दांव पर परमाणु वैज्ञानिक
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दांव पर परमाणु वैज्ञानिक

राष्ट्रीय सहारा

 पाकिस्तान के परमाणु बम के निर्माता अब्दुल क़दीर ख़ान के बारे में कहा जाता है कि इस शख्स ने परमाणु बम बनाने की तकनीक को उन देशों तक पहुंचा दिया जहां से आतंकवादी संगठन,अपराधिक समूह या अन्य अस्थिर समूह परमाणु सामग्री का उपयोग करके पूरी दुनिया में विनाशकारी हमले कर सकते हैं। सीआईए के पूर्व निदेशक जॉर्ज टेनेट ने एक बार कहा था की ख़ान उतना ही ख़तरनाक हैं,जितना कि ओसामा बिन लादेन। अब अब्दुल क़दीर ख़ान इस दुनिया में नहीं है लेकिन उन्होंने लीबिया,उत्तर कोरिया और ईरान जैसे अस्थिर और अधिनायकवादी देशों को परमाणु तकनीक और सामग्रियों का अनाधिकृत हस्तांतरण करके वैश्विक सुरक्षा को संकट में डाल दिया है। डॉ.खान ने 1990 के दशक के अंत से 2003 तक लीबिया को गुप्त रूप से एक सेंट्रीफ्यूज प्लांट और परमाणु हथियार डिजाइन की आपूर्ति की जिससे वहां हथियार कार्यक्रम बनाने में मदद मिल सके। उन्होंने 1990 के दशक में उत्तर कोरिया और ईरान को सेंट्रीफ्यूज तकनीक भी हस्तांतरित की थी। 1990 में ही खान की परमाणु प्रयोगशाला ने कथित तौर पर इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को एक पत्र भेजा था जिसमें परमाणु सेंट्रीफ्यूज बनाने में सहायता की पेशकश की गई थी। 

एक बार फिर पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठान से जुड़े घटनाक्रम पर दुनिया की नजर है। दरअसल ऐसे खबरें सामने आई है जिसमें यह दावा किया गया है की पाकिस्तान अफगानिस्तान सीमा पर प्रभावी आतंकी समूह तहरीक-ए-तालिबान ने कुछ वैज्ञानिकों पाकिस्तानी का अपहरण कर लिया है। पाकिस्तान की सेना,आईएसआई और वहां की सरकार की विश्वसनीयता को लेकर अमेरिका समेत दुनियाभर में अविश्वास रहा है। लेकिन इसके बाद भी इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता की दुनियाभर के आतंकी संगठन परमाणु बम बनाने की तकनीक को प्राप्त करना चाहते है,इसमें अलकायदा और आईएस का नाम सबसे ऊपर है। कम से कम दो पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों ने 2000 और 2001 में अल-कायदा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी,हालांकि यह अभी तक साबित नहीं हो पाया की उन्होंने परमाणु संबंधित जानकारी साझा की थी।

पाकिस्तान में परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर वैश्विक चिंताएं रही है। 2008 में,अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख मोहम्मद अलबरदेई ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में अपनी आशंकाएं व्यक्त की थी। लेकिन पाकिस्तान ने उनकी चिंताओं को खारिज कर दिया था और दोहराया था कि उसका परमाणु शस्त्रागार सुरक्षित है। पाकिस्तान में परमाणु प्रतिष्ठानों और हथियारों की सुरक्षा 2000 से देश के प्रमुख परमाणु संस्थान राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण के एकीकृत नियंत्रण में हैं,जो दस सदस्यीय निकाय है। इसमें राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष,रक्षा, आंतरिक और वित्त मंत्री,सामरिक योजना प्रभाग के महानिदेशक और सेना,वायुसेना और नौसेना के कमांडर शामिल हैं। परमाणु तैनाती के बारे में निर्णय लेने की शक्ति एनसीए के पास है। इसके अध्यक्ष,जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति हैं,अंतिम वोट देते हैं। सेना, वायुसेना और नौसेना में से प्रत्येक के पास एक सामरिक बल कमान है जो परमाणु हथियारों के उपयोग की योजना,नियंत्रण और निर्देशों के लिए जिम्मेदार है। सामरिक योजना प्रभाग राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण के सचिवालय के रूप में कार्य करता है। परमाणु क्षमता के विकास और प्रबंधन का प्रभारी है और दिन प्रतिदिन नियंत्रण रखता है।

पाकिस्तान में फौज का सभी संस्थानों पर गहरा नियन्त्रण है और सेना के अधिकारियों की जवाबदेही को लेकर वहां कोई स्वतंत्र और पारदर्शी निकाय काम नहीं करती है। यह भी दिलचस्प है कि पाकिस्तान के  प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा ने  पाकिस्तान की सेना पर यूरेनियम की चोरी को ईरान को तस्करी के एक बड़े षड्यंत्र के तहत अंजाम देने का आरोप लगाया है। मिर्जा ने  दावा किया है कि पाकिस्तान की सेना लंबे समय से गुप्त रूप से परमाणु प्रौद्योगिकी को बेचती रही है,जिससे वैश्विक सुरक्षा खतरे में पड़ रही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से इस घटना की स्वतंत्र जांच की अपील की है।  इन परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण खैबर पख्तूनख्वा से किया गया है। पिछले साल जुलाई में,खैबर पख्तूनख्वा गृह विभाग ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक यात्रा सलाह जारी की थी,जिसमें बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के कारण टैंक,डेरा इस्माइल खान,लक्की मारवात और बन्नू जैसे क्षेत्रों में बढ़ते जोखिमों की चेतावनी दी गई थी। एडवाइजरी में कानून प्रवर्तन कर्मियों पर लक्षित हमलों,अपहरण और हत्याओं में वृद्धि का जिक्र किया गया था। इसके बाद भी वैज्ञानिकों के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात नहीं किये गए। ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा पाकिस्तान का एक प्रान्त या सूबा है। इसे सूबा-ए-सरहद के नाम से भी जाना जाता है जो अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर स्थित है। इसके दक्षिण में बलूचिस्तान है। बलूचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा दोनों प्रान्तों में गहरी अशांति है और आतंकी संगठन पाकिस्तान की सेना पर हमलें करते रहते है। इन क्षेत्रों में कई कबाइली संगठन  प्रभावशील है और भौगोलिक परिस्थितियां इतनी जटिलताएं लिए है की मुजाहिदीनों से निपटने में पाकिस्तान की सेना  नाकाम रही है। पाकिस्तान की सेना में धार्मिक संगठनों और कट्टरपंथ का गहरा प्रभाव है  तथा आतंकी संगठनों को लेकर गहरे मतभेद है। कई पाकिस्तानी सेना के पूर्व अधिकारी तालिबान,लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को प्रशिक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाते रहे है। परमाणु हथियारों और उनके संबंधित सामग्री की सुरक्षा के लिए उच्चतम स्तर के सुरक्षा उपायों का पालन किया जाता है,जिसमें अत्याधुनिक निगरानी,चौकस सुरक्षा बल और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न देशों के बीच परमाणु हथियारों की चोरी को रोकने के लिए सहयोग और सूचनाओं का आदान प्रदान महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान अपने हथियार कार्यक्रम के कारण परमाणु अप्रसार संधि से बाहर है,इसलिए उसे परमाणु संयंत्र या सामग्री के व्यापार से काफी हद तक बाहर रखा गया है

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम जितना रहस्यमय रहा है उससे ज्यादा खतरनाक पाकिस्तानी की परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर बदनीयती रही है। राजनीतिक अस्थिरता,आतंकवादी संगठनों,सेना के प्रभाव और धार्मिक कट्टरपंथ से अभिशिप्त तथा परमाणु हथियारों के अवैधानिक हस्तांतरण में शामिल पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत को गंभीरता से विचार करना होगा।

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