अंग्रेजों की भविष्यवाणी को भारत के संविधान ने जब गलत साबित  कर दिया…
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अंग्रेजों की भविष्यवाणी को भारत के संविधान ने जब गलत साबित  कर दिया…

संविधान दिवस-26 नवम्बर  

जे.ई.वेल्डन कलकत्ता के पूर्व बिशप थे। भारत की आज़ादी के प्रश्न पर 1915 में उन्होने कहा था की,भारत से ब्रिटिश साम्राज्य का अंत एक अकल्पनीय घटना होगी। जैसे ही अंतिम ब्रिटिश सिपाही बंबई या कराची के बंदरगाह से रवाना होगा,हिंदुस्तान परस्पर धार्मिक और नस्लीय समूह के लोगों का अखाड़ा बन जाएगा। इसके साथ ही ग्रेट ब्रिटेन से जिस ठोस रूप में यहां एक शांतिप्रिय और प्रगतिशील सभ्यता की नींव रखी है वह रातों रात खत्म हो जाएगी।

इसका जवाब 14 अगस्त 1947  की मध्य रात्रि को मिला। दिल्ली में जब आज़ाद भारत का पहली बार झण्डा फहराने का महाआयोजन किया गया,वंदे मातरम और ध्वज प्रस्तुतीकरण का दौर चला,उस रात उसमें बोलने वाले तीन प्रमुख वक्ता थे। सबसे पहले चौधरी ख़ालिक़ज्जमा ने मुसलमानों  की नुमाइंदगी करते  हुए कहा की यहां के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस नए आज़ाद मुल्क के प्रति अपनी वफादारी निभाने से पीछे नहीं हटेंगे। इसके बाद देश के महान शिक्षाविद डॉ.राधाकृष्णन का भाषण हुआ।  डॉ.राधाकृष्णन ने भारत की स्वतंत्रता के महत्त्व पर जोर दिया और इसे देश की लंबी और कठिन संघर्ष यात्रा का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि यह स्वतंत्रता हमारे लिए एक महान अवसर और जिम्मेदारी लेकर आई है। और अंत में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा की यह एक ऐसा क्षण है जो इतिहास में बहुत कम ही प्रगट होता है,जब हम पुराने युग से नए युग में प्रवेश करते है।

आज़ादी के बाद भारत की राष्ट्रीय एकता की परीक्षा की घड़ी थी और दुनिया इस और देख रही थी की भारत इस विभिन्नता का सामना करते हुए क्या एकता कायम रख पाएगा। इसका जवाब मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर से मिला। भारत के विभाजन,आज़ादी और कश्मीर के भारत या पाकिस्तान में मिलने की कवायदों के बीच महात्मा गांधी ने खराब स्वास्थ्य के बाद भी कश्मीर की यात्रा की थी।

आज़ादी के महज कुछ दिनों पहले की गई इस यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है और कश्मीर के भारत में विलय की संभावनाओं के द्वार भी इसी यात्रा से खुले। पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना जब कश्मीर गए थे तो उन्हें वहां की जनता ने जमीदारों का पिट्ठू कहकर अपमानित किया लेकिन महात्मा गांधी का स्वागत करने के लिए समूचा कश्मीर उमड़ पड़ा। उनके दर्शन कर कश्मीरी लोग कह रहे थे कि पीर के दर्शन हो गए।

गांधी वहां से लौट आये और भारत का विभाजन होकर पाकिस्तान भी बन गया। विभाजन के दंश झेलने वाले भारत और उसके टुकड़े पाकिस्तान के बीच अविश्वास की रेखा खींची जा चुकी थी। इसका असर कश्मीर पर पड़ना स्वभाविक ही था। हिंदू मुस्लिम और बौद्ध संस्कृति से आबाद इस रियासत का आज़ाद रहना पाकिस्तान को गंवारा नहीं हुआ। द्विराष्ट्र को लेकर मुखर पाकिस्तानी सियासतदानों का यह मानना था कि उनकी सीमा से लगा कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य है,अत: उसका स्वाभाविक विलय पाकिस्तान में होना चाहिए। लेकिन कश्मीर के लोगों ने गांधी के सर्वधर्म समभाव और भारत के लोकतंत्र को पसंद किया,इस प्रकार कश्मीर भारत का अंग बन गया।

भारत का संविधान न केवल राजनैतिक और विधिक समानता स्थापित करता है बल्कि सामाजिक समानता भी स्थापित करता है। संविधान में यह साफ उल्लेखित है कि किसी भी नागरिक को धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी सामाजिक सुविधा या विशेषाधिकार के उपभोग से वंचित नहीं किया जाएगा। हमारे संविधान में सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में समता और न्याय के आदर्श रखे गए है। लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था संसद में हमारे प्रतिनिधि बैठते है तो उनमे भारतीयता और एक राष्ट्र के प्रतिनिधित्व की अनुभूति होती है। यह विविधता भारत की असल शक्ति है जो भाषाई,जातीय,क्षेत्रीय और धार्मिक प्रतिकूलताओं के बाद भी एक भारत श्रेष्ठ भारत को मजबूत करती है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकृत मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 1 में यह कहा गया है की सभी मनुष्य जन्म से ही गरिमा और अधिकारों की दृष्टि से स्वतंत्र और समान है। उन्हें बुद्धि और अंतश्चेतना प्रदान की गई है। उन्हें परस्पर भ्रातृत्व की भावना से कार्य करना चाहिए। हमारे संविधान की उद्देशिका में बंधुता की यही भावना दृष्टि गोचर होती है। सभी नागरिकों में बंधुता की भावना का विकास और व्यक्ति की गरिमा के साथ राष्ट्र की एकता तथा अखंडता की रक्षा करना प्रस्तावना का मूल ध्येय है। संविधान में स्वतन्त्रता और समानता प्रदान करने के साथ साथ समाज में विद्यमान द्वेष को भी समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है,जिससे लोगों के बीच भाईचारे का विकास हो और अपनत्व की भावना का निर्माण हो। व्यक्ति को प्राप्त स्वतन्त्रता,समानता तथा न्याय उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय एकता और अखंडता का निर्माण प्राथमिक शर्त है। अनेक मतों को मानने वाले भारत के लोगों की एकता और उनमें बंधुता स्थापित करने के लिए संविधान में पंथ निरपेक्ष राज्य का आदर्श रखा गया है।

आज़ादी मिलने और देश में संविधान लागू होने के बाद हम आठवें दशक में प्रवेश कर चूके है। द्वितीय विश्व युद्द के बाद यह अपेक्षा की गई थी की आधुनिक दुनिया मध्यकालीन धार्मिक द्वंद को पीछे छोड़कर समूची मानव जाति के विकास पर ध्यान देगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और दुनिया भर में आस्था को अंधविश्वास से तथा धार्मिक हितों को व्यक्तिगत सम्मान से जोड़ने की राजनीतिक विचारधाराएँ बढ़ गई,इसके साथ ही सत्ता प्राप्त करने का इसे साधन भी बना लिया गया। महात्मा गांधी इसे लेकर आशंकित तो थे ही।  हिन्द स्वराज में महात्मा गांधी ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा कि,कोई भी मुल्क तभी एक राष्ट्र माना जाएगा जब उसमे दूसरे धर्मों के समावेश करने का गुण आना चाहिए। एक राष्ट्र होकर रहने वाले लोग एक दूसरे के धर्मों में दखल नहीं देते,अगर देते है तो समझना चाहिए कि वे एक राष्ट्र होने लायक नहीं है।

हम देखते है की द्वेष और द्विराष्ट्र सिद्धान्त के आधार पर बना पाकिस्तान एक नाकाम राष्ट्र है जबकि सार्वभौमिकता का सम्मान करने वाला भारत दुनिया में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में पहचान बनाने में सफल रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान हमारे संविधान का है जो विविधताओं का सम्मान करते हुए देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता है। यह भारत के नागरिकों के आचरण और व्यवहार में प्रतिबिम्बित होता,जहाँ भिन्न भिन्न संस्कृतियाँ फलीभूत होते हुए भारतीयता में आत्मसात होकर आनंदित होती है। यहाँ भिन्न भिन्न भाषाएँ बोली जाती है लेकिन उसमें मानवीयता के इतने गहरे संदेश होते है कि वह स्वत:भारतीयता में समाहित रहती है। दक्षिण भारत की तमिल और तेलगु का संस्कृत से सामीप्य भारतीयता को मजबूत करता है। उर्दू हिंदी की की विनम्र बहन मानी जाती है,वहीं गंगा में पवित्रता और मुक्ति के गहरें संदेश समाहित है। इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और धर्म निरपेक्ष राज्य है। जिसने तमाम आशंकाओं को धराशायी करते हुए सफलता के कीर्तिमान गढ़े है।

यह भी दिलचस्प है कि भारत की विविधता को उसके खत्म होने का कारण बताने वाला ब्रिटेन कभी सभी सभ्यताओं को अंगीकार कर ही नहीं पाया।  ब्रिटिश राजवंश का चर्च आफ इंग्लैंड के साथ प्रगाढ़ रिश्ता है और वह पंथ की रक्षा का प्रण लेता है। वह चर्च आफ स्काटलैंड की रक्षा की शपथ भी लेता है। रोमन कैथोलिक चर्च से जुड़ा व्यक्ति ब्रिटेन में सिंहासन का पात्र नहीं हो सकता। राजा खुद को प्रोटेस्टेंट घोषित करता है। उसे चर्च आफ इंग्लैंड के प्रति निष्ठा व्यक्त करनी होती है। वह चर्च के सुप्रीम गवर्नर के रूप में सेवारत होता है। यह परंपरा 16वीं शताब्दी से चली आ रही है। ब्रिटिश राजगद्दी पर आसीन शख्सियत से आम आदमी का मिलना नामुमकिन होता है,वहीं भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी बेहद सामान्य और गरीब परिवारों से आकर भारत के सर्वोच्च पद पर पहुंचे है।  यह सब हमारे समावेशी संविधान से संभव हुआ है।  संविधान में उल्लेखित प्रावधान भारत के प्रत्येक नागरिक के सम्मान,सुरक्षा और सर्वांगीण विकास की गारंटी  देते है और यही इस लोकतांत्रिक गणराज्य की सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए इस राष्ट्र के हर नागरिक की यह ज़िम्मेदारी है की वह राष्ट्रीय मूल्यों और आदर्शों की रक्षा करें। अंतत: देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने की हमारी प्रतिबद्धता और अपने गौरवशाली इतिहास को बनाएं रखने के लिए संकल्प से ही राष्ट्र अक्षुण्ण रहेगा।

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