जिन्होंने राम के चरित्र पर मानस बनाया…!
अठारह सौ उनहत्तर में अंग्रेजों द्वारा स्थापित इलाहबाद उच्च न्यायालय को भारत की सबसे पुरानी अदालतों में शुमार किया जाता है। उन्नीस सौ दस में न्यायालय के सामने रामलीला के आयोजन को लेकर एक मुकदमा आया। छन्नू दत्त व्यास बनाम बाबु नंदन मिश्र के केस पर फैसला देते हुए न्यायाधीश स्टैनली तथा न्यायाधीश बनर्जी ने कहा कि भारत में कई शताब्दियों से रामलीला का आयोजन होता है और शोभायात्राएं निकाली जाती है। यह किसी मंदिर विशेष का आयोजन नहीं है। यह रामलीला मेघा भगत के समय से हो रही है जो सोलह सौ संवत के लगभग विद्यमान थे। रामलीला एक धार्मिक शोभायात्रा है।
रामचरितमानस की रचना 1631 संवत के आसपास मानी जाती है। यह भी बेहद दिलचस्प है कि गोस्वामी तुलसीदास और मेघा भगत ने मिलकर ही रामलीला समितियों की स्थापना की थी और भारत भर में राम लीलाओं का आयोजन तभी से होने लगा। दरअसल काशी में तुलसी के समकालीन एक राम भक्त रहते थे नारायण दास इन्हें ही मेघा भगत कहा जाता था। मेघा भगत वैष्णवी थे और वाल्मीकि रामायण के परम ज्ञाता भी थे। तुलसी ने मानस लिखी और देश भर में घूमकर मेघा भगत ने रामलीला के लिए सामग्री एकत्रित की। उनकी यह यात्रा अयोध्या से जनकपुर,नेपाल तक हुई। मेघा भगत ने चित्रकूट,काशी और अयोध्या में जो झांकी प्रारम्भ की वह वाल्मीकि रामायण पर आधारित थी।
शताब्दियों से रामलीला का आयोजन भारत के सभी प्रदेशों अर्थात पूरब,पश्चिम,उत्तर से लेकर दक्षिण तक होता रहा है। राम का चरित्र इतना विशाल है कि उनके कार्यों को सामने लाने के लिए यह आयोजन एक महीने तक भी हो जाता है जिसमें अलग अलग घटनाओं पर अलग अलग पात्र अपनी प्रस्तुती देते है। इसमें अदाकारी के साथ वाद्य यंत्रों का भरपूर सहयोग मिलता है। राम लीला को देखकर भारत की महान आध्यत्मिक यात्रा के दर्शन होते है।
गोस्वामी तुलसीदास ने जिस समय राम चरित मानस की रचना की,उस समय भारत की जनता अनपढ़ थी। अत: राम के चरित्र को घट घट तक समझाने का सबसे बड़ा माध्यम राम लीलाओं का मंचन हो गया। इसे किसी गली,मुहल्ले या खुले मैदान में किया जा सकता है। लोकधर्मी और नाट्य धर्मी हर युग में और हर समाज में हुए है। लोग राम को बिना पढ़े ही राम मय हो गए। वे राम जैसी आज्ञाकारी संतान की मनोकामना करने लगे। रामलीला रामचरितमानस में सात कांड पर आधारित है,जिसमे बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड,अरण्यकाण्ड,लंका कांड,सुंदर कांड तथा उतर काण्ड सम्मलित है। रामचरित मानस में राम,सीता,भरत,लक्ष्मण,सुग्रीव, बलि,हनुमान, रावण,मेघनाद,मारीच,विभीषण तथा मन्दोदरी के सजीव चित्रण प्रस्तुत किए गए है। राम चरित मानस के प्रमुख छंद दोहा और चौपाई हैं। इसके साथ ही इसमें सोरठा,मात्रिक,रोला,हरि गीतिका,कुंडलिया,छप्पय,कवित्त,सवैया आदि छंदों का भी सफल प्रयोग किया गया हैं। दोहा और चौपाई को लेकर यह स्पष्ट है कि उसकी मूल भावना को प्रस्तुतकर्ता अपने अनुसार और अपनी भाषा में प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र होता है। रामलीला के किरदार किसी भी जात,संप्रदाय या धर्म का हो सकता है और यह देखा भी गया है। फिर भीराम चरित मानस के उच्च आदर्शों और मानवीय मूल्यों को सदैव प्रस्तुत और स्वीकार किया गया।
रामचरितमानस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसने शैव तथा वैष्णव मतों में समन्वय स्थापित करने की कोशिश की है,यह अद्भुत है। शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। शैव संप्रदाय को मानने और पालन करने वाले लोग साधु समाज से लेकर जंगलों में रहने और विचरण करने वाले अनेक समाज रहे है जो भारत वर्ष में अनेक जगह युगों युगों से रहते आये है। शैव धर्म में कालामुख संप्रदाय के कई अनुयायी नर-पकाल में ही भोजन,जल और सरापान करते है और शरीर पर चिता की भस्म मलकर चलते है। शैव के अंतर्गत ही कापलिक संप्रदाय आता है जिसके ईष्ट देव भैरव थे। भैरव शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र अवतार हैं। उपासना की दृष्टि से भैरवनाथ एक दयालु और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं तथा उज्जैन में भैरव बाबा की जागृत प्रतिमा है जो मदिरा पान करती है। शैव अखाड़ों के साधु की पहचान कभी जातीय आधारित नहीं होती, दीक्षा के साथ ही उन्हें सब त्यागना पड़ता है।
वहीं वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के लोग वासुदेव की आराधना करते है और उन्हें ज्ञान,शक्ति, बल,वीर्य,ऐश्वर्य और तेज के गुणों से सम्पन्न माना जाता है। यह भी दिलचस्प है कि तुलसीदास ने जब राम चरित मानस की रचना की थी,उसके आसपास के काल में ही मध्यकालीन वैष्णव आचार्यों ने भक्ति के लिए सभी वर्ण और जाति के लिए मार्ग खोला था। तुलसीदास कृत रामचरितमानस समन्वय की दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण है कि शैव तथा वैष्णव मतों में शिव,पार्वती तथा राम की स्तुति कर एकता स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
राम चरित मानस में राम राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की गई है। सुखी जीवन के सिद्दांत के साथ ही कुशासन से उत्पन्न संकटों को इसमें बताया गया है। राम अनादी अनंत से इस पावन भूमि के पालनकर्ता है और उनके आदर्शों को सहेजने में कई साम्राज्यों का योगदान रहा है।
रामचरित मानस का प्रभाव जनमानस पर इतना रहा है कि राम लीलाओं का आयोजन कई भाषाओँ में होता है। पंजाब यूनिवर्सिटी में हरिराम संकीर्तन प्रचार मंडल की तरफ से कराई जाने वाली रामलीला का गठन 1935 में लाहौर में हुआ था। इसके ज्यादातर कलाकार मुस्लिम होते थे तो रामलीला का संवाद भी उर्दू में होने लगा। समय बदला,यूनिवर्सिटी विभाजन के बाद लाहौर से भारत आ गई लेकिन इसके संवाद आज भी उर्दू में ही होते है। भले की इसमें भाग लेंमे वाले कलाकार हिन्दू क्यों न हो. इस रामलीला के प्रधान विधि चंद कौशिक थे और वहीं ऐसे अंतिम इंसान थे जो कि उर्दू को पढ़ सकते थे। उन्होंने मृत्यु से पहले उर्दू में संवाद ट्रांसलेट करवा दिए थे इसलिए विश्वविद्यालय में जब भी रामलीला का मंच होता है संवाद आज भी उर्दू में ही होते है।
श्री रामचरित मानस में नायक श्री राम को एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक महा मानव के रूप में दिखाया गया है। राम भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता,समन्वय और सार्वभौमिक चरित्र और मान्यताओं की पहचान है। वे हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। राम का चरित्र और हमारी सभ्यता का विकास साथ साथ चलने वाली वह अवस्था है जिसने इस राष्ट्र को मजबूत करने में सदा योगदान दिया है।
राम को हम सभी नायक मानते है अत: रामचरित मानस आम जन की प्रिय हो गई। राम लीलाओं को देखकर भारत की कई पीढियां राम के चरित्र की महानता को आत्मसात करने लगी,इसमें जाति,धर्म या समाज का कभी भेद नहीं हुआ। यही कारण है कि गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा था कि रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है। राम को याद कर ही महात्मा गांधी भयमुक्त रहते थे। बापू ने कहा कि मैं सत्य को राम के नाम से पहचानता हूं। मेरी परीक्षा की कठिन से कठिन घड़ी में इसी नाम ने मेरी रक्षा की है और आज भी कर रहा है। इसका संबंध मेरे बचपन से हो सकता है या फिर तुलसीदास के प्रति मेरे आकर्षण से।
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