आशाओं,अपेक्षाओं,असाधारण कार्यों के लिए ख्यात लेकिन विपक्षी आलोचनाओं के भी केंद्र में रहने वाले पीएम मोदी के राजनीतिक जीवन में मां का स्थान और उनकी भूमिका चमत्कृत करती रही है। आम भारतीयों के लिए पीएम के साथ मां की तस्वीर ऐसा आकर्षण का केंद्र है जिसमें अनंत संभावनाएं और भारतीय जीवन के उच्च मूल्य दिखाई देते है। भारतीय परिवेश की विभिन्नता के बीच,देश के अलग अलग क्षेत्रों में की गई सभाओं में पीएम ने महिलाओं की समस्याओं को समझने के लिए अपनी मां के संघर्षों को कई बार याद करते रहे है। मसलन मोदी जब यह बताते है कि मेरी मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ,उन्होंने स्कूल का दरवाज़ा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव। इससे साफ है कि अपार जनसमूह के बीच मां के जीवन की कहानियों में वह आम भारतीय समाज नजर आता है जहां पर महिलाएं अशिक्षा,अभावों और गरीबी से जूझते हुए भी अपने परिवार और बच्चों की बेहतरी के लिए कड़ी मेहनत करती है। पीएम यहां उन मजबूर करोड़ों लोगों और मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते नजर आते है।
पीएम के भाषणों में मां का जीवन स्वत: ही भारत की करोड़ों माताओं की सच्चाई को जाति,भाषा या क्षेत्र से परे हटकर जोड़ देता है। भारत के किसी भी इलाके में चले जाइये,महिलाओं की मजबूरियां और चुनौतियां कम नहीं है,फिर भी अपने परिवार और बच्चों की बेहतरी के लिए काम करने का जज्बा भी कम नहीं दिखता। आदिवासी और पिछड़े समाज की हकीकत पीएम मोदी की मां के जीवन में दिखाई पड़ती है। पीएम मोदी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्ज्वला नाम की चूल्हा योजना ने गरीबों को खूब आकर्षित किया। अपने अभावों और अनुभवों को वे बयां करते हुए साफ कहते है कि वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी,कोई बाथरूम नहीं था,कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था,उसी में मां-पिताजी,हम सब भाई-बहन रहा करते थे। उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।
पीएम जिस घर की बात कहते है वह भारत के करोडो लोगों की गरीबी की एक सच्चाई है,जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। करोड़ों लोगों के पास पक्के मकान नहीं है और लोग टूटे या आधे अधूरे घरों में रहते है। पीएम की मां के जीवन का अनुभव उन लोगों की भावनाओं को समझने का व्यावहारिक संदेश होता है। भारतीय समाज में मध्यम वर्ग का आकार 30 फीसदी से अधिक हो गया है और भारत में 14 करोड़ लोग गरीब है। जाहिर है यह वर्ग खुद को प्रधानमंत्री के जीवन से जोड़कर गौरवान्वित तो समझता ही है।
भारतीय समाज का गरीब तबका दो जून रोटी के लिए हर दिन जूझता है। कई महिलाएं झाड़ू पोछा करके अपने घर को चलाती है। पीएम मोदी ने समाज के इस वर्ग की सच्चाई को खुद से जोड़कर सार्वजनिक मंचों से यह कहने से परहेज नहीं किया की उनकी मां घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। यहीं नहीं पीएम ने मां की साफ सफाई की आदतों से लेकर घर सजाने के घरेलू और ग्रामीण समाज के तरीकों का भी उल्लेख किया। यह आधुनिक भारत के करोड़ों लोगों को जोड़ने वाला अनुभव पीएम बेहतर तरीके से प्रस्तुत करते है और यही उनका मध्यम वर्ग और गरीबों में आकर्षण का केंद्र भी बनता है।
यह भी दिलचस्प है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में शायद ही किसी मां को 8 साल तक अपने बेटे को देश के सर्वोच्च पद पर प्रधानमंत्री के रूप में विराजित होते देखने का अपने जीवनकाल में सौभाग्य मिला हो। पंडित नेहरु और इंदिरा गांधी,लंबे समय तक देश के प्रधानमंत्री अवश्य रहे हो लेकिन उस समय उनकी मां जीवित नहीं थी। जबकि अटलजी की मां कृष्णा देवी और मनमोहनसिंह की मां अमृत कौर की जानकारियां ही उपलब्ध नहीं है। दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष अपनी पत्नी के साथ वैदेशिक यात्राओं पर होते है। हिलेरी क्लिंटन हो या मिशेल ओबामा,वे लोगों के लिए कम आकर्षण का केंद्र नहीं रही। जबकि भारत के पीएम अपने आदर्श के रूप में मां को प्रस्तुत करते है और यह भारतीयता की विशिष्ट छाप है जो सबकों मंत्रमुग्ध कर देती है। अंततः पीएम ने सार्वजनिक मंचों से मां को जिस प्रकार याद किया है वह आम भारत की मां ही की तो तस्वीर है और फिर असल राजनेता तो वही जो जनता को जोड़ने में कामयाब हो जाएं।
पीएम की मां का गुजर जाना किसी भी देश और राजनेताओं के लिए अपूरणीय क्षति के साथ ही एक बड़ी घटना है। यह राष्ट्रीय शोक घोषित हो सकता था और इसमें देश के सर्वोच्च नेताओं,करोड़ों लोगों के साथ वैदेशिक राष्ट्रअध्यक्ष भी शामिल हो सकते थे। लेकिन पीएम मोदी अपने पैतृक गांव पहुंचे,आम भारतीयों की तरह ही स्थानीय शव वाहन में बैठकर अपनी मां के शव को शमशान घाट ले गए और उन्हें मुखाग्नि देकर काम पर लौट गए।
पीएम की सादगी का यह अभूतपूर्व व्यवहार भारत के लोकतंत्र का वह चेहरा है जिसकी कल्पना आज़ादी के आंदोलन में की गई थी। जिस दौर में लोकतंत्र अभिजनों के द्वारा अपहृत कर लिया गया हो तथा आम जनता के लिए नेता दूर की कौड़ी हो गये है वहां पीएम ने अपनी मां की अंतिम बिदाई में सादगी और लोक व्यवहार के ऊंचे प्रतिमान स्थापित किए है। उनके धूर राजनीतिक विरोधी इसे स्वीकार भले ही न करें लेकिन वे चमत्कृत हुए बिना भी नहीं रह सकते। बहरहाल मोदी ने एक बार साबित कर दिया की कई नाकामियों के बाद भी भारत के लोगों का भरोसा उन पर क्यों कायम है।
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