लद्दाख और छठी अनुसूची
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लद्दाख और छठी अनुसूची

राष्ट्रीय सहारा

छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय समुदायों को एक बड़े प्रशासनिक या राजनीतिक ढांचे के भीतर काफी स्वायत्तता देती है। स्वायत्त जिला परिषद  या एडीसी  का  द्वारा संचालित इस निकाय के पास  जल,जंगल और जमीन के स्वतः पुलिस और सामाजिक व्यवस्था को बनाएं रखने के लिए सीमित स्तर पर अदालती अधिकार भी होते है। आदिवासियों की संस्कृति के संरक्षण के लिए बनाएं गए इन कानूनों को लेकर यह अपेक्षा रही की इससे भारत की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रहेगी लेकिन जिन क्षेत्रों में यह लागू है वहां की आंतरिक अशान्ति की चुनौतियां देश की सामरिक समस्याओं को बढ़ाती रही है। मसलन असम,मेघालय,त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातियों को संरक्षण देने के लिए छठी अनुसूची के अंतर्गत लाया तो गया है लेकिन पूर्वोत्तर के यह क्षेत्र लंबे समय से आतंक,अलगाववाद,घुसपैठ और प्रतिद्वंदी समूहों के हिंसक  कृत्यों से समस्या ग्रस्त रहे है।

अब भारत के केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में भी छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर व्यापक आंदोलन चल रहा है। छठी अनुसूची में शामिल होने से ख़ास इलाके को स्थानीय प्रशासन के लिहाज़ से ख़ास प्रकार का जनजातीय दर्जा मिल जाता है। लद्दाख में कई आदिवासी समुदायों की समृद्ध परंपराएं है और यह प्रदेश आदिवासी कला और संस्कृति  की दृष्टि से छठी अनुसूची में शामिल होने का हकदार भी है। लेकिन किसी राज्य की कला और संस्कृति के साथ उसकी रणनीतिक स्थिति का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। लद्दाख की सीमाएं हमारे दो दुश्मन देशों पाकिस्तान और चीन से लगती है। लद्दाख के दर्रे मध्य एशिया,दक्षिण एशिया और चीन के बीच व्यापार को जोड़ते थे और इसीलिए इस पर आधिपत्य का खूनी इतिहास रहा है। लद्दाख के दक्षिण में ज़ांस्कर पर्वतमाला और उत्तर में काराकोरम पर्वतमाला हैं। ज़ांस्कर रेंज केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में एक पर्वत श्रृंखला है जो ज़ांस्कर घाटी को लेह में सिंधु घाटी से अलग करती है ।  1962 मे भारत और चीन के बीच भीषण युद्द के बाद ज़ांस्कर को विदेशियों के लिए बंद कर दिया गया। पाकिस्तान के  के अवैधानिक  कब्जें वाला बाल्टिस्तान और अक्साई चीन लद्दाख के ही भाग है। बल्तिस्तान के दक्षिण पूर्व में भारत और पाकिस्तान के बीच की नियन्त्रण रेखा है। भौगोलिक दृष्टि से,अक्साई चीन तिब्बत के पठार का दक्षिण पश्चिमी विस्तार है।

 

लद्दाख की सुरक्षा भारत के लिए रणनीति ही नहीं बल्कि आर्थिक तौर पर भी बेहद जरूरी है। लद्दाख की रणनीतिक स्थिति का उपयोग भारत की आर्थिक मांगों को पूरा करने के लिए नए व्यापार मार्गों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है।  वहीं लद्दाख की सामरिक संवेदनशीलता को समझना भी बेहद जरूरी है। लद्दाख के दर्रे मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और चीन को जोड़ते हैं और यह क्षेत्र सर्दियों के दौरान छह महीने तक शेष भारत से कटा रहता है। ऐतिहासिक रूप से,लद्दाख में गिलगित, हुंजा,कारगिल, लेह और स्कर्दो शामिल हैं। प्राचीन काल से ही लद्दाख सामरिक दृष्टि से वृहत मध्य एशिया का हिस्सा रहा है। रूसी,चीनी,तिब्बती, मंगोल,फारसी और भारतीय सहित तत्कालीन साम्राज्यों द्वारा इस क्षेत्र के दर्रों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए कई युद्ध लड़े गए।

 

लेह और कारगिल जिलों से  बने लद्दाख की  नब्बे फीसदी आबादी आदिवासी हैं। गुज्जर,बकरवाल,बोट्स,चांगपास,बाल्टिस और पुरिगपास विभिन्न इलाकों में बसते है। क़रीब तीन लाख की आबादी वाले लद्दाख में सैंतालीस फ़ीसदी मुसलमान हैं।  यहां दो ज़िले लेह और कारगिल हैं। लेह बौद्ध बहुसंख्यक है तो कारगिल में मुस्लिम।  विकास को लेकर लद्दाख के क्षेत्रों के लोग ही एक दूसरे का विरोध करते रहे है। कारगिल के लोगों की मांग है कि जब लेह और कारगिल में लगभग बराबर आबादी है तो विकास का अधिकांश हिस्सा लेह की झोली में क्यों जाता है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार कारगिल में भी उतना ही विकास करे जितना वो लेह में करने की योजना रखती है। लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल लेह और कारगिल दोनों में ही सबसे मज़बूत राजनीतिक संगठन रहा है  जो विकास को लेकर केंद्र सरकार से बात करता रहा है। लद्दाख के लोग ज़मीन,रोज़गार,पर्यावरण की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देने के लिए छठी अनुसूची को आदर्श मानते है और उन्हे लगता है की इससे लद्दाख का तेजी से विकास हो सकेगा। अत: यहां आदिवासियों के हितों को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की जाए।

इन सबके बीच इन इलाकों में बौद्धों और मुसलमानों के बीच हिंसक संघर्ष को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1989 में,बौद्धों और मुसलमानों के बीच हिंसक दंगे हुए थे। कारगिल  में मुसलमान बाहुल्य है जबकि लेह में बौद्ध। छठी अनुसूची लागू होने की स्थिति में मुसलमान बाहुल्य इलाके और बौद्ध बाहुल्य इलाकों में अलग अलग स्वायत्त परिषद के नियम हो सकते है। इससे न केवल बौद्ध और मुसलमानों में तनाव बढ़ सकता है बल्कि आदिवासी बनाम गैर आदिवासी संघर्ष के बढ़ने का भी अंदेशा बढ़ सकता है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने की सिफारिश की है। लद्दाख में जो आंदोलन चल रहा है,  उसमें मुस्लिम और बौद्ध दोनों एकजुट दिख रहे हैं। दोनों ही समुदाय के लोग एकजुट होकर  ज्यादा राजनीतिक प्रतिनिधित्व,राज्य का दर्जा और शासन में अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।  छठी अनुसूची का हिस्सा बनने से उस क्षेत्र में विकास से जुड़ी परियोजनाओं में भी स्थानीय मूल के लोगों की सहमति असहमति का महत्व बढ़ जाता है। लद्दाख के लोग यही सुनिश्चित करना चाह रहे हैं।

ट्रांस हिमालय की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसे लद्दाख भारत को पाकिस्तान और चीन पर रणनीतिक बढ़त देता है। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और चीनी सेना की घुसपैठ की चुनौती इस क्षेत्र की बढ़ी समस्या है। क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए क्षेत्र में मजबूत पकड़ बेहद महत्वपूर्ण है।

छठी अनुसूची ने जनजातीय क्षेत्रों में विकास  तो कम ही किया है लेकिन शक्ति के कई केंद्रों की स्थापना को बढ़ावा दिया है। छठी अनुसूची गैर आदिवासी निवासियों के खिलाफ विभिन्न तरीकों से भेदभाव करती है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी करती है।  कानून के समक्ष समानता का अधिकार,भेदभाव के खिलाफ अधिकार तथा भारत में कहीं भी बसने का के अधिकार को यह प्रभावित भी करती है। पूर्वोत्तर के राज्यों में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच लंबे समय से संघर्ष तथा दंगों की पुनरावृत्ति का कारण छठी अनुसूची के प्रावधान भी रहे है। इसके कारण कई गैर आदिवासियों को पूर्वोत्तर राज्यों से बाहर निकालना पड़ा है। 

लद्दाख जैसे सीमावर्ती प्रदेश में छठी अनुसूची लागू करने,स्वायत्ता  के  बढ़ने और अलग अलग शक्ति केंद्रों के बढ़ने से सामाजिक और प्रशासनिक समस्याएं बढ़ सकती है। इसका असर भारत की सामरिक सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। अंतत: यह समझने की जरूरत है की विकास का आधार सिर्फ छठी अनुसूची नहीं हो सकती और लोगों की मांगों को सामरिक सुरक्षा पर तरजीह भी नहीं दी जा सकती।

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

 

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