सामरिक शक्तियों से कड़ा मुकाबला
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सामरिक शक्तियों से कड़ा मुकाबला

राष्ट्रीय सहारा,आर्थिक,राजनैतिक और सामरिक शक्तियों से कड़ा मुकाबला

 

 

आइवरी कोस्ट,पश्चिम अफ्रीका के दक्षिणी तट पर स्थित एक देश है। राजनीतिक अस्थिरता से बुरी तरह जूझने वाला यह देश गिनी,लाइबेरिया,माली और बुर्किना फासो जैसे गृह युद्द का सामना करने वाले खतरनाक देशों से अपनी सीमा साझा करता है। आइवरी कोस्ट उप सहारा अफ्रीका में सामान्य वस्तुओं का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक होकर कोको बीन्स का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। आइवरी कोस्ट में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत अधिक है और यह पड़ोसी भूमि से घिरे देशों के लिए पारगमन व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह देश पश्चिम अफ्रीकी आर्थिक और मौद्रिक संघ में सबसे बड़ी भी अर्थव्यवस्था है। हालांकि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले समूह जी-20 में  आइवरी कोस्ट शामिल नहीं है लेकिन वह प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत से कहीं आगे नजर आता है। मतलब आइवरी कोस्ट के सामान्य नागरिक का जीवन और सुविधाएं भारत से बेहतर है और लोग ज्यादा खुशहाल है।

भले ही भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था हो और कुछ वर्षों में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का उसका दावा मजबूत भी नजर आता है,लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया के गरीबों देशों की श्रेणी में आता है। दुनिया के 197 देशों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 142वें स्थान पर है। दुनिया की जितनी भी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं उनमें सबसे कम प्रति व्यक्ति आय भारतीयों की ही है। करीब बारह वर्ष पहले 2011-12 में संसद में बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था की भारत मजबूर आर्थिक संवृद्धि के साथ विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है लेकिन प्रति व्यक्ति आय अभी भी कम है और  जी-20 के देशों में इसकी स्थिति बहुत खराब है और देश सबसे निचले पायदान पर है। भारत में असामनता का स्तर अब भी परेशानियों को बढ़ाने वाला है। ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 फीसदी आबादी का राष्ट्र के 77 फीसदी संपत्ति पर कब्जा है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में आर्थिक असमानता की खाई कितनी बड़ी हो चुकी है।

इन सबके बीच भारत की आर्थिक प्रगति भी बड़ी दिलचस्प है। विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अब भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था सिर्फ चार देशों की है। ये देश हैं अमेरिका,चीन,जापान और जर्मनी। भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में वास्तव में अच्छा कर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है  और यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की रैंकिंग में ऊपर चली गई है। इस अद्भुत प्रगति के कारण लोग अब भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्राइट स्पॉट कह रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है की भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र मजबूत हैं और चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। देश के भीतर स्थितियां आर्थिक वृद्धि के अनुकूल हैं। जिससे अर्थव्यवस्था का विकास जारी रहने की उम्मीदें बढ़ी है।

आज़ादी के सौ वर्ष 2047 में पूरे होंगे और इस दौरान भारत विकसित देशों की  श्रेणी में आने का ख्वाइशमंद तो है,लेकिन उसके लिए प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर  तेरह हजार  डॉलर के ऊपर ले जाना होगा और यह इतना आसान नहीं होगा। प्रति व्यक्ति आय को लेकर विकसित देशों से भारत को कड़ा मुकाबला करना होगा। भारत ने ब्रिटेन,फ्रांस,कनाडा,रूस और ऑस्ट्रेलिया को जीडीपी के आकार के हिसाब से पीछे छोड़ दिया है,पर प्रतिव्यक्ति आय को लेकर भारत की स्थिति इन देशों के मुकाबलें बहुत पीछे है। अमेरिका की प्रति व्यक्ति औसत आय भारत के मुकाबले  इकतीस गुना ज्यादा है। जर्मनी और कनाडा की प्रति व्यक्ति आय भारत से बीस गुना,यूके की अठारह गुना,फ्रांस की प्रति व्यक्ति आय भारत से सत्रह  गुना तथा जापान और इटली की औसतन प्रति व्यक्ति आय चौदह गुना ज्यादा है। जबकि भारत जिस चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है उसकी भी प्रति व्यक्ति आय भारत से पांच गुना ज्यादा है। भारत दुनिया का बड़ा बाज़ार तो है लेकिन आयात और निर्यात के स्तर को बराबरी पर लाने की चुनौती भी कम नहीं है। वहीं भारत को चीन की आर्थिक और सामरिक रूप से कड़ी चुनौती का सामना भी करना पड़ रहा है।

पिछले एक दशक में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार दोगुना होकर 191 अरब डॉलर से अधिक हो गया है।  भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और निवेश साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए,बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।  वहीं पिछले वर्ष चीन और अमेरिका के बीच आपसी व्यापार  सात सौ अरब डॉलर का था। जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाने के बाद व्यापारिक स्तर पर चीन को पीछे छोड़ने के लिए व्यापारिक असंतुलन को दूर करने की बड़ी जरूरत है। जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसे व्यापार घाटे का सामना करना पड़ता है। अर्थात् वह देश अपने यहां लोगों की मांग के अनुरूप वस्तुओं और सेवाओं का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहा है,इसलिये उसे अन्य देशों से इनका आयात करना पड़ता है। भारत का सर्वाधिक व्यापार घाटा पड़ोसी देश चीन के साथ 63 अरब डॉलर है। अर्थात् चीन के साथ व्यापार भारत के हित में कम तथा चीन के लिये अधिक फायदेमंद है। चीन की तरह स्विट्ज़रलैंड,सऊदी अरब,दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिया,ईरान, नाइजीरिया,कतर,रूस,जापान और जर्मनी जैसे देशों के साथ भी भारत का व्यापार घाटा अधिक है। व्यापार घाटे का नकारात्मक असर देश की आर्थिक स्थिति,रोज़गार सृजन,विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर पड़ता है। भारत की पहली प्राथमिकता घरेलू विकास है और अगले 20  वर्षों में यही फ़ोकस रहने की उम्मीद है।

आर्थिक रूप से भारत को मजबूत होने के साथ ही देश में आर्थिक असमानता के स्तर को पाटना है वहीं वैश्विक स्तर पर राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की चुनौती भी कम नहीं है। तमाम प्रयासों के बाद भी भारत सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं बन सका है।  रूस यूक्रेन युद्द के चलते चीन और रूस के आपसी सम्बन्ध मजबूत हुए है और इसका प्रभाव ब्रिक्स पर भी देखने को मिल रहा है। भारत को सीमा पर चीन की आक्रामक साम्राज्यवादी नीति का सामना करना पड़ रहा है। चीन भारत से सीमा विवाद को बनाएं रखते हुए आर्थिक सम्बन्ध बेहतर करने पर जोर देता है। दक्षिण एशिया के कई देश चीन की वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना से जुड़ गए है और इससे भारत की सामरिक चुनौतियों में इजाफा ही हुआ है।

बेशक,भारत की अर्थव्यवस्था विश्व भर में सबसे तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रही है लेकिन विकसित देशों में शुमार होने के लिए भारत को चीन की सामरिक चुनौती से पार पाना होगा वहीं आर्थिक असमानता को दूर करने  के बहुआयामी और निरंतर प्रयास करने होंगे। आबादी के हिसाब से आर्थिक प्रगति के लिए देश में राजनीतिक स्थिरता के साथ भाषाई,जातीय,धार्मिक और क्षेत्रीय विवादों को खत्म करने की जरूरत भी होंगी। अफ़सोस भारत की आंतरिक समस्याएं हिंसात्मक रूप से सामने आ रही है। यह भारत की वैश्विक छवि को चोट पहुंचाने वाले कारक है।

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