राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
आतंकवादी हमलों की धमकी और अफवाह से निपटने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण से युक्त सुरक्षा तंत्र को विकसित करने की कोशिशों के बीच आंतरिक सुरक्षा को लेकर अंदेशों का बढ़ना नये खतरों के संकेत दे रहा है। पिछले कुछ महीनों में देश के अलग अलग क्षेत्रों,हवाई जहाज़ और ट्रेनों पर आतंकी हमलों की आशंकाओं को लेकर आतंकी समूहों के द्वारा अफवाहों का उपयोग एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है जिससे समाज में डर और भ्रम बढ़ने के साथ इसका उपयोग आतंकवादी समूहों के उद्देश्यों को साधने के लिए भी किया जा सकता है। इसे मनोवैज्ञानिक युद्ध की रणनीति भी कहा जा सकता है जो आतंकवाद के मनोविज्ञान से जुड़ी है और इसमें स्लीपर सेल का उपयोग स्थिति को जटिल बना देता है। करीब ढाई दशकों से भारत में आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने प्रभावी खुफिया नेटवर्क और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र को विकसित करके देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत किया है। एनआईए की प्रभावशीलता और कार्यक्षमता उल्लेखनीय परिणाम देने में सक्षम रही है और आम जन में सुरक्षा व्यवस्थाओं के प्रति विश्वास भी बढ़ा है।
वहीं स्लीपर सेल,सुरक्षा एजेंसियों के लिए अबूझ पहेली ही रही है,इसके अनेक कारण है। स्लीपर सेल या नींद में रहने वाले सेल आतंकवादी या अपराधी समूहों का एक ऐसा नेटवर्क होता है जो आमतौर पर सामान्य जीवन जीते हैं और खास समय का इंतजार करते है। इनकी गुप्त पहचान होती है और जब कोई अवसर आता है या आदेश मिलता है तो वे अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सक्रिय होते हैं। स्लीपर सेल के सदस्य अक्सर गुप्त तरीके से एक दूसरे के साथ संपर्क में रहते हैं,जिससे किसी को भनक नहीं लगती और वे अपनी योजना पर आगे बढ़ते रहते है। इसमें स्थानीय लोग शामिल हो सकते है जिससे देश,काल और स्थितियां समझने में आसानी होती है तथा आवश्यक जानकारी और समर्थन भी मिल जाता है। स्लीपर सेल के पास हथियार, विस्फोटक और अन्य उपकरण उपलब्ध होते है जिससे मौका मिलते ही वे हमलों के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं या पहले से प्राप्त कौशल का अभ्यास कर सकते हैं।
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