india china bharat rashtriy sahara
article गांधी है तो भारत है

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सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव 1960 के दशक में भारत के बहुत अच्छे दोस्त थे और उस समय सोवियत संघ और चीन के बीच सीमा पर गहरा तनाव था ।इन परिस्थितियों में भी 1962 में चीन ने जब भारत पर हमला किया तो उसे रोकने के लिए जो सामरिक दबाव बनाया गया था,वह अमेरिका का था और इसीलिए चीन को भारत के इलाके वापस लौटाने पड़े थे।

इस समय देश की उत्तरी सीमा पर चीन के साथ गहरा तनाव है और युद्द जैसी स्थितियां निर्मित हो गई है। भारत अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए रूस पर काफी हद तक निर्भर है। दुनिया में रूस से सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वालों में भारत शुमार है। पिछले चार सालों की ही बात की जाये  यानि 2017 से 2021 के बीच रूस के कुल हथियार निर्यात में भारत का हिस्सा लगभग अठ्ठाइस फीसदी था। वहीं यूक्रेन पर रूस के हमलें क्ले बाद वैश्विक स्तर पर हालात बेहद बदलें है। पश्चिमी देशों और अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी रूस अभी तक यूक्रेन को लेकर अपने रुख से पीछे नहीं हटा है। इसका एक प्रमुख कारण रूस को चीन से मिलने वाली मदद है। चीन और रूस के बीच व्यापार अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग रूस के राष्ट्रपति पुतिन को अपना आदर्श बता चूके है। दोनों देशों के बीच आर्कटिक में संयुक्त ऊर्जा साझेदारी बढ़ रही है और रूस के रेलवे और पोर्ट  में चीन का निवेश बढ़ रहा है। रूस और चीन अब ज़्यादा से ज़्यादा अपनी मुद्राएं रूबल और युआन में व्यापार कर रहे हैं। दोनों देश डॉलर और यूरो में कम से कम व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं जिससे पश्चिम के आर्थिक दबाव को कम किया जा सके।

चीन और रूस की बढ़ती  नजदीकियां भारत की चिंता बढ़ाने वाली है। इस साल की शुरुआत में वियना में एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री जयशंकर ने बेहद साफ शब्दों में चीन से संबंधों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कम्युनिस्ट देश से लगती उत्तरी सीमाओं  पर स्थिति को असामान्य बताया। पिछले तीन चार सालों से भारत चीन सीमा पर तनाव बहुत बढ़ गया है। 1950 के दशक से दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प तो कई बार हो चूकी है लेकिन 1962 के बाद  इस समय जिस प्रकार तनाव नजर आ रहा है,उसे युद्द से कम बिल्कुल नहीं समझा जा सकता। डोकलाम,गलवान,लेह,लद्दाख से लेकर तवांग  में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई है और कहीं कहीं यह बड़े संघर्ष में भी तब्दील हुई है। दो जून 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में कहा था कि चीन और भारत में भले सीमा विवाद है लेकिन दोनों देशों के बीच सीमा पर पिछले 40 सालों में एक भी गोली नहीं चली है। चीन ने प्रधानमंत्री मोदी इस बयान का स्वागत किया था और हाथों हाथ लिया था। लेकिन इन सबके बीच चीन ने  भारतीय सीमा पर लगातार अतिक्रमण किया है तथा तेज नुकीलें डंडों से भारतीय सैनिकों पर हमला भी किया है।

चीन से लगती लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर की सीमा पर तनाव  चरम पर है और भारत ने उत्तरी सीमा पर सैन्य क्षमता में अभूतपूर्व इजाफा किया है। भारत और रूस के रक्षा संबंध उच्च कोटि के है लेकिन चीन से संघर्ष की स्थिति में  रूस को लेकर भारत आश्वस्त नहीं रह सकता। पिछले  तीन चार सालों में कूटनीतिक स्तर पर भारत और चीन के बीच बातचीत बेनतीजा ही रही है और यह तनाव के बढ़ने के संकेत है। भारत के विदेशमंत्री जयशंकर अपने चीनी समकक्ष से कई बार मिलें लेकिन चीनी सेना के वर्तमान स्थिति से वापस पीछे  हटने जैसे समझौते नहीं हो सके। अब चीन के नये विदेशमंत्री  अमेरिका में चीन के राजदूत रहे चिन गांग को नियुक्त किया गया है। उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग का करीबी माना जाता है। चिन गांग एक बेहद सख्त कूटनीतिज्ञ के रूप में चर्चित रहे हैं जो आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते। भारत के लिए यह स्थिति अनुकूल नहीं हो सकती।

 

भारत और चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी स्थिति को लगातार मजबूर कर रहे है। चीन लगातार भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। चीन का पाकिस्तान में ग्वादर,श्रीलंका में हम्बनटोटा,जिबूती और बांग्लादेश में चटगाँव पोर्ट कभी भी रणनीतिक इस्तेमाल में बदल सकता है। भारत से लगती सीमा के आसपास चीन ने बड़े पैमाने पर सड़क और रेलवे ट्रैक का जाल बिछा दिया है। वहीं सीमा पर चीन की बढ़ती सक्रियता से निपटने के लिए भारत ने भी अरुणाचल प्रदेश में अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। इसमें हर मौसम में सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही आसान बनाने वाली नई सुरंगों के अलावा नई सड़कों का निर्माण,पुल,हेलीकॉप्टर बेस और गोला-बारूद के लिए भूमिगत भंडारण वाले ठिकाने तैयार करना शामिल है।

 

शी जिनपिंग चीन के इतिहास में माओं के बाद सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में उभरें है। वे अपनी प्राथमिकता कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक लक्ष्यों को बता चूके है। आधुनिक चीन के निर्माता माओ ने चीन को एशिया का केंद्र बिंदु बताते हुए 1949 में अंतरराष्ट्रीय संधियों को एकतरफ़ा होने का आरोप लगाते हुए ख़ारिज कर दिया था। इसका अर्थ साफ था की चीन का विस्तार जमीन और समुद्र में ऑस्ट्रेलिया,वियतनाम,मंगोलिया,म्यांमार,इंडोनेशिया से लेकर दक्षिण  कोरिया तक बताया गया। चीन से सीमा विवाद का प्रमुख कारण भी यही है कि वह मैकमोहन रेखा को अंतराष्ट्रीय सीमा मानने को तैयार ही नहीं है। चीन इसे औपनिवेशिक रेखा मानते हुए भारत के अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बताते हुए उस पर अपना दावा करता है। ऐतिहासिकता के आधार पर भारत का दावा पुख्ता है और चीन के दावों की अब कोई प्रासंगिकता नहीं दिखाई देती।

 

चीनी खतरों के बीच भारत की सामरिक और कूटनीतिक चुनौतियां है जिससे सामंजस्य बिठाने का प्रयास किया गया है। यूक्रेन पर रूस के हमलें का भारत ने सीधा विरोध तो नहीं किया लेकिन रूस को युद्द से बचने की नसीहत भी दी। भारत ने सतर्कत पूर्वक रूस से आपसी संबंधों को मजबूत किया गया वहीं क्वाड का समूह बनकर समुद्र में चीन की दादागिरी रोकने के लिए अमेरिका से सामरिक सहयोग को भी बढ़ाया गया। क्वाड यानी क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा समूह जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

 

पिछले महीने भारत और अमेरिका ने भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगभग 100 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के औली में युद्ध अभ्यास  किया तो इस पर चीन ने एतराज भी जताया था। चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि वो भारत के साथ उसके रिश्तों में दख़लअंदाज़ी ना करे। चीन भारत के साथ पश्चिम और अमेरिका के संबंधों को संदेह की दृष्टि से देखता है वहीं भारत से लगती सीमा पर सैन्य तैयारियों को लेकर आक्रामकता दिखा रहा है।

 

जाहिर है  निकट भविष्य में भारत और चीन के रिश्तों में सुधार की कोई उम्मीद नहीं है और इससे युद्द जैसी आशंकाएं बनी रह सकती है। ऐसे में किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए रूस और अमेरिका से संबंधों को लेकर भारत की नियन्त्रण और संतुलन की नीति ही ज्यादा कारगर हो सकती है।

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