उम्माह का उपयोग इस्लामिक जगत में व्यापक एकता के लिए किया जाता है,इसे अरब राष्ट्रवाद भी कह सकते है जो दुनियाभर में फैले इस्लाम के अनुयायियों को आक्रामक रूप से जोड़ता है। हमास इजराइल संघर्ष शुरू होने के बाद से ही पाकिस्तान में इजराइल विरोधी प्रदर्शन बड़े पैमाने पर हो रहे है। पाकिस्तान में आने वाली फरवरी में चुनाव है और राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ाने के लिए इस्लामाबाद में मजलिस इत्तेहाद ए उम्माह पाकिस्तान संगठन के द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें शिरकत करते हुए हमास चीफ इस्माइल हानिया ने पाकिस्तान को बहादुर देश बताते हुए इजरायल के खिलाफ जंग में हमास की मदद करने की गुहार लगाई है।
कुछ दिनों पहले पाकिस्तान की मजहबी पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम पाकिस्तान के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने कतर में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया और पूर्व प्रमुख खालिद मशाल से मुलाकात की थी जिसमें कश्मीर की तुलना फिलिस्तीन से की गई थी। गौरतलब है कि पाकिस्तान ऐतिहासिक तौर पर फ़लस्तीनियों के पक्ष में रहा है तथा उसने अभी तक इसराइल के साथ राजनयिक रिश्ते स्थापित नहीं किए हैं। गज़ा में इजराइल के हमलों के बीच इस्लामाबाद में फ़लस्तीनी राजदूत ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से मुलाक़ात की थी,जिन्होंने फ़लस्तीनियों के प्रति समर्थन जताया था।
दरअसल हमास के पक्ष में पाकिस्तान की दक्षिणपंथी पार्टियों का रुख बेहद आक्रमक नजर आ रहा है और इन रैलियों में अमेरिकी विरोध भी सुनाई दे रहा है। हालांकि पाकिस्तान की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां रुकों और देखों की नीति पर चल रही है। इन राजनीतिक दलों को एहसास है की सत्ता में आने के लिए और बाद में भी उन्हें अमेरिकी समर्थन की जरूरत पड़ेगी। सऊदी अरब पर निर्भरता के चलते भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सऊदी अरब हमास को पसंद नहीं करता है और इसलिए वह इजराइल को लेकर आक्रामक नहीं है।
इन सबके बीच यह विचार आता है कि भारत के लिए हमास और पाकिस्तान के बढ़ते रिश्ते कितनी मुश्किलें खड़ा कर सकते है। हमास अपनी मदद के लिए पाकिस्तान से मुजाहिदों की फौज चाहता है। यह मुजाहिदों की फौज भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ाती रही है। लेकिन पाकिस्तान इस दिशा में आगे बढ़ने की जुर्रत करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। पाकिस्तान का फ़लस्तीनियों के साथ ऐतिहासिक और भावनात्मक नाता है लेकिन उसके रणनीतिक और आर्थिक हित अमेरिका,यूरोपीय संघ और अन्य देशों से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान न सिर्फ़ इन देशों को निर्यात करता है बल्कि इनसे उसे आर्थिक सहायता भी मिलती है। ऐसे में पाकिस्तान आर्थिक संकट के बीच इनमें से किसी को नाराज़ करना नहीं चाहेगा। अमेरिका और यूरोप के कई देश इजराएल के साथ खड़े है,इस स्थिति में पाकिस्तान की सेना भी हमास के साथ जाने का विचार भी नहीं कर सकती। हाल ही में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से एक बेलआउट पैकेज मिला है,यह 1958 के बाद उसे मिला 23 वां बेलआउट पैकेज है। बेलआउट पैकेज के तहत आईएमएफ़ संबंधित देश की आर्थिक मदद करता है और कुछ शर्तें तय होती हैं कि इस रकम को कहां और कैसे खर्च किया जाता है।
पाकिस्तान के आर्थिक हालात बेहद खराब है। उसे निर्यात से होने वाली आमदनी में 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी कपड़ों की है,लेकिन देश की कुल कपड़ा फ़ैक्ट्रियों में से क़रीब एक तिहाई बंद हो गई हैं। बिजली दोगुनी महंगी हो गई,फ़ैक्ट्रियां उत्पादन की लागत बढ़ने का बोझ नहीं उठा पा रहीं और बंद हो रही हैं। आर्थिक संकट और नौकरी के अवसर न होने के कारण हज़ारों पाकिस्तानी देश छोड़ चुके हैं।
पिछले साल मॉनसून के दौरान भयंकर बाढ़ के कारण पाकिस्तान में 1700 लोगों की जान गई थी और बड़े पैमाने पर खेती योग्य ज़मीन तबाह हो गई थी। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि इससे क़रीब 30 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है। वहीं आईएमएफ़ का अनुमान है कि पाकिस्तान पर चीन का क़रीब 30 अरब डॉलर कर्ज़ है। बेल्ट एंड रोड अभियान के तहत चीन यहां सीपीईसी में 60 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है। अब पाकिस्तान भी आश्वस्त नहीं है कि इस निवेश के चलते वह इतनी कमाई कर पाएगा कि चीन का क़र्ज़ चुका पाए। पाकिस्तान को सुरक्षा को लेकर भी संकट का सामना करना पड़ा रहा है। उसे क़ड़ा शरिया क़ानून लागू करने की चाहत रखने वाले इस्लामी चरमपंथियों के लगातार हमले और आत्मघाती धमाके भी झेलने पड़े हैं। पाकिस्तान के आतंकी संगठन संयुक्त मोर्चे बना रहे है और यह पाकिस्तान की सेना के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। बलूचिस्तान प्रांत में सक्रिय बलोच चरमपंथी संगठनों में विलय के लिए वार्ता जारी हैं। बलूचिस्तान में इस समय चरमपंथी संगठनों में बलोच लिबरेशन फ़्रंट,बलोच लिबरेशन आर्मी,बलोच रिपब्लिकन गार्ड, बलोच लिबरेशन टाइगर्स,बलोच नेशनलिस्ट आर्मी और यूनाइटेड बलोच आर्मी नाम के संगठन सक्रिय हैं। ये सभी चरमपन्थी संगठन बलूचिस्तान की आज़ादी चाहते है और यदि सबका विलय हो जाता है तो पाकिस्तानी सेना पर हमलें की तीव्रता और भी बढ़ सकती है। यदि ऐसा होता है तो पाकिस्तान में चीन का निवेश मुश्किल में पड़ जायेगा और इससे चीन और पाकिस्तान के सम्बन्धों में तनाव बढ़ सकता है।
लाखों अफ़ग़ान शरणार्थी अब पाकिस्तान से लौट कर वापस अफगानिस्तान जा रहे है,इससे तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों में भारी तनाव देखा जा रहा है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर गहरा तनाव है तथा ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के क्षेत्र स्वात,दक्षिणी वज़ीरिस्तान,महमंद,बाजौड़,औरकज़ई,दर्रा आदम ख़ेल और दूसरे क्षेत्रों में कई तालिबान समूह स्वतंत्र रूप से सक्रिय है। यह सारे समूह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान नाम के एक समूह बनाने और एक व्यवस्था के अंदर काम करने पर सहमत हो चूके है। टीटीपी बनने के बाद पाकिस्तान में कई बड़े आतंकी हमलें होते रहे है।
इन हालातों में पाकिस्तान की दक्षिणपंथी पार्टियां भले ही हमास के पक्ष में आवाज बुलंद करें लेकिन हमास को सामरिक हथियार,सैन्य मदद या मुजाहिदीन की फौज पर पाकिस्तान की सरकार और सेना खामोश ही रहेगी। आने वाली फरवरी में होने वाले आम चुनावों में फिलीस्तीन को सहायता के मुद्दे पर यदि मजहबी पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम पाकिस्तान सत्ता में आ जाती है तो यह पाकिस्तान में आतंकी जमातों के लिए संजीवनी की तरह हो सकता है। भारत के लिए भी तब स्थितियां विकट हो सकती है। हालांकि इसकी उम्मीद कम ही है क्योंकि पाकिस्तान में चुनाव वहां की सेना के नेतृत्व में होते है और वह पहले से ही बदहाल देश को आंतरिक संकट में डालने से परहेज करेंगी।
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