हमास की बर्बरता पर उन्मादी जश्न
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हमास की बर्बरता पर उन्मादी जश्न

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

                                                                        

आतंक की कूटनीति का प्रयोग क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर होता रहा है,मध्यपूर्व में इजराइल और फिलीस्तीन इसकी आधुनिक प्रयोगशाला है। इजराइल पर निर्मम हमला करने वाला आतंकी संगठन हमास वैश्विक गठबन्धनों से पोषित है,यहीं कारण है की हमास की आक्रामकता बदस्तूर बढती जा रही है। आतंकी संगठनों से राजनैतिक फायदे लेने की महत्वकांक्षाएं इतनी प्रबल है कि  कनाडा, यूरोपीय संघ,इज़राइल,जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश हमास को आतंकवादी संगठन  मानते है वहीं ईरान,तुर्की,रूस समेत कई इस्लामिक देशों के लिए हमास एक प्रतिरोधी समूह है जो इजराइल के जमीनी कब्ज़े को हटाने को प्रतिबद्ध है।

इन सबके बीच हमास की वैचारिक आक्रामकता में जमीन से ज्यादा सांस्कृतिक टकराव प्रतिबिम्बित होता है। इसे उसके नेताओं के सार्वजनिक बयानों से समझा जा सकता है। मसलन हमास के पूर्व संस्कृति मंत्री अतल्लाह अबू अल-सुब ने अल-अक्सा टीवी पर करीब एक दशक पहले कहा था कि,जो कोई यहूदी द्वारा मार डाला जाता है,वह दो शहीदों का प्रतिफल पाता है। इससे साफ पता चलता है की हमास के नेता और धर्म गुरु इजराइल में रहने वाले यहूदियों को सबसे घृणित जाति हैं बताकर लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने से भी परहेज नहीं करते। वे कहते है कि हमास को  यहूदियों के बिना एक कल की नींव रखनी होगी। हमास को ईरान और तुर्की से धर्मान्धता की जो घूंटी मिल रही है,उसने इस क्षेत्र में सांस्कृतिक टकराव को बढ़ा दिया है। तुर्की  की धर्मनिरपेक्षता को खत्म कर सर्वसत्तावादी शासन व्यवस्था को स्थापित करने की आर्दोआन की कोशिशों में धर्मान्धता ही शामिल रही है। आर्दोआन ने तुर्की में इस्लाम को सर्वोपरी मानने और दिखाने की राजनीतिक  और सामाजिक कोशिशें लगातार की और इसका राजनीतिक फायदा उन्हें खूब मिला। पंद्रहवी सदी के इस्लामिक ऑटोमन साम्राज्य जिसे सल्तनत-ए-उस्मानिया  को आधार बनाकर आर्दोआन देश में विभाजनकारी भावनाएं उभार रहे है। उनकी इन कुटिल कोशिशों के कारण  तुर्की की बहुलतावादी पहचान को बनाएं रखना मुश्किल हो गया है। तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में स्थित ऐतिहासिक इमारत हागिया सोफ़िया को प्राचीन चर्च के रूप में ख्याति मिली हुई थी और दुनिया भर के  लोग इसे देखने आते थे। हागिया सोफ़िया का लगभग डेढ़ सौ साल पहले एक ईसाई चर्च के रूप में निर्माण हुआ था और 1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य ने विजय के बाद इसे एक मस्जिद में बदल दिया था। लेकिन 1934 में आधुनिक तुर्की के निर्माता मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने मस्जिद को म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया और देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित  कर दिया था।  आर्दोआन ने अपने चुनावी एजेंडे के अनुसार ऐतिहासिक  हागिया सोफ़िया को मस्जिद में बदल दिया। ग्रीस के ईसाइयों और दुनिया भर के मुसलमानो के लिए इसका खास महत्व था। आर्दोआन ने यहां पहली बार नमाज अता करते हुए इसका राष्ट्रीय टीवी पर सीधा प्रसारण भी करवाया।

हमास ने इजराइल पर  निर्मम हमलें को ऑपरेशन अल अक्सा कहा।   ये उस पवित्र स्थान का नाम है जो एक लंबे अरसे से यहूदियों और मुसलमानों के बीच तनाव का विषय बना हुआ है। ये मस्जिद पुराने यरूशलम शहर के बीचों बीच स्थित है। मुस्लिम धर्मग्रंधों के मुताबिक़ अल-अक़्सा मस्जिद जिस पहाड़ी पर स्थित है,उसका नाम अल-हराम-अल-शरीफ़ है।  14 एकड़ में फैले अल-अक़्सा को यहूदी भी अपना सबसे पवित्र प्रार्थना स्थल मानते हैं।  वो इसे टेंपल माउंट कहते हैं। यहूदियों का विश्वास है कि बाइबल में जिन यहूदी मंदिरों का ज़िक्र किया गया है,वे यहीं थे।  हमास इस  धार्मिक स्थ्याँ की सम्पूर्ण जमीन पर नियन्त्रण स्थापित करना चाहता है और इसे धार्मिक जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है। हमास को फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के भीतर व्यापक रूप से प्रमुख राजनीतिक शक्ति  माना जाता है। 1990 के दशक के अंत तक हमास इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में तेजी से शामिल हो  था और इसके बाद इसने फिलीस्तीन के लोगों का बड़ा समर्थन हासिल कर लिया है। यहीं कारण है की इजराइल में हुए नरसंहार पर फिलीस्तीन के लोगों ने सार्वजनिक रूप से खुशियों का इजहार किया। आतंकी  समूहों के पनपने के लिए आंतरिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता जिम्मेदार होती है। फिलीस्तीन में हमास के लिए वातावरण बेहद अनुकूल है और अन्य देशों के सहयोग से इसका प्रभाव और मजबूत हो सकता है।

इन सबके बीच यह भी समझने की जरूरत है कि सांस्कृतिक,वैचारिक और धार्मिक मतभेद अक्सर सुरक्षा की भावना के साथ विनाश का मार्ग भी बनाते है। हिंसा,रक्तपात और उत्पीड़न के  विश्वव्यापी संकट ने विभिन्न क्षेत्रों में  अस्थिरता,असुरक्षा और अनिश्चितता को बढ़ाया है,इस्राइल और फिलिस्तीन विवाद में इसकी परछाई अक्सर दिखाई देती है।  इस्राइल और फिलिस्तीन की राजनीतिक इकाइयों की प्रतिस्पर्धा ने इसे युद्द क्षेत्र बनाने में मदद की है और आतंकी संगठन हमास का जन्म इसी का परिणाम है।  युद्द के बारे में कहा जाता है कि यह एक संगठित हिंसा है,वहीं इसे विभिन्न समूहों द्वारा अपने विभिन्न लक्ष्यों के सम्पादन हेतु सशस्त्र बल के संगठित प्रयोग करने की कला भी कहा जा सकता है।  मध्यपूर्व में इजराइल और फिलीस्तीन के विवाद के कई रूप है।  इजराइल के लोकतंत्र में यहूदीवाद हावी है वहीं फिलीस्तीन में हमास ने राजनीतिक संगठन के रूप में भी खुद को स्थापित कर इस्लामिक शासन व्यवस्था को आक्रामक रूप से उभारा है। हमास ने इज़राइल-पीएलओ  के बीच हुए ऐतिहासिक ओस्लो समझौते को ख़ारिज कर इज़राइल के विरुद्ध फ़िलिस्तीनी सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत करना जारी रखा। इस दौरान हमास ने इज़राइल के साथ कई युद्ध लड़े हैं।

यह भी दिलचस्प है की हमास कि तर्ज पर ही लेबनान में हिज़्बुल्लाह  काम करता है।  यह एक आतंकवादी समूह होने के साथ ही राजनीतिक दल भी है जो लेबनान के गृहयुद्ध के दौरान एक मिलिशिया के रूप में उभरा। शिया मिलिशिया समूह होने से इसे ईरान से खूब मदद मिली. सैन्य साजो सामान प्राप्त होने से यह कट्टरपंथी ताकतों को आकर्षित करने में सफल रहा। हिजबुल्लाह पश्चिमी लोगों के खिलाफ अपहरण और कार बम विस्फोट सहित आतंकवादी हमलों में शामिल  रहता है वहीं उसने अपने समर्थकों के लिए एक व्यापक सामाजिक सेवा नेटवर्क भी स्थापित  कर लिया है।

मध्यपूर्व के देशों में आतंकी समूह जिस प्रकार राजनीतिक और सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त करने में सफल हो रहे है,इससे सांस्कृतिक टकराव के अंदेशे बढ़ रहे है। आईएसआईएस,विशुद्ध रूप से आतंकी संगठन रहा और  उसने संविधानिक और स्थापित व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इससे आम जनता में उसके प्रति विरोध सामने आया। लेकिन हिज़्बुल्लाह  और हमास जैसे आतंकी समूह राजनीतिक व्यवस्थाओं पर कब्जा करके जातीय और नस्लीय हिंसा को वैधानिक रूप दे रहे है,यह विविधता वाले क्षेत्रों को तबाह करने के संकेत है। इसका प्रभाव आईएसआईएस से कहीं ज्यादा खतरनाक दिखाई पड़ रहा है। बहरहाल किसी देश में आतंकियों द्वारा किये गये नरसंहार पर अन्य देशों की राजनैतिक संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक खुशियां मनाया जाना मध्ययुगीन बर्बरता के संकेत है। अफ़सोस आधुनिक दुनिया इससे अछूती नहीं रही है।

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