नवभारत
कूटनीति की सफलता अक्सर मनोवैज्ञानिक विजय पर आधारित होती है और पुतिन की भारत यात्रा ने यही सिद्ध किया। भारत द्वारा दिए गए सम्मान,रेड कार्पेट स्वागत और उच्च स्तरीय वार्ताओं ने दुनिया को संदेश दिया है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग है। इस यात्रा ने यह भी दिखाया कि रूस वैश्विक दबावों के बीच भी अलग-थलग नहीं है और भारत उसके लिए भरोसेमंद साझेदार बना हुआ है। इसके साथ ही अमेरिका और यूरोप के दबावों से अप्रभावित रहकर भारत ने तीसरी दुनिया के आत्मविश्वास को भी बढ़ाया है। जाहिर है ग्लोबल साउथ के देशों ने भारत को एक आत्मविश्वासी,संतुलित और प्रभावशाली शक्ति के रूप में देखा। यह बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है।
रूस दशकों से भारत का प्रमुख रक्षा भागीदार और आपूर्तिकर्ता रहा है। वर्तमान में रक्षा सहयोग भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम समझौते द्वारा निर्देशित है।वर्तमान में चल रही द्विपक्षीय परियोजनाओं में टी-90 टैंकों और एसयू-30-एमकेआई विमानों का लाइसेंस प्राप्त उत्पादन,मिग-29-के विमान और कामोव-31 की आपूर्ति,मिग-29 विमानों का उन्नयन आदि शामिल हैं।भारत की मिसाइल प्रणाली,युद्धक विमानों से लेकर परमाणु पनडुब्बियों तक,अधिकांश रणनीतिक हथियारों का आधार रूसी तकनीक पर आधारित है।अन्य क्षेत्रों में ऊर्जा सहयोग उच्चतम स्तर तक पहुंच गया है।रूस भारत को रियायती दरों पर तेल और गैस उपलब्ध कराता है,जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा स्थिर रहती है। इसी तरह अंतरिक्ष,विज्ञान,उर्वरक,फार्मा और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी निरंतर संवाद और सहयोग बना हुआ है। इस प्रकार दोनों देश अपनी आवश्यकताओं के आधार पर दीर्घकालिक रणनीतिक तालमेल विकसित कर रहे हैं।
भारत में पुतिन की हालिया यात्रा ऐसे समय हुई,जब वैश्विक राजनीति अत्यंत जटिल और दबावपूर्ण स्थिति में थी। एक ओर रूस पश्चिमी प्रतिबंधों तथा यूक्रेन युद्ध की चुनौतियों से गुजर रहा है,वहीं भारत पर अमेरिका और यूरोपीय देशों का लगातार दबाव था कि वह रूस से अपनी निकटता कम करे। इस कारण माना गया कि मोदी और पुतिन दोनों ही दबाव में होंगे । लेकिन दोनों नेताओं ने ऐसे किसी दबाव को दरकिनार कर अपनी स्वतंत्र रणनीति को प्राथमिकता दी। इस दौरान दुनिया ने भारत की रणनीतिक स्वायत्ता को महसूस किया जो राष्ट्रीय हितों के लिए किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं हुई। इस समय भारत के लिए ट्रम्प और पश्चिमी गठजोड़ के चुनौतियां बढाई है की भारत को रूस से दूरी बनानी चाहिए। तेल आयात,रक्षा खरीद और तकनीकी सहयोग जैसे मुद्दों पर अमेरिका के संकेत स्पष्ट यहीं है। इसके बावजूद भारत ने पुतिन की यात्रा को न केवल अभूतपूर्व बनाया बल्कि 2030 तक व्यापार को 100 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया। इस दौरान रक्षा,ऊर्जा,रोजगार,उर्वरक, स्वास्थ्य,खाद्य सुरक्षा,शिपिंग,शिक्षाऔर तकनीकी विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में कई समझौते हुए। रूसियों के लिए भारत में 30-दिन की नि:शुल्क ई-टूरिस्ट वीजा का ऐलान हुआ,इससे सांस्कृतिक, पर्यटन और लोगों के बीच आदान-प्रदान को बल मिलेगा। भारत में न्यूक्लियर ऊर्जा परियोजनाओं पर सहयोग जारी रहेगा। इसके साथ ही रूस ने भारत को निरंतरतेल व गैस आपूर्ति की गारंटी दी। इन समझौतों से पता चलता है कि भारत दबाव में नहीं है और दुनिया को भी यह स्पष्ट संदेश गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हितों और संतुलन की राजनीति के बीच अपना स्वतंत्र रास्ता स्वयं तय करेगा।
इस समय रूस यूक्रेन युद्द को रोकने के लिए पुतिन पर गहरा दबाव है। रूस से सहयोग करने वाले देशों पर भी वैश्विक स्तर पर दबाव डाला जा रहा है। खासकर पश्चिमी देश रूस को ग्लोबल दक्षिण से दूर करने की कोशिश करता रहे है। पुतिन की यात्रा भारत के लिए भी किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं थी। लेकिन भारत की इस यात्रा ने यह स्पष्ट किया कि रूस अभी भी विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण साझेदार है। पुतिन ने इस यात्रा के माध्यम से यह प्रदर्शित किया कि रूस के लिए भारत केवल रक्षा सहयोगी नहीं,बल्कि एक व्यापक आर्थिक और रणनीतिक भागीदार है। रूस इस समय कई स्तरों पर बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। सबसे बड़ी चुनौती यूक्रेन युद्ध के चलते जारी पश्चिमी प्रतिबंधों की है,जिसने उसकी अर्थव्यवस्था,बैंकिंग प्रणाली,निर्यात और वैश्विक व्यापार पर गंभीर असर डाला है। ऊर्जा निर्यात पर निर्भर रूस को यूरोपीय बाज़ार लगभग खोना पड़ा,जिससे उसकी राजस्व संरचना पर दबाव बढ़ा है। तकनीकी प्रतिबंधों के कारण आधुनिक उपकरण,माइक्रोचिप्स और हाई-टेक मशीनरी की उपलब्धता सीमित हो गई है,जो सैन्य और औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित कर रही है।कूटनीतिक स्तर पर भी रूस को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के कारण कई पारंपरिक सहयोगियों ने दूरी बना ली है। इसके अलावा,युद्ध की लंबी अवधि ने रूस की आंतरिक राजनीति, संसाधनों और जनमानस पर भी असर डाला है।

वहीं भारत वर्तमान समय में जटिल और बहुस्तरीय भू-रणनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। सबसे बड़ी चुनौती चीन का विस्तारवादी रुख है,लद्दाख में सैन्य दबाव,अरुणाचल पर अवैधानिक दावे हों या हिंद-प्रशांत में आक्रामक नौसैनिक मौजूदगी। चीन और पाकिस्तान की सामरिक मोर्चाबंदी भी भारत के लिए चुनौती बढ़ा रही है।इन सबके बीच भारत को बहु-ध्रुवीय विश्व में संतुलन साधने,रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और पड़ोसी क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करने की निरंतर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।हिंद महासागर में बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भी भारत से सक्रिय समुद्री कूटनीति की मांग करती है। पुतिन की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए रणनीतिक,आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से प्रभावकारी रही है। भारत को ऊर्जा,रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में स्थिरता और विविधीकरण का महत्वपूर्ण फायदा मिलने की उम्मीदें बढ़ी है। रूस भारत का सबसे विश्वसनीय रक्षा साझेदार रहा हैऔर इस यात्रा से साझा रक्षा परियोजनाओं,स्पेयर-पार्ट आपूर्ति,परमाणु ऊर्जा सहयोग तथा नए तकनीकी क्षेत्रों में साझेदारी को मजबूती मिलेंगी। ऊर्जा क्षेत्र में रूस का किफायती तेल भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ा स्तंभ बना हुआ है और इसके निर्बाध बने रहने से भारत और रूस दोनों देशों को आर्थिक लाभ होगा।वहीं रूस की दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच भारत ऐसा बड़ा राष्ट्र है जो रूस से निरंतर आर्थिक संबंध बनाए रखे हुए है। भारत रूस को न केवल विशाल बाजार देता है,बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रणनीतिक संवादका अवसर भी प्रदान करता है,जिससे रूस की वैशिक प्रासंगिकता बरकरार रहती है।






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