भूटान पर सामरिक संशय
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भूटान पर सामरिक संशय

जनसत्ता

शीर्ष राजनयिक स्तर पर विरोधाभास उत्पन्न करने वाली स्थिति से कोई भी मित्र राष्ट्र असहज हो सकता है। भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग और नरेश जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक के भारत और चीन से सम्बन्धों को लेकर जो कूटनीतिक मतभेद सामने आएं है वह हैरान और परेशान करने वाले है।

दरअसल भूटान के प्रधानमंत्री ने विस्तारवादी चीन के अतिक्रमण और सुरक्षा खतरों को काल्पनिक बताकर नजरअंदाज करने की कोशिश की है। वहीं भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक ने भारत के साथ परम्परागत सम्बन्धों को उच्च स्थान पर रखते हुए दोनों देशों के साझा राष्ट्रीय सुरक्षा हितों पर पांच सूत्री व्यापक रोडमैप पर आगे बढ़ने पर सहमति जताई है।  करीब डेढ़ दशक पहले भूटान में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हुए थे और इसके बाद वहां की लोकतांत्रिक सरकार और जनता का चीन को लेकर सकारात्मक रुख भारत की सामरिक  चिंताओं को बढ़ाने वाला है।

भारत और तिब्बत के बीच बसे भूटान को  भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए बेहद अहम माना जाता है।  देश की उत्तर पूर्वी राज्यों  को चीनी खतरे से दूर रखने के लिए सिलीगुड़ी गलियारे का बड़ा महत्व है और भूटान की भौगोलिक स्थिति उसे सुरक्षा कवच प्रदान करती है।  यही कारण है कि भारत भूटान से रिश्ते के  दायित्व को बेहद जिम्मेदारी से निभाता रहा है। आज़ादी के कुछ वर्षों बाद ही 1949  में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और किंग जिग्मे वांगचुक ने भारत भूटान के मध्य मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये थे जिसके अनुसार भूटान की सुरक्षा और विदेश नीति का संचालन भारत के हाथों में रहा। इस कारण भूटान और चीन के बीच कभी भी राजनयिक संबंध नहीं रहे।  लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां बदली है और अब भूटान की युवा पीढ़ी भारत पर निर्भरता को कम करने की बात कहने लगी है।

कुछ दिनों पहले भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग ने एक साक्षात्कार में भूटान की सीमा पर चीनी अतिक्रमण के तथ्यों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि डोकलाम एक अंतरराष्ट्रीय सीमा है और भूटान की जमीन पर कोई चीनी निर्माण नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री लोटे छृंग के इस बयान को भारत के लिए बेहद अप्रत्याशित माना गया क्योंकि 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर सैन्य तनातनी हुई थी। तब भूटान ने डोकलाम में चीन की ओर से सीमा पर अवैध निर्माण की शिकायत की थी।  यह क्षेत्र भारत,चीन और भूटान के त्रिकोण पर स्थित है। चीन यहां नये निर्माण की कोशिश कर रहा था,जिसे भारतीय सेना ने रोक दिया था। खंजर के आकार की चुम्बी घाटी का डोकलाम पठार रणनीतिक रूप से  भारत के लिए बेहद अहम रहा है। यह इलाका भारत,भूटान और चीन की सीमाओं के लिए चौराहे जैसा है।

भारत और चीन के बीच के  दो अहम दर्रे,नाथू-ला और जेलप-ला यहां खुलते हैं। इसके पतले आकार और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ही इस गलियारे को भारत का चिकन्स नेक कहते हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित यह गलियारा भारत की मुख्यभूमि को उसके उत्तरपूर्वी राज्यों से जोड़ता है। भारत ने यहां सड़क निर्माण पर आपत्ति जताते हुए कहा  था कि यहां सड़क बनाने की योजना चीन की भारत को घेरने की  सामरिक रणनीति का हिस्सा है। भारत को चिंता  थी कि इस सड़क का काम पूरा हो गया तो देश के उत्तर पूर्वी राज्यों को देश से जोड़ने वाली  बीस किलोमीटर चौड़ी कड़ी यानी मुर्गी की गरदन जैसे इस इलाके पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी। ये वही इलाका है जो भारत को सेवन सिस्टर्स नाम से जानी जाने वाली उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ता है और सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है।

भारत तीन दिशाओं में दक्षिण,पश्चिम और पूर्व में भूटान के लिए सीमा बनाता है जबकि उत्तर में भूटान की सीमाएं चीन से लगी हुई है। भूटान भारत और चीन के बीच  रणनीतिक रूप से एक बफ़र देश है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपने भू रणनीतिक स्थान के कारण भूटान भारत के लिए बेहद अहम है। भारत भूटान को बड़े पैमाने पर आर्थिक,सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है। भारत की तरफ़ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ अपने इस पड़ोसी देश को ही मिलता है। भूटान में  सैकड़ों भारतीय सैनिक तैनात हैं और वे भूटानी सैनिकों को  प्रशिक्षण भी देते है।  हालांकि चीनी प्रभाव से अब स्थितियां बदल रही है। भूटान की युवा पीढ़ी भारत और चीन से समान संबंध रखना चाहती है और वे इन दोनों देशों के विवादों से दूरी बनाएं रखने की पक्षधर है।

2021 में भूटान और चीन ने एक थ्री स्टेप रोडमैप को लेकर हुआ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। जिस पर चीन ने दावा किया था कि सीमा निर्धारण को लेकर बातचीत की रफ़्तार तेज़ करने और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को स्थापित करने में मदद करने में अर्थपूर्ण भागीदारी आगे बढ़ेगी। वहीं भूटान ने भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की और प्रतिबद्धता जताई थी। चीन की भूटान से विवाद समाप्त करने की इन  कोशिशों को भारत के लिए एकतरफा और नई सुरक्षा चुनौती समझा गया।

यह भी दिलचस्प है कि माओ की नीति के अनुसार सम्पूर्ण भूटान चीन का भाग समझा जाता है। वहीं चीन के आक्रामक इरादों को भांपते हुए भारत ने भूटान की सुरक्षा कर यह सुनिश्चित किया हुआ है कि चीन किसी भी तरह इस देश पर कब्जा नहीं जमा सके।   इन सबके बाद भी भूटान चीन से जो समझौते कर रहा है,वह भारत और भूटान दोनों के लिए संकट बढ़ाने वाले है। भूटान चीन से जमीन का आदान प्रदान करने की नीति पर आगे बढ़ रहा है और यह स्थिति भारत को असहज  करती है। चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद किसी से छुपा नहीं है। चीन भूटान को सहायता की कूटनीति के जाल में फंसाकर सीमा विवाद को भी हल करना चाहता है जिससे भारत पर उसे रणनीतिक बढ़त मिल सके। वह डोकलाम अर्थात्  भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा लेकर बदले में भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों  के इलाके से अपना दावा छोड़ना चाहता है। चीन जो इलाक़ा भूटान से मांग रहा है,वो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर,जिसे चिकन्स नैक भी कहा जाता है। यह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण जो उसे पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ता देता है। अगर चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक पहुंचने में यदि कामयाब हो जाएं तो भारत की पूर्वोत्तर की सीमा पर सुरक्षा संकट गहरा सकता है। चीन इसके बाद चुंबी घाटी तक रेल लाईन बिछा सकता है। चीन के पास पहले से ही यातुंग तक रेल लाइन की योजना है और यातुंग चुंबी घाटी के मुहाने पर है।

दूसरी और भूटान को चीन के प्रभाव से बचाएं रखने की कोशिशों  में भारत ने कोई कमी नहीं रखी है। भारत के उत्तर पूर्व के प्रमुख सहयोगी राष्ट्र भूटान से मजबूत सम्बन्ध रहे है। भूटान को मिलने वाली विदेशी सहायता तथा वहां पहुंचने वाले निवेश में सबसे बड़ा योगदान भारत का ही होता है तथा भारत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। भूटान भारत के सहयोग और निवेश से बिजली पैदा करता है और उसे भारत को बेचता है,जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का  चौदह फीसदी है। भारत तीन दिशाओं में दक्षिण,पश्चिम और पूर्व में भूटान के लिए सीमा बनाता है जबकि उत्तर में भूटान की सीमाएं चीन से लगी हुई है। भूटान के कई इलाकों पर चीन दावा जताते हुए उसे दबाव में लाने की कोशिशें करता रहा है।

यह तथ्य सामने आये है कि चीन ने भूटान में उत्तरी,पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी सीमा के भीतर अपने गांव बसा लिए है। चीन ने तीन  गांव भूटान की उत्तरी सीमा के मिड-सेक्टर में बनाए हैं। दो  गांव भूटान के लुहेंत्से इलाक़े उत्तर-पूर्व में हैं और बाक़ी के  पांच  गांव पश्चिमी सीमा के भीतर हैं। 2020 में वैश्विक पर्यावरण  सुविधाओं पर आधारित एक बैठक में चीन ने यह दावा कर सबको अचरज में डाल दिया था कि पूर्वी भूटान में स्थित सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य को किसी अंतराष्ट्रीय परियोजना में इसलिए शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि यह चीन और भूटान के बीच एक विवादित क्षेत्र है। चीन ने भूटान के जिस क्षेत्र पर दावा किया था वह इलाका भूटान की पूर्वी सीमा पर स्थित अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले  को   छूता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को अवैधानिक रूप से दक्षिणी तिब्बत बताता रहा है।

भूटान एक छोटा सा देश है और उसमें चीन से निपटने का बिल्कुल सामर्थ्य नहीं है। इसके बाद भी भूटान का एक तबका चीन से राजनयिक संबंध बढ़ाने की बात कहता है और यह आरोप लगाता है कि भारत उनके देश  में अनुचित तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। दक्षिण एशिया में भूटान एकमात्र ऐसा देश है जिसका चीन के साथ कोई कूटनीतिक संबंध नहीं है। कभी भारतीय नागरिकों के लिए भूटान जाना अपने ही घर में जाने जैसा होता था,लेकिन अब ऐसा नहीं है।  भूटान की सरकार भारतीयों के भूटान आने पर एसडीएफ़ यानि पर्यावरण संरक्षण के नाम से हर दिन बारह सौ रुपए का शुल्क लेती है।  कोविड के  चलते दुनियाभर के पर्यटकों  के लिए जब यह नये नियम लागू किये गए तो भारत को इससे अछूता नहीं रखा गया।

इस समय भूटान में भारतीय सुरक्षाबल है और वे सुरक्षा के साथ ही भूटानी सैनिकों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। भूटान का सैनिक हेडक्वॉर्टर हा नामक शहर में है जो डोकलाम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इससे साफ है कि भूटान में भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत है और चीन इसे बाधित करने के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है।

हाल ही में भारत यात्रा के दौरान  भूटान नरेश ने भारत-भूटान सीमा पर पहली एकीकृत जांच चौकी स्थापित करने के साथ पेट्रोलियम,उर्वरक और कोयला  के क्षेत्र में द्विपक्षीय साझा व्यापार बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ने के संकेत दिए है। भूटान नरेश के भारत से संबंध मित्रवत ही रहे है और अभी तक यह भारत के लिए बहुउपयोगी भी रहा है। लेकिन  लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद भूटान की राजनीतिक परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आ रहे है। जाहिर है दक्षिण एशिया का एक और पड़ोसी देश भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा रहा है।

#ब्रह्मदीप अलूने

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