संभावनाएं तलाशते भारत-बांग्लादेश
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संभावनाएं तलाशते भारत-बांग्लादेश

जनसत्ता

    अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की यथार्थवादी जरूरतों ने राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को ही बदल दिया है। अब दो राष्ट्रों के मध्य या बहुपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करने के लिए  सैन्य सुरक्षा के स्थान पर परिपक्व सुरक्षा को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। यह नीति विभिन्न राष्ट्रों के बीच आपसी सहयोग की संकल्पना को आगे बढ़ाने में ज्यादा कारगर साबित हो रही  है।

 

 

पिछले पांच दशकों में भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों में कई उतार चढ़ाव आयें है।  भारत को अपने इस पड़ोसी राष्ट्र से गंभीर सुरक्षा चुनौतियां मिलती रही है लेकिन इसके समाधान को भारत ने परस्पर आर्थिक सहयोग बढ़ाकर ढूंढा है तथा इसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आ रहे है।

दरअसल  भारत और बांग्लादेश के बीच एक मैत्री तेल पाइपलाइन की  शुरुआत होने जा रही है। दोनों देशों के बीच यह पहली तेल पाइपलाइन होगी। करीब तीन सौ सतहत्तर करोड़ रूपये वाली इस परियोजना पर खर्च होने वाली लागत का अधिकांश भार भारत ही उठाने जा रहा है। इससे उत्तरी बांग्लादेश के सात राज्यों में हाई स्पीड डीज़ल पहुंचाया जाएगा। भारत की सैन्य और आर्थिक मदद से 1971 में अस्तित्व में आयें बांग्लादेश में करीब डेढ़ दशकों से राजनीतिक स्थिरता कायम है और यह स्थिति भारत के लिए मददगार साबित हुई है। हालांकि दक्षिण एशिया के राष्ट्रों के बीच आपसी संबंध मित्रता से ज्यादा प्रतिद्वंदी के रहे है और इसका प्रभाव भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता रहा है। भारत के लिए बांग्लादेश उसका अहम पड़ोसी होने के साथ दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।

भारत और बांग्लादेश के संबंधों के कई आयाम है। दोनों देशों से सर्वोच्च स्तर पर बेहतर सम्बन्ध कायम करने की कोशिशों में तेजी आई है और इसके अपेक्षित परिणाम भी हुए है।  बांग्लादेश में अवामी लीग की सरकार का फायदा सामरिक,राजनीतिक और आर्थिक रूप से दोनों देशों को मिला है। भारत और बांग्लादेश के बीच करीब 4 हजार किलोमीटर से ज्यादा की सीमा रेखा है और यह मुख्यतः असम,त्रिपुरा,पश्चिम बंगाल,मेघालय और मिजोरम को छूती है। बांग्लादेश और भारत सीमा के  बीच पूर्वोत्तर की भौगोलिक परिस्थितियां घुसपैठ के अनुकूल है और इसका फायदा उठाकर पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई ने लंबे समय तक खूब उठाया। इससे घुसपैठ,तस्करी,मदरसों का जाल और नकली मुद्रा के  अवैध कारोबार से भारत की समस्याओं को बढ़ावा मिला। 2009  में शेख हसीना के बांग्लादेश की सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग की कई मिसालें बनी हैं। पूर्वोत्तर भारत में चरमपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाने में बांग्लादेश ने कई बार सहयोग किया है। एक  दौर में असम में सक्रिय अलगाववादी संगठन उल्फा के बांग्लादेश के भीतर कई ठिकाने हुए करते थे। शेख़ हसीना के पीएम बनने के बाद इन संगठनों के ख़िलाफ़ बांग्लादेश ने कार्रवाई की है और कई चरमपंथियों को भारत के हवाले भी किया है।

दो साल पहले  बांग्लादेश में फ़ेनी नदी पर बने मैत्री सेतु के उद्घाटन से माहौल में गर्मजोशी देखी गई है। इस पुल ने त्रिपुरा के सबरूम से चटगांव बंदरगाह की दूरी को बहुत कम कर दिया है,यह कारोबार और आवाजाही की दृष्टि से भी अहम है। बांग्लादेश की मदद की वजह से भारत को सुरक्षा के क्षेत्र में होने वाले ख़र्च में लाखों डॉलर की बचत हो रही है। चार हज़ार किलोमीटर से अधिक लंबे भारत-बांग्लादेश बॉर्डर का इस्तेमाल उत्तर पूर्व भारत के कई चरमपंथी समूह सीमापार जाकर अपनी गतिविधियां जारी रखने को करते थे। 2016 में बांग्लादेश और भारत के बीच पैट्रोपोल और बेनापोल के बीच व्यापार मार्ग की शुरुआत हुई,जो दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में अहम माना गया।

भारत की भौगोलिक सीमा की कठिनाइयों को देखते हुए बांग्लादेश ने चटगांव और मोंगला बंदरगाह,उत्तर पूर्व में व्यापार के लिए खोल दिए हैं। यह दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों को उच्चतम स्तर पर ले जाने वाले कदम है।

हालांकि  भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों को प्रभावित करने की चीन की कोशिशें भी बदस्तूर जारी है। वह दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों को कर्ज के जाल में उलझाकर भारत पर सामरिक बढ़त लेना चाहता है और उसे  इसमें  सफलता भी मिली है। भारत के कई उत्तर पूर्वी राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश को छूती है। इन इलाकों की कठिन भौगोलिक स्थिति तथा विविध सांस्कृतिक परिस्थितियों ने भारत की चुनौतियों को बढ़ाया है। दक्षिण एशिया में भारत के सामर्थ्य को प्रभावित करने की चीनी बदनीयती में बांग्लादेश कहीं न कहीं मददगार बना है। दुनिया की घनी आबादी वाले देशों में शुमार बांग्लादेश ख़राब आधारभूत ढांचा के कारण कई मामलों में बहुत पिछड़ा हुआ है लेकिन चीन कई मोर्चों पर बांग्लादेश को वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत कई  बड़ी परियोजनाओं में आर्थिक मदद मुहैया करा रहा है। चीन पद्मा नदी पर चार अरब डॉलर का एक ब्रिज रेलवे लाइन बना रहा है जो बांग्लादेश के  दक्षिणी-पश्चिमी और उत्तरी-पूर्वी इलाक़ों को जोड़ेगा। चीन और बांग्लादेश के बीच 2002 में रक्षा सहयोग पर समझौता हुआ था। चीन बांग्लादेश को परमाणु ऊर्जा के विकास में  भी सहायता कर रहा है।

चीन कुनपिंग परियोजना का अंतर्गत चीन म्यांमार के रास्ते चटगांव और कुनपिंग,चीन को 900 किलोमीटर लंबे राजमार्ग से जोड़ने की योजना बना रहा है जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार में वृद्धि हो  सके। बांग्लादेश ने भी इस परियोजना के लिए हामी भर दी  है। बांग्लादेश इस समय चीन से सर्वाधिक हथियारों का आयात कर रहा है। बांग्लादेश के ढाका स्टॉक एक्सचेंज भी चीन के प्रभाव में है। वह पाकिस्तान के बाद चीन से सैन्य हथियार ख़रीदने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भी इस बात को मानती हैं कि चीन इस इलाक़े में बड़ी भूमिका निभा रहा है। भारत और बांग्लादेश के बीच नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तो तनाव होता ही रहा है लेकिन अब  चटगांव बंदरगाह पर चीन के प्रभाव से सामरिक चुनौतियां भी बढ़ गई है।

 

यहां इस तथ्य को भी नहीं नकारा जा सकता की बांग्लादेश चीन के साथ मजबूत सम्बन्धों को आगे करके भारत से सौदेबाजी की संभावनाओं को भी तलाशता रहा है।  पूर्वोत्तर की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि बांग्लादेश भारत को पारगमन मार्ग की सुविधा प्रदान करें।  भारत के विभाजन के बाद भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र भू आबद्ध क्षेत्र बन गया है।  इस क्षेत्र का शेष भारत से जुडाव सिलीगुड़ी गलियारें  के द्वारा होता है,जो लगभग 40 किलोमीटर चौड़ा है।  यह एक ओर चीन तथा दूसरी ओर बांग्लादेश से घिरा हुआ है।  भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए यह एकमात्र संपर्क मार्ग है।  पारगमन मार्ग मिलने से भारत को बड़ा आर्थिक और सामरिक फायदा हो सकता है।  जैसे कोलकाता और अगरतला के बीच की  दूरी   करीब बारह सौ किलोमीटर कम हो जाएगी।  इसी प्रकार बांग्लादेश के चटगांव पत्तन को अगरतला रेल मार्ग से जोड़ दिया जाएं तो उत्तर पूर्वी राज्यों से भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए सामानों की आवाजाही सरल हो जाएगी।

बांग्लादेश भारत को  सहूलियतें तो देना चाहते है लेकिन वह अपने राष्ट्रीय हितों को भी आगे किए हुए है।  बांग्लादेश तीस्ता नदी के पानी को लेकर आशान्वित है और भारत से समझौता करना चाहता है।  तीस्ता का पानी बांग्लादेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।  उसके उत्तरी इलाक़ों में पानी की किल्लत है और इसे सिक्किम के रास्ते उत्तरी बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करने वाली तीस्ता नदी ही पूरा कर सकती है।  उन इलाक़ों में गर्मियों के दिनों में खेती बाड़ी के लिए पानी पूरा नहीं हो पाता है।  वहीं भारत के लिए यह स्थिति कठिन है क्योंकि पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से के किसान ऐसे किसी समझौते से संकट में पड़ सकते है। बांग्लादेश,भूटान और नेपाल के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए भारत से ट्रांज़िट रूट चाहता है। नेपाल और भूटान ऐसे देश हैं जिनका कोई हिस्सा समुद्र तट से नहीं मिलता। बांग्लादेश इन देशों को अपनी बंदरगाहों से जोड़कर,आर्थिक लाभ उठाना चाहता है।

भारत और बांग्लादेश के बीच अभी कई समस्याएं है जिनका समाधान बहुत दूर नजर आता है। बांग्लादेश के जन्म का सबसे बुरा असर असम झेलने को मजबूर है। असम से अलग हुए मेघालय,मणिपुर,नागालैंड समेत त्रिपुरा को जनजातियों का राज्य माना जाता था और यहां 80 प्रतिशत जनजातियां निवास करती थी। 1971 के बाद यहां की जनसंख्या में भारी बदलाव आया है और अब जनजातीय समूह अल्पमत में आ गए है। पूर्वोत्तर के जनसांख्यिकी बदलाव से सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान खोने का संकट बढ़ा तो जनजातीय समूहों ने हथियार उठा लिए और अब इन इलाकों में पृथकतावादी और हिंसक आंदोलनों  का गहरा प्रभाव देखने में आता है। दूसरी तरफ पूर्वोत्तर में घुसपैठ और उग्रवाद की समस्या इतनी विकराल रही है कि यहां काम करने वाली सरकारें इन्हीं मुद्दों में उलझी रहती है,जिससे यह समूचा क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता के बाद भी गरीबी,पिछड़ेपन,जातीय हिंसा और साम्प्रदायिक समस्याओं में बूरी तरह जकड़ा हुआ है।

म्यांमार से विस्थापित 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों का बोझ झेल रहे बांग्लादेश में आम राय यह है कि भारत ने इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई। जबकि रोहिंग्या के कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा पर संकट बढ़ा है। नदियों के पानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद थमता नजर नहीं आता है। दोनों देशों के बीच करीब पचास से अधिक नदियां बहती हैं लेकिन 1996 गंगा समझौते के बाद दोनों में पानी के बंटवारे को लेकर कोई समझौता नहीं हो पाया है। सीमा पर बाड़ लगाना बाकी है,कई स्थानों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने आ जाती है। फरक्का बांध का विवाद बना हुआ है।  तिपाई मुख बांध बराक और तुबई नदियों पर बन रहा है जिसका बांग्लादेश विरोध कर रहा है। बांग्लादेश और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। बहरहाल तमाम चुनौतियों के बीच भी भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहतरीन दौर में है और इसका फायदा समस्याओं के समाधान की दिशा में  उठाने की जरूरत है।

#ब्रह्मदीप अलूने

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