अपमान पर अभिव्यक्ति की गांधीय संकल्पना
article गांधी है तो भारत है

अपमान पर अभिव्यक्ति की गांधीय संकल्पना

सुबह सवेरे

बापू हिन्दुस्तान की महान परम्परा के यकीनी तौर पर नुमाइंदे थे,यह परम्परा थी,संन्यास की और त्याग की। गुलामों के प्रति बर्बरता,अन्याय,शोषण और अत्याचारों में रमे पश्चिमी समाज के लिए गांधी एक कौतुहल थे। लोग गांधी से मिलना तो चाहते थे लेकिन उन्हें अपमानित करके वे भारतीय समाज का आत्मविश्वास तोड़ने का कोई मौका भी नहीं छोड़ते थे। हालांकि बापू को हिन्दुस्तानियों की स्थिति गुलामी की बिल्कुल नहीं लगती थी,वह इसे अंग्रेजी शासन व्यवस्था का दोष मानते थे। वे यह भी मानते थे कि ऐसा दोष प्रेम से ही दूर किया जा सकता है। इन सबके बीच पश्चिम में कोई बापू को ब्रिटिश बीफ खाने की सलाह देता था तो कोई उन्हें बौना,छोटे बन्दर सरीखा इन्सान या कुरूप कहता था। एक ब्रिटिश अख़बार ने गांधी पर निशाना साधते हुए लिखा,गांधी एक राजद्रोही नेता है जो अहिंसा से विरोध और शांति की बात कहते हुए भीड़ को दंगों और खून खराबे के लिए उकसाता है। वह अशिक्षित भीड़ की बातें अपमानजनक तरीके से करता है जो मूर्खता के सागर में डूबी होती है और लोगों की नस्लीय भावनाओं को गांधी पागलपन की हद तक उकसाता है। ग्लासगों हेराल्ड ने लिखा,कौन है बदमाश गांधी।

 

 

महात्मा गांधी अपने अपमान की कोशिशों के स्वयं गवाह थे,पर उन्होंने उसके प्रतिकार के लिए कभी गुस्से या नफरत का इजहार नहीं किया। बापू को एक बार पेरिस में एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया। बापू को जिस स्थान पर भाषण देना था,उसका चयन जानबूझकर उन्हें मजाक बनाने की दृष्टि से किया गया। यह एक डांसिग हॉल था और कोई दो हजार लोग श्रोता के तौर पर बैठे थे। महिलाएं लाल स्कर्ट्स और चमड़े के बूट पहनकर आई थी। सर्कस नुमा और दुधिया रोशनी का यह माहौल इस महान नेता के बिल्कुल अनुकूल नहीं था लेकिन इससे अविचलित गांधी ने यहां पर शांति और अहिंसा की बात की।

 

इटली में पोप से गांधी का मिलना इसलिए नहीं हो सका क्योंकि धर्मगुरु गांधी की भारतीय पोशाक को नाममात्र के वस्त्र बता रहे थे और यह उनकी गरिमा के प्रतिकूल समझा गया। ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने लन्दन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के लिए एक भोज का आयोजन किया। इसके आमन्त्रण पत्र पर साफ लिखा हुआ था की मेहमान मार्निंग ड्रेस पहनकर ही आयें। भोज में ब्रिटिश सम्राट के शामिल होते ही सभी मेहमान पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो गये। ब्रिटिश सम्राट और महारानी ने उनसे एक एक करके हाथ मिलाया। जब गांधी का नम्बर आया तो ब्रिटिश सम्राट अवाक् रह गये,गांधी पारम्परिक भारतीय पोशाक धोती और चप्पल पहने हुए ही थे। तब तो ब्रिटिश सम्राट ने कुछ नहीं कहा लेकिन बाद में गांधी ने देखा की सम्राट उनकी और अंगुली दिखाकर मेहमानों से कुछ कह रहे है। बापू ने इस पर मुस्कुरा कर अपनी अभिव्यक्ति दी। ब्रिटिश सम्राट के सेक्रेटरी बापू की विनम्रता पर नजर रखे हुए थे और वे उनके उत्कृष्ट व्यवहार से लाजवाब हो गये। बाद में उन्होंने एक लेख लिखकर बापू के आध्यात्मिक प्रभाव को सराहा।

 

 

गांधी ब्रिटिश साम्राज्य को जिस भयमुक्त तरीके से चुनौती देते थे,वह ब्रिटिश अधिकारियों के लिए बेहद असहज करने वाले कृत्य थे। लेकिन बापू से मिलकर उनकी सोच में बदलाव भी आ जाता था। बापू जब लन्दन में थे तो कई लोग उनसे कौतूहलवश मिलने आ जाया करते थे। न्यूयार्क के पादरी जॉन हेंस होम्स,उस समय बर्लिन में थे। उन्होंने सुना की गांधी लन्दन आ रहे है तो वे भी लन्दन आ गये। बाद में उन्होंने लिखा की कौन कहता है की गांधी कुरूप है,ये बात सच है की गांधी की कद काठी कोई खास आकर्षक नहीं है। सिर मुंडा हुआ,कान लटके हुए,होंठ मोटे और मुंह में दांत नहीं है। लेकिन इसके बावजूद वे शाल ओढ़े हुए आकर्षक लगते है और उनका व्यक्तित्व सुबह के सूर्योदय के समान सुंदर प्रतीत होता है।

अपमान को लेकर गांधी का नजरिया बेहद साफ था,वे उद्देश्य के प्रति गम्भीर थे,अड़चनों को वे समय के साथ खत्म होने वाली प्रक्रिया मानते थे। मसलन अहमदाबाद में जहां गांधी का आश्रम था,वहां कुएं से पानी को भरने को लेकर अन्य लोगों का व्यवहार बेहद खराब था। ये लोग आश्रम की समावेशी विचारधारा और समरसता की कोशिशों को धर्म भ्रष्टता की तरह देखते थे। गांधी ने अपने सहयोगियों से साफ कहा था कि,इस अपमान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत नहीं है। चुपचाप गालियां सहते जाओं और पानी भरते रहो। सारे भड़कावें के बावजूद जब प्रतिक्रिया नहीं हुई तो गालियां बंद हो गयी। ऐसा करने वाले स्वयं शर्मिंदा हो गये।

 

महात्मा गांधी ने भारत में अपना पहला सत्याग्रह चंपारण के मोतिहारी से ही शुरू किया था। गांधी ने जिस चंपारण से सत्याग्रह शुरू किया,वहां कुछ समय गांधी की आदमक़द मूर्ति को असामाजिक तत्वों ने तोड़ा था। गांधी जी की प्रतिमा पर शराब के रैपर की माला पहनाई गई और सिंदूर लगा दिया गया। इससे पता चलता है कि यहां बैठकर लोग शराब पीते होंगे। बापू,परलोक से भी इस पर मुस्कुरा कर नशा छोड़ने का संदेश दे रहे होंगे। वे अपने अपमान से कभी चिंतित या प्रभावित नहीं होते थे बल्कि वे यह विचार करते थे की उनकी अच्छाई के सिद्धांत में कोई कमी रह गई होगी।

1893 में महात्मा गांधी को दक्षिण अफ़्रीका के नगर पीटरमैरिट्ज़बर्ग में एक रात एक गोरे ने फ़र्स्ट क्लास के रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से धक्के मारकर उतार दिया गया था। अश्वेत होने पर बापू का यह अपमान,बापू की शक्ति बन गया और मानवीय गरिमा के उनके आंदोलनों की शुरुआत भी यहीं से हुई। दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारित्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई इस घटना के 125 साल पूरे होने पर इसकी याद में होने वाले समारोह में यहां स्टेशन के प्लेटफॉर्म तथा ट्रेन के डिब्बों को खादी से सजाया गया। दरअसल बापू ने अपने अपमान के बाद कथित कालों के अधिकारों के लिए जिस आंदोलन की शुरुआत की थी,उसने दक्षिण अफ्रीका के कालों की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त कर दिया. श्वेत लोगों से निपटने का सामर्थ्य दक्षिण अफ्रीका के कालेन लोगों में नहीं था और वे गुलामों का जीवन जीने को मजबूर थे. लेकिन बापू ने उन्हें अपमान का हिंसक प्रतिरोध का आध्यात्मिक तरीका सिखाया जिस पर चलकर नेल्सन मंडेला ने आज़ाद और समावेशी दक्षिण अफ्रीका की बुनियाद तैयार की।

भारत में किसान आंदोलन के दौरान विश्व के अन्य देशों में भी इसे समर्थन दिया गया। अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में किसान आंदोलन के समर्थकों ने वॉशिंगटन डीसी में प्रदर्शन के दौरान गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया तो अमेरिकी प्रशासन ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम महात्माो गांधी का सम्माशन करते हैं। महात्माए गांधी ने सदैव शांति,न्यावय और आजादी के लिए संघर्ष किया।उनके यह मूल्यक अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों से मेल खाते हैं। बापू के मूल्यों का अमेरिका सम्माान करता है।

दरअसल सभ्यता के उद्भव और विकास के साथ मानवीय गरिमा को लेकर हजारों सालों से हिंसक युद्द होते रहे और इसने मानव सभ्यता का इतिहास ही रक्तरंजित कर दिया। राज सत्ताओं ने शीर्ष गरिमा के परिपालन में लाखों लोगों को मार डाला तो अपमान की पीड़ा सांस्कृतिक और नस्लीय टकराव का कारण बनती रही। मानव इतिहास में महात्मा गांधी संभवतः एकमात्र ऐसे राजनीतिक व्यक्ति हुए जिन्होंने अपमान पर शांति और विनम्रता की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति देकर करोड़ों लोगों को हिंसा के मार्ग से दूर कर दिया। यह गांधीय संकल्पना ही है कि दुनियाभर में मानवीय अधिकारों और आज़ादी के लिए हिंसक आंदोलन से ज्यादा प्रभावी शांतिप्रिय आंदोलन होते है। यह मानवीय सभ्यता को बचाएं रखने में गांधी के अमूल्य योगदान को दर्शाता है।

 

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
(गांधी है तो भारत है,किताब के लेखक)

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