जनसत्ता
क्षेत्र विस्तारवाद का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बहुत महत्व रहा है। राजनीतिक सत्ताएं इसे सैन्यवादी विचारधारा से पोषित करती है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि शक्ति से ही शान्ति आती है। मध्यपूर्व में इस्राइल विस्तारवाद की रणनीति को आत्मसात कर चूका है वहीं फिलिस्तीन की विभाजित सत्ताओं पर हावी हमास शक्ति और आक्रमण को लक्ष्य प्राप्ति का अनिवार्य साधन बताता है। आंतरिक राजनीति और साझेदार राष्ट्रों की भू-रणनीति से प्रभावित इन दोनों राष्ट्रों में राजनीतिक आकांक्षाएं अब इतनी बढ़ गई है की वे एक दूसरे के अस्तित्व को स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं है और वैश्विक समुदाय की भूमिका भी इसे लेकर ईमानदार नहीं है। हमास इस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंट है,वह इस्राइल की जगह एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहता है। हमास इस्राइल के अस्तित्व के अधिकार को अस्वीकार करता है और इसके विनाश के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी ओर इस्राइल द्वारा कभी भी दो राज्य समाधान के विचार का आधिकारिक रूप से समर्थन नहीं किया गया है तथा प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने बार बार इसका विरोध किया है। यह भी दिलचस्प है की इस्राइल का जन्म दो राज्य समाधान के अनुसार ही हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय तर्क देते हैं कि इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच शांति दो राज्य समाधान पर निर्भर करती है। यह विचार कि इजरायल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना दोनों पक्षों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से सह अस्तित्व का रास्ता बनाएगी। फिलिस्तीन में वेस्ट बैंक की सत्ता में काबिज फिलिस्तीन विकास प्राधिकरण इस्राइल के अस्तित्व को मान्यता देता है। फिलिस्तीनी राजनीतिक नेतृत्व पश्चिमी तट पर महमूद अब्बास की फतह पार्टी और गाजा पट्टी पर नियंत्रण रखने वाले उसके इस्लामी उग्रवादी हमास विरोधियों के बीच गहराई से विभाजित है। इसका अर्थ यह है की दो राष्ट्र समाधान को लेकर फिलिस्तीन की राजनीतिक पार्टियों में ही विभाजन है। इस्राइल में भी फिलिस्तीन के रूप में अलग राष्ट्र की मान्यता को लेकर समर्थन तो है लेकिन दक्षिणपंथी पार्टियां अब उस समर्थन को कमजोर कर रही है। 1993 में हुआ ओस्लो समझौता से इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच सह अस्तित्व और शांति की उम्मीदें जागी थी लेकिन इसके दो साल बाद इस्राइल के प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन की तेल अवीव में एक शांति मार्च के दौरान हत्या कर दी गई थी। ये हत्या एक राष्ट्रवादी यहूदी चरमपंथी ने की थी जो शांति समझौते के ख़िलाफ़ थे।
इस्राइल की स्थापना में फिलिस्तीन का ज्यादा हिस्सा यहूदियों को दिया गया था जबकि ज्यादा आबादी होने के बाद भी फिलिस्तीन के हिस्से कम जमीन आई थी। जमीन और राष्ट्र के बंटवारें से उपजे हिंसक संघर्षों पर जीत हासिल करके बाद में इस्राइल ने बहुत बड़ी बढ़त हासिल कर ली और अपने क्षेत्र का विस्तार कर लिया। अब इस्राइल की स्थिति मध्यपूर्व में बहुत मजबूत है और मिस्र,सीरिया तथा जार्डन की जमीन भी उसके कब्जे में है। युद्द में जीती हुई जमीन इस्राइल की कोई भी सरकार लौटाने की हिम्मत नहीं कर सकती। यह उसके लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से भी बेहद लाभकारी और प्रभावकारी है। 1948 में इस्राइल ने स्वतंत्रता की घोषणा के बाद कई अरब देशों का हमला इस्राइल ने एक साथ झेला। मिस्र,इराक,जॉर्डन,लेबनान और सीरिया ने इस्राइल राज्य पर हमला किया। युद्द भीषण चला जिसे इस्राइल में स्वतंत्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता है। इस्राइल ने इस युद्द को बेहद योजनाबद्ध तरीके से लड़ा और जीता। इस दौरान उसके कब्जें में फिलिस्तीन का और ज्यादा क्षेत्र आ गया जो पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए क्षेत्र से काफी बड़ा क्षेत्र था। अब इस्राइल ने अपने क्षेत्रों में जाफ़ा शहर,यरुशलम का नया शहर और यरुशलम से तटीय मैदान तक का गलियारा भी जोड़ दिया। इस संघर्ष के कारण लाखों फिलिस्तीनी पलायन कर गए। इस युद्ध और इस्राइल की स्थापना से अरब देशों से यहूदियों के बड़े पैमाने पर पलायन को बढ़ावा दिया और वे इस्राइल आकार बस गए। वहीं इस युद्ध ने इस्राइल की सीमाओं और उसके अस्तित्व को फिर से परिभाषित किया और मध्य पूर्व में क्षेत्रीय राजनीति,कूटनीति और भविष्य के संघर्षों के लिए इसके दूरगामी परिणाम थे।
इस क्षेत्र में इस्राइल की पड़ोसी देशों के साथ झड़पें चलती रही है। 1967 में एक बार फिर इस्राइल पर कई अरब राज्यों ने हमला किया। 5 जून से 10 जून 1967 तक चला यह युद्द इतिहास में छह दिवसीय युद्ध के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से इस्राइल और मिस्र,जॉर्डन और सीरिया सहित अरब राज्यों के गठबंधन के बीच था। इसके परिणामस्वरूप इस्राइल को भारी जीत मिली और आसपास के अरब राज्यों से बड़े पैमाने पर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया गया और यरूशलम पहली बार यहूदी संप्रभुता के अधीन आया। इस्राइल की भारी जीत ने इसे अपने अस्तित्व पर केंद्रित एक अस्थिर राष्ट्र से एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति में बदल दिया। इसके परिणामस्वरूप इस्राइल ने पूर्वी यरुशलम और पश्चिमी तट,गाजा पट्टी,गोलान हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप सहित प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इस्राइल के संबंधों को भी महत्वपूर्ण रूप से गहरा किया। गोलान हाइट्स दक्षिणी पश्चिमी सीरिया में स्थित एक पहाड़ी इलाका है। ये इलाका राजनीतिक और रणनीतिक रूप से खासा अहम है,जो लगभग एक हजार वर्ग किमी में फैला हुआ है। गोलान हाइट्स से इस्राइल को ये फायदा मिलता है कि वो यहां से सीरिया की गतिविधियों पर बराबर नज़र रख सकता है। ये पहाड़ी इलाका सीरिया से इस्राइल की सुरक्षा के लिए ढाल का काम भी करता है। गोलान हाइट्स इस्राइल के लिए दूसरी कई वजहों से भी अहम है और गोलान इस सूखे इलाके के पानी का मुख्य स्रोत है। गोलान में होने वाली बारिश का पानी जॉर्डन की नदी में जाकर मिल जाता है। ये इसराइल की एक तिहाई पानी की ज़रूरत पूरा करता है। गोलान हाइट्स पर यहूदियों की 30 से ज्यादा बस्तियां हैं, जिनमें क़रीब बीस हजार लोग रहते हैं। सिनाई प्रायद्वीप 1979 में कैंप डेविड समझौता के बाद इस्राइल ने मिस्र को वापस लौटा दिया। इसके साथ ही मिस्र इस्राइल को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला पहला अरब देश बन गया। अब मिस्र और जार्डन जैसे मुस्लिम देशों से इस्राइल के बेहतर संबंध है।
इस्राइल यदि दो राष्ट्र समाधान को स्वीकार कर ले और अलग फिलिस्तीनी राष्ट्र की कोई योजना को स्वीकारें तो उसे जीते हुए अपने कई क्षेत्र लौटाने पड़ेंगे जो बदली हुई राजनीतिक और वैश्विक परिस्थितियों में संभव भी नहीं लगता। वहीं फिलिस्तीनी में हमास के उभार से इस्राइल की सुरक्षा चिंताएं काफी बढ़ गई है। पश्चिमी तट पर इस्राइल के कब्जे,वहां लगातार बस्तियों के निर्माण और सैन्य चौकियों तथा फिलिस्तीनी हमलों के कारण किसी भी अंतिम समझौते की दिशा में प्रगति धीमी हो गई है। 2005 में,इज़राइल ने गाजा पट्टी से अपने सभी सैनिकों और बसने वालों को वापस बुला लिया था। 2006 में इस्लामवादी समूह हमास ने गाजा में चुनाव जीता। एक साल बाद हमास ने गाजा पर पूरा नियंत्रण कर लिया और फिलिस्तीनी प्राधिकरण को इस इलाकें से खदेड़ दिया। फिलिस्तीनी समस्या इससे गहरा गई और लोकतांत्रिक ताकतें कमजोर हो गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमास को व्यापक रूप से एक आतंकवादी समूह के रूप में देखा जाता है। हमास बातचीत से कहीं ज्यादा इंतिफादा को बढ़ावा देता है। इंतिफादा या फ़लस्तीन के नागरिकों के हिंसक प्रतिकार से तनाव बेहद बढ़ गया है। यह व्यापक विरोध,प्रदर्शन,आत्मघाती बम विस्फोट और इस्राइल सुरक्षा बलों और फिलिस्तीनी आतंकवादियों के बीच सशस्त्र टकराव के रूप में सामने आया है।
संयुक्त राष्ट्र पश्चिमी तट और गाजा को इस्राइल द्वारा अधिकृत एक क्षेत्र मानता है। दोनों क्षेत्रों का संचालन प्रतिद्वंद्वी फिलिस्तीनी प्रशासन द्वारा किया जाता है। पश्चिमी तट,जिसमें पूर्वी येरुशलम भी शामिल है और गाजा को कई देशों और संस्थाओं द्वारा फिलिस्तीन के रूप में मान्यता दी गई है जबकि इसे इस्राइल स्वीकार नहीं करता। कुछ देश इस्राइल के अस्तित्व के अधिकार को मान्यता नहीं देते,वे पश्चिमी तट,यरुशलम,गाजा और इस्राइल को फिलिस्तीन कहते हैं। पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम का भविष्य इजरायल फिलिस्तीनी संघर्ष के सबसे कठिन मुद्दों में से एक है।1967 के बाद से, इस्राइल ने पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में लगभग सात लाख यहूदियों के लिए 140 बस्तियाँ बनाई हैं। पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनी 1967 से इस्राइल के कब्जे में रह रहे हैं। किसी भी भावी शांति समझौते के तहत सभी बस्तियों को हटाया जाना चाहिए। जबकि इस्राइल का कहना है कि उसे पश्चिमी तट और गाजा पर पूर्ण सुरक्षा नियंत्रण बनाए रखना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच शांति समझौते तो करवाएं है लेकिन दो देशों के अस्तित्व को लेकर कोई निर्णायक पहल नहीं हुई है। 1979 में कैंप डेविड समझौता,1991 का मैड्रिड शांति सम्मेलन,1993 का ओस्लो समझौता,1994 में जॉर्डन इस्राइल शांति संधि और अमेरिका की कोशिशें समस्या के पूर्ण समाधान के लिए अब तक नाकाफ़ी साबित हुई है। 2007 में अन्नापोलिस सम्मेलन ने समस्या को ओर गहरा दिया है। 2007 में इस्राइल के प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने अमेरिका के समर्थन से अन्नापोलिस सम्मेलन की शुरुआत की थी। इसका लक्ष्य एक शांति समझौते पर पहुंचना था जो फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की ओर ले जाएगा। हमास ने सभी पक्षों से सम्मेलन का बहिष्कार करने का आह्वान किया। हमास के विरोध से शांति की उम्मीदें ध्वस्त हो गई। अब इस्राइल की सत्ता में सबसे लंबे समय तक पद पर बने रहने वाले नेतन्याहू है। हमास और उनकी विचारधारा दो राष्ट्रों के समाधान पर एक जैसी है। हमास के फिलिस्तीन राष्ट्रवाद और नेतन्याहू के इस्राइल राष्ट्रवाद में हिंसा,विरोध और असहमति नजर आती है और यह स्थितियां फिलिस्तीन राष्ट्र का सपना धूमिल कर रही है।
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