राष्ट्रीय सहारा
काउबॉय डिप्लोमेसी, कठोर जोखिम लेकर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करने का बदनाम तरीका मानी जाती है। मुक्केबाजी में हाथ आजमा चूके कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो,दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और अग्रणी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत से उनके देश के हितों की न तो रक्षा कर पा रहे है और न ही मुक्केबाजी के मूल नियमों को समझ पा रहे है। मुक्केबाजी में लक्ष्य क्षेत्र के बाहर मुक्का मारना नियम विरुद्ध माना जाता है वहीं कूटनीति में राष्ट्रीय हितों को दरकिनार करना गंभीर अपराध माना जाता है। ट्रूडो राजनयिक स्तर पर असंयत व्यवहार कर कनाडा की बहुलतावादी पहचान को तो खत्म कर ही रहे है,यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप को भी आतंकी खतरें में धकेल रहे है।
दरअसल कनाडा की संसद में पीएम ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी निज्जर की इस साल जून में हुई हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया है और कनाडा में रहने वाले एक शीर्ष स्तर के भारतीय राजनयिक को बर्खास्त कर दिया है। इसकी कड़ी प्रतिक्रिया भारत में होनी ही थी और भारत ने भी राजनयिक स्तर पर कड़े कदम उठाने में बिल्कुल देरी नहीं की। उत्तरी अमेरिकी देश कनाडा एक विशाल क्षेत्रफल वाला लोकतान्त्रिक देश है जहां भारतीय प्रवासियों की अच्छी खासी तादाद रहती है। नागरिक स्वतंत्रता और आर्थिक प्रगति के लिए पहचाने जाने वाला यह देश भारत के साथ कई वैश्विक मंचों को साझा करता है। वहीं भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानियों का विवाद भी कुछ कम नहीं है।
खालिस्तान आंदोलन को भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा मानता है। ऐसा माना जाता है कि इस आंदोलन से सहानुभूति रखने वाले सिख दुनिया भर में हैं,इनमें कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों से भारत को सख़्त आपत्ति है। कनाडा की आबादी तकरीबन चार करोड़ है जिसमें आठ लाख सिख है। कनाडा पृथकतावादी सिख होमलैंड खालिस्तान के समर्थकों के लिए महफूज ठिकाना रहा है। यह देश विदेशी अल्पसंख्यकों की पहली पसंद है और इसे सिखों का दूसरा घर भी कहा जाता है। भारत में सिख आबादी करीब ढाई करोड़ हैं और इसके बाद सबसे ज्यादा सिख कनाडा में ही रहते है। कनाडा में सिख समुदाय इतना प्रभावशील है कि पंजाबी कनाडा की संसद में तीसरी आधिकारिक भाषा है। कनाडा की राजनीति में सिखों का अच्छा खासा दखल है और इसमें कुछ खालिस्तानी भी शामिल है। 2015 में जब ट्रूडो प्रधानमंत्री बने तो उनकी कैबिनेट में कुल चार सिख मंत्री थे। सेंटर-लेफ्ट न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के जगमीत सिंह भी सिख ही हैं,ये ट्रूडो के बड़े राजनीतिक सहयोगी बताएं जाते है। जगमीत सिंह खालिस्तान की रैलियों में शामिल होते रहे है।
कनाडा और भारत के बीच द्विपक्षीय समझौते बेहद मजबूत रहे है जिन्हें ट्रूडो के कार्यकाल में बड़ी चुनौती मिल रही है। इसका प्रमुख कारण टूड़ो की खालिस्तानी नेताओं से प्रेम रहा है। वे अपने देश में रहने वाले खालिस्तानी नेताओं का विश्वास जीतने के लिए कनाडा की वैश्विक साख को शर्मसार करते रहे है। हाल ही में वे जी 20 की बैठक में भाग लेने नई दिल्ली आए तो भारत के प्रधानमंत्री के साथ रिश्तों में तल्खी साफ दिखाई दी। इसके पहले वे 2018 में जब भारत आये थे तब भी उनका कूटनीतिक व्यवहार बेहद असंयत था।
उस दौरान भी कनाडा में खालिस्तान के समर्थकों को गले लगाने के लिए बदनाम ट्रूडो भारत में भी अपने दामन को बचा नहीं पाएं थे। उनके डिनर रिसेप्शन की सूची में सिख अलगाववादी जसपाल अटवाल का नाम आने से भारतीय राजनीति में बैचैनी स्वभाविक थी।जब इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई तो स्वयं कनाडाई प्रधानमंत्री ने इस पर सफाई देते हुए अटवाल को अपने डिनर कार्यक्रम से दूर कर दिया था। लेकिन अलगाववादी अटवाल की छाया से कनाडा के प्रधानमन्त्री उसके बाद में भी बच नहीं सके। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैदराबाद हॉउस में उनकी मुलाकात चर्चित रही थी। जहां कनाडा के प्रधानमन्त्री ने भारत के साथ ऊर्जा तथा व्यापार के क्षेत्र में साथ मिलकर काम करने की बात कही और वाणिज्यिक सहयोग को लेकर भारत को कनाडा का एक विश्वस्त मित्र बताया,वहीं इसके उलट मोदी ने कनाडा को इशारों ही इशारों में अपनी नाराजगी जता दी। ट्रूडो के साथ हैदराबाद हाउस में मुलाकात के बाद संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन लोगों को कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए,जो अपने राजनीतिक मंसूबों के लिए अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं। मोदी ने बेहद तल्ख लहजे में यह कहने से भी गुरेज नहीं किया की,हम उन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे,जो हमारे देश की एकता के लिए चुनौती पैदा करते हों। भारतीय प्रधानमन्त्री ने ट्रूडो को चेताते हुए यह नसीहत भी दे डाली कि आतंकवाद भारत के साथ-साथ कनाडा जैसे देशों के लिए भी एक खतरा है।
यह भी दिलचस्प है की कनाडा और भारत की व्यापारिक भागीदारी अच्छी खासी है। कनाडा की 400 से अधिक कंपनियों की भारत में उपस्थिति है तथा एक हजार से अधिक कंपनियाँ सक्रिय रूप से भारतीय बाज़ार में कारोबार कर रही हैं। वहीं कनाडा में भी कई भारतीय कंपनियां काम कर रही है जो सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर,इस्पात,प्राकृतिक संसाधन और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
इन सबके बीच कनाडा से संतुलित रिश्ते भारत की आंतरिक सुरक्षा,सामरिक और आर्थिक जरूरतों के लिए बेहद जरूरी है। कनाडा में सिखों के हथियारबंद गिरोह की शुरुआत 1981 में हुई थी। कनाडा के सिख खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटर नेशनल को 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 कनिष्क में विस्फोट सहित भारत में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इसके समर्थक उत्तरी अमेरिका,यूरोप,दक्षिण एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक फैले है। जिस तरह ऑपरेशन ब्लू स्टार,1984 के सिख दंगे भारत समेत पूरी दुनिया में सिखों के लिए मुद्दे हैं,उसी तरह कनाडा में रह रहे सिखों के लिए भी ये बड़े मुद्दे हैं।
इस साल छह जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39 वीं बरसी पर कनाडा के ब्रैंपटन शहर में पांच किलोमीटर लंबी एक यात्रा निकाली गई थी। जिसमें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दिखाने वाली झांकी का आपत्तिजनक तरीके से प्रदर्शन किया गया था। भारत की कड़ी आपत्ति के बाद ट्रुडो ने खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शनों को अभिव्यक्ति की आजादी बताया था। इस समूचे घटनाक्रम के बीच कनाडा के पीएम का रुख भारत को लेकर इसलिए खतरनाक नजर आता है क्योंकि वे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंसा,अलगाववाद और आतंकवाद को सही ठहराने का प्रयास कर रहे है। अमेरिका,ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान समर्थक बड़ी तादाद में रहते है। इनके मजबूत संबंध पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से है। यदि ट्रुडो अपनी राजनीतिक हसरतों को पूरा करने के लिए खालिस्तानी आंदोलन को समर्थन दे रहे है तो भारत को भी कनाडाई नागरिकों और दुनिया के सामने उन्हें सरेआम करने से परहेज नहीं करना चाहिए।
Leave feedback about this