लक्षद्वीप का रणनीतिक महत्व,जनसत्ता
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लक्षद्वीप का रणनीतिक महत्व,जनसत्ता

जनसत्ता

  लक्षद्वीप का रणनीतिक महत्व

                                                                            

 

हिंद महासागर और अरब सागर से लगे कई देशों में चीन ने आधारभूत परियोजनाओं और बन्दरगाहों का निर्माण कर भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा दिया है। पिछले कुछ दशकों में चीन ने तेज़ी से अपनी नौसैनिक क्षमताओं का आधुनिकीकरण किया है। चीनी नौसेना ने विमान वाहक जहाज़ों,सतही युद्धपोतों और सैन्य पनडुब्बियों को बड़ी संख्या में अपने बेड़ों में शामिल किया है। वहीं चीन से मुकाबला करने के लिए भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में अपनी नौसेना और तटरक्षक बलों को मजबूत किया है। इसके साथ ही भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए जिन केन्द्रों को चिन्हित किया है, लक्षद्वीप उसमें बेहद अहम है।

लक्षद्वीप 36 द्वीपों का एक समूह है और इसका कुल क्षेत्रफल  बत्तीस वर्ग किलोमीटर है जो अरब सागर में करीब तीस हजार वर्ग मील तक फैला हुआ है। अरब सागर हिंद महासागर का उत्तर पश्चिमी इलाका है जो पश्चिम में अरब प्रायद्वीप और पूरब में भारतीय उप महाद्वीप के बीच स्थित है तथा ये लाल सागर को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है। अरब सागर की सीमा यमन,ओमान,पाकिस्तान,ईरान,भारत और मालदीव को छूती है। अरब सागर एक ऐसा समुद्री क्षेत्र है जो कई अहम शिपिंग लेन और बंदरगाहों को जोड़ता है,इसलिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए ये एक अहम रास्ता बन जाता है। अरब सागर तेल और प्राकृतिक गैस का भी बड़ा भंडार और इस क्षेत्र में ऊर्जा का अहम संसाधन भी है।

 

अरब सागर में जहाजों की किसी भी गतिविधि पर नजर रखने के लिए लक्षद्वीप द्वीप समूह को एक सुविधाजनक स्थान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी दिलचस्प है कि भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का आकार बहुत विशाल है तथा इसमें लक्षद्वीप भी शामिल है। विशिष्ट आर्थिक ज़ोन किसी भी देश के समुद्री तट से 200 नॉटिकल मील यानी 370 किलोमीटर की दूरी तक होता है। लक्षद्वीप  के कारण भारत को समुद्र के बड़े क्षेत्र में नजर रखने का अधिकार मिल गया है जिससे दूर दूर तक गुजरने वाले जहाजों की आवाजाही पर नजर रखी जा सकती है। लक्षद्वीप के कवरत्ती आइलैंड पर भारतीय नौसैनिक बेस है,इसके साथ ही भारत अब लक्षद्वीप पर एक मजबूत बेस तैयार कर रहा है जिससे चीन से मुकाबला करने में बड़ी मदद मिलने की उम्मीद है। भारत की तटीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। लक्षद्वीप की रक्षा क्षमताओं को विकसित करने के लिए कई प्रयास चल रहे हैं। नौसेना बड़े विमानों को समायोजित करने के लिए अगत्ती हवाई पट्टी को विस्तारित किया जा रहा है,यहां लम्बे रनवे से लंबी दूरी के समुद्री टोही विमान दूर तक उड़ान भर सकेंगे।

भारत की कुल तटीय सीमा सात  हजार पांच सौ सोलह किलोमीटर की है। यह गुजरात,महाराष्ट्र,गोवा,कर्नाटक,केरल,तमिलनाडु,आंध्रप्रदेश,ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के साथ-साथ संघ-शासित प्रदेशों दमन और दीव,लक्षद्वीप, पुडुचेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तक फैली हुई है। भारत की दक्षिण पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित केरल राज्य भारत की सामरिक सुरक्षा का बड़ा केंद्र माना जाता है। कोच्चि केरल का बंदरगाह नगर है जो लक्षद्वीप सागर से लगा हुआ है। कवरट्टी द्वीप संघशासित प्रदेश लक्षद्वीप का मुख्यालय है,यह द्वीप कोच्चि से 218 समुद्री मील की दूरी पर है। कोच्चि को अरब सागर और हिंद महासागर का एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कृषि उत्पादों,औद्योगिक वस्तुओं और कच्चे माल सहित राज्य के आयात और निर्यात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संभालता है। कोच्चि का इतिहास समृद्ध है,यह सदियों से व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र रहा है। यह बहुत प्राचीन काल से दुनिया का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर  रहा है जहां मध्य पूर्व और यूरोप सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से व्यापारी यहां आते रहे है। इस ऐतिहासिक विरासत ने कोच्चि को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और विरासत केंद्र बना दिया है। कोच्चि बंदरगाह नियमित शिपिंग सेवाओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र के व्यवसायों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचने में सक्षम बनाता है,जिससे व्यापार और आर्थिक विकास में वृद्धि होती है। केरल के तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र स्थित है। इस स्थल पर उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों और संबंधित प्रौद्योगिकियों की डिजाइनिंग और विकास किया जाता है। रॉकेट प्रौद्योगिकी के डिजाइन और विकास के लिए जिम्मेदार इसरो का यह प्रमुख केंद्र वैमानिकी,अंतरिक्ष आयुध,संरचना,अंतरिक्ष भौतिकी और प्रणाली विश्वसनीयता के क्षेत्र में सक्रिय अनुसंधान और विकास करता है। अत: इन केन्द्रों की सुरक्षा के लिए लक्षद्वीप द्वीप समूह पर भारत की सामरिक क्षमता का मजबूत होना बेहद जरूरी है।

 

लक्षद्वीप द्वीप समूह के पास स्थित नाइन डिग्री चैनल,फारस की खाड़ी से पूर्वी एशिया की ओर जाने वाले जहाजों के लिए सबसे सीधा मार्ग है। भारतीय समुद्री एजेंसियां ​​नाइन डिग्री चैनल पर कड़ी नजर रख रही हैं,जो मिनिकॉय द्वीप को मुख्य लक्षद्वीप द्वीपसमूह से अलग करता है। इस चैनल का उपयोग यूरोप,मध्य पूर्व और पश्चिमी एशिया,दक्षिण पूर्व एशिया और सुदूर पूर्व से आने जाने वाले सभी व्यापारियों द्वारा किया जाता है। युद्धकाल में,भारत चैनल को अवरुद्ध कर सकता है और दुश्मन की आपूर्ति लाइनों को काट सकता है।

लक्षद्वीप द्वीप समूह की भौगोलिक परिस्थितियां भारत की सुरक्षा चिंताओं को भी बढ़ाती है,इसलिए भी इस पर निगरानी तंत्र विकसित किया जा रहा है। मालदीव से लक्षद्वीप बेहद निकट है तथा मालदीव भारत विरोधी केंद्र के रूप में उभर रहा है। मालदीव  चीन के प्रभाव में तो है ही इसके साथ ही साथ मालदीव में चरमपंथी गतिविधियां भी बढ़ी है। हाल के वर्षों में सऊदी अरब और पाकिस्तान से मिलने वाली सहायता के साथ साथ मजहबी कट्टरपंथ का निर्यात भी इन देशों से हो रहा है। कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में मालदीव के लड़ाके मध्य पूर्व में जा चूके है। दक्षिण एशियाई देशों से आईएसआईएस में जिहादी भर्तियों का सर्वाधिक प्रतिशत मालदीव से ही रहा है। मालदीव के सैकड़ों द्वीप निर्जन है और यहां चरमपंथी ताकतों के मजबूत होने का खतरा बना रहता है,जिसका सीधा असर भारत की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने का अंदेशा बना रहता है। करीब डेढ़ दशक पहले मुम्बई पर आतंकी हमला समुद्री मार्ग से ही किया गया था और इसके बाद लक्षद्वीप के निर्जन द्वीपों की सुरक्षा को बढ़ाने पर भारत ने खास जोर दिया। खुफिया एजेंसियों ने  यह ​​चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा भारत पर हमला करने के लिए लक्षद्वीप में निर्जन द्वीपों का आधार केंद्र  के रूप में उपयोग कर सकता है।  लक्षद्वीप को उन्नत करके मालदीव,मॉरीशस,सेशेल्स,श्रीलंका,पाकिस्तान और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए किया जा सकता है। चीन भारत से लगभग 300 किमी दूर श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह शहर का निर्माण कर रहा है। इसी तरह,यह मालदीव के कई द्वीपों को नियंत्रित करता है और वहां एक हवाई अड्डा बना रहा है। हंबनटोटा से चेन्नई, कोच्ची और विशाखापत्तनम बंदरगाहों का फासला क़रीब 900 से 1500 किलोमीटर ही है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए अति महत्वपूर्ण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा भी क़रीब 1100 किलोमीटर की दूरी पर ही है। चीनी नौसेना की संख्या और गतिविधियां जिस तरह से हिन्द महासागर क्षेत्र में बढ़ी है,उससे निपटने और नए तरीके से निगरानी तंत्र स्थापित करने के लिए भारत के लिए लक्षद्वीप का महत्व ओर ज्यादा बढ़ गया है। कोच्ची से साढ़े छह सौ किलोमीटर दूर भारत के पश्चिमी तट पर कर्नाटक के कारवार में एक नौसैनिक अड्डे का निर्माण किया जा रहा है। कारवार नौसेना बेस पर प्रोजेक्ट सीबर्ड देश की सबसे बड़ी नौसैनिक बुनियादी ढांचा परियोजना है,जिसका उद्देश्य युद्धपोतों के बेड़े का समर्थन और रखरखाव प्रदान करना है। कोच्चि के उत्तर में स्थित होने के कारण इसके महत्वपूर्ण फायदे  है।  यह पड़ोसी देशों के अधिकांश लड़ाकू विमानों की पहुंच से बाहर है और फारस की खाड़ी और पूर्वी एशिया के बीच दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्ग के बहुत करीब स्थित है। आईएनएस कदंबा भारतीय नौसेना का एक एकीकृत रणनीतिक नौसैनिक अड्डा है जो भारत के पश्चिमी तट पर कर्नाटक में कारवार के पास बिनगा खाड़ी में स्थित है। आईएनएस कदंबा वर्तमान में तीसरा सबसे बड़ा भारतीय नौसैनिक अड्डा है और इसका पूरा विस्तार होने के बाद यह पूर्वी गोलार्ध में सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा होगा।

लक्षद्वीप की संवेदनशीलता को देखते हुए ही इंडियन कोस्ट गार्ड  पोस्ट को सक्रिय किया गया है। इसके अलावा आईएनएस द्वीपरक्षक नेवल बेस भी बनाया गया है। लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास के लैगून और विशेष आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण मत्स्य पालन और खनिज संसाधन हैं जो अत्यधिक आर्थिक महत्व के हैं। मॉरीशस के अगलेगा द्वीप को भारत विकसित कर रहा है। इस द्वीप पर स्थित हवाई पट्टी का विस्तार किया गया है। मॉरीशस हिंद महासागर के रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र में स्थित है। इस इलाके से होकर हर साल खरबों डॉलर का व्यापार होता है। अफ्रीकी महाद्वीप के नजदीक होने से इस देश से हिंद महासागर के बड़े इलाके पर नजर रखी जा सकती है। लक्षद्वीप के  भारत और अगलेगा द्वीप के बीच एक संपर्क बिंदु बनने से  हिंद महासागर क्षेत्र में भारत  को चीन पर सामरिक बढ़ता मिल जायेगी। लक्षद्वीप की रणनीतिक स्थिति,चीन और क्षेत्रीय बाधाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता इसे एक समर्पित रक्षा द्वीप में बदलने की मांग करती है लेकिन इसे पर्यटन के तौर पर उभारने की कोशिशें सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ा सकती है। इस द्वीप को पर्यटकों को आकर्षक करने के अनुरुप ही विकसित करने का विरोध यहां के नागरिक कर रहे है। लक्षद्वीप के लोगों का कहना है कि ऐसा करने से उनके खूबसूरत द्वीपों की अनूठी संस्कृति और परंपरा को खत्म हो जाएगा। वहीं पर्यटन से तस्करी का खतरा बढ़ने के साथ इस स्थान की टोह लिए जाने का अंदेशा बना रहेगा। चीन और पाकिस्तान भारत के सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में ऐसा पहले भी करते रहे है।  

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