भूटान पर चीन की नजर
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भूटान पर चीन की नजर

CHINA RASHTRIY SAHARA

तकरीबन आठ लाख की आबादी वाले देश भूटान से चीन का सीमा विवाद मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों पर तो रहा है लेकिन पूर्वी क्षेत्र पर कभी कोई बात ही नहीं हुई। यहां तक की चीन और भूटान की उच्च स्तर की 24 वार्ताओं में भी कभी इसका जिक्र नहीं किया गया। 2020 में यह स्थिति अचानक बदल गई जब  वैश्विक पर्यावरण  सुविधाओं पर आधारित एक बैठक में चीन ने यह दावा कर सबको अचरज में डाल दिया कि पूर्वी भूटान में स्थित सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य को किसी अंतराष्ट्रीय परियोजना में इसलिए शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि यह चीन और भूटान के बीच एक विवादित क्षेत्र है। दरअसल चीन ने भूटान के जिस क्षेत्र पर दावा किया,भूटान की पूर्वी सीमा अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के छूती है और अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत बताता है

हाल ही में तवांग पर चीन ने जो विवाद खड़ा करने की कोशिश की है,वह उसकी पारम्परिक सीमाओं के विस्तार की रणनीति पर आधारित है। गौरतलब है कि  चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के ठीक पहले कांग्रेस के अधिवेशन में अपनी भावी रणनीति को साफ करते हुए कहा था कि अब आर्थिक क्षेत्र से ज्यादा उनका ध्यान पार्टी हित और राजनीतिक प्रतिबद्धताएं पूरी करना होगी। चीन की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं माओ के सिद्दांतों के अनुरूप रही है और शी जिनपिंग माओ के बाद देश के सबसे शक्तिशाली नेता बनकर उभरे है। माओ की विचारधारा अधिनायकवाद,साम्राज्यवादी और सीमाओं के विस्तार के लिए आक्रामक नीतियों पर आधारित है। माओं और जिनपिंग यह विश्वास करते है कि चीन की असल सीमाएं पिछले दो हजार वर्षों में चीन के सुदूर पूर्व,मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में विशाल साम्राज्य पर आधारित होना चाहिए। माओं ने पड़ोसी देशों के अस्तित्व को ही चुनौती देते हुए  तिब्बत को चीन के दाहिने हाथ की हथेली माना  और उसकी पाँच अंगुलियाँ लद्दाख,नेपाल,सिक्किम,भूटान और अरुणाचल प्रदेश को बताया था

CHINA RASHTRIY SAHARA

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में संघर्ष की स्थिति निर्मित होने के बाद भी चीन लद्दाख,सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत पर सैन्य या कूटनीतिक दबाव बनाने में असफल रहा है। नेपाल को लेकर चीन बहुत आगे बढ़ गया है और वहां साम्यवादी शक्तियां सत्ता में प्रभावशील है,अत: चीन नेपाल को आर्थिक सहायता के जाल में बूरी तरह उलझा चूका है इन सबके बीच चीन की नजर भूटान पर है जो भारत के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है भारत के उत्तर पूर्व के प्रमुख सहयोगी राष्ट्र भूटान से मजबूत सम्बन्ध रहे है भूटान को मिलने वाली विदेशी सहायता तथा वहां पहुंचने वाले निवेश में सबसे बड़ा योगदान भारत का ही होता है,भारत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है भूटान भारत के सहयोग और निवेश से बिजली पैदा करता है और उसे भारत को बेचता है,जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का 14 फीसदी है। भूटान और भारत के बीच 1949 से मैत्री संधि है और 2007 में यह नवीनता के साथ मजबूत ही हुई है। भारत तीन दिशाओं में दक्षिण,पश्चिम और पूर्व में भूटान के लिए सीमा बनाता है जबकि उत्तर में भूटान की सीमाएं चीन से लगी हुई है। भूटान भारत और चीन के बीच  रणनीतिक रूप से एक बफ़र देश है,सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपने भू रणनीतिक स्थान के कारण भूटान भारत के लिए बेहद अहम है। भारत और भूटान के बीच 605 किलोमीटर लंबी सीमा है तथा 1949 में हुई संधि की वज़ह से भूटान की अंतर्राष्ट्रीय,वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव रहा है 

वहीं चीन और भूटान के बीच भौगोलिक और रणनीतिक विरोधाभास रहे है तथा इन दोनों देशों के बीच लगभग पांच सौ किलोमीटर की लंबी सीमा रेखा है जिस पर विवाद होता रहा है भूटान चीन से आशंकित रहता है कि कहीं वह तिब्बत की तरह ही उस पर कब्जा न जमा लें। 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर सैन्य तनातनी हुई थी। यह क्षेत्र भारत,चीन और भूटान के त्रिकोण पर स्थित है। चीन यहां नये निर्माण की कोशिश कर रहा था,जिसे भारतीय सेना ने रोक दिया था. खंजर के आकार की चुम्बी घाटी का डोकलाम पठार रणनीतिक रूप से  भारत के लिए बेहद अहम रहा है।

 

चीन पिछले कुछ वर्षों में भूटान से सीमा विवाद हल करने की कोशिशों में जुटा है और उसकी यह कोशिश भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ा सकती है। पिछले वर्ष अक्टूबर में भूटान और चीन ने एक एमओयु पर हस्ताक्षर किए थे। जिस पर चीन ने दावा किया सीमा निर्धारण को लेकर बातचीत की रफ़्तार तेज़ करने और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को स्थापित करने में मदद करने में अर्थपूर्ण भागीदारी आगे बढ़ेगी। वहीं भूटान ने भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की और प्रतिबद्धता जताई। चीन की भूटान से विवाद समाप्त करने की कोशिशें भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने आ सकती है

 

चीन और भूटान के बीच जिन दो इलाक़ों को लेकर ज़्यादा विवाद हैउनमें से एक भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाक़ा है चीन भूटान को 495 वर्ग किलोमीटर वाला इलाक़ा देकर उसके बदले में 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा लेना चाहता है। चीन जो इलाक़ा मांग रहा है,वो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब है सिलीगुड़ी कॉरिडोरजिसे चिकन्स नैक भी कहा जाता है,वो भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण जो उसे पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ता देता है। अगर चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक पहुंचने में यदि हो गया तो भारत की पूर्वोत्तर की सीमा प्रभावित हो सकती है  के राज्यों के लिए चिकन्स नैक का यह इलाक़ा भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है इस इलाक़े में अगर चीन को थोड़ा सा भी लाभ होता है तो वो भारत के लिए बहुत बड़ा नुकसान होगा  चीन,भूटान के साथ सौदा करने की कोशिश कर रहा है और ये सौदा भारत के हित में नहीं होगा। चीन चुंबी घाटी तक रेल लाईन बिछा सकता है,चीन के पास पहले से ही यातुंग तक रेल लाइन की योजना है और यातुंग चुंबी घाटी के मुहाने पर है

 

भारत भूटान को आर्थिक,सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है भारत की तरफ़ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ भूटान को ही मिलता है। भूटान में सैंकड़ों भारतीय सैनिक तैनात हैं और वे भूटानी सैनिकों को  प्रशिक्षण भी देते है। लेकिन चीनी प्रभाव से अब स्थितियां बदल रही है। भूटान की युवा पीढ़ी भारत और चीन से समान संबंध रखना चाहती है और वे इन दोनों देशों के विवादों से दूरी बनाएं रखने की पक्षधर है। जाहिर है भारत के पड़ोसी निरंतर भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा रहे है। नेपाल,म्यांमार,बांग्लादेश,श्रीलंका और मालद्वीप में चीन की व्यापक आर्थिक हिस्सेदारी ने भारत के लिए सामरिक संकट को बढ़ाया है और इन देशों के बन्दरगाहों पर चीनी जासूसी जहाजों की आवाजाही बढ़ी है। वहीं चीन की नजर अब भूटान पर है और भारत के लिए  भूटान को नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है। 

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