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क्या आप सीआरपीएफ के है…? दोरनापाल में मुझसे जब एक टेम्पों वाले ने यह पूछा तो मैं चौंक गया। नक्सलियों की यहां अपनी दुनिया है जहां बस से उतरते ही अनजान लोगों की आंखें आपको घूरने लगती है।
नेशनल हाइवे क्रमांक 30 राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर दोरनापाल एक कस्बा है। यदि आप इस इलाकें में नए,युवा और चुस्त दुरुस्त हो तो सीआरपीएफ़ का होने की आप पर मुहर लग लग जाती है। देश में नक्सली आतंक की खौफनाक अनुभूति दोरनापाल में होती है,जहां बंगाल से लेकर झारखंड या नक्सलियों से जुड़ा कोई गुमनाम शख्स मूंगफली बेचते हुए नए लोगों पर नजर रखता है तो सीआरपीएफ का होने पर ऑटो में बिठाने से भी ड्रायव्हर डरते है। दोरनापाल में उतरकर मैं दांये मुड़ा और करीब पांच सौ मीटर दूर गया तो एक बड़ा से गेट लगा हुआ था। उस गेट पर शहीद जवानों के स्मृति स्थल बने थे। सुकमा और बीजापुर के जंगलों में नक्सलियों के स्मृति स्थल तो बड़े बड़े मिल जायेंगे लेकिन सीआरपीएफ या पुलिस के शहीदों के परिवारों को तो यहां से जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ता है,अत: उनकी याद में कोई निर्माण की कल्पना भी मुश्किल होती है।
गेट के ठीक आगे सीआरपीएफ की एक बटालियन का मुख्यालय देखकर राहत का सांस ली। रोड़ पर अत्याधुनिक हथियार लिए डीआरजी के जवान बैठे थे। दोरनापाल से ही शुरू होती है नक्सलियों की दुनिया। इन इलाकों में मारे जाने वाले नक्सलियों की याद में बड़े बड़े स्तम्भ बनाते है और वहां पर समय समय पर जश्न भी मनाते है जिसमें आसपास के गांवों के हजारों लोग शामिल होते है। दोरनापाल में सवारी जीप खड़ी होती है जिससे ताड़मेटला,बुर्कापाल,गोंडापल्ली,चिंतागुफा,कोरईगुंडम और तोंगुडा जैसे घोर नक्सल प्रभावित गांवों में जाया जा सकता है। यह सभी गांव 60 से 70 किलोमीटर के इलाके में बसे है। जब आप इस जीप पर चढ़ते है और स्थानीय नहीं लगते तो जीप का ड्रायव्हर यह पूछता है कि आपको कहां जाना है और कहीं आप सीआरपीएफ के तो नहीं हो। इस इलाके में सीआपीरएफ के जवानों से नक्सली गहरी नफरत करते है और उनकी जान को हमेशा खतरा होता है। सीआपीरएफ के जवानों के लिए भी इन गाड़ियों में बैठना बिल्कुल सुरक्षित नहीं होता।
इन क्षेत्रों में नक्सलियों की दहशत रही है। छह अप्रैल दो हजार दस को ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों की नक्सलियों के हत्या कर दी थी। यह हत्या इतनी निर्मम थी की नक्सली जवानों के जूतों के साथ पंजे भी काटकर ले गए थे। करीब 14 साल होने के आएं है लेकिन उन 76 जवानों की हत्या का सही कारण अब तक पता लगाने में हमारी सुरक्षा एजेंसियां नाकाम रही है। इन्हीं इलाकों में 24 अप्रैल 2017 को सर्चिंग पर निकले सीआरपीएफ की 74 वीं बटालियन के 26 जवानों को तीन सौ नक्सलियों ने घेरकर मार डाला था। नक्सलियों ने हमलें का बाकायदा वीडियो बनाया। हमलें से लूटकर ले गए हथियारों की जंगल में प्रदर्शनी लगाई और सफलता का जश्न भी मनाया।
सुकमा और बीजापुर के बीच इन्हीं इलाकों में एक गांव बसा है पूर्वर्ती। यह आम गांव नहीं बल्कि कुख्यात नक्सली नेता माडवी हिडमा का गांव है जिसके हाथ हमारे सैकड़ों जवानों के खून से रंगे है। जगरगुंडा और बीजापुर के जंगलों में पग पग पर मौत होती है। यहां आईईडी कहाँ पर बिछा कर रखा गया हो,कुछ नहीं बताया जा सकता। ताड़मेटला,बुर्कापाल,गोंडापल्ली,चिंतागुफा,कोरईगुंडम और तोंगुडा जैसे घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में रात दिन सीआपीरएफ के जवान डटे हुए रहते है। उनकी वीरता का ही कमाल है की अब इन इलाकों में पक्के रोड़ बन पायें है। नक्सलियों के खौफ से कभी जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था,वहां सीआपीरएफ ने अपना मजबूत गढ़ बना लिया है और उन्होंने देश के गृह मंत्री अमित शाह को चाय की दावत भी दी है। 21 अप्रैल 2012 की शाम को नक्सलियों ने सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र के माझीपारा गांव में कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के दो अंगरक्षकों की हत्या कर कलेक्टर को अगवा कर लिया था। नक्सलियों ने कलेक्टर की रिहाई के लिए सरकार के सामने ऑपरेशन ग्रीनहंट को बंद करने और उनके आठ सहयोगियों को रिहा करने की बात कही थी। ऑपरेशन ग्रीन हंट रेड कॉरिडोर वाले पांच राज्यों में नवंबर 2009 में शुरू किया गया था।
अब सीआपीरएफ के जांबाजों ने हिडमा के पूर्वर्ती गांव में कैम्प स्थापित कर नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। सीआरपीएफ का ध्येय वाक्य राष्ट्र प्रथम से शुरू होता है। माडवी हिडमा के पूर्वर्ती गांव में सीआरपीएफ के जांबाज़ डट गए है। नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के नए कैंप पर दिन दहाड़े अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर से हमला भी किया लेकिन जवानों ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए उन्हें खदेड़ दिया। सीआरपीएफ ने न केवल नक्सलियों को इन इलाकों से भगाने और उन्हें बड़ी संख्या में मार गिराने में सफलता हासिल की है बल्कि पक्के रोड़ और मोबाइल टॉवर स्थापित करके विकास के रास्ते पर गरीब आदिवासियों के जीवन को रोशन भी किया है। कई दशकों से नक्सलियों की समांतर सरकारें चलने वाले इन इलाकों पर जीत हासिल करके सीआरपीएफ के जांबाज़ बहुत खुश है। वे अपने शहीद साथियों पर फक्र करते हुए कह रहे है,बस पचास किलोमीटर और,इसके बाद छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद खत्म।
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
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