जनसत्ता-बदहाल पाक और भारत की चुनौतियां
राजनीतिक अस्थिरता,आर्थिक बदहाली और आतंकी घटनाओं से बेहाल पाकिस्तान का संकट गहराता जा रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ देश के संकट और चुनौतियों से जनता को आगाह तो कर रहे है लेकिन समस्याओं से उबारने की कोई ठोस योजना प्रस्तुत करने में वे लगातार नाकाम रहे है। रोजमर्रा की चीजों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से आम जनता बेहाल है और सरकार के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। विदेशी मुद्रा लगभग खत्म होने की कगार पर है,पाकिस्तान के पास आयात के लिए कुछ दिनों और काम चल जाएं,बस इतने ही डॉलर बचे हैं। कई फ़ैक्टरियों का सामान पाकिस्तान के बंदरगाहों पर पड़ा है,लेकिन उसे छुड़ाने के लिए व्यापारियों को बैंकों से डॉलर नहीं पा मिल रहे है। भारत का यह पड़ोसी देश आसमान छूते विदेशी कर्ज़े पर ब्याज़ देने तक के लिए भी संघर्ष कर रहा है। यह स्थिति पाकिस्तान की बदहाली को बतलाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध की मार पाकिस्तान पर भी पड़ी है,युद्ध की वजह से दुनिया में तेल की क़ीमतें बढ़ी हैं। पाकिस्तान पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर निर्भर है। तेल की बढ़ती क़ीमतों के कारण खाने-पीने का सामान बेहद महंगा हो गया है। पाकिस्तान का सैन्य खर्च बहुत अधिक है। यहां बुनियादी ढाँचे पर ख़र्च भी कर्ज़े में लिए धन से ही किया जाता है। इसकी सब्सिडी भी एक समस्या ही है।
देश जिस प्रकार अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है,ऐसे समय में सभी राजनीतिक पार्टियों ने मिलजुलकर समस्याओं का समाधान करना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान में ऐसा भी कुछ नहीं है। राजनीतिक प्रतिरोध की भावना बदस्तूर जारी है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ दर्ज विभिन्न मामलों में फ़ौजदारी क़ानून के तहत कार्रवाई शुरू हो गई है। उन पर प्रदर्शन,तोड़फोड़, सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने,सरकारी कार्यों में बाधा डालने,सरकारी उपहार लेने और जज को धमकी देने जैसे कई मामलें दर्ज है। इमरान पर आतंकवाद विरोधी क़ानून की धाराएं भी लगाई गई हैं। इन सबके बीच पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ का मौजूदा सरकार के विरुद्द विरोध बढ़ता जा रहा है। इमरान खान पर की जा रही कार्यवाहियों को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा जा रहा है। इमरान की कथित बेटी टेरियन व्हाइट की जानकारी छुपाने को लेकर इमरान खान को चुनाव लड़ने से आजीवन अयोग्य ठहराया जा सकता है। इमरान लांग मार्च और रैलियों में सरकार की नियत पर सवाल उठा रहे है और इससे देशभर में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भारी वृद्धि हुई है। पिछले साल सत्ता खोने से नाराज इमरान खान तुरंत आम चुनाव करवाना चाहते है और इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है। उनका दावा है कि उन्हें पद से हटाना संविधान की नज़र में ग़लत था और पाकिस्तान में तुरंत चुनाव करवाए जाएं। जबकि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार वक़्त से पहले चुनाव की मांग ठुकराती रही है।
आंतरिक अव्यवस्था से जूझते पाकिस्तान के पड़ोसी देशों से सम्बन्ध भी बद से बदतर ही नजर आते है। भारत को लेकर उसकी विद्वेषपूर्ण नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और कश्मीर पर पाकिस्तानी नेताओं का विषवमन बदस्तूर जारी है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान में आंतरिक सुरक्षा को लेकर संकट गहरा गया है। अफगानिस्तान के लोग और तालिबान अंग्रेजों द्वारा खींची गई डूरंड रेखा को नहीं मानते। पाकिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान में डॉलर की तस्करी हो रही है। इस वजह से पाकिस्तानी रुपया और कमज़ोर हो रहा है। हाल के दिनों में पाक अफगान सीमा पर दोनों देशों के बीच हिंसक संघर्ष बढ़े है। वहीं तालिबान से दोस्ताना संबंध रखने वाले एक चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान के कई इलाकों में आतंकी हमलें किये है।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पिछले 14 साल से देश में कड़े इस्लामी कानून लागू करने के लिए लिए लड़ रहा है। टीटीपी देश में अल्पसंख्यको,महिलाओं और उदारवादियों पर हमले करता रहा है। टीटीपी चाहता है कि सरकार कैद में डाले गए उसके सदस्यों को रिहा करे और पहले के जनजातीय इलाकों में सेना की मौजूदगी घटाएं। अफगानिस्तान से लगे सरहदी इलाकों में टीटीपी अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगा है इसलिए वह इन इलाकों में पाकिस्तान की फौज की तैनाती हटाना चाहता है। टीटीपी इन इलाकों में शरिया कानून के आधार पर हुकूमत चलाना चाहता है और इस वजह से पाकिस्तान की फौज से उसका टकराव होता रहता है। 2007 में इस आतंकी संगठन ने पाकिस्तान में कई बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दिया है जिसमें 2008 में इस्लामाबाद में मेरियट होटल पर बमों से हमला,2009 में पूरे सेना के मुख्यालयों समेत पूरे पाकिस्तान में हमलें,2012 में नोबेल विजेता मलाला युसुफ़ज़ई पर हमला और 2014 में पेशावर में आर्मी स्कूल पर भीषण हमला शामिल है। इस हमले में क़रीब 150 लोगों की मौत हुई थी जिनमें से अधिकांश बच्चे थे।
पाकिस्तान की मौजूदा सरकार टीटीपी से रिश्तों को लेकर इमरान खान पर निशाना साध रही है। शाहबाज़ शरीफ का कहना है कि इमरान खान ने ही सरहदी इलाकों में तहरीक –ए –तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों को बसाया,जो अब नासूर बन गए है। टीटीपी के लिए अफगान एक सुरक्षित ठिकाना है और उसके आतंकी अक्सर पाकिस्तान सेना और पुलिस पर हमलें करके अफगानिस्तान में छुप जाते है। अफगान तालिबान टीटीपी को ज्यादा नाराज नहीं करना चाहेगा। आखिरकार टीटीपी ने उसके साथ मिल कर पश्चिमी देशों की सेनाओं से काफी लड़ाई लड़ी है। यह भी दिलचस्प है कि आतंकी संगठनों को समर्थन को लेकर पाकिस्तान के राजनीतिक दलों जैसी ही स्थिति सेना में भी है। पाकिस्तानी सेना में आला अफसरों के कई गुट बने हुए हैं और उनमे आपसी हितों को लेकर जबरदस्त टकराव है। सेना के भीतर लड़ने वाले एक गुट एक दूसरे के खिलाफ टीटीपी का इस्तेमाल करते हैं। जनरल बाजवा के सैन्य प्रमुख के पद से हटते ही टीटीपी द्वारा पाकिस्तान में आतंकी हमलों की शुरुआत महज संयोग नहीं बल्कि सैन्य अफसरों में फूट को उजागर करती है।
आर्थिक संकट से जूझते पाकिस्तान में चीन का विरोध भी बढ़ता जा रहा है और चीनी इंजीनियर्स और चीनी नागरिकों पर देश में हमलें बढने से पाकिस्तान का यह प्रमुख सहयोगी नाराज है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की कई परियोजनाओं का काम इस समय रोक दिया गया है। सीपीईसी को चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का बेहद अहम पहलू माना जाता है। इसका मक़सद मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप से नए ज़मीनी और समुद्री संपर्क बढ़ाना है। इस परियोजना की औपचारिक शुरुआत 2015 में हुई थी। तब दोनों देशों के नेताओं ने इस विशाल परियोजना की शुरुआत के लिए 51 सहमति पत्रों पर दस्तख़त किए थे। उस समय चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की लागत लगभग 46 अरब डॉलर आंकी गई थी। हालांकि अब इसमें कई नई परियोजनाएं जुड़ जाने से इसकी लागत 62 अरब डॉलर तक पहुँच गई है। पाकिस्तान की सरकार इस परियोजना को पाकिस्तान के भविष्य की योजना बताती है,जिसमें सड़कें,रेल लाइनें,बिजलीघर और औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करना शामिल है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में सोने,तांबे और गैस के बड़े भंडार है और चीन की इन पर नजर है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह इलाका,पाकिस्तान की नकारात्मकता का शिकार रहा है और यह गरीबी और अशिक्षा से अभिशिप्त है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान का गहरा विरोध है और वे अपनी पहचान को पाकिस्तान से अलग कर देखते है। बलूचिस्तान के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान आर्थिक कठिनाइयों से गुज़र रहा है। उसे पैसे की ज़रूरत है और वो इस मुश्किल को हल करने के लिए हमारा इलाक़ा चीन को बेचने की कोशिश कर रहे हैं। आतंकवादी और ख़ास तौर से दक्षिणी पश्चिमी बलोचिस्तान सूबे के उग्रवादी,चीन के हितों और उसके नागरिकों को निशाना बनाते रहे हैं। इन हमलावरों ने चीन को बार-बार इन परियोजनाओं से बाज़ आने और पाकिस्तान से चले जाने या फिर अंजाम भुगतने की धमकियां दी हैं। पहले पाकिस्तान की फ़ौज ने सीपीईसी की सुरक्षा की गारंटी ली थी लेकिन अब न तो पाकिस्तान की फौज का रुख सकारात्मक है और न ही चीनियों को उनकी सुरक्षा पर भरोसा रहा है। 2018 में इमरान ख़ान के सत्ता में आने के बाद से सीपीईसी की रफ़्तार ख़ास तौर से धीमी हो गई है। इमरान ख़ान को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने के नाम पर हुकूमत हासिल हुई थी और वो सीपीईसी से जुड़े ऐसे कई प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की कमी का सवाल उठा रहे थे,जो उनके पहले के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के राज में शुरू हुई थीं।
बलूचिस्तान के साथ ही अब तो पूरे पाकिस्तान के लोगों में चीन को लेकर बैचेनी बढ़ गई है। पाकिस्तान के आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषक यह साफ कहते है कि चीनी कर्ज की ब्याज दर बहुत ज्यादा होने से पाकिस्तान क़र्ज़ का समय पर भुगतान कर पाने में नाकाम रहेगा। इससे चीन पाकिस्तान की संप्रभुता को प्रभावित कर सकता है। पाकिस्तान का पढ़ा लिखा तबका भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारें की शर्तों को लेकर संशय में है। उनका मानना है कि इस अदूरदर्शी परियोजना ने पहले ही नक़दी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के इर्द-गिर्द क़र्ज़ का एक और जाल बुन डाला है और उसकी लंबे समय से चली आ रही वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाने का काम ही किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक रिपोर्ट इसकी पुष्टि भी करती है, जिसमें बताया गया था कि पाकिस्तान पर लदे विदेशी क़र्ज़ का 30 फ़ीसदी तो अकेले चीन का ही लोन है। इसमें चीन के सरकारी बैंकों का दिया हुआ क़र्ज़ शामिल है। वास्तव में पाकिस्तान पर क़र्ज़ के बोझ में चीन के बैंकों की हिस्सेदारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के ऋण से भी अधिक है। पाकिस्तान को चीन,संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे मित्र देशों से हमेशा अच्छी मदद मिलती रही है लेकिन पाकिस्तान से उनके हित पूरे होते नहीं दिख रहे। खासकर पाकिस्तान में विकास योजनाएं पूरी नहीं होती और यहां किसी भी देश के व्यवसायिक हित खटाई में पड़ जाते है।
इस समय पाकिस्तान में जैसे हालात हो गए है वह श्रीलंका जैसे ही है। पिछले साल श्रीलंका में ईंधन,खाद्यान और अन्य ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए पैसे ख़त्म हो गए थे। इसके बाद श्रीलंका के नागरिकों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर लिया था। इन अभूतपूर्व स्थितियों के बीच राष्ट्रपति को अपना पद छोड़ने पड़ा था और अंतरिम सरकार सत्ता में आई थी। हालांकि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात इससे बिल्कुल अलग है। यहां सरकार को अपदस्थ कर कभी भी सेना,व्यवस्था को अपने हाथ में ले सकती है। जाहिर है यदि बदहाल पाकिस्तान में सैन्य शासन फिर से लागू होता है तो भारत के लिए स्थितियां ज्यादा ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन सकती है। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में जब भी सैन्य शासन रहा है,भारत के साथ उसका तनाव चरम पर होता है। सीमा पर अकारण गोलाबारी,आतंकी घुसपैठ और कश्मीर में आतंकी हमलों की आशंका बढ़ जाती है।
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