politics
शिया बहुल देश ईरान की इस्लामी कट्टरपंथी शासन व्यवस्था महिलाओं के विद्रोह से निपट नहीं पा रही है। हिजाब उतार कर ईरानी महिलाएं चुनौती दे रही है,जेल में डाल दो,गोली मार दो या फांसी पर चढ़ा दो। इस्लामी व्यवस्था के नाम पर महिलाओं से जबरदस्ती और उत्पीड़न,वे बर्दाश्त नहीं करेंगी।
हिजाब को पहनने में ईरान की महिलाओं को कोई दिक्कत नहीं थी,लेकिन पिछले साल महसा अमीनी की मौत के बाद अब ईरान का नजारा बदल गया है। हिजाब के नाम पर ईरान के कई इलाकों में प्रदर्शन जारी है। देशभर की महिलाएं कट्टरपंथी इस्लामिक शासन व्यवस्था में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक आन्दोलन चला रही है,महिला,ज़िंदगी और आज़ादी। इस आंदोलन के दौरान बहुत सी महिलाओं ने अपने सिर से हिजाब को उतारकर जला दिया है। कई महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से अपने बाल भी काट लिए। एक साल से लगातार महिलाएं हिजाब के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं। वो ऐसी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं जो उनकी निजी और सार्वजनिक ज़िंदगी को नियंत्रित करता है।
दक्षिण ईरान में एक खुबसूरत और धार्मिक महत्व का शहर है दमघान। यहां ईरान की प्राचीन तारिक खनेह मस्जिद है। कुछ महिलाएं इस शहर की यात्रा पर कार से निकलती है तो कुछ ही देर में उनके पास पुलिस का एसएमएस आता है कि उन्होंने हिजाब को ठीक ढंग से नहीं पहनना है। इसके साथ यह भी चेतावनी दी जाती है की अगली बार कार में बिना हिजाब के मिले तो कार ज़ब्त की जा सकती है। ईरान में हिजाब न पहनने वाली महिलाओं की पहचान के लिए स्मार्ट कार्यक्रम चलाया जा रहा है,इसके तहत कैमरों की मदद से हिजाब न पहनने वाली महिलाओं को पहचाना जा रहा है।
यह भी दिलचस्प है की इस संदेश में सरकारी वेबसाइट का एक लिंक भी होता है, जहां इस कथित आरोप को चुनौती दी जा सकती है। लेकिन चुनौती देने वालों को न्यायपालिका से जवाब मिलता है की सार्वजनिक स्थान पर हिजाब ठीक से न पहनने पर पाबंदी है। मतलब साफ है की महिलाओं के साथ न पुलिस है,न शासन व्यवस्था और न ही न्यायपालिका। फिर भी ईरानी महिलाओं के हौंसलों में कोई कमी नहीं है। महिलाएं खुल कर अपनी भावनाओं का इजहार कर रही है,ये इस्लामी तानाशाही है। इसका एक आधार स्तंभ महिलाओं का दमन और उन पर नियंत्रण है।
ईरान के क़ानून के तहत,जो कि शरिया क़ानून पर ईरान की अपनी समझ पर आधारित है,के तहत महिलाओं को अपने बालों को हिजाब से ढंकना अनिवार्य है। इसके अलावा महिलाएं सिर्फ़ ऐसे ही ढीले-ढाले कपड़े पहन सकती हैं,जिसमें उनके बदन का फिगर ना दिखाई दे। ईरान की नैतिक पुलिस गश्त-ए-इरशाद के पास इन नियमों को सख़्ती से लागू करने की ज़िम्मेदारी है। उन लोगों को हिरासत में ले लिया जाता है जो सही से कपड़े नहीं पहनते हैं।
पिछले साल सितंबर में 22 साल की माहशा अमीनी अपने परिवार के साथ राजधानी तेहरान आईं थीं जब उन्हें गश्त-ए-इरशाद ने रोका था। उन पर हिजाब को सही से ना ओढ़ने के आरोप लगाये गए थे। अमीनी को हिरासत केंद्र ले जाया गया था जहां वो बेहोश हो गईं थीं। रिपोर्टों के मुताबिक़ अमीनी को हिरासत के दौरान पीटा गया था। बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी। अमीनी की मौत के बाद लाखों ईरानी महिलाएं हिजाब नियमों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आईं थीं। ईरान में कई महीनों तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों के दौरान 600 से अधिक लोगों की मौत हुई है। इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें सरकार ने मौत की सज़ा दी है। प्रदर्शनों के बाद ईरान में बहुत सी महिलाओं ने पूरी तरह से हिजाब पहनना बंद कर दिया।
ईरान में 1979 में इस्लामी शासन स्थापित होने के बाद देश में कड़े इस्लामी नियमों को लागू किया गया और इसका दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा महिलाओं को भोगना पड़ रहा है। ईरान में महिलाओं के लिए यह कहा जाता है कि एक दुल्हन शादी के जोड़े में अपने पति के घर जाती है और सफ़ेद कफ़न में उसके घर से निकलती है। इस देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा को सामान्य माना जाता है तथा इसे पारिवारिक मामला कह कर पुलिस के द्वारा भी नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसी वजह से घरेलू हिंसा किसी महामारी की तरह फैल गई है। ईरान में महिलाएं क़ानून की नज़र में भेदभाव का सामना करती हैं। वो शादी और तलाक़,पारिवारिक संपत्ति पर हक़,बच्चों पर हक़,राष्ट्रीयता और अन्य देशों की यात्रा में भी भेदभाव झेलती हैं। धार्मिक मामलों पर सख्ती का असर यह हुआ है कि देश के लोगों का आस्था पर विश्वास कम हुआ है। इससे डरे हुए शिया धार्मिक गुरुओं ने देश में नैतिकता के नाम पर लोगों पर बेतहाशा अत्याचार शुरू कर दिए है। इस समय ईरान में जो सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे है वह दरअसल धार्मिक सत्ता का ही विरोध है। इस्लामिक सत्ता लोक कल्याणकारी कार्यों को नजरअंदाज कर धार्मिक कार्यों पर बेतहाशा पूंजी को खर्च करती है। इसका विरोध करने वालों को ईरान विरोधी बताकर जेल में डाल दिया जाता है। देश में मानवाधिकार संगठनों को चुन चुन कर निशाना बनाया गया है जिससे यहां काम करने वाले गैर सरकारी संगठन खत्म हो गए है। ईरान में नैतिक पुलिस को गश्त-ए-इरशाद कहा जाता है। मोरैलिटी पुलिस ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करने के नाम पर महिलाओं को निशाना बनती रही है। ईरान में धार्मिक सत्ता का रुझान इस बार पर है कि जो लोग इस्लामिक कड़े कानूनों के तहत् बर्ताव न करे,नास्तिकता की और बढ़े या अन्य धर्मों की और रुझान बढ़ाएं तो इसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है।
महिलाओं के हिजाब पहने का तरीका सुनिश्चित कर दिया गया है,फुटबाल के लिए जूनून से भरे इस देश में महिलाओं के स्टेडियम जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। ईरान में,शादी से पहले कौमार्य कई लड़कियों और उनके परिवारों के लिए बेहद अहम है। कई बार पुरुष वर्जिनिटी सर्टिफ़िकेट (कौमार्य का प्रमाण पत्र) मांगते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्जिनिटी टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ये अनैतिक है। फिर भी दुनिया के कई देशों में ये प्रचलित है,इनमें इंडोनेशिया,इराक़ और तुर्की भी शामिल हैं। ईरान में घरेलू हिंसा को पारिवारिक मामला समझा जाता है,लिहाजा अधिकांश महिलाएं घरेलू हिंसा को चुपचाप सहने को मजबूर है। ऑनर किलिंग को लेकर कोई पुलिस कार्रवाई नहीं की जाती। यहां तक की ईरान में धार्मिक पुलिस को व्यापक अधिकार दे दिए गए है,इसी का नतीजा है ईरान में महिलाओं और युवाओं का हालिया प्रदर्शन।
इस्लामी सहयोग संगठन जिसे ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन कहा जाता है। 1969 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र के बाद चार महाद्वीपों में फैले 57 राज्यों की सदस्यता वाला दूसरा सबसे बड़ा संगठन माना जाता है। इसमें 48 मुस्लिम बहुल देश शामिल हैं। इसे यों तो मुस्लिम दुनिया की आवाज कहा जाता है.,लेकिन इसमें महिलाओं की आवाज ल्हमोश कर दी गई है। ओआईसी ने अपना अधिकांश ध्यान सदस्य देशों के मध्य विवादों और युद्धों को सुलझाने पर केन्द्रित किया है। वे सदस्य देशों की आंतरिक स्थिति पर कभी चर्चा नहीं करते. यहीं कारण है की ईरान,अफगानिस्तान,सीरिया,ईरान जैसे देशों में महिलाओं पर खूब अत्याचार हो रहे है और युद्द जैसे हालातों में उन्हें सेक्स स्लेव बनाकर बेचा भी जा रहा है।
1979 से पहले ईरान एक साम्यवादी देश होकर आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहा था। लेकिन देश में इस्लामिक क्रांति के बाद महिलाओं से कई अधिकार छीन लिए गए। धर्मगुरुओं का राजनीति पर प्रभाव बढ़ा और इसका खामियाजा सबसे ज्यादा महिलाओं को भोगने को मजबूर होना पड़ा। दरअसल धार्मिक मान्यताओं में आम जन की आस्था के बरकरार रहने के लिए शासन व्यवस्थाओं की उदार प्रकृति अपरिहार्य है। जबकि इस्लामिक शासन व्यवस्थाओं ने धर्म को आधार बनाकर आस्था को थोपने की कोशिश की। लिहाजा कुछ देश टूट कर बिखर गए और अधिकांश देश गृहयुद्द की कगार पर पहुंच गए है।
इस समय सरकार का विरोध देश की नौजवान पीढ़ी कर रही है। ये युवा दुनिया की तरह ईरान में स्वतन्त्रता चाहते है और धार्मिक नेताओं के आतंक से मुक्ति चाहते है। करीब नौ करोड़ की आबादी वाले देश में अधिकांश लोग ईरान की इस्लामी व्यवस्था,उसके अलोकतांत्रिक चरित्र और विचारधारा से जुड़ी नीतियों में बुनियादी बदलाव चाहते हैं। सरकार विरोधी आंदोलन कुर्दिस्तान से लेकर तेहरान और पूरे देश में जोर पकड़ चूका है। ईरान में हिजाब न पहनने वाली महिलाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। पुलिसिया अत्याचार,गोली और फांसी की आशंकाओं के बीच महिलाएं हिजाब न पहन कर ये दिखाना चाहती है कि महिला,जिंदगी और आज़ादी अभियान अभी भी ज़िंदा है और वे माहशा अमीनी की मौत को कभी नहीं भूलने वाले है।
Leave feedback about this