स्टालिन से आगे निकलने को बेताब पुतिन
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स्टालिन से आगे निकलने को बेताब पुतिन

प्रजातन्त्र                

मॉस्को के थिएटर पर आईएस के हमलें से 137  लोगों के मारे जाने के बाद रूस में हताशा,निराशा और अजीब खामोशी है।  रूसी यह कयास लगा रहे है की पुतिन का जवाब कब और कैसा होगा। रूस का सरकारी मीडिया यूक्रेन की भूमिका को तलाश रहा है जिससे पुतिन के यूक्रेन पर हमलों को जायज ठहराया जा सके और पुतिन की खिलाफत करती आवाजों को दबाया जा सके। यह  निर्मम आतंकी हमला पुतिन की नाकामियों को दर्शाता है लेकिन रूस में विपक्ष ही नहीं है जो पुतिन का विरोध कर सके।

दरअसल  तानाशाहों में ताकत हासिल करने की हिंसक सनक होती है जो उन्हें एक  खास और हित साधने वाले वर्ग के बीच हीरो बना देती है,हालांकि वे उदार और विचारशील वर्ग के लिए किसी विलेन से कम भी नहीं होते।  ढाई दशकों से रूस की सत्ता के शीर्ष पर आसीन पुतिन एक बार फिर देश के राष्ट्रपति बन गए है। यूक्रेन से लंबा खींचता विध्वंसक युद्द,बेरोजगारी की भयवाहता,वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों से जूझती अर्थव्यवस्था,महंगाई और सुरक्षा को लेकर अस्थिरता से भयाक्रांत रूसी जनता की बेबसी का हाल यह है की इन सब नाकामियों के बाद भी पुतिन करीब 88 फीसदी मत हासिल करके चुनावों में देश की निर्विवाद पसंद बन गए।   नेता,अभिनेता,मीडिया संस्थानों के मुखिया,विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन हस्तियां और केजीबी तथा सेना के प्रमुख अधिकारी,पुतिन के समर्थ में नजर आते है और  उन्हें रूस की असल ताकत बता रहे है।

पुतिन  की मीडिया,उद्योग,सेना,केजीबी और राष्ट्रीय संस्थानों पर टेढ़ी नजर रही है और उन्होंने दो दशकों में अपने विरोधियों को कुचल दिया है।  पुतिन,आक्रामक  राष्ट्रवाद को ब्रांड की तरह इस्तेमाल कर रूस के सबसे ताकतवर नेता उसी तरह बन गये है जैसे सौ साल पहले रूस के तानाशाह स्टालिन ने मार्क्सवाद का अपना राष्ट्रवादी ब्रांड विकसित किया था।  स्टालिन अपनी छवि को सोवियत संघ के एक महान परोपकारी नेता और नायक के रूप में प्रचारित करते  रहे और वे जीवन पर्यंत देश की सत्ता के शीर्ष पर बने रहने में सफल हो गए। पुतिन ने चेचन विद्रोह को खत्म कर रूसियों का उसी तरह विश्वास अर्जित किया जैसे स्टालिन ने हिटलर की जर्मन सेना को दूसरे विश्व युद्ध में मात देकर रुसियों का दिल जीत लिया था। स्टालिन  में जीत की भूख इतनी जबरदस्त थी की स्टालिनग्राड के युद्ध में रूसी सेना के दस लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए,लेकिन आख़िर में सोवियत सेनाओं ने जर्मनी को मात दे दी। इसके बाद तो सोवियत संघ ने हिटलर की सेनाओं को वापस जर्मनी की तरफ़ लौटने को मजबूर कर दिया था। यूक्रेन युद्द में बड़ी संख्या में रुसी सैनिक मारे जा रहे है,इसके बाद भी पुतिन की यूक्रेन पर कब्जा करने की सनक कम नहीं हुई है,यह स्टालिन की युद्दोंमाद की कुटिल नीतियों की तरह ही है।

जोसेफ़ स्टालिन ख़ुद को देशभक्त और मसीहा नेता के तौर पर प्रचारित करते थे तथा लोकप्रियता की आड़ में  विरोधियों को मरवा देते थे। स्टालिन ने लाखों लोगों को मरवा दिया था। पुतिन भी अपने विरोधियों का वहीं हश्र कर रहे है। पुतिन की कार्यशैली और नीतियों का विरोध करने वालों तथा रूस में असंतोष की आवाज़ उठाने वाले विपक्ष को लगभग ख़त्म कर दिया गया है। पुतिन ने राजनीतिक विरोधियों को कैद किया और दूसरों को उनके खिलाफ लड़ने से क़ानूनी या बलपूर्वक रोक दिया। यूक्रेन युद्द का विरोध करने वाले  तथा एंटी वॉर टेलीग्राम चैनल चलाने वाले दिमित्री इवानोव को साढ़े आठ साल की जेल देकर जेल में डाल दिया गया है। पत्रकार एलेक्ज़ेंडर नेवज़ोरोव को विदेशी एजेंट का आरोप लगा है,वे भी जेल में है। पुतिन के घोर विरोधी नेमत्सोव निज़नी की हत्या हो चूकी है। राष्ट्रपति पुतिन को सबसे निष्ठुर कसाई कहने वाली इल्या यशिन जेल में है। एलेक्सी नवेलनी के दाहिने हाथ लियोनिद वोल्कोव के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला शुरू होने बाद उन्होंने रूस छोड़ दिया है। नवेलनी के कई सहयोगी सुरक्षा एजेंसियों के दबाव में आ गए और कुछ विदेश भाग गए है। वहीं पुतिन के खिलाफ सबसे प्रमुख विपक्षी शख़्स  नवेलनी कष्ट भोगते भोगते मारे जा चूके है। देश में पुतिन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला कोई भी राजनीतिक चेहरा ढूंढे नहीं मिल रहा है। इन चुनावों में उनके सामने खड़े हुए 75 वर्षीय खारितोनोव रूस की संसद के निचले सदन और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं। उन्हें महज साढ़े चार फीसदी वोट मिले है। 1936 में 13 रूसी नेताओं पर स्टालिन को मारने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगा और उन्हें मृत्यु दंड की सजा दे दी गई। पुतिन के विरोधी  बेहद डरे हुए है और उनमें विरोध करने का समर्थ नहीं बचा है। पुतिन और स्टालिन में कई समानताएं है लेकिन आधुनिक हथियारों की विनाशकारी शक्ति उन्हें स्टालिन से ज्यादा खतरनाक बना सकती है। यूक्रेन को यूरोपीय देशों और नाटो की मदद से पुतिन नाराज है। पुतिन अब देश के राष्ट्रपति 2030 तक बने रहेंगे। जाहिर है इसका असर वैश्विक स्तर पर पड़ेगा। मध्यपूर्व में तनाव फिर बढ़ सकता है। ईरान और हिजबुल्ला को सैन्य समर्थन मिल सकता है। इजराइल और फिलीस्तीन के बीच तनाव बढ़ सकता है। अजरबैजान और आर्मेनिया फिर आमने सामने हो सकते है। चीन की महत्वाकांक्षाओं और आक्रामकता को बढ़ावा मिल सकता है जिसका असर हिन्द महासागर,ताइवान,हांगकांग से लेकर यूरोप तक दिख सकता है।

मास्कों को कैस्पियन,काला,बाल्टिक,श्वेत सागर और लाडोगा झील जैसे पांच सागरों का पत्तन कहा जाता है। इस सागरों से लगते देशों के साथ रूस के संबंध और उसके प्रभाव से रूस के वैश्विक प्रभुत्व का पता चलता है। इन क्षेत्रों के अधिकांश इस्लामिक देशों से रूस के मजबूत सम्बन्ध है। अमेरिका की आंख में चुभने वाला ईरान कैस्पियन सागर के तट पर है, जो रूस का सामरिक मित्र है। अमेरिकी के द्वारा ईरान पर बनाएं जा रहे दबाव को ख़ारिज करते हुए पुतिन ने ईरान के साथ रणनीतिक सम्बन्धों को मजबूती दी है। ईरान और तुर्की से मजबूत सम्बन्धों के बूते रूस ने मध्य पूर्व और यूरोप में अमेरिकी प्रभुत्व को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। रूस सीरिया की असद सरकार का बड़ा मददगार है और उसके सीरियाई संकट में असद के पक्ष में खड़ा होने के बाद सीरिया कि सरकारी सेना मजबूत हुई है जबकि अमेरिका तथा  नैटो के प्रभाव में कमी आई है। रूस ने तुर्की से सम्बन्ध मजबूत करके मध्यपूर्व के संघर्ष पर नियन्त्रण और संतुलन का दांव खेला है और यह सफल भी रहा है।

इन सबके बीच पुतिन का इस्लामिक चरमपंथियों को लेकर रुख नरम हुआ है,यूक्रेन के साथ युद्द में रूस की और से लड़ते हूए चेचन्य लड़ाके इसका प्रमाण है।  पुतिन अपने देश की सुरक्षा को कठिनाई में डालकर रूसी जनता को आक्रामक राष्ट्रवाद के नाम पर भ्रमित कर रहे है। वहीं ईरान,उत्तर कोरिया और चीन के साथ मिलकर निरंकुशतावाद  को बढ़ावा दे रहे है। यह एक ऐसी वैश्विक चुनौती है जिसका परिणाम बेहद विध्वंसक हो सकता है। पुतिन अमेरिका और नाटो से गहरी नफरत करते है और उनका मुकाबला करने के लिए अन्य तानाशाहों से हाथ मिला रहे है। रूस कई देशों में आतंकी समूहों का समर्थन करता है और उन्हें आर्थिक,सामरिक  और राजनीतिक समर्थन भी देता रहा है। स्टालिन ने 1939 मे एडॉल्फ हिटलर के साथ एक अनाक्रमण संधि पर हस्ताक्षर किए थे और वे पूर्वी यूरोप को अपने बीच बांटने पर सहमत हुए थे। बाद में हिटलर ने विश्वासघात किया और तत्कालीन सोवियत संघ को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। स्टालिन के विचार रूस में खूब लोकप्रिय हुए और 1920 के दशक के अंत तक वह सोवियत संघ के तानाशाह बन गये थे। पुतिन की लोकप्रियता भी कम नहीं लेकिन उनका ईरान,उत्तर कोरिया और चीन जैसे देशों पर भरोसा,रूस को शेष दुनिया से अलग कर रहा है। जिन राजनीतिक गलतियों से स्टालिन अपने ही देश में खलनायक बन गए वहीं गलतियां पुतिन भी दोहरा रहे है।

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

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