ इजराइल पर हमला किया तो उसने पलटवार करते ही मात्र छह दिनों में इन सभी को धूल चटा दी थी। उस घाव से अरब देश अब भी नहीं उबर पाएं है। यह युद्ध 5 जून से 11 जून 1967 तक चला और इस दौरान मध्य पूर्व संघर्ष का स्वरूप बदल गया। इतिहास में इस घटना को सिक्स वॉर डे के नाम से जाना जाता है। इस्राइल ने मिस्र को ग़ज़ा से,सीरिया को गोलन पहाड़ियों से और जॉर्डन को पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम से धकेल दिया। इसके कारण पांच लाख और फ़लस्तीनी बेघरबार हो गए,जीते गये इलाकें अब इस्राइल के कब्जे में है। खाड़ी देशों के लाख प्रयासों के बाद भी इजराइल इन इलाकों को छोड़ने को तैयार नहीं है।
2018 में इजराइल-सीरिया सीमा पर टोह ले रहे एक इस्रायली लड़ाकू जेट विमान को सीरियाई एंटी एयरक्राफ्ट द्वारा निशाना बनाया गया था। सीरिया की इस हिमाकत के जवाब में इस्राइल ने पिछले तीस सालों में सीरिया पर सबसे बड़े हवाई हमले करने से भी गुरेज नहीं किया। इस हमलें में सीरिया की हवाई रक्षा प्रणाली से जुड़े उन आठ ठिकानों को तबाह कर दिया, जिन पर शक था कि इसराइली विमान पर मिसाइलें यहीं से दागी गईं थीं।
1976 में युगांडा में इजराइल के 54 नागरिकों को बंधक बना लिया गया था,इसमें युगांडा की भूमिका संदिग्ध थी। लेकिन इस्राइल ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से अनेक देशों की हवाई सीमा को बेहद सावधानी और गोपनीयता से पार करते हुए युगांडा में घुसकर अपने 54 लोगों को मौत के मुंह से निकाल लिया। इस ऑपरेशन के जरिए इस्राइल ने यह साबित कर दिया था कि सामरिक नीति के मामलें में उसका कोई सानी नहीं है। 1972 के म्यूनिख ओलम्पिक में आतंकवादियों ने इजराइल के 11 खिलाड़ियों को मार दिया था। इसके बाद मोसाद ने इस वारदात में किसी भी प्रकार से शामिल हर एक शख्स को दुनिया के कोने कोने से ढूंढ ढूंढ कर मार डाला। करीब बीस साल तक चले इस प्रतिशोध में मोसाद ने हत्यारों को फ़्रांस,साईप्रस,फ़िलिस्तीन ,इटली और ग्रीस में निशाना बनाया।
संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इस्राइल को गाजा के दक्षिणी हिस्से में स्थित शहर रफह में अपने सैन्य अभियान को तुरंत रोकने का आदेश दिया है। इजराइल का कहना है कि उसे हमास के आतंकवादियों से खुद की रक्षा करने का अधिकार है और उसके द्वारा इस फैसले का पालन करने की संभावना नहीं है। इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि जब तक रफाह में हमास के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर ऑपरेशन नहीं चलाया जाएगा,तब तक युद्ध में जीत हासिल नहीं की जा सकती। रफाह में इसराइली सेना के प्रवेश से न सिर्फ निर्दोष लोगों और सैनिकों की जान को खतरा हो सकता है,बल्कि हमास ने जिन लोगों को बंधक बना रखा है,उनकी जान भी खतरे में पड़ सकती है। नेतन्याहू हमास को मिटा देने के लिए आमादा है। आतंकियों और दुश्मनों के प्रति इस्राइल की जीरों टालरेंस नीति उसे दुनिया से अलग करती है। इस्राइल अमेरिका और पश्चिमी देशों का सहयोग जरूर लेता है लेकिन उन पर कभी भरोसा नहीं करता। दरअसल यहूदियों का कत्लेआम पश्चिम में ही हुआ है। इस्राइल यह बखूबी जानता है कि अस्तित्व की कोई कीमत नहीं हो सकती। इस्राइल की आक्रमकता पर दुनिया बंटी हुई लगती है लेकिन यहूदियों ने इतिहास से यह सबक लिया है कि यदि अपना अस्तित्व बचाने के लिए स्वतंत्र और आक्रामक नहीं रहे तो वे खत्म कर दिए जाएंगे। दुनियाभर में रहने वाले विज्ञान,तकनीकी और व्यापार में अग्रणी यहूदियों का अपनी जमीन इस्राइल की सुरक्षा के लिए जज़्बा कमाल का है,यहीं जज़्बा यहूदियों के जिंदा बचे रहने का कारण भी है।

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