राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
शिया बहुल देश ईरान की इस्लामी कट्टरपंथी शासन व्यवस्था में सुधारवादी नेता के अभ्युदय से बदलाव की संभावनाएं बढ़ गई है। करीब पांच दशक से जीने के अधिकार के लिए संघर्ष कर रही महिलाएं कट्टरपंथ को यह कहते हुए चुनौती देती रही की चाहे जेल में डाल दो,गोली मार दो या फांसी पर चढ़ा दो। इस्लामी व्यवस्था के नाम पर महिलाओं से जबरदस्ती और उत्पीड़न,वे बर्दाश्त नहीं करेंगी। मसूद पेज़ेश्कियान सुधावादी नेता माने जाते है,वे लोगों की पहली पसंद बन कर उभरें है और ईरान के राष्ट्रपति चुन लिए गए है। ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई रुढ़िवादी है। मसूद पेज़ेश्कियान का देश का राष्ट्रपति चुना जाना इस बात का संकेत है की ईरान के लोग देश में सुधारवादी और उदार शासन व्यवस्था चाहते है।
समानता के मानवीय अधिकार के लिए सत्ता से संघर्ष की कीमत क्या हो सकती है,यह ईरान के सुधारवादी लोगों के खौफनाक अनुभव बखूबी बता सकते है। ईरान में 1979 में इस्लामी शासन स्थापित होने के बाद देश में कड़े इस्लामी नियमों को लागू किया गया और इसका दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा महिलाओं को भोगना पड़ रहा है। ईरान में महिलाओं के लिए यह कहा जाता है कि एक दुल्हन शादी के जोड़े में अपने पति के घर जाती है और सफ़ेद कफ़न में उसके घर से निकलती है। इस देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा को सामान्य माना जाता है तथा इसे पारिवारिक मामला कह कर पुलिस के द्वारा भी नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसी वजह से घरेलू हिंसा किसी महामारी की तरह फैल गई है। ईरान में महिलाएं क़ानून की नज़र में भेदभाव का सामना करती हैं। वो शादी और तलाक़,पारिवारिक संपत्ति पर हक़,बच्चों पर हक़,राष्ट्रीयता और अन्य देशों की यात्रा में भी भेदभाव झेलती हैं। धार्मिक मामलों पर सख्ती का असर यह हुआ है कि देश के लोगों का आस्था पर विश्वास कम हुआ है। इससे डरे हुए शिया धार्मिक गुरुओं ने देश में नैतिकता के नाम पर लोगों पर बेतहाशा अत्याचार शुरू कर दिए है। इस्लामिक सत्ता लोक कल्याणकारी कार्यों को नजरअंदाज कर धार्मिक कार्यों पर बेतहाशा पूंजी को खर्च करती है। इसका विरोध करने वालों को ईरान विरोधी बताकर जेल में डाल दिया जाता है। देश में मानवाधिकार संगठनों को चुन चुन कर निशाना बनाया गया है जिससे यहां काम करने वाले गैर सरकारी संगठन खत्म हो गए है। मोरैलिटी पुलिस ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करने के नाम पर महिलाओं को निशाना बनती रही है। ईरान में धार्मिक सत्ता का रुझान इस बार पर है कि जो लोग इस्लामिक कड़े कानूनों के तहत् बर्ताव न करे,नास्तिकता की और बढ़े या अन्य धर्मों की और रुझान बढ़ाएं तो इसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है।
महिलाओं के साथ न पुलिस होती है न शासन व्यवस्था और न ही न्यायपालिका। फिर भी ईरानी महिलाओं के हौंसलों में कोई कमी नहीं है। ईरान के क़ानून के तहत,जो कि शरिया क़ानून पर ईरान की अपनी समझ पर आधारित है,के तहत महिलाओं को अपने बालों को हिजाब से ढंकना अनिवार्य है। इसके अलावा महिलाएं सिर्फ़ ऐसे ही ढीले-ढाले कपड़े पहन सकती हैं,जिसमें उनके बदन का फिगर ना दिखाई दे। ईरान की नैतिक पुलिस गश्त-ए-इरशाद के पास इन नियमों को सख़्ती से लागू करने की ज़िम्मेदारी है। उन लोगों को हिरासत में ले लिया जाता है जो सही से कपड़े नहीं पहनते हैं। अमीनी की मौत के बाद लाखों ईरानी महिलाएं हिजाब नियमों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आईं । ईरान में कई महीनों तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों के दौरान 600 से अधिक लोगों की मौत हुई है। इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें सरकार ने मौत की सज़ा दी है। प्रदर्शनों के बाद ईरान में बहुत सी महिलाओं ने पूरी तरह से हिजाब पहनना बंद कर दिया।
महिलाओं के हिजाब पहने का तरीका सुनिश्चित कर दिया गया है,फुटबाल के लिए जूनून से भरे इस देश में महिलाओं के स्टेडियम जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। ईरान में,शादी से पहले कौमार्य कई लड़कियों और उनके परिवारों के लिए बेहद अहम है। कई बार पुरुष वर्जिनिटी सर्टिफ़िकेट (कौमार्य का प्रमाण पत्र) मांगते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्जिनिटी टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ये अनैतिक है। फिर भी दुनिया के कई देशों में ये प्रचलित है,इनमें इंडोनेशिया,इराक़ और तुर्की भी शामिल हैं। ईरान में घरेलू हिंसा को पारिवारिक मामला समझा जाता है,लिहाजा अधिकांश महिलाएं घरेलू हिंसा को चुपचाप सहने को मजबूर है। ऑनर किलिंग को लेकर कोई पुलिस कार्रवाई नहीं की जाती। यहां तक की ईरान में धार्मिक पुलिस को व्यापक अधिकार दे दिए गए है,इसी का नतीजा है ईरान में महिलाओं और युवाओं का प्रदर्शन।
इस्लामी सहयोग संगठन,संयुक्त राष्ट्र के बाद चार महाद्वीपों में फैले 57 राज्यों की सदस्यता वाला दूसरा सबसे बड़ा संगठन माना जाता है। इसमें 48 मुस्लिम बहुल देश शामिल हैं। इसे यों तो मुस्लिम दुनिया की आवाज कहा जाता है.,लेकिन इसमें महिलाओं की आवाज लगभग खामोश कर दी गई है। ओआईसी ने अपना अधिकांश ध्यान सदस्य देशों के मध्य विवादों और युद्धों को सुलझाने पर केन्द्रित किया है। वे सदस्य देशों की आंतरिक स्थिति पर कभी चर्चा नहीं करते। यहीं कारण है की ईरान,अफगानिस्तान,सीरिया,ईरान जैसे देशों में महिलाओं पर खूब अत्याचार हो रहे है और युद्द जैसे हालातों में उन्हें सेक्स स्लेव बनाकर बेचा भी जा रहा है।
करीब नौ करोड़ की आबादी वाले देश में अधिकांश लोग ईरान की इस्लामी व्यवस्था,उसके अलोकतांत्रिक चरित्र और विचारधारा से जुड़ी नीतियों में बुनियादी बदलाव चाहते हैं। सुधारवादी आंदोलन का नेतृत्व देश की नौजवान पीढ़ी कर रही है। ये युवा दुनिया की तरह ईरान में स्वतन्त्रता चाहते है और धार्मिक नेताओं के आतंक से मुक्ति चाहते है। बदलाव का यह आंदोलन कुर्दिस्तान से लेकर तेहरान और पूरे देश में जोर पकड़ चूका है। ईरान में हिजाब न पहनने वाली महिलाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। पुलिसिया अत्याचार,गोली और फांसी की आशंकाओं के बीच महिलाएं हिजाब न पहन कर ये दिखाना चाहती है कि महिला,जिंदगी और आज़ादी अभियान अभी भी ज़िंदा है। ईरान जैसे हालात अफगानिस्तान में भी है। यहां शिक्षा और रोजगार से दूर करने के बाद तालिबान ने महिलाओं को कड़े नियमों से प्रभवित किया है। इनमें घर की दहलीज़ लांघने से पहले ख़ुद को हिजाब से ढकना और पति या किसी महरम के साथ ही बाहर निकलना शामिल है। इस्लामिक कानूनों के नाम पर महिलाओं को सरेआम कोड़े मारना या भरे बाज़ार पत्थरों से मारना यहां आम बात है। 8 साल की उम्र से ही लड़कियों को बुरखे से ढंक दिया जाता है।
इस्लामिक कानून का लागू होना इस बात पर पूरी तरह से निर्भर करता है कि जानकारों के गुण और उनकी शिक्षा कैसी है। अधिकांश धार्मिक गुरु पाकिस्तान के कट्टरपंथी मदरसों में शिक्षा पाते है और वे समावेशी विचारधारा को छोड़कर असमानता को पोषित करते है। यही कारण है कि पाकिस्तान के मदरसों से प्रभावित इस्लामिक धर्म गुरु जिस भी देश में जाते है वहां महिलाओं पर अत्याचार बढ़ जाते है। महिलाओं की जिंदगी नर्क बना दी जाती है और उनकी बेबसी,लाचारी और मजबूरियां बंद दरवाजे के पीछे कराहने की आशंका भी बढ़ जाती है। इन महिलाओं में दमन का विरोध करने का सामर्थ्य नहीं होता और जो आवाज उठाते है उन्हें युसूफ मलालाजई जैसे गोली मार दी जाती है या 20 साल की हदीस नफाजी की तरह हत्या कर दी जाती है। पाकिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों और मदरसों का प्रभाव एशिया से निकलकर अफ्रीका के कई देशों को भी अपनी जद में ले रहा है,इसका असर महिलाओं पर हिंसा के रूप में सामने आ रहा है। धार्मिक मान्यताओं में आम जन की आस्था के बरकरार रहने के लिए शासन व्यवस्थाओं की उदार प्रकृति अपरिहार्य है। जबकि इस्लामिक शासन व्यवस्थाओं ने धर्म को आधार बनाकर आस्था को थोपने की कोशिश की। लिहाजा कुछ देश टूट कर बिखर गए और अधिकांश देश गृहयुद्द की कगार पर पहुंच गए है।
किसी दौर में धार्मिक कट्टरता को लेकर पूरी दुनिया में पहचाने जाने वाला सऊदी अरब बदलाव की राह पर है। महिलाएं अकेली यात्रा कर सकती हैं,कार चला सकती हैं। अब यहां सिनेमा हॉल भी खुल रहे है और चेहरा ढंकने की सख्ती को भी शिथिल कर दिया गया है। महिला शिक्षा को लेकर सऊदी अरब में उदारता देखी जा रही है।
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