सेव अमेरिका से वैश्विक असहमति की आशंका
Uncategorized

सेव अमेरिका से वैश्विक असहमति की आशंका

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

 

ट्रंप एक बार फिर अमेरिका का नेतृत्व करने जा रहे है,इस बार उन्होंने अमेरिका फर्स्ट और सेव अमेरिका के साथ आगे बढ़ने का इरादा जाहिर किया है. अमेरिका में आप्रवासन पर बहस दशकों पुरानी है,हालांकि आप्रवासन व्यापक रूप से आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। ट्रम्प ने अमेरिका की विविधता  पर निशाना साधते हुए देश में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों को ऐसे जानवर के रूप में संदर्भित किया है जो हिंसा के लिए प्रवृत्त होते हैं। उन्होंने मैक्सिकों से लगती सीमा को बंद करने से लेकर भारत,चीन,यूरोप और नाटो को लेकर कड़े शब्दों का प्रयोग किया है,जिससे दुनिया में यह आशंका गहरा गई है की ट्रम्प का यह कार्यकाल व्यापक वैश्विक असहमति का कारण बन सकता है।

2016 में अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप की अमेरिकन ड्रीम्स की नीतियों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति, और वैश्विक सहयोग में कई देशों और संगठनों के साथ संघर्ष पैदा किया।  इस दौरान चीन, यूरोपीय संघ, और भारत जैसे देशों के साथ अमेरिका के रिश्तें प्रभावित हुए तो इससे ईरान, क्यूबा, मेक्सिकों जैसे राष्ट्रों और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्थाओं के साथ भी असहमति और विरोध उत्पन्न हुआ था। ट्रम्प एक बार फिर सत्ता में वापस लौटे तो है लेकिन उनके इरादें टकराव को बढ़ाने वाले ही नजर आ रहे है। यह उनके चुनावी कैम्पेन में भी देखने को मिला। उन्होंने भारत की व्यापार नीति और आयात शुल्क पर आलोचना की और इसे अमेरिका के लिए निष्पक्ष नहीं बताया। ट्रंप ने कहा था कि भारत बहुत बड़े शुल्क लगाता है, हम इसे सुधारेंग। दरअसल ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भी भारत को लेकर उनके नई फैसलों ने दोनों देशों के संबंधों को जटिल बनाया था। इस दौरान ट्रंप प्रशासन ने भारत पर कई व्यापारिक प्रतिबंध लगाए थे और भारत के कई उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाए थे। ट्रंप ने विशेष रूप से भारत के उच्च निर्यात शुल्क पर चिंता जताई थी और अमेरिका की मांग थी कि भारत अपने बाजार को अधिक खोलें। 2018 में, ट्रंप ने भारत  उस योजना से बाहर कर दिया था जो भारत को बिना शुल्क के अमेरिकी बाजार में कुछ उत्पादों का निर्यात करने की अनुमति देता था। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में व्यापक असहमति उत्पन्न हुई। ट्रंप ने अमेरिकी श्रम बाजार में भारतीय आईटी पेशेवरों के प्रवेश को सीमित करने के लिए H1B वीजा नीति को कड़ा किया था। भारत से बड़ी संख्या में तकनीकी विशेषज्ञ अमेरिकी कंपनियों में काम करने के लिए जाते हैं और ट्रंप ने इन वीजा पर पाबंदी लगाने के कई प्रयास किए। इसका भारत पर सीधा असर पड़ा क्योंकि यह लाखों भारतीय पेशेवरों के रोजगार को प्रभावित कर सकता था। ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था,जबकि भारत इस समझौते का एक हिस्सा था। भारत और अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर औपचारिक टकराव नहीं हुआ,लेकिन ट्रंप के कदमों से वैश्विक स्तर पर जलवायु नीतियों में भारत का रुख प्रभावित हुआ था।

ट्रम्प की असामान्य नीतियां उनके देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों को भी असहज करती रही है। ट्रम्प पुतिन को एक मजबूत नेता बताते है तो यूरोप और नाटो में अमेरिकी सहयोग को रोकने की बातें भी कह चूके है। अपने पहले कार्यकाल में भी उन्होंने यूरोप को लेकर कड़ा रुख अपनाया था जो अमेरिका की परम्परागत नीति से बेहद अलग हटकर माना गया। इस दौरान ट्रंप ने यूरोपीय देशों के खिलाफ व्यापार युद्ध की नीति अपनाई थी। 2018 में ट्रम्प ने यूरोपीय संघ को दुनिया का सबसे बड़ा व्यापरिक शत्रु बताते हुए यूरोपीय संघ से आयात होने वाले स्टील और एल्यूमीनियम पर भारी शुल्क लगा दिए थे जिससे यूरोपीय देशों में नाराजगी  बढ़ गई थी। यूरोपीय संघ ने भी जवाबी कदम उठाते हुए अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाए थे। ट्रंप ने यूरोपीय देशों के शरणार्थी और प्रवासी नीति को भी आलोचना की। उन्होंने यूरोप में बढ़ते शरणार्थियों और आप्रवासियों की संख्या को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उनका कहना था कि यूरोपीय देशों को अपनी सीमाओं को कड़ा करना चाहिए।

ट्रंप ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के बारे में भी कड़ा रुख अपनाया था। उनका मानना था कि नाटो के सदस्य देशों,खासकर यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा पर अधिक खर्च करना चाहिए और अमेरिका को उनके लिए सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा नहीं उठाना चाहिए। ट्रंप ने बार-बार नाटो के सदस्य देशों से अपील की कि वे अपनी रक्षा खर्च को 2 फीसदी तक  बढ़ाएं। ट्रंप का यह आरोप था कि अमेरिका नाटो के जरिए यूरोपीय देशों की रक्षा पर बहुत पैसा खर्च कर रहा है,जबकि यूरोपीय देशों को अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे थे। इस समूचे घटनाक्रम में यूरोपीय संघ यह देखकर हैरान रह गया था कि ट्रम्प आपूर्ति श्रृंखलाओं को खत्म करने और वाशिंगटन के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगियों के साथ संबंध खत्म करने के लिए तैयार हैं।

अब ट्रम्प की सत्ता में वापसी के बाद यूरोप आशंकित है और इससे अमेरिका के साथ उसके साझा हित प्रभावित हो सकते है। ट्रम्प से अपने चुनावी अभियान में यूरोपीय उद्योग और व्यवसायों को अमेरिका के कारखानों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर करने का भी वादा किया है। ट्रम्प की जर्मनी के कार उद्योग को लेकर भी आक्रामक योजनायें है,जिन्हें अमल में लाने  के परिणाम न केवल जर्मनी के लिए,बल्कि यूरोपीय संघ की अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी विनाशकारी हो सकते हैं।

ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनते ही यूरोप में सरगर्मी बढ़ गई है और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेन ने ज़ोर देकर कहा है कि यूरोपीय संघ, नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमरीका के साथ साझा हितों की तलाश करेगा। ट्रम्प अमरीका सर्वोपरि नीति को बढ़ावा दे रहे हैं,ऐसे में यूरोप के साथ ट्रम्प का व्यवहार कैसा होगा,यह देखना दिलचस्प होगा। ट्रम्प ने चुनाव जीतने पर अपने मित्रों और शत्रुओं पर समान रूप से 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत टैरिफ लगाने की अपनी योजना को छिपाया नहीं है। अपने रैलियों के भाषणों में, उन्होंने न केवल यूरोपीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाकर अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने का वादा किया है। यदि ट्रम्प ऐसे कदम उठाते है तो यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया पहले से कड़ी हो सकती है।यदि अमेरिका चीन के साथ मिलकर मुकाबला करने के लिए गंभीर है तो ट्रम्प को यूरोप के साथ सहयोग करना ही पड़ेगा।

ट्रंप ने चुनाव जीतने के लिए जो वादे किए थे उनमें से चीन के उत्पादों पर  साथ फीसदी तक भारी आयात शुल्क लगाना भी शामिल था। अब ट्रंप की जीत से दुनिया की सबसे बड़ी दो अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव और बढ़ने की आशंका है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने चीनी सामानों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए आयात शुल्क को 25 फीसदी तक बढ़ा दिया था। ट्रम्प प्रशासन ने चीनी तकनीकी कंपनियों पर कई प्रतिबंध लगाए थे। ट्रम्प ने इस कंपनी को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए हुवावे पर प्रतिबंध लगाया था और अमेरिकी कंपनियों को हुवावे से तकनीकी सामान खरीदने से रोक दिया था।

ट्रम्प को आर्थिक नीतियों और सामरिक नीतियों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए भारत,यूरोप,ऑस्ट्रेलिया,जापान,दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब से बेहतर सम्बन्ध कायम करने होंगे। ट्रम्प का इन देशों से अस्वाभाविक रुख अमेरिका के हितों को बहुत प्रभावित कर सकता है। अब देखना यह है की अमेरिका फर्स्ट और सेव अमेरिका की भावना को मजबूत करते हुए ट्रम्प अमेरिका के वैश्विक हितों का संरक्षण कैसे करते है। अंततः ट्रम्प इस हकीकत को नजरअंदाज करने की गलती नहीं कर सकते की अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश भले ही हो लेकिन उसकी शक्ति के स्रोत दुनिया के अलग अलग हिस्सों में है। यदि यह संतुलन बिगड़ता है तो अमेरिका के धड़ाम से गिरने और ट्रम्प के सेव अमेरिका की योजना के धराशाई होने की आशंका भी बढ़ जाएगी।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X