महिला राजनीतिज्ञ मोहताज़ नहीं
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 महिला राजनीतिज्ञ मोहताज़ नहीं

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप,शीर्ष महिला राजनीतिज्ञ कभी किसी संविधानिक कवच की मोहताज़ नहीं रही

            संविधानिक मजबूरियों के बूते आने वाले राजनीतिक नेतृत्व की विश्वसनीयता का संकट,पंचायतों से लेकर संसद तक रह सकता है। महिला नेतृत्व को संविधानिक कवच प्रदान करने की जरूरत को स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं माना जा सकता। इंदिरा गांधी,बेनजीर भुट्टों,पेलोसी या  साई इंग-वेन की नेतृत्व क्षमता उनके देश के समाज की सामूहिक जिम्मेदारी और विश्वास से उभर कर आई।                                                                  

यदि दुनिया को समझना है तो हममें दुनिया के हर कोने से महिलाओं की आवाज़ सुनने की क्षमता हममें होनी चाहिए।  इसके साथ ही यह भी पता लगाने की कोशिश की जानी चाहिए की समाज ने राजनीति के जरिए बदलाव लाने के महिलाओं को मौके दिए है या नहीं। और उसका परिणाम क्या हुआ है। सुशासन को लेकर जब कल्पना की  जाएं तो यह माना जाता है की  जनता के सार्वजनिक जीवन स्तर अर्थात् सामाजिक और आर्थिक स्तर को  ऊंचा करना राजनीति है। फिनलैंड,आइसलैंड और नॉर्वे को लेकर 2016 में एक रिपोर्ट सामने आई थी। अर्थव्यवस्था,स्वास्थ्य,शिक्षा और राजनीति में भागीदारी के आधार पर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम विश्व जेंडर गैप रिपोर्ट में देशों की रैंकिंग तय करता है। 2016 में इसमें सबसे ऊपर वहीं देश थे और इन देशों में महिलाएं अधिकतर राजनीति में थीं। इससे पता चलता है कि उन देशों में  महिलाओं ने अधिक बेहतर प्रदर्शन किया जहां वे राजनीतिक रूप से प्रतिनिधित्व कर रही थी।

दुनियाभर में महिलाओं के ख़िलाफ़ उत्पीड़न,दुनिया भर में महिलाओं को लेकर असमानता और उन्हें कम दर्जे का समझने जैसे  मुद्दे सामने आते है जो महिलाओं में निराशा और हताशा को बढ़ा सकते है। लेकिन महिलाओं ने राजनीति में अपनी नेतृत्व क्षमता के बूते बेहतरीन परिणाम दिए है। मसलन गृहयुद्द से जूझते देश रवांडा को ही लीजिए। रवांडा मध्य-पूर्व अफ़्रीका में स्थित एक देश है। 1990 के दशक में जातीय हिंसा में बूरी तरह झुलसने वाले इस देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के हजारों अपराध हुए। लेकिन बाद में समाज ने महिलाओं पर ज्यादा भरोसा दिखाया और उन्हें देश में राजनीतिक नेतृत्व के अवसर दिए। आज दुनिया के विकसित देशों से कहीं ज्यादा महिलाएं,रवांडा में राजनीतिक प्रतिनिधित्व करती है और यह साठ फीसदी से ज्यादा है। अब रवांडा में जातीय हिंसा नहीं है और यह देश बेहतर तरीके से आगे बढ़ रहा है।  सरकार वुमेन फॉर वुमेन इंटरनेशनल रवांडा जैसे कार्यक्रमों का समर्थन करती है,जो देश की महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने पर केंद्रित है। सरकार ने लिंग और परिवार संवर्धन मंत्रालय का उपयोग करके रवांडा में लैंगिक समानता को भी बढ़ावा दिया है। एक महत्वपूर्ण परिवर्तन में,महिलाओं को भूमि के उत्तराधिकार और कुछ सरकारी पदों,सेना और शिक्षा जैसे अन्य कारकों में पुरुषों के समान अधिकार दिया गया है।

 

संयुक्त राष्ट्र ने 1979 में महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन को अपनाया,जिसमें मुख्य रूप से लैंगिक असमानता को कम करने के लिए देशों के लिए प्रतिज्ञाएं और दिशानिर्देश शामिल थे। यह वह दौर था जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की बागडोर एक महिला प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी और सबसे उदार लोकतंत्र ब्रिटेन की सत्ता मारग्रेट थैचर के पास थी। यह भी दिलचस्प है कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में ही भारत ने पाकिस्तान से 1971 का ऐतिहासिक युद्द लड़ा और जीता था,वहीं ब्रिटेन की आयरन लेडी कही जाने वाली श्रीमती थैचर ने साल 1979 से 1990 तक कंजरवेटिव पार्टी की सरकार का नेतृत्व किया था। वह बड़े बदलाव लाने वाली नेता थीं जिनके नेतृत्व में ब्रिटेन ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर उल्लेखनीय प्रगति की। श्रीमती थैचर की सरकार ने कई सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया था। 1982 में उस वक्त मारग्रेट थैचर की ही सरकार थी जब ब्रिटेन ने फॉकलैंड द्वीप समूह के मसले पर अर्जेंटीना के साथ युद्ध लड़ा था। यदि बात इंदिरा गांधी की हो तो उन्हें एक मज़बूत शख्सियत के रूप में याद किया जाता है। एक ऐसी राजनेता जो समझौतों से दूर रह कर अपने देश भारत में मज़बूत आस्था और निष्ठा रखने वाली थी। 1969 में उन्होंने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण उनके निजी स्वामित्व को खत्म कर दिया,वहीं राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स बंद करना भी ऐतिहासिक फैसला था। यह ऐसे निर्णय थे जिनका प्रभाव देश पर गहरा पड़ा। इंदिरा भारत को एक नई महाशक्ति बनाने में जुटी हुई थी।18 मई 1974 को इंदिरा ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करवाकर पूरी दुनिया को अपनी ताकत की धमक दिखाई। यह अभूतपूर्व था की जिस देश में 1953 तक सुई जर्मनी से खरीदना पडती थी, तकनीकी दृष्टि से वह पिछड़ा देश कुछ ही समय में आणविक शक्ति बन गया।

यह भी दिलचस्प है की दुनिया के कई देश हैं जहां महिलाओं के लिए वहां की संसद में आरक्षण हैं।  लेकिन महिला नेतृत्व को उभार देने के लिए और उनमें आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उनमें समाज का विश्वास ज्यादा प्रभावकारी परिणाम देता है।

पूर्वी एशिया में स्थित ताइवान पर प्रभुत्व को लेकर चीन बेहद आक्रामक रहा है। लेकिन चीनी आक्रामकता को उसी तरीके से जवाब देने का साहस भी एक चीनी महिला साई इंग-वेन ने दिखाया है। वे ताइवान की पहली महिला राष्ट्रपति हैं जो  2016 से इस पद पर हैं।  साई इंग वेन हमेशा ताइवान की पहचान पर जोर देती रही हैं,चीन की लगातार धमकियों के बीच साई इंग वेन डटी हुई हैं और ताइवान के लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। वे चीन विरोधी छवि के लिए अपने देश की जनता के बीच बहुत लोकप्रिय है। उन्होंने चीन को ताइवान पर काबिज होने के विचार को रद्द करने को कहा है कि वो चीन के एक देश,दो व्यवस्था वाले किसी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगी। चीन लगातार ताइवान को धमकी देता रहा है। यहां तक कि चीनी लड़ाकू विमान भी अकसर ताइवान के एयर डिफेंस क्षेत्र में आ जाते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद साई इंग वेन चीन को जवाब देने के लिए तत्पर नजर आती है।

अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी की राजनीतिज्ञ नैन्सी पेलोसी 2019 में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के रूप में चुनी जानी वाली अमेरिकी इतिहास की पहली महिला हैं। लेकिन उनकी पहचान एक साहसी  राजनीतिज्ञ की रही है। नैन्सी पेलोसी ने चीन के कड़े विरोध के बावजूद अगस्त 2022 में ताइवान क्षेत्र का दौरा किया था। इसमें उनकी जान को खतरा था लेकिन पेलोसी ने ताइवान यात्रा को यहां के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन करने के लिए अमेरिका की अटूट प्रतिबद्धता को  बताया था।

 

दुनिया में भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लो लेकर उसकी स्थिति फिसड्डी रही है। भारत में पंचायती राज के जरिए महिलाओं को आधारभूत आरक्षण दिए जाने के कई दशक बीत चूके है,भारत के कई राज्यों की सरकारों का नेतृत्व महिलाओं ने किया है,वहीं देश में राष्ट्रपति बनने का अवसर भी महिलाओं को मिला है। इन सबके बावजूद असल समस्या महिलाओं के उत्पीड़न और उनके खिलाफ होने वाली हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। भारत का लोकतंत्र समानता के सिद्धांत पर आधारित है,लोकतंत्र का राजनीतिक और सामाजिक न्याय न्याय प्रणाली स्थापित करने में भरपूर योगदान होना चाहिए। यह सामाजिक स्वीकार्यता से हो तो इसके बेहतर परिणाम हो सकते है। संविधानिक मजबूरियों के बूते आने वाले राजनीतिक नेतृत्व की विश्वसनीयता का संकट,पंचायतों से लेकर संसद तक रह सकता है। महिला नेतृत्व को संविधानिक कवच प्रदान करने की जरूरत को स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं माना जा सकता। इंदिरा गांधी,बेनजीर भुट्टों,पेलोसी या  साई इंग-वेन की नेतृत्व क्षमता उनके देश के समाज की सामूहिक जिम्मेदारी और विश्वास से उभर कर आई।

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