प्रेम,आदिवासियों से सीखिए…  
article

प्रेम,आदिवासियों से सीखिए…  

पॉलिटिक्स 

प्यार के आगे दुनिया भर की दौलत ठुकराने की कहानियां अब मुश्किल से ही सुनाई देती है। हम उस दौर में सांसे ले रहे है जहां जेब की बेबसी,रिश्तों के खत्म होने की गारंटी है, बस लाखों करोड़ों की दौलत बनाइए और फिर इससे भरपूर प्यार  कमाइए। लेकिन जंगल में रहने वाले आदिवासी आज भी भौतिकवादी फलसफों से दूर है और इसीलिए प्यार यहां पर जिंदा भी है और फलता फूलता भी खूब है। नक्सली हमलों के लिए कुख्यात बस्तर की कुछ सच्ची घटनाएं… ।

कहते है खूबसूरत लोगों के पास अक्सर खूबसूरत दिल नहीं होते लेकिन यदि दिल और इन्सान दोनों की खूबसूरती चाहिए तो दंडकारण्य आ जाइए। दरअसल छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में स्थित दंडकारण्य घने जंगलों से आच्छादित है,यहां रहने वाले आदिवासी भौतिकवादी नहीं है और शायद इसीलिए उनमें प्रेम की अभिलाषाएं है,एक दूजे के लिए अनंत समर्पण है,एक दूसरे पर गहरा विश्वास है और इन सबसे बढ़कर कभी साथ न छोड़ने की जिजीविषा भी है। इन घने जंगलों में अकेले महुआ बिनती महिला में अपने साथी के प्रति गहरा विश्वास ही उसकी असल ताकत होती है जो कहीं दूर शिकार की तलाश में दर दर भटकते हुए शाम को घर पहुंचता है। लेकिन इन सबमें एक दूसरे के प्रति सम्मान जनजातीय रिश्तों में प्रेम की ऊंचाई को दर्शाता है। यह भावनाएं कथित सभ्य समाज में ढूंढने से नहीं मिलती,यहां प्रेम की तलाश जेब के वजन से शुरू होती है और इसका अंत भी जेब पर जाकर खत्म हो जाता है।  यहां दिल से ज्यादा खूबसूरती दौलत और शोहरत की होती है। ऐसे में प्रेम कहीं पीछे छूट जाता है और इसे मुड़कर देखने वालों को इसकी फुर्सत भी नहीं होती।

दंडकारण्य पठार के अंतर्गत कांकेर,कोंडागांव,बस्तर ,बीजापुर,नारायणपुर और सुकमा आते है। ये इलाके नक्सल हिंसा के लिए बदनाम है,यहां आदिवासियों को आधुनिक बनाने और उनके जीने के तरीकों को बदलने की शहरी और सरकारी जद्दोजहद में खून तो बहता है  लेकिन प्रेम की कोमल भावनाएं भी खूब पल्लवित होती है। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले की केशकाल तहसील में सुरम्य एवं मनोहरी केशकाल घाटी राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर कोण्डागांव कांकेर के मध्य  स्थित है। केशकाल घाटी घने वन क्षेत्र,पहाडि़यों तथा खूबसूरत घुमावदार मोड़ों के लिए प्रसिद्ध है। कई घुमावदार मोड़ पथिकों के मन में उत्साह एवं रोमांच भर देते है। ये टेढ़े मेढ़े और घुमावदार रास्ते प्रेम का यह संदेश देते है की किसी भी मोड़ पर साथ मत छोड़िये,जिंदगी की खूबसूरती हर हाल में महसूस की जा सकती है। कोण्डागांव के विश्रामपूरी गांव में झिटकु मिटकी के प्रेम कहानी के कारण मड़ई मेला का आयोजन किया जाता है। यहां युगों युगों से झिटकु और मिटकी सच्चे प्रेम के प्रतीक है।  बस्तर अंचल के लोक जीवन में इनका इतना महत्व है की सजावट से लेकर सम्मान तक झिटकू मिटकी को प्रदर्शित करने वाले प्रतीक दिए जाते है।  यह दंत कथा परचलित है की झिटकू एक लड़का था और मिटकी एक लड़की। झिटकू को जब धोखे से मार दिया गया तो उसके वियोग में आकर मिटकी के जान दे दी थी। आज भी उनके मन्दिर में जाकर सच्चे प्रेम की कसम खाई जाती है।

जगदलपुर से 42 किलोमीटर दूर बस्तर और सुकमा जिले की सीमा पर दरभा विकासखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित झीरम घाटी में  25 मई 2013 को एक नक्सली हमलें में 32 लोग मारे गए थे जिसमें कई ख्यात नेता भी थे।  इस हत्याकांड को अंजाम देने वालों में सुखराम और कुंजामी मुन्नी का नाम भी शामिल था। सुखराम गोविन्दपाल का रहने वाला था जबकि मुन्नी चीतल नार की। झिरम घाटी से लगा कांगेर का इलाका और उड़ीसा के मलकानगिरी के खूबसूरत पहाड़ों के नीचे बसे ये गांव जनजातीय संस्कृति के प्रतीक है। सीआरपीएफ का एक बेस कैम्प सुकमा के सुदूरवर्ती इलाके कुमा कोलेंग में है जिसके दक्षिण पश्चिम दिशा में उड़ीसा के नक्सल प्रभावित मलकानगिरी की  कुख्यात पहाड़ियां है। इन इलाकों में नक्सल की कुख्यात बस्तर डिविजन प्रभावशील रही है। मलकानगिरी के कलेक्टर आरवी कृष्णा का नक्सलियों ने अपहरण फरवरी 2011 में किया था। इन जंगलों ने सुखराम और मुन्नी के बीच प्रेम को खूब देखा है। एक दौर ऐसा भी आया जब सुखराम और मुन्नी ने पुलिस के सामने  आत्म समर्पण का मन बना लिया था,जिससे ये दोनों नया और सुरक्षित जीवन यापन कर सके। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। मुन्नी को एक मुठभेड़ में सीआरपीऍफ़ ने मार गिराया जबकि सुरेश अब जंगलों की खाक छान रहा है।

इन घने जंगलों में अपने मृत साथी की याद को संजोने वाली लकड़ी की कई सुंदर आकृतियां स्मृति स्थल के रूप में मिल जाएगी जहां उनकी खटिया,साड़ी और कई यादें जस की तस रख दी जाती है। कहते है सच्चा प्रेम ढूंढने की जरूरत नहीं है,बस भरी दुपहरी में नंगे पैर किसी डगर पर चल पड़िए,शाम ढलते ढलते अकेले रह जाओगे। यदि फिर भी साथ न  छूटे तो यकीन मानिए,वह साथ किसी छांव का मोहताज नहीं है। बस उसे सुकून चाहिए और उस सुकून में ही प्यार है,यही सच्चे प्यार का संसार है। आदिवासियों का जीवन प्रकृति की निश्चलता, निर्भीकता,खूबसूरती और उन्मुक्कता से लबरेज़ होता है। प्यार को भी निर्भीकता, निश्चलता, खूबसूरती और उन्मुक्तता की तलाश होती है। यकीनन यह तलाश दंडकारण्य के जंगलों में खत्म हो जाती है,मानों असल प्रेम यहीं पलता और पल्लवित होता है।

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

 (सुकमा ग्राउंड जीरों,किताब के लेखक)

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X