सुबह सवेरे-बंटवारे के बाद की #शिक्षा से भारत बना और पाक हुआ तबाह
बंटवारे के साथ भारत की शिक्षा का भी बंटवारा हुआ। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने उच्च शिक्षा को लेकर अपनी अपनी नीतियां तय की। 1947 में ही मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के भविष्य को तय करने के लिए अलग अलग शिक्षा समितियां बनाई जबकी भारत में यह जिम्मा डॉ.राधाकृष्णन को दिया गया। पाकिस्तान में बनी शिक्षा समितियों की रिपोर्ट आने के पहले ही जिन्ना चल बसे,अत:पाकिस्तान की भविष्य की शिक्षा को लेकर कोई कार्ययोजना साकार हो ही नहीं सकी। हालांकि पाकिस्तान में शिक्षाविद इस बात पर एकमत थे कि खुले तौर पर इस्लामी शिक्षा पर जोर देने वाली प्रणाली बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों धर्मों के लिए समान रूप से हानिकारक होगी।
पाकिस्तान की शिक्षा राजनीतिक विरोधाभास में फंसकर मदरसा शिक्षा में उलझ गई। पाकिस्तान की एकल राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के तहत जारी की गई नई पाठ्यपुस्तकों में इस्लामी शिक्षा भाषाओं और सामाजिक विज्ञान सहित अनिवार्य विषयों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वहीं अन्य धर्मों की आलोचना करने से भी किताबों में परहेज नहीं किया गया है। वहीं भारत में शिक्षा को लेकर कोई भी विरोधाभास नहीं था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय शिक्षा को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए इसका उद्देश्य ज्ञान की खोज बताया तथा इसी दृष्टि से शिक्षा प्रणाली का विकास सुनिश्चित करने पर जोर दिया।
आजाद भारत में उच्च शिक्षा की बुनियाद रखने का जिम्मा डॉ.सर्वपल्ली राधा कृष्णन को दिया गया,जिसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्ण आयोग के नाम से भी जाना जाता है। इस आयोग ने कड़ी मेहनत और लगन से अपना दूरदर्शी 747 पृष्ठों का प्रतिवेदन तैयार कर 25 अगस्त 1949 को भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। देश के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर इस आयोग ने सुझाव दिया की विश्वविद्यालयों में इस प्रकार की उच्च कोटि की शिक्षा दी जाए जिससे यहां से निकलने वाले युवा देश को विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करें। आयोग चाहता था कि हमारे स्नातक विश्व स्तर के हो।
राधाकृष्णन आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा मे नेतृत्व निर्माण पर जोर देते हुए कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की आर्थिक,सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तनों ने हमारे विश्वविद्यालयों के कार्यों व उत्तरदायित्वों में वृद्धि कर दी है। अतः राजनीतिक,व्यवसायिक,औद्योगिक एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों में नेतृत्व ग्रहण कर सकने वाले व्यक्तियों का निर्माण करना चाहिए। इसके साथ भारत के महान आदर्शों और मूल्यों को सहेजने वाले तथा सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने हेतु राष्ट्रीय विरासत को अपनाने वाले और उन में योगदान देने वाले युवकों को तैयार करना चाहिए। विश्वविद्यालयों को प्रजातंत्र को सफल बनाने हेतु शिक्षा का प्रसार व ज्ञान की खोज कर सकने वाले व्यक्तियों को तैयार करना चाहिए। यह अनुभव किया गया कि विश्वविद्यालय समाज सुधार के कार्य में महान योगदान दे सकते हैं। अतः उन्हें दूरदर्शी, बुद्धिमान व बौद्धिक साहस वाले व्यक्तियों को उत्पन्न करना चाहिए। इसके साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य तथा जन्मजात गुणों के विकास पर जोर दिया गया।
भारत सरकार द्वारा 1948 में नियुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव के अनुसार 1953 ईस्वी में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई। सन 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा इसे वैधानिक संस्था स्वीकार कर लिया गया। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के पाठ्यक्रम संबंधी सुझाव में यह साफ किया गया की छात्रों के हित में सामान्य शिक्षा तथा विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था हो। इस प्रकार के हित में व्यक्तिगत,धनोपार्जन,श्रेष्ठ नागरिकता आदि सम्मिलित है। धार्मिक शिक्षा के लिए सभी धर्मों के मानवीय और महान गुणों को समान स्थान दिया गया,वहीं प्रोद्योगिकी,स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा को भी प्राथमिकता से आगे बढ़ाया गया। इसके साथ ही देश भर में उच्च कोटि के संस्थान अलग अलग क्षेत्रों में खोले गए। पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना कलकत्ता के पास स्थित खड़गपुर में 1950 में हुई। फिर 1958 को मुंबई, 1959 को मद्रास तथा कानपुर और 1961 मे नई दिल्ली में इसकी स्थापना हुई। इसी प्रकार 1994 में गुवाहाटी में आई आई टी की स्थापना हुई तथा 2001 में रुड़की स्थित रुड़की विश्वविद्यालय को भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दुनिया भर में उत्कृष्ट शिक्षा के लिए विख्यात है तथा यहां से शिक्षित युवा दुनिया भर के प्रतिष्ठित संस्थानों का नेतृत्व करते देखे जाते है। छात्र कल्याण कथा चरित्र निर्माण से संबंधित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझावों को देश भर के संस्थानों में लागू किया गया तथा डिग्री कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में योग्यता के आधार पर प्रवेश,योग्य व निर्धन प्रतिभावान छात्रों को निष्पक्ष रुप से छात्रवृत्तियां,स्वास्थ्य सुधार की सभी सुविधाएं नियमित रूप से देने,खेल कूद और व्यायामशालाओं की विद्यालयों में व्यवस्था के साथ देश में लोकतंत्र को मजबूत करने तथा युवा नेतृत्व को तैयार करने के लिए संस्था के प्रशासन में छात्रों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई। शिक्षा नीति को बेहतरी से लागू करने का फायदा देश के सभी नागरिकों को समान रूप से मिलने लगा तथा बिना किसी धार्मिक या वर्गीय भेदभावमुक्त युवा विभिन्न क्षेत्रों में देश का प्रतिनिधित्व करने लगे।
दूसरी और पाकिस्तान के मदरसों की शिक्षा से निकला आतंक का ताना बाना अब समूची दुनिया में दहशत का सबब बन गया है। अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति में आतंकवाद की प्रमुख शिक्षा और प्रशिक्षण स्थली पाकिस्तान को बताया गया है। अमेरिका समेत समूची दुनिया पाकिस्तान को आतंक की शरण स्थली के रूप में देखती है और उनके निशाने पर इस्लामिक शिक्षा के नाम पर कट्टरपंथ के पाठ पढ़ाते मदरसे है। पाकिस्तान के मदरसों के आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों के रूप में उभरने को लेकर वहां की सरकार गहरे दबाव में है लेकिन वे धार्मिक संगठनों पर लगाम लगाने में समर्थ नहीं दिखाई पड़ती। हाफिज सईद जैसे धर्मगुरु समाज पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मदरसों को आधुनिक शिक्षा से महरूम कर रहे है। यहीं नहीं आतंकी विचारधारा के प्रसार के लिए मस्जिद नेटवर्क,पैसे के लिए हवाला नेटवर्क,इस्लामी धर्मार्थ संस्थान और आधुनिकतम हथियारों से लैस आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों का जाल बिछाने में योगदान देने के लिए उन्हें आसानी से युवा मिले,इसलिए कट्टरपंथी ताकतें मदरसों का लगातार दुरूपयोग कर रही है।
मदरसों को लेकर विश्वव्यापी चिंता के बीच पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा भी अपने देश के मदरसों की शिक्षा पर तंज कसते हुए देश में तेजी से फैल रहे मदरसों और उनकी भूमिका को लेकर गहरी चिंता जता चुके है । पूर्व सेना अध्यक्ष के अनुसार ज्यादातर इस्लाम की शिक्षा देने वाले मदरसों की अवधारणा पर एक बार फिर ध्यान देना होगा। बाजवा ने यह स्वीकार करने से भी गुरेज नहीं किया की जिस प्रकार पाक में मदरसे काम कर रहे है उससे निकलने वाले मौलवी बनेंगे अथवा आतंकवादी। इस सदी में दुनिया भर में हुए आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़ने,पाक में आतंकी हमलों के बढ़ने और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाक में पिछले कुछ समय से मदरसे सरकार के निशाने पर रहे है। यह भी जानना जरूरी है कि पाक में सेना और आईएसआई ने मदरसों को आतंकी केन्द्रों में ढालने में महती भूमिका निभाई है और इसका दुरूपयोग भारत और अफगानिस्तान में कई आतंकी हमलों में भी किया है।इस सदी में हुए अधिकांश आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़ते रहे है और हमलावरों ने पाक के मदरसों में ही शिक्षा पाई है।
दरअसल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन मानते थे कि शिक्षा प्रणाली को सामाजिक व्यवस्था के उद्देश्यों को मार्गदर्शक सिद्धांतों के माध्यम से खोजना चाहिए। जिसके लिए वह खुद को उस सभ्यता की स्थिति के लिए तैयार करता है जिसे वह बनाने की उम्मीद करता है। उनका मानना है कि सामाजिक दर्शन स्पष्ट होना चाहिए। भारत और पाकिस्तान की युवा पीढ़ियों में अंतर उनके सामाजिक दर्शन को लेकर बढ़ता गया।
भारत में जहां ज्ञान को प्राथमिकता देकर विकास की यात्रा आगे बढ़ी वहीं धर्मांधता की शिक्षा में डूबा पाकिस्तान नाकाम देश बन गया। महात्मा गांधी कहते थे कि शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर,मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। काश,पाकिस्तान में शिक्षा का महत्व समझा गया होता और उसकी कमान डॉ.राधाकृष्णन जैसे किसी बिरले शिक्षाविद के हाथों में होती।
#ब्रह्मदीप अलूने
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