नवभारत टाइम्स
पाकिस्तान में जो शक्तिशाली उच्च वर्ग का बड़ा समूह है वह पाकिस्तान की फ़ौज है। पाकिस्तान की फ़ौज का देश की राजनीति,समाज,न्यायिक तथा समूची व्यवस्था पर इतना अधिक प्रभाव है की अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से सबसे पहले फोन पर बातचीत की थी और यहीं से भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष को रोका जा सका। लेकिन इन बीच भारत ने पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद,अलियाबाद,कहुटा,हजीरा,मीरपुर,रावलकोट,रावलपिंडी और गुलाम कश्मीर में से अनेक आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों को निशाना बना कर तबाह कर दिया तथा पाकिस्तान के सैनिक ठिकाने भी भारतीय हमलों से बच नहीं सके।
भारत ने जिस तरीके से इस बार हमला किया,उससे भारत की पारंपरिक रणनीति में बदलाव देखने को मिला है। भारत के हमले ने पाकिस्तान के हवाई रसद और उच्च-स्तरीय सैन्य समन्वय के केंद्र को बाधित कर दिया और महत्वपूर्ण प्रशिक्षण और संभावित मिसाइल भंडारण केंद्र को नुकसान पहुंचाया। 1971 के बाद पाकिस्तान के अंदर की गई भारत की बड़ी सैन्य कार्रवाई से बदहवास सेना,अपनी नाकामियों को छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही है और जीत के जश्न के रूप में अपने देश की जनता को गुमराह कर रही है। इसका एक प्रमुख कारण सेना की यह आशंका की जनता में कहीं वह ख़ारिज न हो जाएं। जब भी सत्ता के उच्च वर्ग को कोई चुनौती मिलती है तो वह अपनी हैसियत को बरक़रार रखने के लिए शक्ति का प्रदर्शन करता है।
पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह और तीसरे राष्ट्रपति याह्या खां के कार्यों से पाकिस्तान में सेना की स्थिति और जनता को भ्रम में रखने की कोशिशों को भलीभांति समझा जा सकता है। 1971 में भारत से युद्द के ठीक पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खां से आईएसआई के एक अधिकारी ने कहा था की दुनिया की मशहूर ज्योतिषी जीन डिक्सन ने भविष्यवाणी की है कि एक शासनाध्यक्ष के रूप में अभी वो कम से कम दस सालों तक रहेंगे। इस बात से याह्या इतने उत्साहित हुए थे की उन्होंने भारत ने सामने पाकिस्तान की सेना के 93 हजार सैनिकों के आत्म समर्पण के पन्द्रह मिनट पहले तक अपने देश को यह भरोसा दिला रहे थे की वे युद्द में जीत के बहुत करीब है और भारत पर उनका कब्जा होने वाला है। जनरल याह्या के एडीसी रहे अरशद समी खां अपनी किताब ‘थ्री प्रेसिडेंट्स एंड एन एड’ में लिखा कि,राष्ट्रपति याह्या ख़ाँ सार्वजनिक रूप से ऐलान कर चुके थे कि अगर पाकिस्तान की एक इंच ज़मीन पर भी हमला किया गया तो इसका मतलब पूर्ण युद्ध होगा। वहां मौजूद हर व्यक्ति ये जानते हुए भी इस प्रस्ताव से सहमत था कि पाकिस्तान युद्द की घोषणा करने की स्थिति में नहीं था। पाकिस्तान की स्थापना के ठीक 11 साल बाद यानि 1958 में देश में पहला मार्शल लॉ लगा दिया गया था। इस प्रकार पाकिस्तान में बहुत जल्दी ऐसे हालात बन गये की सैन्य ताकतों को पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप का वह अवसर दिया गया जिससे इस इस्लामिक गणराज्य में लोकतंत्र स्थापित होने की संभावना ही धूमिल हो गई। पाकिस्तान में राजनीतिक पार्टियों को व्यवस्था में पूरी तरह से हावी न होने देने को लेकर सेना सतर्क रही है। यही कारण है कि कोई भी सरकार मुश्किल से ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाती है। चुनी हुई सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सेना विपक्षी दलों का सहारा भी ले लेती है,देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन होते है और सेना देश की आंतरिक शांति भंग होने का खतरा बताकर सत्तारूढ़ पार्टी की सरकार को अपदस्थ कर देती है।
यह भी बेहद दिलचस्प है कि अमेरिका ने पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही को प्रश्रय देते हुए अय्यूब ख़ान,जनरल याह्या खान,जनरल ज़िया-उल-हक़ और जनरल परवेज मुशर्रफ को भरपूर समर्थन दिया। सेना ने अमेरिका की आर्थिक मदद को देश के विकास से ज्यादा सैन्य सुविधाओं के लिए खर्च किए। पाकिस्तान के आर्थिक हितों और विभिन्न व्यवसायों में सैन्य अधिकारियों की बड़ी भागीदारी और निजी हित रहे है। पाकिस्तान की आम जनता महंगाई से भले ही त्रस्त हो लेकिन सैनिकों की सुविधाओं से कभी समझौता नहीं किया जा सकता। सरकारें सेना के दबाव में ही देश का आर्थिक बजट तय करती है। देश में सेना और आईएसआई की आलोचना को अपराध माना जाता है। कुल मिलाकर दुनिया भर में पाकिस्तान की छवि एक ऐसे देश की बन गई है जहां सेना के समर्थन के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। अमेरिका का गैर नाटो सहयोगी पाकिस्तान,आतंक की बड़ी फैक्ट्री है जिसका उपयोगी अमेरिकी हितों की पूर्ति के लिए कई बार किया जाता है। अभी भी अमेरिका को ईरान और चीन के खिलाफ पाकिस्तान की जरूरत है और इसीलिए ट्रम्प और सीआईए पाकिस्तान की प्रासंगिकता को बनाएं रखना चाहते है।
पहलगाम पर हुए आतंकी हमलें के बाद भारत के जवाब से एक बार फिर पाकिस्तान की व्यवस्था में कोहराम मच गया है। राजनीतिक नेतृत्व और सेना के बीच जवाबदेही को लेकर गहरा असंतोष है। इस बीच देश में सेना के गौरव का बखान हो रहा है। वहीं शाहबाज़ शरीफ गहरे दबाव में है की कहीं सत्ता पलट न हो जाएं। भारत के हमलें का फायदा उठाकर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने इस सूबे से पाकिस्तान के कई आर्मी कैम्पों को ध्वस्त कर दिया है,पाक सैनिक अपनी चौकियों से भाग चूके है। बलूचिस्तान की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद जटिल है और अब पाकिस्तान की सेना का पुन: इन रणनीतिक मोर्चों को काबू में करना बेहद मुश्किल होगा। खैबर पख्तुन्वा से भी पाक सेना को खदेड़ दिया गया है। पाकिस्तान की सेना कभी युद्द नहीं जीती,1971 में बांग्लादेश बन गया,अब बलूचिस्तान पर टूटने का खतरा है। पाकिस्तान की सेना की यह मज़बूरी रही है की वह देश की जनता को गुमराह करके सत्ता पर कब्जा बनाएं रखे। यहीं कारण है की वह पराजय में भी जश्न के कारण ढूँढती है और फिर सत्ता पर दबाव बनाकर अपनी वाहवाही करवाने को मजबूर कर देती है। भारत की सैन्य रणनीति और आक्रामकता से तबाह हुए पाकिस्तान के हालात बेहद खराब हो चूके है। फिर भी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने बूझे चेहरे से पाकिस्तान की सेना की तारीफ में कसीदें गढ़े और फिर देश में जश्न शुरू हो गया।
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भारत मे आतंकवाद
पाकिस्तान की आर्मी हार कर भी जीत का जश्न क्यों मनवा रही है….
- by brahmadeep alune
- May 17, 2025
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