राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
शक्ति संतुलन की व्यवस्था अस्थाई और अस्थिर होती है,वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन को शांति और स्थिरता बनाये रखने का एक साधन माना जाता है। ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी अविश्वसनीय वैदेशिक नीतियां भारत की चुनौतियां बढ़ा रही है। भारत अपनी भू-रणनीतिक स्थिति के कारण किसी एक महाशक्ति के साथ पूर्ण सहयोग पर चलने की नीति को नहीं अपना सकता। ऐसा लगता है की ट्रम्प यह तय करने की कोशिश कर रहे है की जो अमेरिका के साथ नहीं है वह अमेरिका का विरोधी है,और यह स्थिति भारत के रणनीतिक हितों को कभी रास नहीं आ सकती।
दरअसल बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को रूस की भी जरूरत है और अमेरिका भी उसका बढ़ा सामरिक और आर्थिक साझेदार है। खासकर सीमा पर चीन की बढ़ती चुनौतियों के बीच भारत को रूस,अमेरिका और यूरोपियन देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्धों की समान जरूरत है। भारत अपनी कुल रक्षा ज़रूरतों का 70 फ़ीसदी हथियार रूस से आयात करता है,दुनिया के किसी भी दूसरे देश के साथ भारत का इतने विशाल स्तर पर सामरिक सहयोग नहीं है।1974 में भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण हो या युद्धपोत पनडुब्बी,आधुनिकतम टैंक,मिसाइल तकनीकी,स्पेस तकनीकी या पंचवर्षीय योजनाएं रुस ने एक अच्छे मित्र की तरह सदैव भारत के पक्ष में आवाज बुलन्द की है। सीमा पर चीन की आक्रामता को देखते हुए भारत को न केवल रूस की ज़रूरत है बल्कि अमेरिका और यूरोप की भी ज़रूरत है। सीमा पर चीनी आक्रामकता को लेकर अमेरिका भारत के समर्थन में बोलता रहा है। चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत ने अमेरिका और अन्य देशों के साथ समुद्री सहयोग के जरिये क्वाड का हिस्सा बनकर बड़ा दांव खेला है। दूसरी तरफ़ यूरोप और अमेरिका भी भारत के अहम साझेदार हैं। भारत-चीन सीमा पर निगरानी रखने में भारतीय सेना को अमेरिकी एयरक्राफ़्ट से मदद मिलती है। सैनिकों के लिए विंटर क्लोथिंग भारत अमेरिका और यूरोप से ख़रीदता है। ऐसे में भारत न तो रूस को छोड़ सकता है और न ही पश्चिम को।
भारत की हिन्द महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है। हिन्द महासागर की सुरक्षा को लेकर भारत मुखर रहा है और उस पर चीन का प्रभाव उसे आशंकित भी करता रहा है। 2007 में स्थापित क्वाड भारत, जापान,संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का समूह है जो स्वतंत्र,खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने की बात कहते रहे है। हालांकि इन चार देशों के साझा उद्देश्य को लेकर चीन के साथ रूस इसकी आलोचना करता रहा है। अमेरिका की नजर हिन्द प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक और आर्थिक महत्व पर भी है। इस क्षेत्र में चीन ने कई देशों को चुनौती देकर विवादों को बढ़ाया है। चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है। चीन पाकिस्तान की बढ़ती साझेदारी ने भी समस्याओं को बढ़ाया है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख भागीदार है। श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट,बांग्लादेश का चिटगांव पोर्ट,म्यांमार की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों को चीनी कब्ज़े से भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई है। दक्षिण चीन सागर का इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन,ताइवान,वियतनाम,मलेशिया,इंडोनेशिया,ब्रुनेई और फिलीपींस से घिरा हुआ है। यहां आसियान के कई देशों के साथ चीन विवाद चलता रहता है। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकामयाब रहे थे। क्वाड चीन पर दबाव बनाएं रखने का बेहतर माध्यम है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के सम्बन्ध मजबूत हुए है और इसका असर रूस की नीतियों पर भी देखने को मिल रहा है। किसी दौर में भारत का विश्वास बनाएं रखने के लिए पाकिस्तान को पूर्ण रूप से नजरअंदाज करने की रुसी नीति में उदारता देखी जा रही है। रूस के साथ पाकिस्तान के सामरिक सम्बन्ध भी बढ़े है। 2014 में राष्ट्रपति पुतिन ने पाकिस्तान से हथियारों को लेकर प्रतिबंध हटा लिया था। रूसी मिग-35M कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को लेकर पाकिस्तान से एक समझौता भी हुआ था।2018 में रूस-पाकिस्तान सैन्य सहयोग समझौते के बाद पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को रूसी सेना ने ट्रेनिंग दी थी तथा दोनों देशों के बीच कई बार आतंकवाद विरोधी सैन्य अभ्यास भी हो चुका है। अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाला सैन्य गठबंधन वापस जाने से पाकिस्तान और रूस के बीच रक्षा सहयोग बढ़ा है और यह भारत की चिंता बढ़ाने वाला है। भारत अमेरिका पर पूर्ण भरोसा इसलिए भी नहीं कर सकता क्योंकि अमेरिका के हित वैश्विक हितों से मेल नहीं खाते। अमेरिका अपने हित बदलते ही नीतियां भी बदल लेता है,जैसे ट्रम्प अब यूक्रेन को दरकिनार कर रूस के साथ खड़े नजर आ रहे है। ऐसे में भारत के लिए रूस ज्यादा मुफीद है और यह साम्यवादी देश कई बार अपनी उपयोगिता साबित कर चूका है।
भारत और रूस के बीच रक्षा,ऊर्जा और भू-राजनीतिक मुद्दों पर ऐतिहासिक और मजबूत रिश्ते रहे हैं। भारत ने हमेशा रूस को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में माना है और रूस के साथ उसकी साझेदारी कई दशकों से कायम है ।रूस के साथ सैन्य और ऊर्जा समझौतों को जारी रखते हुए,अमेरिका के साथ व्यापार और सुरक्षा साझेदारी को भी बढ़ावा दिया है। अगर रूस भारत को सामरिक मदद बंद करता है तो इसका भारत की रक्षा नीति और अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है। रूस और भारत के बीच रक्षा संबंधों का बहुत लंबा इतिहास है, और रूस ने हमेशा भारत को विभिन्न सैन्य उपकरण,हथियार और प्रशिक्षण प्रदान किया है। जेट विमानों,सैन्य हेलीकॉप्टरों और सबमरीन जैसी महत्वपूर्ण सैन्य तकनीक में रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है। यदि रूस के साथ सम्बन्ध प्रभावित हो तो भारत की सामरिक योजना पर इसका गहरा असर पड़ सकता हैं। रूस के साथ भारत का एक मजबूत सैन्य सहयोग है जिसमें सैन्य अभ्यास,प्रशिक्षण और तकनीकी साझेदारी शामिल है। रूस से यह सहयोग खत्म होने पर भारत की युद्ध क्षमता में अंतर आ सकता है। रूस से सामरिक मदद बंद होने के बाद भारत को नए साझेदारों की तलाश करनी होगी। हालांकि, भारत ने अमेरिका, फ्रांस, और इज़राइल जैसे देशों के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को बढ़ाया है, लेकिन इन देशों के साथ सहयोग में भी राजनीतिक और सामरिक जटिलताएं हो सकती हैं। इन देशों से भारत को समान स्तर की मदद मिल पाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि प्रत्येक देश की अपनी प्राथमिकताएं और सीमाएं होती हैं। रूस के साथ सामरिक मदद समाप्त होने से भारत की स्थिति पर वैश्विक स्तर पर भी असर पड़ सकता है। भारत का रूस के साथ मजबूत रक्षा संबंध यह दर्शाता है कि वह एक स्वतंत्र शक्ति है और किसी एक शक्ति के प्रभाव में नहीं आता। यदि यह सहयोग खत्म होता है, तो यह भारत की विदेश नीति को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता पैदा कर सकता है जिससे उसकी स्वतंत्रता और रणनीतिक स्वायत्तता पर सवाल उठ सकते हैं। रूस-भारत संबंधों के समाप्त होने से एशिया और यूरोप के बीच तनाव बढ़ सकता है। रूस की उपस्थिति और सहयोग भारत के लिए एक सुरक्षा गारंटी के रूप में था,खासकर चीन जैसे बड़े पड़ोसी के खिलाफ। अगर यह साझेदारी टूटती है, तो भारत को और अधिक सैन्य खर्च और नए रणनीतिक कदम उठाने पड़ सकते हैं, जिससे उसकी सुरक्षा नीति पर दबाव बढ़ सकता है।
भारत के पास अपनी सैन्य और भूराजनैतिक स्थिति को सुधारने और संतुलित रखने की क्षमता है। लेकिन रूस से सामरिक मदद बंद होने पर उसे कई नई चुनौतियों का सामना करना होगा, और इसे सही तरीके से संभालने के लिए उसे अपनी रक्षा नीति और साझेदारियों को पुनः व्यवस्थित करना पड़ेगा। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का यथार्थवादी सिद्धांत यह कहता है कि किसी सम्प्रभु राष्ट्र के लिए शक्ति,शक्ति संतुलन,राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी संकल्पनाएं महत्वपूर्ण है और राष्ट्र की सुरक्षा उसका स्वयं का दायित्व है। भारत अपनी सुरक्षा मजबूरियों को भलीभांति जानता है इसलिए किसी भी कीमत पर ट्रम्प या अमेरिकी हितों के लिए रूस से संबंधों की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।

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