सुबह सवेरे
धर्म,आस्था,आध्यात्म मनुष्य के संस्कारों से विचारों में प्रवेश करता है और फिर व्यवहार में वह जीवनपर्यंत प्रतिबिम्बित होता रहता है। स्वामी विवेकानन्द ने धर्म के गूढ़ रहस्यों पर गहरी मीमांसा प्रस्तुत की है। लेकिन इन सबके साथ स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को आलौकिक समझने और कहने पर सवाल भी उठाएं है। दरअसल आलौकिकता मनुष्य की सीमाओं से परे है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि अब तक जितने भी प्राचीन धर्म हुए है उनके बारे में यह दावा किया जाता है कि वे सब आलौकिक है अर्थात् उनका जन्म मानव मस्तिष्क से नहीं बल्कि उस स्रोत से हुआ है,जो उसके बाहर है।
स्वामी विवेकानन्द के भाषणों पर आधारित है एक किताब ज्ञान योग। इसमें स्वामी ने धर्म को लेकर अपनी दृष्टि को तर्क के आधार पर स्पष्ट किया है। दुनिया की प्रमुख और प्राचीन सभ्यताओं में चीन,बेबीलोन,मिस्र,सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया की सभ्यता को शामिल किया जाता है। कुछ साल पहले ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक दल का शोध,प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था जिससे मिस्र की प्राचीन सभ्यता के काल के बारे में कुछ नए तथ्य सामने आए। शोध से यह साफ हुआ कि करीब छत्तीस सैंतीस ईसा पूर्व में लोग नील नदी के किनारे बसने लगे थे और खेती शुरू हो चुकी थी। यह भी दिलचस्प है कि एक और प्राचीन सभ्यता मेसोपोटामिया हज़ारों साल तक एक कृषि प्रधान समाज था उसके बाद ही वो एक आधुनिक राज्य के रूप में उभरा। चीनी,बेबीलोन या सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास भी नदी के किनारे हुआ। कुल मिलाकर दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का निर्माण नदी के किनारे हुआ।
चीन एक साम्यवादी देश है,यहां हान समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है। चीन में लोग नास्तिक है या बुद्ध को मानने वाले। प्राचीन सभ्यता में लोग जिस शक्ति की पूजा करते थे उसे वे लोग शंगति के नाम से पुकारते थे। शंगति का अर्थ होता है स्वर्ग का देवता। शंगति को स्वर्ग का पिता भी कहते थे। चित्रकला के साथ साथ चीन के निवासी मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अग्रणी थे। चीन में मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ था। मूर्तियां,मिट्टी पत्थर तथा हाथी दांत की बनाई जाती थी। मूर्तियां पशुओं,शिकार,रथ सवार इत्यादि विषयों से संबंधित होती थी।
यदि भारत की सिंधु या हडप्पा सभ्यता की बात की जाएं तो चीनी सभ्यता से इसकी समानता मिल सकती है। हड़प्पावासी मूर्ति पूजक थे। मोहनजोदड़ो की खुदाई से एक पशुपति शिव की मूर्ति मिली है,जो सिंधु सभ्यता में शिव पूजा को प्रमाणित करती है। यदि भारतीय आस्था की बात की जाएं तो शिव कैलाश पर्वत में रहते है और हम उसे स्वर्ग का द्वार समझते है। खुदाई में प्राप्त हुई मूर्तियों वक ताबीजों पर अंकित पशुओं के चित्रों से पता चलता है कि हड़प्पावासी पशुओं की भी पूजा करते थे। सिंधु सभ्यता के निवासी पशु की पूजा करते थे और यह पूजन देवताओं का वाहन मानकर किया जाता था।
मेसोपोटामिया की सभ्यता का जन्म इराक की दजला एवं फरात नदियों के मध्य क्षेत्र में हुआ था। इस सभ्यता के दो प्रमुख देवताओं के नाम शमाश एवं अनु थे। मेसोपोटामिया की सभ्यता का धार्मिक जीवन बहुत ही उच्च कोटि का था और इस समाज के लोगों का अनेक देवी देवताओं में विश्वास था। मेसोपोटामिया की सभ्यता के प्रमुख देवता शमाश या सूर्य देवता,एनलिल या वायु देवता,नन्नार या चंद्र देवता तथा अनु या आकाश देवता थे। मेसोपोटामिया के लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि चढ़ाते थे। मेसोपोटामिया सभ्यता के अंतर्गत प्रत्येक नगर में एक प्रधान मंदिर हुआ करता था,उस मंदिर का देवता नगर का संरक्षक माना जाता था। इस सभ्यता के लोग अंधविश्वासी होते थे। इस सभ्यता के लोग भूत प्रेत,जादू टोना,ज्योतिष एवं भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते थे। इस सभ्यता में नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर में किसी ऊंचे स्थान परंतु के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण करवाया जाता था इस मंदिर को जिगुरत कहा जाता था। मेसोपोटामिया में बसने वाली विभिन्न सभ्यताओं के लोग अपने-अपने देवता पर विश्वास रखते थे। एक सामान्य पहलू यह था कि सभी धर्म बहुदेववादी थे अर्थात सभी धर्मों में एक से ज्यादा देवताओं को माना जाता था। इसका मतलब है कि वे विभिन्न प्रकार के देवताओं की पूजा करते थे। भारत और चीन का समाज मेसोपोटामिया के जीवन जीने के तरीकों से किसी भी तरीके से भिन्न नजर नहीं आता।
बेबीलोनिया के लोग अरब के रेगिस्तान के घुमक्कड़ लोग थे और यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता बहुत ही उन्नत एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सक्षम थी। इसी सभ्यता के कारण विश्व में ज्योतिष का प्रसार भी हुआ और ऐसा माना जाता है कि इस सभ्यता ने ही ग्रहों,नक्षत्रों आदि का नामकरण किया। इस सभ्यता के लोगों को मीनारें,गुंबदे,मस्जिदे आदि बनाने का ज्ञान प्राप्त था,उन्होंने यह ज्ञान पूरे विश्व को प्रदान किया। यह समानताएं सिंधु,चीनी और मेसोपोटामिया में भी दिखाई पड़ती है।
प्राचीन मिस्र,नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी,जो अब आधुनिक देश मिस्र है। मिस्रवासियों के प्रमुख देवता रा या सूर्य,ओसरिम या नील नदी तथा सिन या चन्द्रमा थे। उनके देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे।
सभ्यता के प्रारम्भिक काल में मिस्रवासी बहुदेववादी थे,किंतु साम्राज्यवादी युग में अखनाटन नामक फराओ ने एकेश्वरवाद की विचारधारा को महत्व दिया तथा सूर्य की उपासना आरम्भ की। मिस्रवासियों का विश्वास था कि मृत्यु के बाद शव में आत्मा निवास करती है। अत: वे शव पर एक विशेष तेल का लेप करते थे। इससे सैकड़ों वर्षों तक शव सड़ता नहीं था। शवों की सुरक्षा के लिए समाधियां बनाई जाती थी जिन्हें वे लोग पिरामिड़ कहते थे। पिरामिड़ों में रखे शवों को ममी कहा जाता था।
ये बहुत रोचक है की दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का अध्ययन किया जाएं तो उनमे ज्यादा अंतर नजर नहीं आता। जहां तक धार्मिक मान्यताओं का सवाल है तो हजारों साल पहले के जनजीवन की तौर तरीकों को अपनाकर ही उसे आवश्यक मान लिया गया है।
बेबीलोन और मेसोपोटामिया अब अरब के अंतर्गत आते है,जहां इस्लाम धर्म है। मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है तथा अफ्रीका,भूमध्य क्षेत्र,मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति है। यहां ईसाई भी बहुतायत में रहते है। चीनी सभ्यता का प्रसार चीन,कम्बोडिया से लेकर वियतनाम तक है और सिंधु घाटी की सभ्यता पूरे भारतीय महाद्वीप को जोड़ती है। हजारों सालों से विकास की प्रक्रिया के साथ सभ्यताओं में भिन्नता जरुर नजर आती है लेकिन इनकी मूल मान्यताओं में समानता समाप्त नहीं हो सकी। यह रहन सहन से लेकर आस्थाओं में भी नजर आती है।
जाहिर है धर्म का संबंध सभ्यताओं के विकास से ही रहा है और यह मानव मस्तिष्क से ही हजारों वर्षों से समृद्द होता रहा। ऐसे में धर्म को आलौकिकता से जोड़ना,कल्पनातीत तो हो सकता है लेकिन इसका ज्ञान और तर्क से कोई संबंध नहीं है। दुनियाभर में घूम कर विवेकानन्द ने सभी धर्मों के मूल को समझा और इस शाश्वत एकत्व को देखा। स्वामी विवेकानन्द धर्म को इसीलिए जरूरी बताते थे क्योंकि यह मनुष्य की उन्नति या विकास का वह नियम है जिससे सभ्यताएं समृद्ध और प्रतिबिम्बित होती है। इसीलिए वे कहते थे कि प्रत्येक धर्म को स्वतंत्रता और वैशिष्ट्य को बनाएं रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते रहना चाहिए। अंततः विभिन्न धर्मों का यही सामीप्य मानवीय सभ्यताओं का आधार है तथा इससे ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
Leave feedback about this