कैदियों की दुश्वारियां कम नहीं
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कैदियों की दुश्वारियां कम नहीं

राष्ट्रीय सहारा

  

 

दुनिया में नीदरलैंड एक अनोखा देश है,जहां जेलों में कैदियों को सजा देने के बजाय उनका मनोवैज्ञानिक तरीके से इलाज किया जाता है और उनके दिमाग में बैठे अपराधिक प्रवृति को खत्म किया जाता है। इसका असर यह हो रहा है कि अब देश में अपराध बहुत कम हो गए है और कैदियों की आपराधिक मनोवृति में भी तेजी से कमी आ रही है। नीदरलैंड में जेलें बंद कराने की नौबत आ गई है और ऐसे में सरकार द्वारा यह अनोखा प्रबंध किया गया की पड़ोसी देश नार्वे,नीदरलैंड की जेलों का उपयोग करें,उसका किराया दे तथा उसका संचालन करें। जिससे आवश्यकता पड़ने पर नीदरलैंड अपने कैदियों को वहां रख सके और उसका खर्च भी बच सके।

लेकिन नीदरलैंड की जेलों की सुधार पद्धति को दुनिया के अन्य देश अपनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते।  दुनिया के लिए  कारागार,बन्दीगृह या जेल,दरअसल काले कारावास का प्रतिबिम्ब होता है। यहां हिरासत के नाम पर उत्पीड़न का भयानक मंजर होता है और इसके बाद ऐसा वीभत्स व्यवहार होता है की कैदियों की रूह कांप जाएं। यह भी दिलचस्प है की एशिया,अफ्रीका से लेकर विकसित यूरोप तक जेलों के हालात लगभग एक जैसे है। इन जेलों में सुधार से ज्यादा इस तथ्य पर विचार किया जाता है की कैदियों से कितना भीषण अमानवीय व्यवहार किया जा सके,जिससे या तो वे आत्महत्या कर ले,अथवा एक बार जिंदा बाहर जाने के बाद कभी लौट कर आने का साहस ही नहीं कर पाएं।

यूरोपीय संघ के हर तीसरे देश की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी रखे गए हैं। ब्रिटेन का उदार लोकतंत्र दुनिया को लुभाता है,लेकिन उसकी जेलों की हकीकत बद से बदतर है। दुनिया और मानवाधिकार संगठनों को दिखाने के लिए इन जेलों में कैदियों को हर माह अपने पार्टनर से मिलने के लिए कुछ घंटे एकांत में दिए जाते है। निजता के नाम पर गंदा बिस्तर और गंदी टायलेट होती है। बाहर कैदी चिल्लातें है और अश्लील टिप्पणियां करते है। माहौल इतना भयभीत करने वाला होता है की कोई भी कैदी अपने पार्टनर के साथ जेल में ऐसे एकांत में मिलने का साहस ही नहीं जुटा पाता।

आमतौर पर यह माना जाता है की जेलें,सुधारगृह है जहां से वापस लौटने के बाद बेहतर जिंदगी की शुरुआत की जा सकती है। लेकिन जेल के अंदर का माहौल किसी को अपराधी बना सकता है। अफ़्रीका महाद्वीप के सबसे छोटे देशों में से एक  रवांडा,बहुत खूबसूरत  देश माना जाता है,पर यहां के जेल उतनी ही कुख्यात मानी जाती है। रवांडा में स्थित गिटारमा सेंट्रल जेल,कैदियों से व्यवहार के लिए दुनियाभर में बदनाम है। यहां क्षमता से बीस गुना ज्यादा कैदियों को रखा जाता है। गिटारमा जेल में कैदी कम होने के कारण अपना समय जगह अधिकतर खड़े होकर ही बिताते हैं।  तनाव इतना बढ़ जाता है कि कैदी अक्सर आपस में झगड़ते रहते हैं और जिंदा रहने के लिए कैदियों को मार कर उनके शवों को ही खा जाते हैं।  यहां के हालात इतने भयावह है कि गिटारमा जेल में रोज़ाना सात आठ कैदी दम तोड़ देते है।  यहां पर कैदी अधिकतर नंगे पांव रहते हैं और  भयानक  बीमारियों की चपेट में आ जाते है।

महाशक्ति अमेरिका के अटलांटा प्रांत में स्थित फुल्टोन जेल की एक घटना इस साल जब सामने आई तो दुनिया हैरान रह गई। दरअसल 35 साल के लाशॉन थॉम्पसन  को मारपीट के आरोप में जून 2022 में गिरफ्तार कर यहां की जेल में रखा गया था।  हाल ही में उनकी जेल में मौत हो गई। मेडिकल एक्जामिनर ऑफिस की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि थॉम्पसन के शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं था बल्कि उनके शरीर को खटमलों और दूसरे कीड़ों ने खाया हुआ था। जेल की गंदगी को उनकी मौत की वजह बताया गया है।

जाहिर है जेल में रहने वाले खटमल और कीड़े एक जिंदा आदमी को खा गए। गौरतलब है कि अमेरिका में निजी कंपनियां जेल चलाती हैं। इन जेलों में जितने ज्यादा कैदी होंगे,कंपनियों को सरकार से उतना ज्यादा फायदा होगा। जेलों का 80 फीसदी काम इनमें रहने वाले कैदियों से करवाया जाता है। इसमें साफ-सफाई,मरम्मत कार्य,कपड़े धोने जैसे काम शामिल हैं। इसके अलावा बाहर की कंपनियां भी जेलों को टेबल-कुर्सी समेत अन्य सामान बनाने का ठेका देती हैं। यह भी जेल में बंद कैदियों से बनवाए जाते हैं। जो काम करने से मना कर देते हैं तो उन्हें कोठरी में अकेले बंद कर दिया जाता है। कई बार तो परिवार से भी नहीं मिलने दिया जाता। अमेरिका की हकीकत यह भी है की यहां की अधिकांश जेलों में शाकाहारी भोजन की सुविधा ही नहीं है और सबको जबरन मांस खाना पड़ता है। सैन क्वेंटिन संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे प्रसिद्ध जेलों में से एक है। यह पुरुषों के लिए एक सार्वजनिक जेल है। यहां पर मौत की सजा देने के लिए गैस चैम्बर या फिर लीथल इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। जेल में सुविधाएं काफी खराब हैं और कैदियों के बीच में हिंसा के कई मामले आए दिन होते ही रहते हैं।

साम्यवादी चीन और रूस की की जेलों में इंसानियत को रोज रौंदा जाता है। रूस की पेटक आइलैंड जेल दुनिया भर में कुख्यात है। इस जेल में गम्भीर अपराध  वाले कैदियों को रखा जाता है। यह स्थान दुनिया भर से अलग थलग है। केवल दो छोटे लकड़ी के पुल द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ते हैं। कैदी छोटे समूह,एकल कक्ष  या पिंजरों में कई घंटे अकेले रहते है।  वर्ष में सिर्फ एक बार ही लोग यहां पर कैदियों से मिलने आते हैं। इसी कारण से इस जेल को मनोवैज्ञानिक रूप से असहनीय माना जाता है और अधिकांश कैदी पागल होकर मर जाते है।

चीन के पश्चिम में देश के सबसे बड़ा प्रांत शिनजियांग की जेल विगर मुसलमानों का कत्लगाह है,जबकि चीन इसे सुधार गृह बताता है। कैदियों को सोने नहीं देते,कई घंटों तक लटका कर रखा जाता है। चमड़ी में सूइयां चुभाई  है और नाख़ून नोचे जाते है। टॉर्चर का सारा सामान  कैदी के सामने टेबल पर रखा जाता है ताकि  वह ख़ौफ़ज़दा  रहे। यहां कैदियों को अक्सर दूसरे लोगों के चीखने की आवाज़ सुनाई देती  है।

थाईलैंड बौद्ध देश हैं। यहां एशिया और अफ्रीका के लगभग सभी वन्य जीवों को देखा जा सकता है। दुनियाभर से लाखों पर्यटक थाईलैंड की सुन्दरता निहारने आते है। वहीं यहां की जेलें अमानवीयता की हदें पार करने के लिए दुनियाभर में कुख्यात है। गंभीर अपराध वाले सभी कैदियों को शुरू के तीन महीनों के लिए लोहे से बनी जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता है और उनको खाने में सिर्फ एक कटोरा चावल का सूप या एक कटोरा चावल दिया जाता है। यहां पर कैदी अधिकतर कुपोषण की वजह से अपनी जान  गंवा देते हैं।

तुर्की की डायारबाकिर जेल अधिकतम मृत्यु दर के लिए जानी जाती है। यहां पर कैदियों को विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं जैसे मानसिक,शारीरिक इत्यादि। इतना ही नहीं उनका यौन शोषण भी किया जाता है।  कैदियों द्वारा खुद को आग लगाने तथा हफ्तों तक भूख हड़ताल करने की घटनाएं यहां होती रहती है। यहां तक  की कुछ कैदियों ने ऐसी क्रूर यातनाओं से बचने के लिए आत्महत्याएं भी की हैं।

इंडोनेशिया के जकार्ता  प्रांत की तांगेरांग जेल में ड्रग्स के आरोपियों को रखा जाता  है. यहां गैंगवार वार से लेकर हत्याएं होती रहती है। इंडोनेशिया में जेल ब्रेक और आग लगने की घटनाएं आम बात हैं। यहां पर ज्यादातर जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखा गया है। फंडिंग की समस्या और ड्रग्स क्राइम में बहुत ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी की वजह से हालात बदतर होते जा रहे हैं।

इस्लामिक देश ईरान,सऊदी अरब, सीरिया,कतर में तो कैदियों के सही हालात कभी बाहर आ ही नहीं पाते। यहां पर न तो मानवाधिकार संगठनों को जाने की इजाजत है और न ही किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त किया जाता है। जेल में ही राजनीतिक बंदियों  को तड़पा तड़पा कर मार दिया जाता है  और इसकी खबर भी कभी परिजनों को नहीं दी जाती। उत्तर कोरिया की जेलों में सज़ा और हिंसा के ज़रिए  करोड़ों  लोगों का उत्पीड़न होता रहा है। एक महिला  कैदी के सामने उसके एक नवजात बच्चे की हत्या  कर दी गई। देश के नार्थ हेमग्यांग प्रोविंसल होल्डिंग सेंटर में आठ महीने की गर्भवती महिला का जबर्दस्ती गर्भपात कराया गया। जब बेबी बच गया था तो उसे नाले से बहा दिया गया। उत्तर कोरिया में देश द्रोहिता के नाम पर उत्पीड़न खूब होता है। कैदी को क्रास बनाते हुए बैठने को कहा जाता है और इस दौरान अपने हाथ घुटने पर रखने होते  है। अगले 12 घंटे तक उन्हें हिलने-डुलने की अनुमति नहीं होती है।  थोड़ा भी हिलने-डुलने या सेल के दूसरे साथियों से कानाफूसी करने पर उन्हें कड़ी सजा  मिलती है।  खाना और पानी इतना सीमित दिया जाता है की भूख प्यास से वह सदा तड़पता रहे और ऐसे ही उसकी जान चली जाएं।

कुल मिलाकर दुनियाभर में कैदियों के लिए स्थितियां बेहद भयावह है।  कैदियों को लेकर नीतियों में विकसित,विकासशील या पिछड़ों देशों में ज्यादा अंतर नहीं किया जाता। कैदियों से व्यवहार को लेकर न तो संयुक्त राष्ट्र का कोई  डर नजर आता है और न ही मानवाधिकार संगठनों की सलाह पर अमल करना जरूरी समझा जाता है।

#ब्रह्मदीप अलूने

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